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अनेक अफ्रीकी देशों में ईसाई मिशनरियां भारी पैसा झोंककर ईसाइयत का जाल बुन रही हैं। इसके पीछे यूरोप और अमेरिका में नास्तिकों की बढ़ती संख्या से चर्च का डगमगाना है। मध्य अफ्रीकी देश तो ठीक निशाने पर हैं
मोरेश्वर जोशी
पिछली सदी में दुनिया ने कुछ महाशक्तियों का अनुभव किया है। उनमें से कोई पूंजीपति थी, तो कोई कम्युनिस्ट। उसी से वैश्विक स्तर पर दो ध्रुवीय राजनीति का उदय हुआ। अब जनसंख्या के आधार पर पुन: महाशक्तियों का समय आता दिखता है। भारत ने पिछले 1000 वर्ष से इन बड़ी जनसंख्या वाली महाशक्तियों की गुलामी का ही अनुभव किया है।
मध्य अफ्रीका में फिलहाल जनसंख्या बढ़ाने की तीव्र प्रतिस्पर्धा चल रही है। किसी क्षेत्र की जनसंख्या 50-60 वर्ष में 15 करोड़ से 75 करोड़ होना मामूली बात नहीं है। दुनिया की महत्वपूर्ण अध्ययन संस्थाओं ने इस पर कई रिपोर्ट और नक्शे प्रकाशित किए हैं। ये आंकड़े इतने विशाल हैं कि शुरू में उन पर विश्वास होना भी कठिन है। लेकिन आगामी समय में हमारा पंथ पहले नंबर पर होना चाहिए, इस उकसावे के साथ इस चलन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। कुछ गुट उसका लंबी अवधि के लिए उपयोग करवाने हेतु आगे भी आए थे। परिणाम को लेकर जाने-अनजाने किसी घटना के होने की संभावना भी कम नहीं होती। मध्य अफ्रीका में इस तेजी से होती जनसंख्या वृद्धि पर विश्व के बड़े-बड़े संगठन और संस्थाएं नजर रखे हुए हैं। इनमें संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, पॉप्युलेशन रेफरेन्स ब्यूरो, पीयू के साथ-साथ वॉइस आॅफ अमेरिका, बीबीसी जैसे संचार माध्यम भी हैं। उनके प्रतिवर्ष के आंकड़े भी प्रकाशित होते हंै।
जनसंख्या विस्फोट
एक तरफ तो इस जनसंख्या विस्फोट के कारण विश्व के समक्ष कौन-सी समस्याएं आएंगी और उनका निराकरण कैसे करना है, इस पर विचार करने वाली संस्थाएं हैं तो वहीं दूसरी तरफ, इस बढ़ती हुई जनसंख्या का हम कैसे लाभ उठाएं, यह विचार करने वाले संगठन भी कार्यरत हो चुके हैं। दुनिया में ऐसे भी संगठन हैं, जो सोचते हैं कि विश्व में एकमात्र महाशक्ति बनने के लिए हमें एक अरब की और जनसंख्या चाहिए। जनसंख्या वृद्धि का मुद्दा केवल अफ्रीका तक सीमित नहीं है। भारत भी वैसा ही एक देश है। यहां आम व्यक्ति शांति से रहना चाहता है इसलिए ‘हम दो हमारे दो’ पर वह संतुष्ट रहता है। फिर भी कुछ गुट ऐसे प्रकल्प चला रहे हैं ताकि जल्दी से जल्दी वे देश में सबसे बड़ी जनसंख्या वाले बन जाएं। भारत में हर जनगणना में इस बात का आभास होता है।
जनसंख्या के बूते महाशक्ति का सपना
वैश्विक स्तर पर तो यह समस्या और उग्र है। छह माह पहले दुनिया के सभी संचार माध्यमों ने यह विषय लिया था। अमेरिका के पीयू नामक सामाजिक अध्ययन करने वाले संगठन की एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। इसकी रपट में अगले 50-60 वर्ष में दुनिया की जनसंख्या के आंकड़ों में एक-एक अरब जनसंख्या करने के उद्देश्य सामने आए थे। वह सारी जानकारी भारत के सभी संचार माध्यमों और पूरी दुनिया के मीडिया ने प्रमुखता से दी थी। कहा गया था कि फिलहाल दुनिया में मुसलमानों की संख्या 160 करोड़ है और ईसाइयों की 220 करोड़। अपनी तादाद बढ़ाकर दुनिया को अपने वश में करने के लिए विश्व के मुस्लिम संगठनों ने मुसलमानों से अगले 30-40 वर्ष में यह लक्ष्य हासिल करने का आह्वान किया था। उस लिहाज से हर एक देश में उसकी अनुभूति हो रही है। इस मुद्दे पर अनेक लेख भी आ चुके हैं। जो स्थिति मुस्लिम संगठनों की है वही स्थिति ईसाइयों की है। इसलिए अगर उनकी संख्या आज 220 करोड़ है तो 3 अरब का लक्ष्य रखना चाहिए, इस तरह की अपील उन्होंने अपने वर्चस्व वाले देशों में की है।
दुनिया ने पिछली सदी में अमेरिका और सोवियत संघ को महाशक्तियों के रूप में देखा हैं। अब जनसंख्या के आधार पर अपने को महाशक्ति साबित करने वाली ताकतें सामने आती दिखती थीं। ईसाइयों के मामले में यह समस्या और भी जटिल बन गई है। आज उस दृष्टि से महाशक्ति होने के बावजूद ईसाई अपना मत छोड़कर जा रहे हैं।
अफ्रीका में बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि की जानकारी पीयू के अलावा विश्व बैंक भी सामने लाया है। इसलिए इस पर विश्वास होता है। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अफ्रीका में सब-सहारा नामक क्षेत्र में 1950 में जनसंख्या 18 करोड़ 60 लाख थी जो 2010 की जनगणना में 85 करोड़ 60 लाख हो चुकी है। यह संख्या तो केवल तंजानिया, इथियोपिया, नाइजीरिया, नाइजर, कांगो (फ्रेंच), जांबिया और युगांडा की है। पिछले साठ वर्ष की इस वृद्धि को देखते हुए अगले 45 वर्ष में वह 2 अरब 70 करोड़ होने की संभावना है। विश्व के 10-12 संगठनों ने इस बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की है।
बढ़ती हुई जनसंख्या बनी समस्या
वर्तमान में चीन और भारत की जनसंख्या अरबों में गिनी जाती है। लेकिन उनका क्षेत्र भी बड़ा है। अफ्रीका में अधिकांश देशों का क्षेत्र उनकी तुलना में कम है, फिर भी उन्हें अरब का आंकड़ा खड़ा करने में अधिक दिन नहीं लगेंगे। इनमें से नाइजीरिया की जनसंख्या के 2050 में अमेरिका जितनी होने की संभावना है। कुछ वर्ष पहले इन क्षेत्रों में प्रति महिला बच्चों का औसत साढ़े छह था। यानी एक दंपत्ति को औसतन साढ़े छह बच्चे होते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक शिक्षा का प्रसार हुआ और यह अनुपात 5.1 तक नीचे आ गया। फिर भी उनका औसत दुनिया के औसत से दोगुना है। बोत्सवाना, केन्या और दक्षिण अफ्रीका में बच्चों की जन्म दर कम है। सब-सहारा प्रदेश में हाल में बाल मृत्यु दर में गिरावट आई है। 1950 के दौरान प्रति हजार 183 की संख्या 2010-15 में 69 हो गई थी। वहां बाल मृत्यु, कुपोषण, रोग और बीमारियों के साथ-साथ एचआईवी जैसे भयंकर रोग भी हैं। इसलिए औसत उम्र 36 साल गिर गई थी, जो अब 56 वर्ष है।
निशाने पर मध्य अफ्रीका
मध्य एशियाई देशों में साधारण तौर पर 60 प्रतिशत ईसाई हैं, जबकि 40 प्रतिशत मुसलमान। कुल मिलाकर मिस्र से लेकर दक्षिण अफ्रीका के देशों तक, जनसंख्या वृद्धिदर बाकी दुनिया की तुलना में अधिक है। मध्य अफ्रीका में तो वह बहुत ज्यादा है। मिस्र में लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से पहले होना और फिर एक वर्ष के अंदर पहला बच्चा होना एक बड़ी समस्या है। नाइजीरिया की जनसंख्या 17 करोड़ है जिसमें 7 करोड़ ईसाई हैं। इथियोपिया में 5.25 करोड़ ईसाई हैं जो वहां की जनसंख्या के 45 प्रतिशत हैं। बोत्सवाना में 2 करोड़ जनसंख्या में से आधे ईसाई हैं। बुरुंडी में एक करोड़ जनसंख्या में से 71 लाख ईसाई हंै। कांगो गणराज्य में 80 प्रतिशत ईसाई हैं। यह संख्या 5 करोड़ 70 लाख है। युगांडा में 89 फीसदी ईसाई हैं, रवांडा में 94 प्रतिशत ईसाई हैं। तंजानिया में 50 प्रतिशत, जांबिया में 85 प्रतिशत, जिंबाब्वे में 70 प्रतिशत ईसाई हंै। यानी वहां 105 करोड़ की जनसंख्या में 42 प्रतिशत ईसाई हैं।
बढ़ती जनसंख्या को विश्व में शिक्षा, गरीबी, शहरीकरण, परिवार नियोजन आदि के बारे में जागरूकता या अज्ञान से जोड़ा जाता है। इसलिए वहां हर एक देश की अलग कथा है। नाइजीरिया की जनसंख्या प्रति वर्ष तीन प्रतिशत की दर से बढ़ती है, जबकि बोत्सवाना में वह एक प्रतिशत की दर से बढ़ती है।
विश्व में युवाओं की सर्वाधिक संख्या वाले जो 10 देश हैं, उनमें 8 तो सब-सहारा के ये देश हैं। अगले 30-35 वर्ष में सभी 10 देश सब-सहारा के ही होंगे। इसलिए इस क्षेत्र में अगले कुछ वर्षों में जन्म लेने वाले और एक अरब लोगों का भविष्य क्या होगा, यह आज नहीं तो आगामी कुछ वर्षों में एक गंभीर समस्या होगी। इन लोगों का भविष्य अच्छी शिक्षा, साफ पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने पर निर्भर है। बढ़ती जनसंख्या के आधार पर महाशक्ति बनने वाले देशों के समक्ष इसके लिए कोई भी ठोस कार्यक्रम नहीं है।
चिंता यूरोप की
यूरोप और अमेरिका में बहुत बड़ी संख्या में ईसाई मत त्याग कर खुद को नास्तिक बताने वालों की बढ़ती संख्या के कारण ईसाई अल्पसंख्यक होते जा रहे हंै। ईसाई मत नकारने वालों के ऐसे भाव सामने आ रहे हैं मानो वे ईश्वर का अस्तित्व मानने को तो तैयार हैं लेकिन ईसाइयत से उन्हें परहेज है। इसलिए जो ईसाई संगठन पूरे विश्व में स्वयं को यूरोप-अमेरिकी नागरिकों के प्रतिनिधि के रूप में पेश करते हैं, उनका खोखलापन स्पष्ट हो चुका है। इसी प्रकार जिन संस्थाओं, संगठनों और देशों ने पिछले 300-400 वर्ष में इस जनसंख्या के सहारे विश्व पर राज किया, वे संगठन और वे देश यूरोप-अमेरिका की ‘नो रिलीजन’ की सुनामी से आहत हैं।
किसी भी सूरत में भारत व चीन जैसे देशों में कन्वर्जन करवाना और दूसरी तरफ अफ्रीका के ‘उन’ हिस्सों में अनाज के जहाज भिजवाना जैसे अभियान वे चला रहे हंै। इन लोगों ने अपने इसी सामर्थ्य के आधार पर दुनिया में 100 से अधिक देशों पर कई शताब्दियों तक शासन किया है। दुनिया को उनके अनुभव को देखते हुए दबे खतरों से आगाह रहना होगा।
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