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पाञ्चजन्य वर्ष: 1४ अंक: 9
5 सितम्बर ,1960
इतिहास के पन्नों से
लेखक- श्रीनारायण शास्त्री
संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, तमिल आदि प्राचीन भारतीय, पुर्तगाली आदि प्राच्यपाश्चात्य, यात्रा वृत्तान्तों, तथा बहुउद्देश्य पुरातत्व संबंधी उपलब्धियों के परिशीलन से पता चलता है कि सुदूर पूर्व के मुस्लिम बहुल जावा, सुमात्रा, मलाया, बोनिर्यों आदि भूखण्डों से भारत का संबंध बहुत ही प्राचीन है। इन द्वीपों के इतिहास भी इस बात के साक्ष्य हैं कि भारतीय अध्यात्म, लौकिक चिन्तन तथा आचरण का अविच्छिन्न एवं अद्वितीय प्रभाव यहां के जन-जीवन के रोम-रोम में सदा से ही व्याप्त रहा है, जहां ब्रह्मा, विष्णु की पूजा की जाती थी।
ज्ञातव्य है कि आज से लगभग 300 वर्ष पहले तक सारा मलाया, सिंगापुर, पेनांग, सुमात्रा, जावा आदि उपर्युक्त द्वीप शत-प्रतिशत हिन्दू थे। वहां के असंख्य मन्दिरों में ब्रह्मा-विष्णु आदि देवों की उपासना होती थी, भारतीय वेष-भूषा एवं साज-श्रंृगार से सजे नर-नारी ही सर्वत्र दृष्टिगोचर होते थे। मंदिरों के घटानाद, वेदध्वनि, यज्ञधूमों आदि से समवेत वातावरण सदा सुगंधित एवं पवित्र रहा करता था। देश के कोने-कोने के असंख्य ऋषि आश्रमों में अध्ययन-अध्यापन, यजन-याजन, तपश्चर्या आदि विविध अनुष्ठानों की शृंखला अविच्छिन बनी रहती थी। उस समय जो भी इन भू-प्रदेशों को देखता था, वही कहता था कि 'निस्संदेह यह स्थान भारत का वह भाग है जो कि अभी पराधीनता पाप से अपवित्र नहीं हुआ। जहां अभी भी भारतीय आत्मा अपने पवित्र मौलिक स्वरूप में वर्तमान है।'
बालिद्वीपेश्वर का बलिदान
हमारी मन:स्थिति तब और भी अनिर्वचनीय हो जाता है जबकि हम देखते हैं कि इस भूखण्ड के अंतिम हिन्दू नरेश, संसार प्रसिद्ध बालिद्वीपेश्वर महाराज अंगदेव का सपरिवार आत्मोत्सर्ग डच साम्राज्य से लड़ते-लड़ते अभी सन् 1911 ई. में हुआ था। इस प्रसंग से संबंध इतिहास के पन्ने पलटते समय मन में न जाने कैसे-कैसे भाव उठने लगते हैं। शरीर में रोमांच हो उठता है, यह जानकर कि इस्लामी तबलीग के प्रहारों के साथ सदा ही मोर्चा लेने वाले हिन्दू धर्म रक्षक उस महावीर के राजप्रासाद को जब विशाल रणवाहिनों ने घेर लिया और बिना शर्त आत्मसमर्पण प्रस्ताव रखा तो उस स्वाभिमानी ने तिरस्कारपूर्वक उसे ठुकरा दिया और क्षत्रिय वंश की मर्यादा के अनुरूप ही राजवंश के आबाल-वृद्ध-बनिता हाथ में कृपाण लेकर आत्मोत्सर्ग के लिए अपार शत्रुवाहिनी पर टूट पड़े और संभवत: उनमें से प्राण रहने तक एक भी पकड़ा न जा सका। वे अपने ही हैं… परन्तु कालचक्र ने आज बहुत कुछ बदल दिया है। अब वहां जो स्थिति है उसके सामने तो यह बातें स्वप्न-जगत की सी प्रतीत होंगी। लेकिन इससे तो किसी को भी इनकार नहीं हो सकता कि वहां के लोगों में अब भी हमारा बहुत कुछ है। तत्वत: आज भी वे हमारे हैं। समय की पुकार है कि हम और वे दोनों यह जानने की चेष्टा करें कि आखरि कैसे यह नक्शा यहां तक बदल गया कि अपने पराए से लगने लगे?
उर्दू को इंजेक्शन देने का प्रयत्न
मैसूर के उपचुनावों में औसत मतदान 35 से 40 प्रतिशत रहा। यदि इसको राजनीतिक-जागृति का बैरोमीटर माना जाए तो हिन्दी भाषी क्षेत्र पिछड़े हुए मान जाएंगे।
दूसरी चिन्ता का विषय मैसूर है। जत्ती मंत्रिमंडल को अपदस्थ करने का प्रस्ताव पेश करने की अनुमति मांगने के लिए एक दल राजधानी में आया हुआ है और गोष्ठी भवन, कांग्रेस दफ्तर, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, इन सबको अपने पक्ष का करने की कोशिश कर रहा है। श्री जत्ती की जगह पर कौन मुख्यमंत्री होगा यह भी यहां सोचा जा रहा है। इस दल का दावा है कि 114 कांग्रेस सदस्यों में110 उसके साथ हैं। यद्यपि अविश्वास का प्रस्ताव पेश करने की अनुमति मांगने वालों से 47 ने ही 'स्मृति पत्र' पर हस्ताक्षर किए हैं। असम का प्रश्न यों ही है। मुख्यमंत्री श्री चालिया और वित्तमंत्री श्री फखरुद्दीन बंगाल द्वारा फैलाए जहर को दूर करने की कोशिश करते रहे और जांच कमीशन नियुक्त करने को अदूरदर्शितापूर्ण बताया। दूसरी ओर अतुल्य घोष भी डेरा डाले हुए हैं। असम-बंगाल के मध्य छिड़ा हुआ शीत-युद्ध कटु से कटुतर होता जाता है। बंगाल अब सारे भारत पर दोषारोपण करने लगा है कि उसके दु:ख से कोई दु:खित नहीं है। साधारण जनता की अपेक्षा कांग्रेसियों में ही यह जहर विशेष रूप से विद्यमान दिखाई देता है।
उर्दू का इंजेक्शन
दिल्ली कारपोरेशन के कांग्रेसी और कम्युनिस्ट 42 सदस्यों ने यह प्रस्ताव स्वीकार करा लिया है कि कारपोरेशन में हिन्दी के साथ-साथ उर्दू भी चले। इस समय अंग्रेजी और उर्दू है। हिन्दी ने अभी तक अंग्रेजी का स्थान लिया नहीं, लेकिन उर्दू को जिलाए रखने के लिए पेंसलिन के इंजेक्शन दिए जा रहे हैं। कांग्रेस और कम्युनिस्ट मुस्लिम वोट पाने की होड़ में मरणासन्न उर्दू को जिलाए रखने का यत्न कर रहे हैं। इसमें इतना साहस नहीं है कि यह कहें कि उर्दू नागरी लिपि में लिखी जाए और हिन्दी उर्दू के झगड़े को समाप्त कर दिया जाए। जनसंघ दल ने इस प्रश्न पर कांग्रेस और कम्युनिस्टों का डटकर विरोध किया। जनसंघ इन 42 आदमियों के नाम प्रकाशित कर जनता को आगाह करने का भी विचार कर रहा है कि ये लोग जनता के धन का अपने दलगत लाभ के लिए दुरुप्रयोग करने वाले हैं। अगले निर्वाचन में जनता इनको वोट न दे।
अच्छा प्रत्याशी
सामान्यत: माना जा सकता है कि वह प्रत्याशी (उम्मीदवार) एक अच्छा प्रत्याशी है जो अपने दल की रीति-नीतियों का विधानमण्डलों या संसद में योग्य प्रतिनिधित्व एवं अपने निर्वाचन क्षेत्र की ठीक से देखभाल कर सकता है और जो अपने मतदाताओं का मनोगत भली-भांति व्यक्त कर सकता है। व्यक्तिगत दृष्टि से उसे जनता के प्रति एकनिष्ठ रहना चाहिए। दल के सदस्य के रूप में उसे अपने दल की रीति-नीतियों के प्रति एकनिष्ठ रहना चाहिए तथा दल के अनुशासन का पालन करना चाहिए। ऐसे प्रत्याशी में इसके अतिरिक्त और भी कुछ गुणविशेष हों, तो सोने में सुहागा। किन्तु सुयोग्य प्रत्याशी के इन प्रमुख निकषों का विकल्प या पर्याय वे नहीं हो सकते। हमारे देश में शायद ही कोई राजनीतिक दल होगा जो अपने प्रत्याशियों का चयन करते समय इन सभी पहलुओं को ध्यान में लेता हो। प्रमुख एवं एकमेव निकष यही होता है कि उम्मीदवार शर्तिया जीतने वाला हो। —पं. दीनदयाल उपाध्याय (विचार-दर्शन, खण्ड-7, पृ. 67)
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