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नोटबंदी के बाद जिन लोगों ने भी फर्जी कंपनियों और अलग-अलग खातों से बैंकों में कालाधन जमा किया, अब वे फंस गए हैं। संदिग्ध लेन-देन करने वालों के खिलाफ अब चौतरफा कार्रवाई जारी है
ज्ञानेन्द्र नाथ बरतरिया
यह कहना बहुत सरल है कि कालाधन कहां है? वजह सीधी-सी है। आप सबकुछ कर डालें। जिनके पास कालाधन है, उसे खारिज कर दें। जिन्होंने इधर-उधर ठिकाने लगा दिया, उनकी बेनामी संपत्तियों, फर्जी बैंक खातों और तमाम हरकतों पर कार्रवाई कर दें। आप कोई घोटाला न करें, न करने दें। लाखों करोड़ रुपये कालाधन बरामद कर लें। सारे प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी सिर्फ बोली लगाकर होने दें। विदेशी बैंकों में जमा पैसों की पड़ताल शुरू कर दें। कर चोरी मुश्किल कर दें। इसके अलावा भी सैकड़ों और काम कर लें, लेकिन फिर भी कोई राह चलता व्यक्ति सरलता से पूछ सकता है- इससे मुझे क्या फायदा हुआ? वास्तव में आम जन को होने वाला फायदा धीमा और परोक्ष होता है। वह कई बार समझ नहीं पाता।
हालांकि नोटबंदी के शुरुआती दिनों में राह चलते व्यक्तियों के पास इन सवालों का सरल जवाब उपलब्ध था। उन्होंने अपनी आंखों से देखा था कि बड़े और मोटे कालेधन वाले और कालेधन वालियां किस तरह छटपटा रही हैं। उन्हें पता था कि नोटबंदी की सर्जिकल स्ट्राइक कहां हुई है। लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक जिनके खिलाफ हुई थी, उनमें से कई लोगों को वह दौर शायद एक तात्कालिक समस्या जैसा लगा। एक स्थिति, जिसमें सिर्फ ‘प्रबंधन’ की जरूरत थी। गरीब लोगों के जनधन खातों में पैसा जमा करवा देना, बेनामी खातों में पैसा जमा करवाना और ज्यादा बड़े खेल के लिए फर्जी कंपनियों की मदद लेना। यह स्वाभाविक भी था। कालाधन हर किसी को मयस्सर नहीं होता। यह जिनके पास था, उन्हें सत्ता का स्वाद पता था। हालांकि यह एहसास नहीं था कि सत्ता हाथ से निकल चुकी है। लिहाजा उन्होंने अनुमानत: लगभग तीन लाख करोड़ रुपये की अघोषित रकम भी बैंकों में डाल दी। बैंकों में जमा हो जाने से कालेधन को सफेद मान लिया गया। बाकी कालाधन नकद नहीं था। उसे हवाला के जरिए देश से बाहर जमा कराया जा चुका था या वह बेनामी संपत्तियों के रूप में था।
कालाधन कहां है और उससे मुझे क्या फायदा हुआ, यह इसका पहला जवाब है। जो तीन लाख करोड़ रुपये की अघोषित रकम बैंकों में जमा की गई है, वह करीब सौ देशों की राष्ट्रीय आय के बराबर है। मतलब भारत की ईमानदार अर्थवयवस्था में इससे सीधे तीन लाख करोड़ रुपये की उछाल आई है। लेकिन क्या इससे वह पैसा सफेद हो गया और क्या कालेधन को ठिकाने लगा लिया गया? नहीं। खेल यहां से शुरू हुआ है। बैंकों में कालाधन जमा करने वालों के लिए ये किसी चूहेदानी की तरह साबित हुए हैं जिसमें वे फंस गए। 31 अगस्त को वित्त मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, नोटबंदी के बाद से, नोटबंदी के आंकड़ों के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मारे गए छापों में 158 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। 1152 समूहों पर प्रवर्तन निदेशालय के छापे पड़ चुके हैं। अकेले प्रवर्तन निदेशालय 1469 करोड़ रुपये की रकम बरामद कर चुका है और इन छापों के डर से 15,496 करोड़ रुपये की रकम का खुलासा लोगों ने खुद सामने आकर कर दिया है। प्रवर्तन निदेशालय 12,520 सर्वेक्षण कर चुका है और 13,920 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता लगा चुका है। खोजबीन, बरामदगी और छापों के जरिए 29,213 करोड़ रुपये की अघोषित आय सामने आ चुकी है। 1626 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्तियां बरामद या अटैच की जा चुकी हैं।
31 जनवरी, 2017 को आयकर विभाग ने ‘आॅपरेशन क्लीन मनी’ अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के पहले चरण में लगभग 18 लाख संदिग्ध मामले चिह्नित किए गए हैं, जिनमें खातों में जमा कराया गया पैसा, जमा कराने वालों की आमदनी से मेल नहीं खा रहा था। 23.22 लाख बैंक खातों में 3.68 लाख करोड़ रुपये ऐसे जमा कराए गए हैं, जो संदेह के दायरे में हैं। 4,70,000 बैंक लेन-देन संदेह के दायरे में रखे गए हैं। इस अभियान के तहत 14,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की ऐसी संपत्ति का पता लगाया गया, जिनके मालिकों ने कभी आयकर रिटर्न ही नहीं भरा था। इतना ही नहीं, इस देश में लगभग एक लाख लोग ऐसे हैं, जिनके खातों और उनमें हुआ लेन-देन संदिग्ध है और उन्होंने ‘आॅपरेशन क्लीन मनी’ अभियान के तहत भेजे गए आयकर विभाग के नोटिसों का उत्तर नहीं दिया है। अब इन सारे खातों की जांच चल रही है। साढ़े पांच लाख से ज्यादा ऐसे नए मामलों का पता लगाया गया है, जिनकी जांच की जानी है। 500 और 1000 के लगभग 16,050 करोड़ रुपये के नोट ऐसे हैं, जो नोटबंदी के दौरान वापस बैंकों में नहीं लौटाए गए। भूल-चूक वाले मामलों को छोड़ दें, तो माना जा सकता है कि इनमें से अधिकांश धन उन लोगों का हो सकता है, जिन्हें नोट वापस लौटाने में जोखिम महसूस हुआ हो। अब सोचिए कि कहां है काला धन।
सबसे अहम पहलू यह है कि 1,48,165 लोगों ने करीब 4,92,207 करोड़ रुपये बैंकों में जमा कराए। औसत निकाला जाए तो हर खाते में 3.32 करोड रुपये जमा कराए गए। यह रकम 500 और 1,000 के कुल नोटों की करीब एक तिहाई होती है। यानी भारत की जनसंख्या के 1 प्रतिशत के 100वें हिस्से ने (0.00011 प्रतिशत ने) देश में मौजूद कुल नकदी का एक तिहाई हिस्सा जमा करवा दिया। अब फिर सोचिए। हम कैसी भ्रष्ट और गंदगी भरी अर्थव्यवस्था में जी रहे थे। आर्थिक स्वच्छता का यह मिशन आम और ईमानदार आदमी के लाभ के लिए नहीं है, तो क्या है? एक और पहलू। 2,24,000 फर्जी कंपनियां, एक झटके में बंद कर दी गईं। नोटबंदी के बाद मिले आंकड़ों के अध्ययन से पता चला कि करीब 3 लाख कंपनियां हवाला के जरिए कारोबार कर रही थीं। ऐसी 37,000 कंपनियों की पहचान की जा चुकी है, जो हवाला के जरिए कारोबार कर रही थीं और काले धन को ढकने-छिपाने का काम करती थीं। एक और पहलू— आयकर जमा करने वालों की संख्या नोटबंदी के बाद 26.6 प्रतिशत बढ़ गई। ई-रिटर्न भरने वालों की संख्या लगभग 27.95 प्रतिशत बढ़ गई।
जिन 2 लाख से ज्यादा फर्जी कंपनियों के रजिस्ट्रेशन रद्द हुए थे, उनमें से 5,800 कंपनियों के बैंक खातों का विवरण निकाला जा चुका है। इन कंपनियों ने 13,140 खाते खुलवा रखे थे, जिनमें नोटबंदी वाले दिन तक सिर्फ 22 करोड़ रुपए जमा थे। नोटबंदी के बाद रातोरात इन कंपनियों के खातों में 4,573 करोड़ रुपये जमा हो गए और 4,552 करोड़ निकाल भी लिए गए। मतलब सिर्फ 21 करोड़ रुपये बाकी छोड़े गए। कई कंपनियों के नाम पर 100 से ज्यादा बैंक खाते थे। इनमें से एक कंपनी के नाम 2,143 बैंक खाते मिले हैं। कई कंपनियों के नाम पर 300 से लेकर 900 तक बैंक खाते थे।
एक अन्य कंपनी, जो खुद को घाटे में चलता दिखा रही थी, उसने नोटबंदी होते ही अचानक अपने बैंक खाते में 2,484 करोड़ रुपये जमा किए और फिर निकाल भी लिए। सारी संदिग्ध शेल कंपनियों में नोटबंदी के बाद 17,000 करोड़ रुपये जमा कराए गए। लेकिन इन कंपनियों के इस्तेमाल के हथकंडे से कालाधन सफेद नहीं हो गया। फरवरी 2017 में नोटबंदी के आंकड़ों का विश्लेषण शुरू होते ही सरकार ने इन फर्जी कंपनियों की हरकतों पर कार्रवाई करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन कर दिया था। शेल कंपनी, पोंजी कंपनी, खोखा कंपनी— सबके खिलाफ व्यापक कार्रवाई शुरू की गई। कार्रवाई कंपनियों और उनसे जुड़े लोगों पर भी हो रही है। इसमें बहुत रोचक मामले सामने आए हैं। प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक नेता के 46.70 करोड़ रुपये सफेद करने वाली एक कंपनी के खुलासे की भी बात सामने आई है। मुंबई के अंधेरी इलाके में किसी जगदीश प्रसाद पुरोहित नाम के डाटा एंट्री आॅपरेटर के यहां छापा मारा गया, तो पता चला कि एक ही पते पर 700 से ज्यादा शेल कंपनियां दर्ज हैं। सभी फर्जी कंपनियां पुरोहित की बताई गर्इं। पुरोहित ने इन कंपनियों को चलाने के लिए 20 लोगों को तथाकथित निदेशक बना रखा था। इसी तरह राजेश्वर एक्सपोर्ट नाम की एक ऐसी कंपनी प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी में सामने आई, जिसने आयात करने के बहाने 1400 करोड़ रुपये विदेश भेज दिए थे।
प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश के कई शहरों, पटना, कोच्चि, हैदराबाद, चेन्नई, रांची आदि में छापे मारे हैं। यह कार्रवाई अभी जारी है। इन लाखों फर्जी कंपनियों से कोई साढ़े चार लाख तथाकथित निदेशक जुड़े पाए गए हैं। राजद प्रमुख लालू प्रसाद के कुनबे के घरेलू नौकरों की तरह हो सकता है कि इनमें से कई लोगों को यह पता भी न हो कि वे किसी कंपनी बहादुर के निदेशक भी हैं।
एक छोटा सा सवाल- क्या यह सारी कार्रवाई बहुत पहले नहीं हो जानी चाहिए थी? पुन: छोटे से शुरुआती सवाल पर लौटते हैं- मुझे क्या मिला? बैंक अब गरीब लोगों को सस्ती दरों पर ऋण मुहैया करा रहे हैं। कालेधन के ठप हो जाने से ईमानदारी की अर्थव्यवस्था में नई जान आई है, जिसमें देश की 99 प्रतिशत से भी ज्यादा जनसंख्या भागीदार है। कई राज्यों में तो नितांत गरीब लोगों के जनधन खातों में कालेधन जमा कराए गए हैं और देश से लूटी गई यह रकम वापस देश के सबसे गरीब लोगों के हाथों में पहुंच गई है।
एक बार फिर शुरुआती सवाल पर लौटें— कहां है कालाधन? इसका एक जवाब नोटबंदी से भी पहले मिलता है। मोदी सरकार ने 2016 में पहली बार कालाधन डिक्लेरेशन स्कीम की घोषणा की थी। सरकार ने उसी समय कह दिया था कि जो लोग तय अवधि में कालाधन सार्वजनिक कर देंगे, उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। लेकिन जो कालाधन छिपाने की कोशिश करेंगें, उन पर कड़ी कार्रवाई होगी। इस योजना के तहत 65,250 करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर हुई थी, जिससे सरकार को कर के रूप में 29,362 करोड़ रुपये मिले थे। तब तक केंद्र में मोदी सरकार को आए हुए दो वर्ष से भी कम समय हुआ था और इस अवधि में सरकार 56,378 करोड़ रुपये कालाधन छापेमारी और 16 हजार करोड़ रुपये कर जमा न करने वालों से वसूल चुकी थी। यानी 72,378 करोड़ रुपये की वसूली हुई जो कम से कम 80 देशों की सालाना राष्ट्रीय आय के बराबर है। एक बार फिर से पूछिए न, कहां है कालाधन? अच्छा लगता है।
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