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8 अक्तूबर, 2017
आवरण कथा ‘शक्ति सबके हित की’ से स्पष्ट होता है कि विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वसंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का उद्बोधन सज्जन शक्ति को राष्ट्र रक्षा, उन्नति और स्वालंबन के लिए प्रेरित करता है। उनका स्पष्ट चिंतन सिर्फ रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए दिशाबोधक है।
—अनूप वर्मा, लाजपत नगर (नई दिल्ली)
आज देश के सामने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई चुनौतियां खड़ी हैं। एक तरफ जहां देश के अंदर रोहिंग्या समस्या, आतंकवाद, उन्माद, भ्रष्टाचार, जात-पात है तो दूसरी ओर पाकिस्तान और चीन भारत से उलझने के लिए कुछ न कुछ विवाद पैदा ही करते रहते हैं। यह समस्या आज से नहीं दशकों पुरानी है और देश के लोग इनसे लड़ते भी हैं। लेकिन अब और गंभीर होना होगा। सब मतभेदों को भुलाकर राष्ट्ररक्षा के लिए आना होगा। तभी भारत शक्तिशाली बनेगा।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
वामपंथी चाल
रपट ‘निशाने पर महामना का मंदिर (8 अक्टूबर, 2017)’ स्पष्ट करती है कि हाल में जो भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में घटित हुआ, उसमें काफी हद तक वामपंथी खेमे का हाथ रहा। यह पहली बार नहीं है जब महामना के मंदिर को लक्षित किया गया हो। समय-समय पर इसकी गरिमा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए षड्यंत्र रचे जाते रहे हैं। यह वही लोग हंै जो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में होने वाली अराष्ट्रीय गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। लेकिन सेकुलर मीडिया वह नहीं दिखाता।
—अनुपम रावत, हरिद्वार (उत्तराखंड)
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में घटी घटना पूरी तरह से वामपंथियों द्वारा प्रायोजित रही। जिस तरह से सेकुलर मीडिया ने महामना के मंदिर को निशाने पर लेकर कुतर्क गढ़े उस सबसे इसकी गरिमा को ठेस पहुंची है। लेकिन यही मीडिया जेएनयू में घटी ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साध जाता है। जबकि जेएनयू में तो आए दिन ऐसी घटनाएं आम हैं। लेकिन फिर भी वह इस विश्वविद्यालय को ऐसे दर्शाता है जैसे यहां सब ठीक है। मेरा मानना है कि कोई भी संस्थान हो या फिर विवि., जहां भी अराजक गतिविधियां होती हों उन पर सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
जो लोग महामना के मंदिर के बारे में कुतर्क कर रहे हैं और इसे बदनाम करने के षड्यंत्र में शामिल हैं, उन्हें इसके इतिहास को पढ़ लेना चाहिए। यह देश के अन्य विश्वविद्यालयों जैसा नहीं है। यह एक साधुमना व्यक्ति की कठोर तपस्या के बाद उपजा मूर्त मंदिर है, जिसकी आधारशिला रखने के लिए दूसरों से भिक्षा मांगने में भी संकोच नहीं किया। इतनी कठिन तपस्या का अनुमान तो वही लगा सकता है जो इस स्तर का व्यक्ति हो। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों के लिए विद्या के इस पावन मंदिर की गरिमा को ठेस न पहुंचाएं।
—कजोड़ राम निखिल, अंबेडकरनगर (नई दिल्ली)
हालात चिंताजनक
पंजाब में सदैव से धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक समन्वय रहा है। राजनीतिक विचारधारा की भिन्नता के बावजूद संबंध अटूट रहा। लेकिन कुछ राजनीतिक दल इसमें पलीता लगाने के लिए आए दिन कुछ न कुछ ऐसा करते हैं कि राज्य में सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है और लोग आपस में लड़-मर जाते हैं। पंजाब के लोगों को ऐसे नेताओं और षड्यंत्रकारी लोगों से सचेत रहना होगा। उन्हें समझना होगा कि पंजाब की मिट्टी देश की रक्षा करना सिखाती है, आपस में लड़ना नहीं। इन नेताओं का क्या? ये तो अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
—ओमप्रकाश शर्मा, उत्तम नगर (नई दिल्ली)
बदलता रुख
लेख ‘शैतान का नामकरण (8 अक्टूबर, 2017)’ अच्छा लगा। अंतरराष्ट्रीय राजनीति नित नए रंग बदलती है। दक्षिण पूर्वी एशिया में कभी पाकिस्तान अमेरिका का सबसे विश्वस्त साथी हुआ करता था। लेकिन आज वही पाकिस्तान चीन का सबसे भरोसेमंद साथी है। लेकिन अब यह तय है कि अमेरिका धीरे-धीरे पाकिस्तान को समझ रहा है और उससे दूर जा रहा है।
—विमल नारायण खन्ना, कानपुर (उ.प्र.)
हवा में घुला जहर
दिल्ली में है हो रही, सबकी हवा खराब
सबके अपने प्रश्न हैं, लेकिन नहीं जवाब।
लेकिन नहीं जवाब, हवा में जहर घुली है
मिट्टी हो या पानी, सबमें धूल मिली है।
कह ‘प्रशांत’ नेतागण कुछ दिन शोर करेंगे
फिर ले करके कम्बल सारे सो जाएंगे॥ — ‘प्रशांत’
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