आम और खास लोगों के बीच लाल दीवार
July 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

आम और खास लोगों के बीच लाल दीवार

by
Oct 30, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 30 Oct 2017 12:15:09


कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना ने आम और खास लोगों के बीच एक ऐसी अदृश्य दीवार खड़ी की है, जिसके आर-पार देखना असंभव रहा है। आम लोगों की दयनीय स्थिति को दुनिया के सामने आने नहीं दिया जाता है और खास लोगों की विलासिताओं को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है

प्रशांत बाजपेई

चीन की ऐतिहासिक महान दीवार (ग्रेट वाल आॅफ चाइना) के बारे में दुनिया में सब जानते हैं, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना ने भी आम चीनी नागरिक और दुनिया के बीच एक दीवार खड़ी की थी, जिसके आर-पार झांका न जा सके। इस इस्पाती लाल दीवार पर चीन के कम्युनिस्ट शासन के विज्ञापन और उसके तानाशाह नेता माओ की प्रशंसा में लिखी गर्इं कविताएं छपी हुई थीं। आज इस दीवार पर चीनी उत्पादों के निआॅन रोशनी में नहाए विज्ञापन चमक रहे हैं। चीन के मालिक दुनिया को यही दिखाना चाहते हैं। लोग इन विज्ञापनों को देखकर मुग्ध भी हुए हैं- बीजिंग, शंघाई और दैत्याकार विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड)। विश्व की फैक्ट्री कहलाता चीन, ओलंपिक की मेजबानी, दुनिया के आधुनिकतम हथियारों का विशाल जखीरा। इस अपारदर्शी लाल दीवार को आधुनिक सूचना क्रांति भेद न सके, इसके लिए चीन के मालिकों ने गूगल और यूट्यूब के चीनी विकल्प ईजाद करवाए। अपनी कोशिशों में वे काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं। यहां तस्वीर के दूसरे पहलू की समालोचना करने का प्रयास करते हैं।

माओवाद से पूंजीवाद तक का सफर
50 के दशक में जब दुनिया के सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश में कम्युनिस्टों ने सत्ता पर कब्जा जमाया, उस समय पश्चिम और साम्यवादी रूस के बीच शीत युद्ध की होड़ शुरू हो चुकी थी। विश्व मीडिया का सारा ध्यान इसी होड़ पर था, उधर चीन एक बार फिर भयानक रक्तपात और दमन के दशकों में प्रवेश कर रहा था। कम्युनिस्ट शासन स्थापित होने के बाद के तीन दशक  में चीन की आर्थिक हालत बिगड़ती चली गई। बड़े उद्योग होने का तो सवाल था नहीं, लघु उद्योगों को लाल सलाम की भेंट चढ़ा दिया गया। किसान की जमीन छीनकर उसे कम्युनिस्ट व्यवस्था के लिए काम करने वाला बंधुआ मजदूर बना दिया गया। लोग दाने-दाने को मोहताज थे। मकान, कपड़े और दवाइयां भी विलासिता की वस्तुएं थीं। नागरिक सेवाओं का बुरा हाल था। माओ को परमाणु बम बनाने की सनक थी। इसके लिए बेशुमार पैसा चाहिए था, और माओ के पास दुनिया में बेचने को था सिर्फ अनाज। इसलिए किसानों से दाना-दाना छीन लिया जाता। फलस्वरूप लाखों लोग भूख से मर गए। माओ की मृत्यु के तीन साल बाद 1979 में कम्युनिस्ट पार्टी ने वास्तव में क्रांतिकारी फैसला लिया। देंग जियाओपिंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने स्वीकार किया कि माओ की आर्थिक नीतियां चीनियों की गरीबी और बदहाली को दूर करने में पूरी तरह नाकाम रही हैं और बड़े बदलावों की जरूरत है। अत: चीन ने कम्युनिस्ट तानाशाही को पूरी कठोरता से बरकरार रखते हुए आर्थिक क्षेत्र में पूंजीवादी मॉडल को लागू करना शुरू किया और खुली अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाए। पहले चरण में किसानों को भूखंड देकर उन्हें अच्छा उत्पादन करने पर लाभांश देने की योजना शुरू हुई। शहरी क्षेत्रों में मुफ्त किसान मंडियों की व्यवस्था की गई। इससे कृषि उत्पादन में भारी  उछाल आया।
औद्योगिक उत्पादन पर सरकारी नियंत्रण को धीरे-धीरे कम किया गया। सड़क, ऊर्जा, संचार, कोयला, इस्पात आदि पर विशेष ध्यान और निर्यात बढ़ाने में पूरी शक्ति झोंकी जाने लगी। मंझोले उद्योगों पर विशेष ध्यान दिया गया। उद्योगों को लाइसेंस राज से मुक्त किया गया। मनचाहा उत्पादन की छूट और औद्योगिक श्रमिकों को बोनस देने की अनुमति दी गई। एक बार फिर स्वतंत्र रूप से काम-धंधा करने वाले उत्पादक और सेवाएं देने वाले मोची-दर्जी आदि नजर आने लगे। बेरोजगारी खत्म करने के लिए सामूहिक स्वामित्व वाले उत्पादन और सेवा उद्योग को प्रोत्साहन दिया गया। वैश्विक स्तर पर व्यापार, सहयोग और ऋण के लिए अनुबंध किए गए। 1984 के अंत तक कम्युनिस्ट व्यवस्था की पहचान रखने वाले अधिकांश संगठन खत्म कर दिए गए और सामूहिक जिम्मेदारी तय करके अर्थतंत्र को बंधनमुक्त किया गया। इसी बीच बंदरगाह वाले तटीय शहरों में दैत्याकार विशेष आर्थिक क्षेत्र  विकसित किए गए।  छह-सात वर्ष में ही निर्यात कुल राष्ट्रीय आय का 35 प्रतिशत हो गया। अफ्रीका, मध्य एशिया आदि देशों के साथ कच्चा माल, व्यापार और ऊर्जा क्षेत्र में किए गए समझौतों ने चीन के आर्थिक महाशक्ति बनने का मार्ग प्रशस्त किया। आज चीन दुनिया का औद्योगिक उत्पादन केंद्र बनकर उभर आया है।

जटिल इतिहास बोध
इतिहास बोध किसी समाज का सामूहिक मन होता है। आधुनिक चीनी मन जटिल इतिहास बोध से ग्रस्त है। चीन एक प्राचीन सभ्यता है, लेकिन चीनी पाठ्यक्रमों में इतिहास का ज्यादतर हिस्सा माओ और माओ की विरासत ने घेर रखा है। माओ की क्रांति माओ के साथ चीन से विदा हो चुकी है, परन्तु माओ की विरासत वैसी ही दर्शनीय वस्तु बनी हुई है, जिस प्रकार माओ के शव को संरक्षित कर लोगों के दर्शनार्थ रखा गया है। माओ के नेतृत्व में करोड़ों चीनियों का क्रांति के नाम पर नरसंहार, पारिवारिक और सामाजिक ढांचे का नाश, किशोरियों और युवा महिलाओं में विशेष दिलचस्पी रखने वाले माओ द्वारा स्त्रियों पर थोपा गया मर्दाना लिबास, कुख्यात सांस्कृतिक क्रांति, माओ की युवा पत्नी जिआंग किंग ( चौथी पत्नी) के नेतृत्व में आतंक का राज कायम करने वाला गैंग आॅफ फोर, क्रांति के नाम पर जातीय और आर्थिक समूहों का सफाया, इन सब पर सफेदी पोत कर उस पर लाल अक्षरों से लिखी गई क्रांति गाथा चीनी छात्रों के लिए उपलब्ध है। दुनिया को 1989 का वह दृश्य याद  है जब आधुनिक चीन के निर्माता देंग जियाओपिंग ने मीडिया कैमरों के सामने लोकतंत्र, जिम्मेदारी तय करने और बोलने की आजादी की मांग कर रहे चीनी छात्रों के ऊपर टैंक चढ़वा दिए थे और इस शांतिपूर्ण देशव्यापी आंदोलन को कुचलने के लिए सैकड़ों नागरिकों को मौत के घाट उतारा गया था, परन्तु लाल चश्मा इन घटनाओं को अलग ही इन्द्रधनुषी रंगों में प्रस्तुत करता है।  
चीनियों में नस्लीय श्रेष्ठता की भावना भी है, जिसे अतीत में बनते-बिगड़ते साम्राज्यों, ऐतिहासिक शर्मनाक और दर्दनाक पराजयों और अत्यंत हिंसक अनुभवों ने गढ़ा है। चीन के दमन का ये इतिहास मंगोलों, हूणों से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले चरण में जापानियों द्वारा चीन की तात्कालिक राजधानी चॉगक्विंग में किए  गए नरसंहार और बलात्कार के पैशाचिक कृत्यों तक आता है। उसके सैकड़ों वर्ष पूर्व, जब मिंग वंश के शासन के दौरान चीन का विश्व व्यापार में बोलबाला था (भारत और चीन दोनों का दबदबा था) तब भी श्रमिकों और आमजन की दशा अत्यंत खराब थी।  साम्राज्यों के इस लंबे दौर में भी चीन में रक्तवर्षा कभी थमी नहीं। इन सारी परिस्थितियों से निकलकर एक जटिल चीनी मन उभरता है जो स्वयं को दूसरों से बेहतर, पीड़ित-शोषित, असुरक्षित और साम्राज्यों तथा साम्राज्यवादिता को अनिवार्य मानता है। आश्चर्य नहीं कि बर्बर मंगोल हमलावरों और तैमूरलंग जैसों का चीनी संबंध ढूंढकर उस पर गर्व किया जाता है। स्वयं माओ ने तैमूर लंग के भारत पर किए गए हमले को आधा चीनी हमला कहा था। नेहरू का संसद में दिया गया बयान है, ‘‘चीनियों में (खुद के प्रति) महानता की भावना है, वे अपने आपको ‘मध्य साम्राज्य’ कहते हैं, और सोचते हैं कि दुनिया उनके आगे सर झुकाए, वे सोचते हैं कि दुनिया उनके आगे निकृष्ट कोटि की है।’’ इस मानसिकता की पृष्ठभूमि में कम्युनिस्ट व्यवस्था की मिलावट इसे और जटिल बनाती है।
लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति चीन के कम्युनिस्टों की सोच कैसी है इसकी कहानी वहां के चप्पे-चप्पे में गड़े नरमुंड कह रहे हैं। अकेले उनके पितृ पुरुष माओ जेदोंग के खाते में ही करोड़ों चीनियों की हत्याएं चढ़ी हुई हैं। तिब्बत का 1950 से भीषण दमन किया जा रहा है। इसी जटिल इतिहास बोध का परिणाम है कि चीन अपने पास-पड़ोस के देशों पर हावी होने का प्रयास करता आया है, और अब शीत युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था में अमेरिका के समक्ष दूसरा ध्रुव बनकर उभरने की तीव्र महत्वाकांक्षा लेकर आगे बढ़ रहा है।

लाल दीवार के उस पार
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का तानाशाही शासन है। कम्युनिस्ट पार्टी सर्वोच्च-सर्वव्याप्त संस्था है। इसके नीचे इसका पोलित ब्यूरो है। इसी के अंतर्गत शासन-प्रशासन, न्यायालय, सेना, स्टेट काउंसिल आदि आते हैं। असहमतियों से कठोरता और ‘आवश्यक’ होने पर क्रूरता से निपटा जाता है। पार्टी की सदस्यता लेने के लिए पार्टी द्वारा मनोनीत किया जाना आवश्यक है। स्वाभाविक रूप से सब कुछ कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति निष्ठा और पार्टी वालों की ‘कृपा’ पर निर्भर करता है। एक बार सदस्य बन जाने पर अनेक सुविधाएं, नौकरियां, रौब-दाब सब कुछ हासिल हो जाता है। कुछ नौकरियां तो केवल पार्टी वालों को ही दी जाती हैं।  
 कुल 22 प्रांत, पांच स्वायत्त क्षेत्र और चार नगरपालिकाएं ऐसी हैं जिन्हें सीधे केंद्र नियंत्रित करता है-बीजिंग, शंघाई, तिआन्जिन और चॉगक्विंग। इन केंद्रों से चीन की सत्ता का राजमार्ग निकलता है। इस पूरी व्यवस्था को चलाने के लिए कुल 7,000 सरकारी और कम्युनिस्ट पार्टी के लोग जिम्मेदार हैं, जिन्हें कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ही नियुक्त किया जाता है। शासन-प्रशासन के संचालन के लिए (केंद्र, प्रांत तथा जिला) हर स्तर पर पार्टी और सरकारी लोग साथ बैठकर फैसले करते हैं, जिसमें दबदबा पार्टी का ही होता है। कम्युनिस्ट पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष प्रदेश के गवर्नर पर भारी पड़ता है।

असहमति एक गंभीर अपराध  
आज आम चीनी का जीवन कम्युनिज्म के शुरुआती दशकों की तुलना में काफी खुला और पहले से बेहतर है, विशेष रूप से यदि आप उन विशेष इलाकों में रहते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बनाते हैं और जहां के चित्र पत्र-पत्रिकाओं में छपते हैं। परन्तु एक गहरी रेखा है जिसके दूसरी ओर जाना तो दूर, झांकना भी मना है। वह है कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना की निर्बाध सत्ता। इस रेखा को लांघने की सजा बेहद ही कठोर है। चीन के बदनाम श्रम कारावासों या लाओगाई में आज तक 7,50,0000 चीनी दम तोड़ चुके हैं। यहां बर्बाद हुए जीवनों की गिनती करोड़ों में हैं। जहां अमानवीय परिस्थितियों में रखे गए बंदियों से सुबह से शाम तक कठोरतम श्रम (बेगार) करवाया जाता है। इन लाओगाई के बारे में चीन सरकार का अधिकृत बयान है, ‘‘हमारे आर्थिक सिद्धांत में मनुष्य सबसे आधारभूत उत्पादक शक्ति है, सिवाय उनके, जिन्हें तंत्र से (विनाश) बाहर कर दिया जाना चाहिए, मानव का उपयोग उत्पादक शक्ति के रूप में किया ही जाना चाहिए, जिसमें आज्ञापालन अनिवार्य है।’’ लाओगाई व्यवस्था में बलात श्रम एक साधन है जिसके पीछे  ‘वैचारिक सुधार’ का उद्देश्य है। ऐसे 1,045 लाओगाई या बलात श्रम कारावास चीन में आज भी चल रहे हैं। जहां तक इनकी रिपोर्टिंग     का सवाल है, मीडिया, इंटरनेट पर कड़ा पहरा सर्वज्ञात है ही।
उपासना की स्वतंत्रता आधुनिक चीन का एक और प्रहसन है। सत्ता में आने के बाद कम्युनिस्टों ने सारे चीन में बौद्ध मठों और लामाओं के विनाश का बीड़ा उठाया था। सैकड़ों साल से चल रहे सांस्कृतिक केंद्रों को आग के हवाले कर दिया गया। वही लोग अब स्वयं को बुद्ध की परंपराओं का सबसे बड़ा संरक्षक सिद्ध करने पर तुले हैं। इस ‘उदारता’ के साथ एक शर्त भी है कि बौद्ध हों या कैथोलिक अथवा प्रोटेस्टेंट, उनके शीर्ष नेतृत्व का चयन कम्युनिस्ट पार्टी करेगी। इस सूत्र को तिब्बत में भी लागू करवाया जा रहा है, लेकिन दलाई लामा के भारत में राजनयिक शरणार्थी के रूप में रहने के कारण अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। कुछ अत्यंत शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक साधना केन्द्रित बौद्ध समूहों का क्रूर दमन भी किया जा रहा है। इस नव बुद्ध प्रेम के पीछे कूटनीतिक कुटिलता भी काम कर रही है। बुद्ध के जन्मस्थान, नेपाल के लुम्बिनी में चीन ने तीन बिलियन डॉलर खर्च कर पर्यटन केन्द्रित विकास कार्य करवाया है। इससे नेपाल को कृतार्थ करने का लक्ष्य तो पूर्ण होता ही है, बुद्ध की भूमि भारत नहीं नेपाल है, यह प्रचार भी होता है। भले ही भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति और उसके बाद का सारा उपदेश बिहार में किया हो, आखिरकार बुद्ध, चीन से लेकर तिब्बत तक और आसियान से लेकर हॉलीवुड के सितारों तक, सब तरफ अहमियत रखते हैं।    

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Germany deported 81 Afghan

जर्मनी की तालिबान के साथ निर्वासन डील: 81 अफगान काबुल भेजे गए

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Germany deported 81 Afghan

जर्मनी की तालिबान के साथ निर्वासन डील: 81 अफगान काबुल भेजे गए

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

Pahalgam terror attack

घुसपैठियों पर जारी रहेगी कार्रवाई, बंगाल में गरजे PM मोदी, बोले- TMC सरकार में अस्पताल तक महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

अमृतसर में BSF ने पकड़े 6 पाकिस्तानी ड्रोन, 2.34 किलो हेरोइन बरामद

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता : पश्चिमी घाट में लाइकेन की नई प्रजाति ‘Allographa effusosoredica’ की खोज

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies