|
दिल्ली में जब अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन हुआ था तो पाञ्चजन्य में सम्पादकीय छपा था- 'भारतीय सभ्यता का उषाकाल।' जो दिल्ली आक्रमणकारियों ने 18 बार ध्वस्त किए, मंदिर बनने नहीं दिए, सबसे बड़े आस्था केंद्र बर्बर हमलावरों की छाया में मस्जिदों व चर्चों के रूप में बने, वहां पहला बड़ा मंदिर गांधीजी के आग्रह पर सेठ बलदेव दास बिरला व उनके पुत्र सेठ घनश्याम दास बिरला ने मंदिर मार्ग पर 1939 में बनवाया। वह था लक्ष्मी नारायण मंदिर। इसका उद्घाटन भी गांधीजी ने किया था। दूसरा, सत्तर के दशक में श्रीमती इंदिरा गांधी के सहयोग से छतरपुर में आद्या कात्यायनी मंदिर बना। लेकिन हिंदू गौरव, वास्तुशिल्प के उत्कर्ष, भारत की सभ्यता व संस्कृति का अद्भुत दर्शन कराने वाला पहला विराट मंदिर कह सकें, ऐसा अक्षरधाम ही है।
यह 2005 में बना था। इसकी प्रेरणा स्वामीनारायण संप्रदाय के महान संत योगीजी महाराज (प्रमुख अध्यक्ष) से मिली थी। यहां आने पर भारत की आत्मा के दर्शन होते हैं। परंतु मूल अक्षरधाम गुजरात के गांधीनगर 1992 में बना था- पूज्य प्रमुख स्वामी की प्रेरणा तथा मार्गदर्शन से। 23 एकड़ में अक्षरधाम का सृजन वस्तुत: हिंदू गौरव के पत्थरों पर उत्कीर्ण कविता ही है। इसे पूरा होने में 13 वर्ष लगे। इसका मुख्य गोपुरम 108 फीट ऊंचा, 131 फीट चौड़ा तथा 240 फीट लंबा है। इसमें 97 श्रेष्ठ शिल्प युक्त स्तंभ हैं, 17 शिखर, 8 गलियारे, 220 पत्थर के आधार एवं 264 अद्भुत उत्कीर्ण मूर्तियां हैं। यहां स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक भगवान नीलकंठ वर्णी (सहजानंद) की जीवन की गाथा व रामायण, महाभारत, उपनिषदों का परिचय भी मिलता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारत देखना हो तो अक्षरधाम देख लीजिए। महा सुधारवादी संत स्वामी रामानंद के शिष्य उ.प्र. में अयोध्या के पास छपैया गांव (जहां आज भी स्वामीनारायण मंदिर है) के निवासी घनश्याम पाण्डे बने जो दीक्षा के बाद सहजानंद कहलाए। महान परिव्राजक, तपस्वी व वीतरागी स्वामी सहजानंद ने हिंदू समाज को संगठित किया, उनसे कुरीतियां छुड़वाईं, उनकी धर्मनिष्ठा प्रबल की व उस समय ईसाई मिशनरियों के कुचक्री कन्वर्जन अभियानों से बचाया। यदि उनके द्वारा गठित, सृजित एवं पुष्ट स्वामीनारायण संप्रदाय न होता तो गुजरात में कितने हिंदू शेष रहते कहना कठिन है। यह संप्रदाय कालांतर में अनेक शाखाओं व धाराओं में फैला। अक्षरधाम बोच्छासनवासी अक्षरपुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था द्वारा निर्मित है जो हिंदू धर्म की मूल शिक्षाओं का मौजूदा सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि चेहरा कहा जा सकता है। इन दिनों जबकि साधु-संन्यासियों के बारे में अनेक भ्रांत धारणाएं एवं अनर्गल प्रचार होता है, इस संप्रदाय ने विश्वभर में हिंदू धर्म के गौरव व सम्मान की रक्षा की है, उसे बढ़ाया है। विश्वभर में 700 से अधिक हिंदू मंदिर, हजारों युवा संन्यासी, जो इंजीनियर, डॉक्टर, सीए, एमबीए, बैरिस्टर-अटॉर्नी एवं श्रेष्ठ चित्रकार भी हैं-अमेरिका, यूरोप जैसे स्थानों का सुख छोड़ हिंदू धर्म के गौरववर्द्धन व दलित-जनजातियों की सेवा के जरिये ईश्वर तक पहुंचने के पथ को अपनाते हैं।
वर्तमान युग में स्वामीनारायण संस्था का विश्वव्यापी विस्तार व मान्यता का अद्भुत संसार रचने वाले प्रमुख स्वामी 95 वर्ष की आयु में गत वर्ष 13 अगस्त को ब्रह्मलीन हुए। वे लगातार 66 वर्षों तक संस्था के प्रमुख रहे। उन्होंने गुजरात के गरीब, जनजातीय क्षेत्रों में युवा संन्यासी, डॉक्टर, शिक्षक व धर्म प्रसारक भेजे। युवाओं में सद्प्रवृत्तियों के जागरण हेतु 'रवि सभा' प्रारंभ किया। कुरीतियों से हिंदू समाज मुक्त हो, ऐसा सघन एवं सफल अभियान चलाया तथा मनुष्य की सेवा के माध्यम से ईश्वर सेवा हो सकती है, ऐसा भाव जागृत किया। अक्षरधाम उन्हीं की कल्पना है। वहां नचिकेता की कथा को अद्भुत, अविश्वसनीय जल-उत्सव के मंत्रमुग्ध करने वाले प्रदर्शन द्वारा समझाया जाता है। प्राचीन भारत में ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी प्रगति एवं आयुर्वेद, विश्वविद्यालयों की स्थापना, अध्यात्म तथा आधुनिक शिक्षा के समन्वय का दर्शन अक्षरधाम के माध्यम से कराते हुए राष्ट्र व धर्म को जोड़ा गया है। हिंदू मंदिर कैसा होना चाहिए, किस प्रकार उसे हिंदू समाज का मनोबल बढ़ाते हुए राष्ट्रीय उत्कर्ष में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देनी चाहिए, यह अक्षरधाम सिखाता है।
24 सितंबर, 2002 को अक्षरधाम गांधीनगर पर इस्लामी आतंकियों ने हमला किया, जिसमें 32 हिंदू श्रद्धालुओं की जान गई व 80 घायल हुए। परंतु प्रमुख स्वामी व संन्यासी अविचलित रहे तथा वीर योद्धा संन्यासियों की तरह सेवा कार्य में जुटे रहे। स्वामीनारायण हिंदू धर्म की रक्षा एवं विस्तार के लिए युवा योद्धा संन्यासी तथा समाज तैयार करे, यही कामना है। जय स्वामीनारायण। -तरुण विजय
(लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद हैं)
टिप्पणियाँ