|
''बिना सफलता के संतुष्टि नहीं मिलती। सफलता के साथ सार्थकता पाने के लिए भी प्रयास करना पड़ता है।'' उक्त उद्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने दिया। वे पिछले दिनों पुणे में लता मंगेशकर मेडिकल फाउंडेशन के दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल में कुसालकर एटमिक व एक्स-रे सेंटर का लोकार्पण करने के पश्चात गणमान्यजनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन सार्थकता पाने के लिए है। इसे हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि इसके लिए प्रयास करने वाला समाज ही प्रगति करता है। यह देश सफलता और सार्थकता पर विचार करने वाला देश है। जीवन में देश के प्रति योगदान को भूलना नहीं चाहिए। हमें दुनिया भर में जितना भी सम्मान मिले, तब भी उसका 50 प्रतिशत योगदान अपने देश को ही जाता है। देश ही हमारी पहचान है, इसे ध्यान में रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मन का मंथन महत्वपूर्ण है। मन की संवेदना बनाए रखने के लिए लगातार चिंतन पर कार्य करते रहना चाहिए। दो हाथों से नहीं, बल्कि सौ हाथों से दान करना चाहिए। समाज के प्रति संवेदना हो और हम वापस करने की भावना से काम करते रहें तो प्रेरणा बाहर से लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस अवसर पर दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल के ट्रस्टी पंडित हृदयनाथ मंगेशकर, डॉ़ धनंजय केलकर, तनुजा कुसालकर और विजय कुसालकर सहित शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए मान्यवर उपस्थित थे। -(विसंकें, पुणे)
'हिन्दू विचार एवं मूल्य शाश्वत हैं'
''हिन्दू विचार संघ कार्य का आधार है। हिन्दू मूल्य और जीवन दर्शन (हिन्दुत्व) यह किसी का विरोधी नहीं है अपितु यह समन्वयक शक्ति है।'' उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैया जी जोशी ने कहीं। वे 4-5 नवम्बर, 2017 को करीमनगर में आयोजित तेलंगाना प्रान्त कार्यकर्ता शिविर के समापन समारोह में बोल रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व राष्ट्र को एकीकृत करने की शक्ति है। यह सभी विचारों के लोगों को संगठित करने वाली और सर्वसमावेशक है। हिन्दुत्व, मंदिर में जाने वालों और न जाने वालों के बीच कोई भेद नहीं रखता। इसी प्रकार कर्मकाण्ड पर विश्वास करने वालों और न करने वालों को भी एक दृष्टि से देखता है। इस भाव का दर्शन हम कश्मीर से कन्याकुमारी तक कर सकते हैं। जब हम हिन्दू शब्द का प्रयोग करते हैं, तब यह सिन्धु नदी के पार रहने वाले लोगों की महान एवं प्राचीन संस्कृति का द्योतक है। उन्होंने कहा कि हिन्दू विचार एवं मूल्य शाश्वत हैं। हम सदैव कहते हैं कि सर्वे भवन्तु सुखिन:। हम मानते हैं कि 'वह एक' अपने को अनेक रूपों में व्यक्त करता है। हमारे ऋषि-मुनि देश से बाहर गये, किन्तु कभी शस्त्र लेकर नहीं गये। वे सदैव विश्व को ज्ञान देने के लिए बाहर गए। उन्होंने सदैव मानव मूल्यों को विश्व के सामने प्रतिपादित किया और कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, किन्तु भारत लगातार एकान्तिक पंथो सहित अनेक क्षुद्र मन वाली शक्तियों द्वारा आक्रामित होता आ रहा है।
टिप्पणियाँ