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10 सितम्बर, 2017
आवरण कथा ‘शिक्षा-शिल्पी’ से स्पष्ट है कि समाज में बहुत-से ऐसे लोग हैं जो शिक्षा के माध्यम से समाज में उजियारा लाने की कोशिश में जुटे हैं। इनमें से कई ऐसी विषम परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, जिससे प्रेरणा मिलती है। ये वे शिक्षक हैं जो सुख-सुविधाओं को ताक पर रख पूरे जी-जान से मिशन में लगे हुए हैं और समाज में बदलाव लाने की कोशिश में जुटे हैं।
—बी.एस.शांताबाई,बंगलुरू (कर्नाटक)
आज हर मंच से एक वाक्य सुनने को मिलता है कि ‘हम भारत को पुन: विश्व गुरु बनाएंगे।’ लेकिन मेरा मानना है कि भारत ने वह पद केवल यहां के आश्रमों में दी जाने वाली शिक्षा से प्राप्त किया था। इसी शिक्षा से निकले हुए लोगों ने सारी दुनिया में डंका बजाया और भारत की संस्कृति और परंपरा के ज्ञान को बिखेरा। इसलिए अगर भारत को विश्व गुरु बनाना है तो उसकी पारंपरिक शिक्षा (गुरुकुल) पद्धति को फिर से चलन में लाना होगा। जिस दिन ऐसा हो जाएगा, उस दिन हमारा ध्येय पूर्ण होगा।
—जसवंत, जैसलमेर (राज.)
देश के सुदूर क्षेत्रों में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो छोटे-छोटे प्रयासों से समाज को बदलने का जज्बा रखते हैं और इसमें रात-दिन लगे हुए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि ये वही लोग हैं जो सरकार के पैसों से नहीं बल्कि खुद के पैसों और प्रयास से गरीब बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने
का काम कर रहे हैं। कोई सड़क के किनारे पढ़ा रहा है तो दिव्यांग होते हुए गांव जाकर शिक्षा दीपक जला रहा है। समाज को ऐसे लोगों से प्रेरणा
लेनी चाहिए।
—राजेश कुमार, प्रेम विहार (दिल्ली)
वर्षों से सत्ता पर काबिज रहे सेकुलरों ने ‘भारत भाव’ को अपमानित करने का मानो युद्ध ही छेड़ रखा है। भारतधर्मी समाज को विघटित करने के रोजाना कुचक्र रचे जाते हैं। आज की शिक्षा व्यवस्था में इसकी झलक देखी जा सकती है। समूची शिक्षा पद्धति में इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रेषित किया गया है। जो महापुरुष देश के नायक रहे, उन्हें नायक न बताकर आक्रमणकारियों का महिमामंडन किया जाता है। अब ऐसी पूरी शिक्षा व्यवस्था को बदलने का समय है। यह कार्य जल्द से जल्द होना चाहिए।
—डॉ. नंद कुमार, रोहतक (हरियाणा)
सेना ने तोड़ी आतंक की कमर
‘आॅपरेशन आॅल आउट: अब तक 135(10 सितंबर, 2017)’ रपट से स्पष्ट है कि कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों ने आतंकियों के हौसले पस्त कर रखे हैं। इसी का परिणाम है कि उन्हें अब घाटी में उन्मादी ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान है कि अपनी हरकत से बाज नहीं आ रहा। घाटी में आतंकी गतिविधियों को हवा देने के लिए वह हर प्रयास कर रहा है। आएदिन होती घुसपैठ और हमले उसी का परिणाम हैं। तो वहीं संयुक्त राष्ट्र में भारत को बदनाम करने के लिए पाकिस्तान पता नहीं क्या-क्या झूठ बोलता है। लेकिन कुछ ही समय में उसकी पोल खुल जाती है और दुनिया के सामने असलियत आ जाती है।
—विमल नारायण खन्ना, कानपुर(उ.प्र.)
पिछली सरकारों के कश्मीर पर अपनाए रुख ने घाटी के हालात को बद से बदतर ही किया है। उन्माद फैलता रहा और जिनको रोकना था, वे उसे बढ़ाते रहे। हालत यह हुई कि जिस भाईचारे की बात पूरे देश में की जाती है, कश्मीर जाते-जाते उसका दम घुट जाता है। लेकिन किसी के गले से इसके विरोध में आवाज नहीं फूटती। अब ऐसा नहीं है। जहां कश्मीर को लेकर सरकार का दृष्टिकोण पूरी तरह से स्पष्ट है वहीं सेना ने भी घाटी को आतंकमुक्त करने की ठान रखी है। इसका असर साफ देखा जा सकता है।
—सुहासिनी किरनी, गोलीगुडा (तेलंगाना)
रोहिंग्याओं से प्रेम क्यों?
देश की सुरक्षा-व्यवस्था के लिए खतरा बन चुके रोहिंग्याओं के पक्ष में जिन तथाकथित सेकुलर दलों और नेताओं ने हमदर्दी दिखाई, वह उनकी तुष्टीकरण की नीति का ही तो प्रमाण है। पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने रोहिंग्याओं के पक्ष में तो अपना प्यार उड़ेल दिया लेकिन आज तक कश्मीरी हिंदुओं के दर्द को समझने का प्रयास नहीं किया, जो अपनी ही जन्मभूमि से खदेड़ दिए गए? क्या इसे ही मानवता कहते हैं? यही उनकी राजनीति है? यह न केवल दुर्भाग्यजनक है बल्कि शर्मनाक भी है। वोट की राजनीति और तुष्टीकरण के दलदल में आकंठ डूब चुके सेकुलर नेता हिन्दुओं और उनसे जुड़े मुद्दों पर सदैव दोहरा रुख अपनाते हैं। यही इनका असली चेहरा है।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
जम्मू सहित असम, दिल्ली, राजस्थान और बिहार में रोहिंग्या मुसलमानों ने डेरा जमा रखा है। ये घुसपैठिये इन जगहों पर अपराध करते हैं तो वहीं हर उन्मादी गतिविधि में बढ़- चढ़कर हिस्सा लेते हैं। देश की खुफिया एजेंसियां कई बार इस तथ्य से सरकार को अवगत करा चुकी हैं। ऐसे में देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए देश के लिए खतरा बन चुके रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर करना ही होगा।
— सुशील कुमार, फरीदाबाद (हरियाणा)
उनसे ही है आस
मोदी जी की बात पर, जनता का विश्वास
नित्य-निरंतर बढ़ रहा, उनसे ही है आस।
उनसे ही है आस, आर्थिकी मंत्र बताए
जो हैं आलोचक उनको शीशे दिखलाए।
कह ‘प्रशांत’ पर जो पेंदी में छेद बनाते
शल्य कलयुगी ऐसे बिल्कुल नहीं सुहाते॥
— ‘प्रशांत’
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