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''हमने स्वतन्त्रता का उत्सव भौगोलिक आधार पर मनाया था। 1947 में अंग्रेजों ने भारत से स्वतंत्रता के जिस दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराये थे, वह वास्तव में विभाजन का दस्तावेज था जिसका प्रतिफल हम सबने देखा।'' उक्त बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री नरेन्द्र ठाकुर ने कही।
वे गत दिनों विश्व संवाद केन्द्र, देहरादून द्वारा आयोजित 'आजादी के सत्तर साल, क्या खोया, क्या पाया?' पर आधारित स्मारिका 'संवाद' के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 1971 के युद्ध में हमने एक हिस्सा जीता, लेकिन उसे राजनीतिक कारणों से खो दिया। नीतियां बनाते समय हमने गहराई से उस पर विचार नहीं किया। पश्चिमी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर हमने अपनी नीतियां बनाई। इसीलिए आज देश की 40 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है।
एक ओर ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं खड़ी हैं तो दूसरी ओर झोंपड़ पट्टी है। किसानों की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। अन्न उत्पादन की दृष्टि से हम आत्मनिर्भर अवश्य हुए हैं, लेकिन किसानों की दुर्दशा पर आज भी रोना आता है। इ
स सबको देखने के बाद यही समझ आता है कि हमारे राजनेताओं ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए राष्ट्र को भुला दिया। यहां के संस्कार, परंपरा से उन्हें कोई सरोकार नहीं रहा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात पर्यावरणविद् और 'मैती आन्दोलन' के प्रणेता कल्याण सिंह रावत ने कहा कि इन सत्तर वषोंर् में हमने बहुत सी उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन जिन संस्कारों द्वारा भारत का स्वाभाविक निर्माण होना था, वह नहीं हुआ। भारत की आत्मा गांव में बसी है, लेकिन आज हमारे गांव वीरान पड़े हैं।
-(विसंकें, देहरादून)
'देश व समाज हित के लिए काम करें पत्रकार'
गत दिनों विश्व संवाद केन्द्र, मेरठ एवं स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में प्रख्यात पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी के 127वें जन्म दिवस के अवसर पर समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में 'राष्ट्रदेव' पत्रिका के संपादक श्री अजय मित्तल उपस्थित रहे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि गणेश शंकर विद्यार्थी जी केवल पत्रकार ही नहीं, अपितु सजग सामाजिक कार्यकर्ता, राष्ट्रीय आन्दोलन के नेता और आधुनिक पत्रकारिता के जनक थे जिन्होंने अपनी कलम से अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष किया। इसके कारण उन्हें पांच बार जेल भी जाना पड़ा। अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी उनके समाचार-पत्र कार्यालय में अक्सर कार्ययोजना तैयार करते थे और कई बार हथियार कार्यालय में छिपाकर रखे जाते थे। एक तरह से विद्यार्थी जी का समाचार-पत्र कार्यालय स्वतंत्रता सेनानियों के लिए शरण स्थल हुआ करता था। उन्होंने 'प्रताप' आदि कई समाचार-पत्रों में देशभक्तिपूर्ण लेख एवं सम्पादकीय लिखे जो राष्ट्रीय आंदोलन को बढ़ावा देने में कारगर साबित हुए। इस अवसर पर अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे। ल्ल प्रतिनिधि
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