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1 अक्तूबर, 2017
आवरण कथा ‘अपने बेगाने’ उस दर्द को बयां करती हैं जो 28 वर्ष से कश्मीर के हिंदू झेलते आ रहे हैं। अपने ही घर से किसी को बेदखल कर दिया जाए, शायद मानव जीवन में इससे बड़ा कोई दु:ख नहीं हो सकता। लेकिन इसके बाद भी देश के सेकुलर नेताओं को कभी फुर्सत नहीं मिली कि वे उनके दु:ख-दर्द को महसूस करें। लेकिन अब यही लोग रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने के लिए आंसू बहा रहे हैं, उनकी तरफदारी करके मानवता की दुहाई दे रहे हैं। पर वे भूल जाते हैं कि अपने ही देश में, अपने ही घर से पांच लाख से अधिक हिंदू अपने घर छोड़े पड़े हैं, उन पर आंसू क्यों नहीं बहाते? ऐसा दोहरा रवैया क्यों?
—आशुतोष रंजन, मेरठ (उ.प्र.)
अकेले जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, देश के अलग-अलग प्रांतों में हिंदू कम होते जा रहे हैं। जहां-जहां मुसलमान या ईसाई बढ़ रहे हैं, वहां या तो वे हिन्दुओं को संख्याबल के आधार पर अत्याचार करके भगाते हैं या फिर कन्वर्जन करके उन्हें हिंदुओं के खिलाफ ही हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड, कश्मीर, बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, बिहार के कई सीमांत क्षेत्र आज इस बीमारी से ग्रस्त हैं। इन प्रदेशों की सरकारों को इस संवेदनशील विषय पर तत्काल कदम उठाने होंगे, नहीं तो भविष्य में किसी बड़ी घटना से इंकार नहीं किया जा सकता।
—हरिनाम सिंह, जबलपुर (म.प्र.)
यह देश का दुर्भाग्य ही है कि यहां के नेता अपने देश के नागरिकों की सुरक्षा की चिंता नहीं कर रहे हैं। वे चिंता कर रहे हैं उनकी जो उन्मादी हैं। रोहिंग्याओं के बारे में देश की सुरक्षा एजेंसियों ने स्पष्ट शब्दों में बताया है कि वे आपराधिक कार्यों में लिप्त हैं और कभी भी देश के लिए संकट बन सकते हैं। ऐसे में भी हमारे सेकुलर नेता मानवीयता का हवाला देकर उन्हें बसाने की कुतर्कपूर्ण बातें कर रहे हैं। यह तुष्टीकरण राजनीति नहीं तो क्या है? कब तक वोट की राजनीति करके देश को गर्त में धकेलते रहेंगे?
—बी.एल.सचदेवा, आईएनए मार्केट (नई दिल्ली)
म्यांमार ने अपनी अस्मिता और देश की सुरक्षा के लिए रोहिंग्याओं के खिलाफ जो अभियान चलाया, उसे उचित मानना होगा, क्योंकि कोई भी देश ऐसी अतिवादी घटनाएं नहीं सहेगा। प्रत्येक देश शांति और सद्भाव चाहता है। लेकिन हर जगह कुछ ऐसे उन्मादी तत्व हैं, जो इसमें पलीता लगाने का काम करते हैं। रोहिंग्या मुसलमानों ने कुछ ऐसा ही किया। फिर भी विश्व समुदाय की ओर से उनके प्रति मानवीयता का भाव रखने की वकालत की जा रही है।
—आनंद मोहन, पालम ( दिल्ली)
केन्द्र सरकार को कश्मीर के हिंदुओं को बसाने के लिए जल्द ही ठोस कदम उठाने होंगे क्योंकि वे आज भी खानाबदोश की तरह अपना जीवन काट रहे हैं। इन परिवारों के दु:ख-दर्द को समझने की जरूरत है।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
देश के विभाजन के बाद लाखों की संख्या में तिब्बती, म्यांमार से आए लोग, श्रीलंकाई तमिल भारत में बसे हैं। उसके बाद धीरे बांग्लादेशी घुसपैठियों ने देश के अलग-अलग राज्यों में बसना शुरू कर दिया। और अब रोहिंग्या समस्या। भारत में अपने नागरिकों को ही समुचित सुविधाएं देनी भारी पड़ रही हैं। ऐसे में वह रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों को क्यों झेले? भारत कोई धर्मशाला तो है नहीं, जिसका जब मन करे वह यहां चला आए और बस जाए। भारत सरकार को बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके उन्हें देश से खदेड़ना होगा।
—रामसहाय जोशी, अंबाला छावनी (हरियाणा)
सेवा के लिए आएं आगे!
रपट ‘सेवारत सिपाही (1 अक्तूबर, 2017)’ में सही ही कहा गया है कि समाज को मजबूत बनाने के लिए केवल सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नहीं होते, सामाजिक भागीदारी की अत्यधिक जरूरत होती है तभी समाज में बदलाव आता है। समाज के कमजोर व्यक्ति के लिए केवल आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि उसके स्वालंबन का भी कार्य होना चाहिए। आज बेटी बचाओ, पर्यावरण रक्षा, शिक्षा, संस्कृति, कृषि जैसे अनेक क्षेत्र हैं जहां स्वयंसेवी लोगों की अत्यधिक जरूरत है। यहां आकर वे इन क्षेत्रों में अपना योगदान देकर समाज को नया स्वरूप प्रदान कर सकते हैं।
—मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
शीर्ष सौ में हम आये
हर दफ्तर में है घुसा, भारी भ्रष्टाचार
कैसे फिर आसान हो, करना कारोबार?
करना कारोबार, रास्ते सुगम बनाये
तीस सीढ़ियां चढ़े, शीर्ष सौ में हम आये।
कह ‘प्रशांत’ पहले दस में भी आ जाएंगे
भ्रष्टाचार कोढ़ से यदि छुट्टी पाएंगे॥
— ‘प्रशांत’
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