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चीन में चप्पे-चप्पे पर कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव और पहरा, और केंद्र में समाहित संपूर्ण सत्ता। यह कम्युनिस्ट पार्टी का चीन हैे। शासन, प्रशासन, अदालत, वित्त, सेना, शिक्षा, मीडिया, इतिहास और संस्कृति को चलाती है पार्टी
प्रशांत बाजपेई
उनके दावे दुनिया को एक वैकल्पिक शासन व्यवस्था देने के हैं। दैत्याकार ‘सेज’ (विशेष आर्थिक क्षेत्र), दुनिया के हाटों में लगते सस्ते चीनी माल के अंबार को वे अपनी दलील के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। लेकिन देसी मीडिया पर कड़े पहरे और नियंत्रण के बावजूद छनकर आने वाले समाचारों के कतरे उनके दावों पर छींटे उड़ाते रहते हैं। विरोधियों के लिए खड़े किए गए हजार से भी ज्यादा श्रमशिविर, बदनाम लाओगाई, जहां करोड़ों जीवन सड़ रहे हैं। मामूली बातों पर लोगों को अपाहिज बना देने वाली या मार डालने वाली नित नए कांड रचती चीन की म्युनिसपल पुलिस चेन्गुआन, जिसके खिलाफ आम चीनी का गुस्सा भड़कता जा रहा है। थ्येनआनमन चौक की रक्तरंजित यादें, तिब्बत और अंदरूनी मंगोलिया में चल रहा दमन चक्र, और भी कई बातें जिज्ञासा जगाती हैं, कि चीन के आका देश को किस रीति से चलाते हैं। चीन की सीमाओं पर निरंतर आक्रामक रहने वाली पीएलए (चीनी सेना) को कैसे पार्टी लीक पर रखा जाता है? कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना के नेताओं के भावविहीन बने रहने वाले चेहरे, जिनके होंठ मुस्कराते हैं पर आंखें नहीं, एक दीवार जैसे प्रतीत होते हैं।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी या कम्युनिस्ट पार्टी का चीन ?
वे सब तरफ हैं- शासन, प्रशासन,अदालत, वित्त और सेना, शिक्षा और मीडिया, इतिहास और संस्कृति, संस्थानों के सपनों में भी पार्टी तय करती है कि छात्र क्या पढ़ें, लोग कैसे सोचें, टीवी पर क्या देखें और कितने बच्चे पैदा करें। करीब डेढ़ अरब आबादी वाले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में नौ करोड़ सदस्य हैं। इसमें 20 प्रतिशत महिलाएं हैं जो ताकतवर राजनीतिक पदों से दूर ही रखी जाती हैं। चीन में राजनीतिक रूप से ताकतवर एक ही महिला हुई है, माओ की चौथी पत्नी, कुख्यात जिआंग किन, जिसके नेतृत्व में चीन में बर्बरता और लाखों राजनीतिक हत्या का इतिहास लिखा गया था। बाद में अदालत में जिआंग किन ने बयान दिया था, ‘‘मैं चेयरमैन माओ का कुत्ता थी, उन्होंने जिसे काटने को कहा, मैंने उसे काटा।’’ पार्टी असहमतियों और असंतोषों से जिस प्रकार निपटती आई है उसके ऐसे कितने ही रक्तरंजित उदाहरण भरे पड़े हैं।
रसूख का टिकट
पार्टी अपने आप में एक विशिष्ट तबका है। यदि आप पार्टी में नहीं हैं, तो आपके और अवसरों के बीच एक कांच की दीवार हमेशा मौजूद रहती है। पार्टी में होना आपके सौभाग्य के दरवाजे खोल सकता है। बेहतर नौकरियां, शक्ति, दूसरों पर वरीयता, बच्चों के लिए बेहतर विद्यालय, नौकरी में तरक्की, व्यापार सुविधाएं, पुलिस और अदालत पर प्रभाव आदि चीनियों को पार्टी सदस्यता लेने के लिए ललचाते हैं। पर सदस्यता के लिए पार्टी के स्थानीय लोगों की कृपा जरूरी है। भर्ती के लिए बाकायदा साक्षात्कार होता है, जिसमें माओ की ‘लाल किताब’ से लेकर शी जिनपिंग के किसी प्रसिद्ध भाषण की विषयवस्तु पूछी जा सकती है। कॉलेज छात्र, किसान, व्यापारी, सरकारी कर्मचारी सब बड़ी संख्या में इस ‘परीक्षा’ में भाग लेते हैं, और उत्कंठित होकर परिणाम का इंतजार करते हंै। लोकतंत्र के नाम पर चीन में गांव के स्तर पर चुनाव प्रारंभ किये गए हैं (भारत समेत दुनियाभर में एक विशेष ‘बुद्धिजीवी’ तबका इस बात का बड़ा ढोल पीट रहा है) जहां चुना गया व्यक्ति स्वत: ही कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बन जाता है। शी जिनपिंग के आने के बाद अब पार्टी का आकार घटाने की कवायद शुरू हुई है। यानी, आने वाले बरसों में खास लोग और खास हो जाएंगे।
सत्ता का पिरामिड
संगठन का ढांचा एक पिरामिड की शक्ल लेता हुआ बढ़ता है। सबसे ऊपर होती है नेशनल पार्टी कांग्रेस, जिसकी हर 5 साल में बैठक होती है, जिसमें दो हजार सदस्य भाग लेते हैं। हाल ही में हुई ऐसी ही बैठक में शी जिनपिंग ने चीन और पार्टी की निर्बाध सत्ता अपने हाथों में ली है। नेशनल पार्टी कांग्रेस का मुख्य काम इन 2000 लोगों में से 200 पूर्ण सदस्यों और 150 अन्य सदस्यों का चुनाव कर सेंट्रल कमेटी का निर्माण करना होता है। ये नाम इस ‘चुनाव’ से पहले ही तय कर लिए जाते हैं। इन 350 लोगों में से 24 सदस्यीय पोलित ब्यूरो के नाम तय होते हैं। पोलित ब्यूरो स्थायी समिति का चुनाव करता है। पोलित ब्यूरो और स्थायी समिति वह जगह है जहां चीनियों के भाग्य के फैसले लिए जाते हैं। पोलित ब्यूरो तक पहुंचने का रास्ता जटिल है। दशकों तक पार्टी के लिए काम करने का इतिहास, विवादों से दूर रहने की आदत, पार्टी के बड़े नामों की कृपा, पार्टी के अंदर ज्यादा दोस्त और कम से कम दुश्मन बनाने की कला (शक्तिशाली दुश्मन तो कतई नहीं) आदि योग्यताएं होनी जरूरी हैं।
स्थायी समिति के लोग सत्ता और पार्टी के प्रमुख पद संभालते हंै। जैसे चेयरमैन आॅफ नेशनल पीपुल्स कांग्रेस, प्रधानमंत्री, पार्टी महासचिव और अनुशासन समिति के प्रमुख आदि। अनुशासन समिति पार्टी के अंदर ‘अनियमितताओं’ और भ्रष्टाचार की जांच करती है। इसी का उपयोग करके माओ से लेकर शी जिनपिंग तक अपने विरोधियों को ठिकाने लगाते आए हैं। चीन का साथी पाकिस्तान जिस प्रकार ‘अच्छे तालिबान और बुरे तालिबान’ से अलग-अलग ढंग से पेश आता है, उसी प्रकार चीन के शीर्ष नेता भी ‘अच्छे भ्रष्टाचार और बुरे भ्रष्टाचार’ में फर्क करना जानते हैं। यह तंत्र कितना नृशंस है, इस बात का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि शीर्ष नेता की चिढ़ के चलते माओ के सहयोगी, पार्टी के वाइस चेयरमैन लिऊ शाओकि को माओ की पत्नी ने लगभग फांसी के तख्ते तक पहुंचा दिया था। लिऊ जेल में निमोनिया से मरे। माओ के शासनकाल में प्रधानमंत्री रहे चाऊ एन लाई (जो भारत भी आए और ‘हिन्दी चीनी भाई-भाई’ के नारे लगे) मूत्राशय के कैंसर के इलाज के लिए माओ के सामने गिड़गिड़ाते थे, और माओ टालते जाते थे। समय गुजरता गया और जब ‘प्रधानमंत्री’ चाऊ एन लाई की हालत बिगड़ गई, तब माओ ने शल्य चिकित्सा की अनुमति दी। 1976 में चाऊ एन लाई अस्पताल के बिस्तर पर मर गए।
चीन की सरकार के संचालन के लिए नौकरशाही के ऊपर स्टेट काउंसिल होती है, जो पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व के प्रति जवाबदेह होती है। ये स्टेट काउंसिल कानून व्यवस्था, प्रशासन, बजट और लोगों के जीवन के हर पहलू को नियंत्रित करती है। अदालत और न्याय व्यवस्था चीनियों को तब तक न्याय देती है, जब तक पार्टी या पार्टी के लोग आड़े न आएं। समस्या यह है कि पार्टी सर्वव्यापी है।
सत्ता से चिपके बुजुर्ग
हाल ही में जब शी दुबारा गद्दी संभालने के बाद अपना ढाई घंटे लंबा भाषण दे रहे थे, तब सभागार में उपस्थित पार्टी के कद्दावर नेता और महासचिव रहे 91 वर्षीय जिआंग जेमिन की उपस्थिति ने सबका ध्यान खींचा। जब सारा कम्युनिस्ट नेतृत्व पीठ सीधी कर, दम साधे जिनपिंग का भाषण सुन रहा था, तब जिआंग बेफिक्री से कुर्सी पर टिके, भाषण की प्रति के कागज उलट रहे थे। बीच में बुदबुदाते, इधर-उधर देखते। और किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी। चीन का ‘शहंशाह’ अपना भाषण पढ़ रहा था, उस समय सचेत दिखना अपनी खाल बचाए रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी था। जब तक आप सर्वशक्तिमान हैं, तब तक आप और आपके अपनों के हित सुरक्षित हैं, लेकिन जब सत्ता हाथ से फिसलती है, तो अनिश्चितता और असुरक्षा बढ़ती है। आपके सगे संबंधियों की पार्टी में स्थिति, नौकरी, भरे-पूरे व्यापार, सब कुछ असुरक्षित होने लगता है। इसलिए चीन के बुजुर्ग नेता सत्ता से उतरकर भी महत्वपूर्ण स्थानों पर पकड़ बनाए रखते हैं। ये लोग अपने लोगों को पोलित ब्यूरो, अदालत, प्रशासन और नौकरशाही में प्रविष्ट करवाते हैं। सत्ता जाते ही श्रेय भी छिन जाता है। आपके किये गए कार्य भी झुठलाए जा सकते हैं। इसलिए अंतिम सांस तक सत्ता के गलियारे नहीं छूटते। आधुनिक चीन के निर्माता देंग जियाओपिंग ने सत्ता छोड़ने के बाद भी अपनी इतनी पकड़ बनाकर रखी थी कि जब ’89 में थ्येनआनमन चौक पर लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन हुआ, तब चीन में मार्शल लॉ लगाकर, सारे चीन की सड़कों पर सेना को उतारने का फैसला उन्होंने ही कुर्सी के पीछे से करवाया था।
सत्ता की रक्षक सेना
चीन की सेना चीन और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, दोनों की ही रक्षा करती है। ‘दुश्मनों’ से और लोकतंत्र से। सेना ही थी जिसने 1989 के लोकतंत्र की मांग में उठे आंदोलन को हजारों चीनियों की हत्या करके कुचल डाला था। सेना पार्टी के नीचे काम करती है। सेना और अर्धसैनिक बलों का नियंत्रण मिलिटरी कमीशन करता है, जिसके चेयरमैन कभी माओ थे, फिर देंग जियाओपिंग थे और अब शी जिनपिंग हैं। हर 15 साल में सेना में सुधार किये जाते हंै। सेना के अंदर पार्टी से नियुक्त अधिकारी होते हैं जिन्हें कमिस्सार कहा जाता है। सेना की पॉलिटिकल कमेटी और कमिस्सार सेना के अधिकारियों के साथ मिलकर सेना का संचालन करते हैं। ये राजनीतिक नियुक्तियां सेना के शीर्ष से लेकर हर स्तर तक होती हैं। ’89 के लोकतंत्र आन्दोलन के समय की एक घटना चीन के कम्युनिस्टों के मस्तिष्क में आज भी कौंधती होगी, जब सेना के एक जनरल ने अपने ही नागरिकों पर आक्रमण करने से मना कर दिया था। सेना के अधिकारियों के अंदर इस प्रकार की स्वतंत्र चेतना उनके निजाम के लिए कितनी खतरनाक हो सकती है, इसका अंदाज उन्हें अच्छी तरह से है। इसलिए सैनिक और सैन्य अधिकारियों को पार्टी की विचारधारा में रंगना और सेना पर पार्टी की पकड़ बनाए रखना उनकी सत्ता की अनिवार्यता है।
जीवन पर लौह जकड़
जुलाई 2017 में पार्टी ने अपने सदस्यों को आदेश जारी किया है कि पार्टी के सिद्धांतों पर आस्था बनाए रखने के लिए उन्हें रिलीजन का पूर्णत: त्याग करना होगा। उन्हें उपासना और विश्वास की अनुमति नहीं है। पार्टी सदस्यों को आर्थिक विकास और सांस्कृतिक विविधता के नाम पर भी किसी उपासना पद्धति से जुड़ने से मना किया गया है। चीन में ईसाइयत के विस्तार से पार्टी आशंकित है कि यह भविष्य में उसकी सत्ता के लिए खतरा हो सकता है। अंदरूनी मंगोलिया में बढ़ता बुद्ध का प्रभाव भी उसे रास नहीं आ रहा है। पार्टी की एथनिक और रिलीजस कमेटी के प्रमुख वांग का कहना है, कि ‘पार्टी के सिद्धांत प्रभावित होंगे तो पार्टी की एकता भी प्रभावित होगी। दूसरी ओर, पाठ्यपुस्तकों में इतिहास को इस तरह तोड़ा-मरोड़ा गया है कि आम चीनी का इतिहास बोध कम्युनिस्ट सत्ता की सेवा में खड़ा है। ल्ल
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