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सीमा सुरक्षा बल के शिविर पर हुआ आतंकी हमला जिहादियों की बौखलाहट बयान करता है। घाटी में आतंकियों के विरुद्ध कई दिनों से चली आ रही लड़ाई निर्णायक मोड़ पर दिखती है
अश्वनी मिश्र श्रीनगर से लौटकर
कश्मीर पुलिस के आईजी मुनीर खान 3 अक्तूबर की दोपहर श्रीनगर स्थित 182 बटालियन शिविर पर आतंकियों द्वारा किए गए हमले पर मीडिया को प्रतिक्रिया दे रहे थे। वे कह रहे थे,‘‘हमारे जवानों ने समय रहते आतंकियों के मंसूबों को भांप लिया और इससे पहले कि वे कुछ ज्यादा क्षति पहुंचा पाते, उन्हें उनके ठिकाने भेज दिया गया। इसलिए सुरक्षाबलों की तारीफ की जानी चाहिए।’’ मुनीर खान का इशारा स्पष्ट शब्दों में उन लोगों की ओर था जो सीधे तौर से इस हमले को सुरक्षा चूक मानते हुए सुरक्षाबलों की अलोचना में जुट गए थे।
दरअसल जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने श्रीनगर के गोगो हुमहमा इलाके के पास सीमा सुरक्षाबल (बीएसएफ) के शिविर पर आत्मघाती हमला किया था, जो एयरफोर्स स्टेशन और हवाई अड्डे के निकट है। आतंकियों ने तड़के 3 बजकर 45 मिनट पर शिविर पर धावा बोला और चार स्तरीय सुरक्षा घेरे को भेदते हुए शिविर में दाखिल होने में कामयाब रहे। लेकिन सीमा सुरक्षाबल, सीआरपीएफ एवं एसओजी ने तत्काल मोर्चा संभालते हुए 9 घंटे चली मुठभेड़ में तीन आतंकवादियों को मार गिराने में सफलता हासिल की। मुठभेड़ में सब इंस्पेक्टर बी.के. यादव शहीद हो गए। लेकिन हमले के बाद सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा हुआ कि आखिर इतने गहन सुरक्षा इलाके में आतंकी दाखिल कैसे हुए?
घाटी में तैनात सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं,‘‘सेना, पुलिस और खुफिया एजेंसियों के पास आतंकी समूहों की हलचल की कुछ जानकारी होती है जिसके आधार पर हम उनका पीछा करते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हमारी सूचनाओं के विपरीत वे कुछ ऐसा कर जाते हैं, जो हमें क्षति पहुंचा जाता है। बीएसएफ शिविर पर जो हमला हुआ, उसे इसी रूप में देखना चाहिए। कई लोग हमले के बाद सुरक्षा पर सवाल उठा रहे हैं। मैं समझता हूं, वह चाहे सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस की बात हो या फिर अन्य किसी एजेंसी की, सभी बड़ी सजगता से काम कर रहे हैं और उसका परिणाम घाटी में दिख रहा है।
आतंकी घटनाओं पर देंगे तीखा जवाब
सीमा सुरक्षा बल के शिविर पर हमले के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस, सेना और गृह मंत्रालय की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई। सभी ने एक स्वर में कहा कि आतंकी घटनाओं को किसी भी कीमत पर सहन न करते हुए इनका मुंहतोड़ जवाब देना है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सुरक्षाबलों ने आतंकियों को उनके सही अंजाम तक पहुंचाया है। हम आतंक को सहन करने वाले नहीं हैं। सीमा सुरक्षाबल के डीजी के.के.शर्मा ने कहा कि सुरक्षाबलों ने बड़ी तत्परता से काम लिया और एक बड़े हमले की संभावना को खत्म किया है। हमें लगता है कि आतंकवादियों का लक्ष्य सीमा सुरक्षाबल के शिविर में जमा हथियार और गोला-बारूद था। पर वे अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हुए और सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए। आईजी मुनीर खान का कहना था कि ‘जब तक पाकिस्तान जैसा देश हमारा पड़ोसी है, तब तक ऐसे हमले जारी रहेंगे। लेकिन हम भी अपना काम जारी रखेंगे।’
एनआईए ने तोड़ी अलगाववादियों की कमर
कश्मीर घाटी में इन दिनों यह आम चर्चा है कि जिस दिन से राष्ट्रीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अलगाववादियों से पैसे का हिसाब मांगना शुरू किया है, उनकी बोलती बंद हो गई है। एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘‘यह पहली सरकार है जिसने सीधे तौर से अलगाववादियों को छूने का प्रयास ही नहीं किया बल्कि उनके काले कारनामों को खोलकर रख दिया है। इस जांच से सभी अलगाववादी घबराए हुए हैं। उसका परिणाम घाटी में दिख रहा है कि पत्थरबाजी से लेकर अन्य घटनाएं उतनी नहीं घट रहीं जितनी कुछ समय पहले घट रही थीं।’’ उनका कहना था कि इनका इलाज यही एजेंसियां हैं। जम्मू-कश्मीर भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद सदस्य सुरेंद्र अंबरदार ने इस बाबत कहा,‘‘कश्मीर के शांत रुख को अशांत करने की साजिश सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान की है। क्योंकि पाकिस्तान को अभी कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र में राजनयिक और राजनीतिक रूप से मुंह की खानी पड़ी। इसलिए वह हताशा से भरा हुआ है। दूसरा कारण, पाकिस्तान की ओर से आने वाले भाड़े के आतंकी उतने नहीं आ पाए जितना वह चाहता था। साथ ही आॅपरेशन आॅल आउट से आतंक की रीढ़ टूटी पड़ी है। ये सब पाकिस्तान की हताशा के प्रमुख कारण हैं। इसलिए वह कोशिश कर रहा है कि कश्मीर में पिछले 30 सालों से जो छद्म युद्ध जारी है वह कैसे भी चलता रहे।’’ वे बताते हैं, ‘‘आम कश्मीरी अब आतंकवाद के खिलाफ है। हां, कुछ तत्व हैं जो अब भी उनका साथ देते हैं। दूसरी प्रमुख बात, आईएसआई अलगाववादियों का सहारा लेकर आतंक फैलाने और युवाओं को भारत के खिलाफ युद्ध करने के लिए यहां हवाला का पैसा देती थी, राष्ट्रीय जांच एजेंसी के छापों के बाद उसकी पोल खुली है। एजेंसी ने पूरे तथ्यों के साथ इन्हें रंगे हाथों पकड़ा है जिसके कारण इनमें भी हताशा है और इनके आकाओं में भी। श्रीनगर स्थित सीमा सुरक्षाबल के शिविर पर इसी आक्रोश का परिणाम आतंकी हमले के रूप में हुआ है।
श्रीनगर के प्रतिष्ठित समाजसेवी यूसुफ रजा कहते हैं कि अब अलगावादी नेताओं की बात को कोई गंभीरता से नहीं लेता। अभी कुछ दिन पहले स्थानीय न्यायालय में इनके एक समूह ने अलग-अलग समय पर तीन बार हड़ताल की घोषणा की। लेकिन तीनों बार उनकी बात को किसी ने नहीं सुना। जबकि पहले उनकी एक आवाज पर पूरी घाटी बंद हो जाती थी और वे जो कहते थे, उसे यहां की आवाम करती थी। पर अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस सबके पीछे यही कारण है कि लोग समझने लगे हैं कि यह समाज को लड़ाकर खुद मौज करते हैं। वे सवाल करते हैं,‘‘आखिर अलगाववादियों के पास लाखों-करोड़ों रुपये की संपत्ति कहां से आई? वे कौन-सा ऐसा धंधा करते हैं जिससे उनकी संपत्ति बढ़ती ही चली जाती है? अगर इसकी जांच हो रही है तो अच्छे तरीके से होनी चाहिए ताकि सच घाटी के लोगों को पता चले कि आखिर वे वर्षों से किन लोगों की हाथों की कठपुतली बनकर देश के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़े हुए थे।’’
बदल रहा माहौल
शाम का करीब 5 बजकर 20 मिनट का समय रहा होगा। विजयादशमी के दिन हम श्रीनगर के पोलो मैदान में थे जहां कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति की ओर से रावण दहन का आयोजन किया गया था। पोलो मैदान के आस-पास सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे लेकिन स्थिति सामान्य थी। लोगों का आना-जाना जारी था। जो लोग यहां बेधड़क आ रहे थे, उनके चेहरों पर डर नहीं बल्कि खुशी थी। आने वाले लोगों में हिंदू और मुसलमान दोनों थे। हमने यहां आए कुछ लोगों से बात की जिनका कहना था कि घाटी में एक खास वर्ग के लोगों के कारण ही स्थिति खराब रहती है, जबकि यहां का माहौल सामान्य है। हब्बाकदल से रावण दहन देखने आए 54 वर्षीय रफीकुल रहमान का कहना था,‘‘कश्मीर पीर-फकीरों की धरती है। यहां शंकर की भी पूजा होती है और अल्लाह की भी। जब यहां के हालत ठीक थे तब कश्मीरी पंडित और मुस्लिम मिलकर सभी त्योहार मनाते थे। बीच में यह सब खत्म हो गया। पर अब फिर से इसकी शुरुआत हो रही है, देखकर अच्छा लगता है।’’ कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति से जुड़े विनय सहस्त्र के मुताबिक पिछले साल हालात खराब होने के चलते उत्सव मनाने की इजाजत नहीं मिली थी जिससे समिति के लोग काफी मायूस हुए थे। लेकिन इस बार न केवल इजाजत मिली बल्कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती खुद मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। तो दूसरी ओर अनंतनाग जिले में 28 साल बाद विजयादशमी का उत्सव मनाया गया। जिले के विस्सु कॉलोनी में कश्मीरी पंडितों ने बड़ी धूमधाम से इस बार विजयादशमी का आयोजन किया। इसमें हिंदुओं के अलावा स्थानीय मुस्लिमों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आयोजनकर्ता संजय गुंजू बताते हैं, ‘‘इस बार हम लोगों ने भी वर्षों बाद यहां विजयादशमी उत्सव मनाया। यह हालात ठीक होने के कारण ही संभव हो पाया है। खास बात यह कि हमारे आयोजन में इस बार स्थानीय लोगों ने मदद की जो अब से पहले कभी नहीं होती थी।’’ वे कहते हैं,‘‘हमारे साथियों ने इस बार तय किया था कि हम कॉलोनी के मैदान में विजयादशमी उत्सव मनाएंगे। क्योंकि हम महसूस कर रहे हैं कि कश्मीर के लोगों को अब समझ में आने लगा है कि लड़ाई करके वे कुछ नहीं पा सकते। उलटे उन्हें नुकसान ही होता है। शायद यही वजह रही कि स्थानीय लोगों ने विरोध न करके मदद की।’’ पेशे से शिक्षक राकेश रैना बताते हैं कि हम अपने ही देश में अपने त्योहार नहीं मना पाते थे, लेकिन आज बदलते हुए माहौल को हम देख रहे हैं, आज यहीं के लोग हमारी मदद करते हैं। दिल्ली में बैठे लोग जिस कश्मीर की कल्पना करते हैं, वैसा असल में है नहीं। यहां की हवा बदल रही है जिसे यहां आकर ही महसूस किया जा सकता है।
अलगाववादियों का खत्म होता दौर
कश्मीर विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के एक प्रोफेसर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि अब झूठे लोगों की कमर टूट रही है। असल मायनों में इन्होंने ही घाटी को खराब किया और सदैव दूसरों पर आरोप मढ़ते रहे। लेकिन जिनको इनका विरोध करना चाहिए, वे या तो शांत रहे या फिर कहीं न कहीं इनकी हां में हां मिलाते दिखे। वे कहते हैं,‘‘कश्मीर में सिविल सोसाइटी बहुत बिखरी हुई है। दूसरी बात, हिंसा को लेकर उनका रवैया सदैव बेहद पक्षपातपूर्ण रहता है। लेकिन पिछले कुछ समय में इस नजरिये में बदलाव आया है। अभी बीएसएफ के शिविर पर हमला हुआ या इससे पहले के कुछ हमले हुए, आज लोग साफ तौर पर निंदा कर रहे हैं। इससे लगता है कि एक समाज के तौर पर कश्मीर ने हिंसक घटनाओं पर अपना रवैया बदलना शुरू कर दिया है और निंदा करने की उनकी जो पक्षपातपूर्ण सोच थी, उससे वे बाहर आ रहे हैं।’’ कश्मीर विश्वविद्यालय में ही विधि के छात्र अजमल शाह कहते हैं,‘‘यहां के लोगों की आंखों पर कुछ लोगों ने चश्मा चढ़ा रखा है। वे उस चश्मे से दुनिया को जैसे दिखाते हैं, वैसा वे देखते हैं। लेकिन कुछ दिनों से इसमें बदलाव आया है और लोगों ने अपनी आंखों से देखना शुरू किया है। खासकर हमारी उम्र के युवाओं ने।’’
क्या सोचती हैं घाटी की युवतियां
श्रीनगर के करन नगर की 17 वर्षीया तलक जान केसेट एक्सपेरिमेंटल हायर सेकेंडरी स्कूल में 11वीं की छात्रा हैं। वे ताइक्वांडो की खिलाड़ी हैं और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में उन्होंने कई पदक जीते हैं। घर के पास एक छोटे मैदान में अन्य लड़कियों के साथ वे रोज अभ्यास करती हैं। उनका सपना है कि ताइक्वांडो की अच्छी खिलाड़ी बनकर भारत का नाम रोशन करें। लेकिन हालात पर बात करने पर तलक सहसा मायूस हो जाती हैं और कहती हैं, ‘‘कश्मीर के हालात हम जैसे लोगों को आगे नहीं बढ़ने दे रहे, बल्कि वर्षों पीछे धकेल रहे हैं। पूरा देश और दुनिया विकास के रास्ते पर चल रही है, पर कश्मीर के ही कुछ लोग यहां के माहौल में जहर घोल रहे हैं। वे नहीं चाहते कि यहां अमन कायम हो, क्योंकि इससे उन्हें फायदा है। वे घाटी में अशांति चाहते हैं।’’ तलक की बात पर कुछ समय तक विश्वास नहीं हो रहा था। क्योंकि सुबह उठते ही अमूमन दिल्ली में हम जिन अखबारों और खबरिया चैनलों पर कश्मीर का रूप देखते हैं, उससे तलक का विचार अलग था। क्योंकि उसकी आंखों में खबरिया चैनलों पर और समाचार पत्रों में परोसे जाने वाला कश्मीर नहीं, बल्कि एक अलग कश्मीर दिखाई दे रहा था, जो देश में अमन-चैन की बात कर रहा था। उनके साथ ताइक्वांडो सीख रही खुशबू नवी, इकरा, सनोबर और जिया जैसी कई लड़कियां थीं जो न केवल देश प्रेम से लबरेज थीं बल्कि हिन्दुस्थान में जन्म लेने पर फख्र महसूस कर रही थीं। उनमें 25 वर्षीया नरगिस भी थीं। वे घाटी में बदलते माहौल से खुश नजर आईं। कश्मीर विवि. से स्नातक नरगिस फैशन डिजाइनर बनना चाहती हैं। लेकिन उन्हें इस क्षेत्र को कॅरियर रूप में चुनने की आजादी नहीं है जिसके चलते उन्हें घर व समाज का विरोध सहना पड़ रहा है। लेकिन धुन की पक्की नरगिस कहती हैं,‘‘मेरा जो मन करेगा, वह करूंगी। मैं विरोध की परवाह नहीं करती। रही बात घाटी का माहौल बिगाड़ने की तो कुछ लोग यही चाहते हैं क्योंकि उनकी दुकानें इसी से चलती हैं। वे अपने फायदे के लिए यहां का माहौल खराब करते हैं। पर ऐसे में हम जैसे लोगों का भविष्य अधर में लटक जाता है।’’ बहरहाल, साफ है कि हवा बदल रही है। घाटी में आतंकी और आतंकी संगठन कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। सुरक्षाबलों की कड़ी कार्रवाई ने जहां इनकी कमर तोड़ रखी है, वहीं घाटी का माहौल भी सुधरा है। लड़ाई अंतिम और निर्णायक मोड़ पर नजर
आती है।
देश और दुनिया विकास के रास्ते पर चल रही है, पर कश्मीर के ही कुछ लोग यहां के माहौल में जहर घोल रहे हैं। वे नहीं चाहते कि यहां अमन कायम हो।
—तलक जान
कुछ लोग कश्मीर को अशांत देखना चाहते हैं क्योंकि उनकी दुकानें इसी से चलती हैं। लेकिन अब लोगों को बहुत कुछ समझ आने लगा है।
—नरगिस
‘‘कश्मीर में जंग के हालात हैं जिससे हम लड़ रहे हैं’’
जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक एस.पी.वैद्य का कहना है कि कश्मीर एक जंग का मैदान बना हुआ है। कभी हमारा पलड़ा भारी होता है तो कभी उनका। हाल ही में सीमा सुरक्षा बल के शिविर पर हुए हमले और घाटी के हालात को लेकर पाञ्चजन्य संवाददाता अश्वनी मिश्र ने उनसे विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-
ल्ल श्रीनगर हवाई अड्डा इलाका अतिसुरक्षा घेरे में है। उसके बावजूद सीमा सुरक्षा बल के शिविर पर हमला हो जाता है। सुरक्षा में कहां कमी रही?
हवाई अड्डे का इलाका पूरी तरह से सुरक्षित है। जिस पर आतंकियों ने हमला किया वह बटालियन हवाई अड्डे के पास है। सीमा सुरक्षा बल को अपने शिविर सुरक्षित रखने के लिए जो इंतजाम करने चाहिए, वे उन्होंने किए थे और सदैव करते हैं। दरअसल आत्मघाती हमला जब भी होता है, तब हमारे पास एक ही रास्ता होता है, वह है सिर्फ आत्मघाती हमलावर को मारना। इसमें सबसे खतरनाक चीज है कि आतंकी मरने की सोच रखकर आता है, इसलिए वह कुछ भी करने से नहीं हिचकता। यह बड़ी बात है कि हमले में जवानों ने सतर्कता बरतते हुए उन्हें मार गिराया। आपको जानकारी होगी कि इसी आतंकी समूह के तीन आतंकियों ने पिछले दिनों पुलवामा की जिला पुलिस लाइन पर हमला किया था जिसमें हमारे 8 जवान शहीद हुए थे। जबकि इस हमले में सुरक्षाबलों की मुस्तैदी के चलते ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। हमारा एक जवान बलिदान हुआ, वह भी उस समय जब एक आतंकी अंदर घुस रहा था। बाकी बड़े ही अच्छे तरीके से हमले पर काबू पाया गया।
ल्ल सुरक्षा एजेंसी और जम्मू-कश्मीर पुलिस की ओर से जो बयान आ रहे हैं, उसमें कहा जा रहा है कि हमारे पास इलाके में आतंकियों के छिपे होने की सूचनाएं थीं। अगर सूचनाएं थीं तो क्या हुआ?
देखिए, कोई भी आतंकवादी हमला स्थानीय समर्थन और संरक्षण के बिना नहीं होता। अगर कोई पाकिस्तानी आतंकी यहां हमला करने आया है तो उसे कैसे पता होगा, कहां से जाना है, कहां हमला करना है, कहां दीवार छोटी है, कहां से भागना है, हमला करने वाले इलाके में रास्ते कहां से निकलते हैं और कौन-सी जगह कमजोर है। यह सब बताने वाले और उनकी मदद करने वाले हमारे अपने ही घर के लोग होते हैं। रही बात खुफिया रपटों की तो हमारे पास बहुत-सी सूचनाएं रहती हैं। जैसे हमारे पास सूचना है कि 200 से ज्यादा आतंकी घाटी में मौजूद हैं। लेकिन ऐसा तो है नहीं कि हम उन्हें सीधे तौर से जानते हैं। कई बार खबरें सही नहीं मिलतीं। और जब खबरें सही मिलती हैं तो हम अपना काम भी करते हैं। मेरा मतलब है कि अगर एकदम सटीक सूचनाएं हमारे पास हों तो फिर तो हम कुछ ही समय में इस आतंक को खत्म कर सकते हैं। हमारे पास तो अत्याधुनिक पुलिस, फौज है। लेकिन दूसरी ओर आतंकवादियों को संरक्षण और उन्हें बचाने वाले लोग भी हैं। एक चीज हमें समझनी होगी कि कश्मीर में जंग के हालात हैं। हम उस जंग से हर स्तर पर लड़ रहे हैं।
ल्ल अभी कुछ दिन पहले तक यह लग रहा था कि आतंकी समूहों का खुफिया तंत्र कमजोर पड़ गया है लेकिन फिर से ऐसा लगने लगा है कि उन्होंने इसे मजबूत कर लिया है। आपका क्या कहना है?
मुझे नहीं लगता कि आतंकियों का खुफिया तंत्र मजबूत हुआ या हो रहा है। यहां जंग जैसे हालात हैं। वे भी लड़ रहे हैं और हम उन्हें मारने के लिए लड़ रहे हैं। ऐसे में कभी हमारा पलड़ा भारी होता है तो कभी उनका। लेकिन पुलिस और अन्य एजेंसियां इसके खात्मे के लिए लगी हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हम जल्द ही इसे मटियामेट करेंगे।
ल्ल हाल के दिनों में जितने हमले हुए, उसमें कौन-कौन से आतंकी समूह प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं? क्या इनमें आपसी तालमेल है?
बिल्कुल, आपसी तालमेल है। पहले यहां लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन अत्यधिक सक्रिय थे। हमारे सुरक्षाबलों ने उनकी कमर तोड़कर रख दी है और उनके शीर्ष आतंकियों का सफाया कर दिया है। उनके पांच-सात कमांडर बचे हैं, बाकी हमने सब खत्म कर दिये हैं। इन आतंकी समूहों की हालत यह है कि अब उनको शीर्ष नेतृत्व के लिए आतंकी भी नहीं मिल रहे। लेकिन पाकिस्तान ने जब इन आतंकी समूहों का आत्मबल डूबता हुआ देखा तो उसने एक नई चाल चली है। उसने जैश-ए-मोहम्मद के कुछ आतंकियों को घाटी में भेजा है ताकि वे कश्मीर में बड़े-बड़े हमले करें और पुलिस और सुरक्षबलों के मनोबल को गिराएं।
ल्ल सीमापार से जो आतंकी भारत में आते हैं, क्या आप मानते हैं ऐसे लोगों के लिए घाटी के अलगाववादियों के दरवाजे खुले रहते हैं?
बिल्कुल। घाटी के अलगाववादियों के दरवाजे आतंकियों के लिए खुले रहते हैं।
ल्ल पिछले कुछ दिनों से घाटी में आतंकियों द्वारा आम नागरिकों की हत्याएं की जा रही हैं। यह सिलसिला कब थमेगा?
हम मानते हैं कि ये भी आतंकी घटनाएं ही हैं। हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन-कौन से आतंकी समूह समाज के बीच रहकर इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने में लगे हुए हैं।
ल्ल अगर आपको आतंकवादियों की संख्या पता है, उनका ठिकाना पता है, खुफिया तंत्र मजबूत है तो जम्मू-कश्मीर पुलिस की आगामी रणनीति क्या है?
हर ठिकाना पता नहीं है। उनके ठिकाने बदलते रहते हैं। हां, हमें आतंकियों की संख्या का अंदाजा है। दूसरी बात पुलिस की रणनीति सदैव आतंक और आतंकवादियों के विरुद्ध रहती है। हम घाटी में उनके सफाये के लिए काम कर कर रहे हैं। हम उन्हें जो चोट दे रहे हैं, उससे वे उबर नहीं पा रहे हैं।
शिकंजे में अलगाववादी
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जिन सात लोगों को गिरफ्तार किया उन पर आरोप है कि वे पाकिस्तान से हवाला के जरिए पैसा लेकर घाटी में आतंक की पौध को खाद-पानी देने का काम करते हैं ये हैं—
नईम अहमद खान
नईम जम्मू कश्मीर नेशनल फ्रंट का अध्यक्ष है। उसकी पार्टी हुर्रियत गुट का हिस्सा थी। फारूक अहमद डार
फारूक उर्फ बिट्टा कराटे आतंकवादी रहा है। वह जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (आर) का अध्यक्ष है। उस पर कई हिन्दुओं की हत्या का आरोप है और 16 साल जेल में गुजार चुका है।
अल्ताफ अहमद शाह
यह फंटूश हुर्रियत का सदस्य होने के अलावा अली शाह गिलानी कादामाद भी है।
अयाज अकबर
गिलानी धड़े का प्रवक्ता अयाज सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कराने, पत्थरबाजी कराने का काम संभालता था।
आफताब हिलाली शाह
आफताब उर्फ शाहिद उल इस्लाम मीरवाइज के नेतृत्व वाले हुर्रियत गुट का प्रवक्ता है। आफताब आतंकवादी रह चुका है।
पीर सैफुल्लाह
सैफुल्लाह हुर्रियत के अध्यक्ष सैयद अली शाह गिलानी का निजी सचिव है।
राजा मेहराजुद्दीन कलवल
राजा कलवल गिलानी के नेतृत्व वाली तहरीक-ए-हुर्रियत का श्रीनगर जिला प्रमुख है।
मेहमान का पन्ना:
अपनी मौजूदगी दिखाने को बेचैन आतंकी
बशीर मंजर, श्रीनगर से
श्रीनगर हवाई अड्डे के उच्च सुरक्षा क्षेत्र वाले इलाके में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के शिविर पर हुआ फिदायीन हमला वर्तमान कश्मीर के सामने आने वाले दो बहुत गंभीर मुददें की याद दिलाता है। पहला, पाकिस्तान या अन्य जगहों से संचालित हो रहे आतंकवादी या अलगाववादी समूहों को इस समय ‘समाचार बनाने’ वाले हमलों की बेहद तलाश है। दूसरा, सुरक्षा और खुफिया विभाग में निस्संदेह कुछ कमियां हैं, जो जम्मू-कश्मीर में अपना काम करती हैं।
कुछ दिनों से आतंकवादियों की हताशा और उनके आकाओं की कमर टूटने का नजारा दिखता है। इसके कई प्रमुख कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 2016 में घाटी में अशांति के बाद, कश्मीर ने धीरे-धीरे उभरना शुरू कर दिया है। लेकिन यह दृश्य उन लोगों के एजेंडे के अनुरूप नहीं है जो आतंकी समूहों के खैरख्वाह हैं।
यह ध्यान रखना बड़ा दिलचस्प है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा कई अलगाववादी नेताओं, कुछ कारोबारी व्यवसायियों और यहां तक कि एक मौजूदा विधायक पर छापे मारे जाने के बाद कश्मीर की स्थिति में नाटकीय बदलाव आया। इससे घाटी में आएदिन हो रही पत्थरबाजी की घटनाएं थम गईं। यहां तक कि अलगाववादी नेताओं द्वारा बुलाए गए बंद को बहुत ही मामूली समर्थन मिला। इस सबसे घाटी में जो सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों का ग्राफ था, वह नीचे चला गया है। लेकिन आतंकवादी गतिविधियां बढ़ी हैं। यहां यह समझने की जरूरत है कि आतंकवादी समूह यही चाहते हैं कि घाटी का माहौल हर समय अशांत और उबाल पर रहे। जब अवाम का सार्वजनिक विरोध होता है तो आतंकियों को अपनी मौजूदगी दिखाने की जरूरत नहीं होती। लेकिन जब अवाम इस तरह के विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा नहीं बनना चाहती, तो उनके पास आतंकवाद ही एकमात्र रास्ता होता है।
अगर आप कश्मीर को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों में भारी कमी आई है। बंदूक को एकमात्र रास्ता मानने वाले चाहते हैं कि कैसे भी यहां का माहौल बिगड़ा रहे। सीमा सुरक्षा बल के शिविर पर हुए हमले को इसी पृष्ठभूमि में देखा जा सकता है।
घाटी में आतंकवादियों ने आसानी से निशाना बनने वाले निहत्थे पुलिसकर्मियों, आम नागरिकों, दुकानदारों को मारना शुरू कर दिया। पिछले कुछ दिनों में खासतौर से दक्षिण कश्मीर के इलाकों में कई लोग आतंकवादियों की गोली का शिकार हुए हैं। यहां तक कि 3 अक्तूबर को दक्षिण कश्मीर के मट्टन इलाके में एक दुकानदार, जो सत्तारूढ़ पार्टी का पूर्व पंच था, को आतंकवादियों ने तब निशाना बनाया, जब वह अपनी दुकान पर बैठा था।
एक तरफ आतंकवादियों ने आसानी से निशाना बनने वाले लोगों को लक्षित करना शुरू किया है तो दूसरी ओर, पाकिस्तान में बैठे आतंकी संगठन लश्कर-ए तैयबा, जैश-ए- मोहम्मद घाटी में एक बड़े हमले को अंजाम देने की कोशिश में हैं। जब बड़े हमले होते हैं तो वे देश-दुनिया की मीडिया की सुर्खियां बनते हैं और आसानी के साथ घाटी का मुदद उबाल मारने लगता है। आसानी से शिकार होने वाले कश्मीर की अवाम के लिए उनका एक कड़ा संदेश होता है कि ‘देखो हम यहां हैं। तो अच्छे से रहो।’ और जो इनके संघर्ष में सशस्त्र सहायक बनते हैं, उनके लिए भी एक संदेश इसमें छिपा होता है।
बढ़ते आतंकवादी हमलों का एक अन्य कारण वैश्विक परिदृश्य पर देखने से स्पष्ट हो जाता है। दरअसल, भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ लगभग सभी औपचारिक और अनौपचारिक संचार संबंध तोड़ लिए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ और कुछ अन्य देशों द्वारा आपसी बातचीत बहाली को लेकर प्रयास किए लेकिन भारत ने साफ किया कि ‘आतंक और वार्ता’ एक साथ नहीं चल सकते। भारत का यह रुख बेशक लंबे समय तक न रहे, यह बहस का मुद्दा नहीं है। लेकिन कुछ समय के लिए पाकिस्तान को भारत ने जरूर अलग-थलग किया है। दूसरी बात, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच नहीं पड़ना चाहता। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान पाकिस्तान ने हर वह चाल अपनाई, जिससे कश्मीर को लेकर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया जा सके। हालांकि उसे तब शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा जब उसने एक फिलिस्तीन पीड़िता की तस्वीर को कश्मीर घाटी की पीड़िता बताकर दिखाया। पर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने उसके खोखले दावों को दरकिनार करते हुए कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और कहा कि कि इस मुदद्े को द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाएं।
अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मामले पर अत्यधिक रुचि न दिखाना पाकिस्तान के लिए बड़ी चिंता का कारण बना है। तो दूसरी ओर भारत पाकिस्तान से किसी भी प्रकार के राजनयिक संबंध रखने के पक्ष में नहीं है। अन्तरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर को समस्या ग्रस्त क्षेत्र नहीं बनाए रखने देना नहीं चाहता। फिर पाकिस्तान में बैठे रणनीतिकारों के लिए रास्ता क्या है जो सिर्फ आतंकवाद को मानते हैं और कश्मीर में कुछ बड़ी दहशत फैलाना चाहते हैं? सीमा सुरक्षाबल के शिविर पर हुए हमले को पिछले दिनों पुलवामा जिले की पुलिस लाइन पर हुए हमले की तर्ज पर देखा जा सकता है।
पाकिस्तान तो चाहेगा कि कश्मीर में सार्वजनिक प्रदर्शन जारी रहें। इन प्रदर्शनों से पाकिस्तान विश्व समुदाय के सामने यह बता सकता है कि पूरा कश्मीर भारत के खिलाफ है। दूसरा, आम नागरिकों की हत्याएं सशस्त्र लड़ाकों से इतर एक गंभीर मुद्दा बन जाती हैं। इसलिए पाकिस्तान चाहेगा कि घाटी में अधिक से अधिक सार्वजनिक प्रदर्शन हों। वहीं दूसरी तरफ उसे आतंकी हमलों से खुशी मिलेगी। कश्मीर के आतंकवादी हमलों ने एक सशस्त्र संघर्ष और दुनिया का नवीनतम शब्दजाल पेश किया है। लेकिन घाटी में राष्ट्रीय जांच एजेंसी के छापों के बाद सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन कम हुए हैं, यह भी पाकिस्तान की निराशा का प्रमुख कारण है। इसलिए कोई विकल्प न सूझता देख वह घाटी में आतंकवादी घटनाओं को हवा देने में लगा हुआ है। इसके जरिए वह यही संदेश देना चाहता है कि कश्मीर में सब कुछ ‘सामान्य’ नहीं है। पाकिस्तान ऐसा करने के लिए किसी भी कीमत पर कोशिश करेगा और वह ऐसा कर भी रहा है।
जम्मू-कश्मीर राज्य में संचालित सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों में कुछ कमियां नजर आ रही हैं, जिन पर गंभीरता से सोचना होगा। कश्मीर में आतंकवाद का कोढ़ लगभग 30 साल पुराना है। उम्मीद है, राज्य की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों ने व्यापक रूप से इस दौरान अपनी क्षमताओं के साथ ही आतंकी समूहों की क्षमताओं को भी समझा होगा। जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा एजेंसियों को समझना होगा कि घाटी में दो सबसे शक्तिशाली आतंकी संगठन, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा लड़ रहे हैं। ये संगठन स्वयं में बड़े मजबूत, पेशेवर और जिहाद के लिए समर्पित हैं। उनके लिए कश्मीर मुदद है भी और नहीं भी। वे केवल और केवल इस्लाम और गैरइस्लाम की लड़ाई लड़
रहे हैं।
जैसा कि कुछ सुरक्षा सूत्रों का कहना है कि उनके पास जैश-ए-मोहम्मद की ओर से हमले करने की गुप्त सूचनाएं थीं तो फिर श्रीनगर हवाई अड्डे के पास बीसएफ शिविर पर हमला कैसे हुआ? इस सवाल पर सुरक्षा एजेंसियों को विचार करना होगा। किसी भी सशस्त्र संघर्ष वाले क्षेत्र में सबसे जरूरी तत्व है अचानक किसी भी घटना का घटित होना। हाल ही में हुए आतंकी हमलों में हमने महसूस किया कि आतंकवादियों की ओर से अचानक हरकत होती है, क्यों?
राज्य का खुफिया तंत्र कहां है? जिस तरह से आतंकी हवाई अड्डे के पास बीएसएफ शिविर पर और पुलवामा की पुलिसलाइन जैसे प्रतिष्ठानों पर हमले कर रहे हैं, ऐसे में सुरक्षा एजेसियां उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई क्यों नहीं करतीं?
इस तरह के सवाल लोगों के जेहन में उठ रहे हैं। इनका जवाब सुरक्षा एजेंसियों को देना होगा। हां, उनकी ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है। वे आग से खेल रहे हैं और अपने शरीर पर गोलियां खा रहे हैं। ये लोग घाटी की स्थिति को सामान्य करने के लिए हरसंभव कोशिश भी कर रहे हैं। इसलिए हममें से कोई भी उनके काम के ऊपर संदेह नहीं करता। लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की खामियों को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता। जब भी कोई हमला होता है तो खामियों पर सवाल खड़े होते हैं। यदि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां सुरक्षा व्यवस्था की कमी है तो उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? घाटी में सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। इसलिए हम भगवान भरोसे लोगों को नहीं छोड़ सकते। जो यह समझते हैं उन्हें सुरक्षा कारणों पर गंभीरता से सोचना होगा और इसका हल निकालना होगा। हालांकि जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों द्वारा पुलिसलाइन पुलवामा और बीएसएफ शिविर पर किए गए हमलों को सुरक्षाबलों ने बेहतर तरीके से संभाला लेकिन कुछ और सर्तकता बरती जाए तो इन हमलों में भी कमी लाई जा सकती है। अगर खुफिया एजेंसी सूचनाओं को लेकर थोड़ा और सजग हो जाएं तो पुलवामा की पुलिसलाइन में हुए आतंकी हमले में सुरक्षाबलों के हताहतों की ज्यादा संख्या इस ओर इशारा करती है कि सुरक्षाबल सचेत नहीं थे। लेकिन श्रीनगर हवाई अड्डे के पास बीएसएफ शिविर के हमले के दौरान केवल एक जवान बलिदान हुआ, यह बात बताती है कि सुरक्षाबल किसी भी हमले का सामना करने के लिए तैयार थे। लेकिन सवाल यह है कि वे हमले से निबटने के लिए तैयार थे, लेकिन हमला बिल्कुल न हो, इसके लिए क्यों तैयार नहीं थे?
ऐसा लगता है कि आने वाले दिन सुरक्षा एजेंसियों के लिए काफी कठिन होने वाले हैं। पाकिस्तान में सेना कश्मीर को वर्ष का सबसे ज्यादा तनावग्रस्त क्षेत्र दिखाने के लिए बेकरार है। अब मुदद यह है कि सुरक्षा और खुफिया एजेंसी इस मुदद्े को लेकर कश्मीर में क्या रुख अपनाएंगी ताकि चुनौती से निबटा जा सके। बहरहाल, सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर हो रहे हमलों को विफल करने के साथ ही नागरिकों को भी बचाना महत्वपूर्ण है। अगर आम लोगों को बचा लिया गया तो समझिए पूरे राज्य को बचा लिया। (लेखक कश्मीर इमेजेज के संपादक हैं)
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