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20 अगस्त, 2017
आवरण कथा ‘बंधुआ सोच से आजादी’ से स्पष्ट है कि भारत 1947 में आजाद तो जरूर हुआ लेकिन मानसिक गुलामी से उसे छुटकारा नहीं मिला। आजादी के बाद से आज तक जो इतिहास यहां के लोगों को पढ़ाया जाता रहा है, वह भ्रामक और आधा सच-आधा झूठ था। जो आज भी जारी है। इसका परिणाम यह हुआ कि देश के लोग गलत को सही और सही को गलत मानने लगे। लेकिन अब समय है जब इस बंधुआ सोच से आजादी पाई जा सकती है। इसके लिए शिक्षा नीति में व्यापक सुधार की आवश्यकता है।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (म.प्र.)
भारत के वास्तविक इतिहास को जन-मन से परिचित कराकर उन्हें सच का भान कराने का यह उचित समय है, क्योंकि आज के समय शिक्षा गुरु-शिष्य परंपरा से दूर जाकर व्यावसायिक हो गई है। या यूं कहें कि बहुत से लोगों का यह पेशा बन गया है। इसने शिक्षा व्यवस्था को न केवल बर्बाद कर दिया बल्कि परंपरा को भी नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यकीनन बदलाव के दौर में शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करके उसका स्वरूप लौटाना चाहिए।
—निरूपम नाथ, उज्जैन (म.प्र.)
चीन, अमेरिका और इंग्लैंड के विवि में हिन्दी और संस्कृत पढ़ाई जाती है। इसे सीखने के लिए इन देशों के बच्चे लालायित हैं। विदेश के लोग भारतीय ज्ञान-परंपरा और समृद्ध संस्कृति का न केवल अध्ययन कर रहे हैं बल्कि उसे आत्मसात भी कर रहे हैं। हम इसके ठीक विपरीत कर रहे हैं। वे जो-जो चीजें छोड़ रहे हैं, हम वे सब अपनाते जा रहे हैं, वस्त्र से लेकर खानपान और शिक्षा से लेकर संस्कृति तक। ऐसे में हमारी शिक्षा व्यवस्था की खामी झलकती है। उसमें तो औरंगजेब और अकबर की महानता के किस्से जान-बूझकर भरे हुए हैं। जबकि महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी को कुछ पंक्तियों में ही समेट दिया गया गया। इसलिए ऐसी शिक्षा व्यवस्था को रसातल में डालकर नई शिक्षा नीति बनाकर देश को सच्चे इतिहास से परिचित कराना आज की महती आवश्यकता है।
—शशिकांत, भोजपुर (बिहार)
घुसपैठियों की हमदर्द
‘शरिया की गिरफ्त में बंगाल (6 अगस्त, 2017)’ रपट सच को उजागर करती है। यह सच है कि वोट बैंक की राजनीति ने पश्विम बंगाल को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है और ममता बनर्जी हिन्दुओं के लिए एक क्रूर और निर्दयी शासक साबित हो चुकी हैं। मानव तस्करी, गोवंश तस्करी, भ्रष्टाचार, दंगा-फसाद धीरे-धीरे राज्य की पहचान बनते जा रहे हैं। ममता खुलेआम बांग्लादेशी घुसपैठियों की हमदर्द बनती हैं और उन्हें अपने यहां पनाह देती हैं जबकि यही लोग राज्य में समय-समय पर उत्पात मचाते हैं। पर न ही शासन उन पर कोई कार्रवाई करता है और न ही प्रशासन। सब अपने मुंह सिलकर तमाशा देख रहे हैं।
—मनोहर मंजुल, प.निमाड़ (म.प्र.)
बंगाल में एक के बाद एक होते दंगे ममता सरकार की पोल खोलते हैं। मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चल ममता ने कट्टरपंथियों के हौसले इतने बुलंद कर दिए हैं कि वे छोटी-छोटी बातों पर राज्य को जलाने की धमकी देने लगते हैं। इन दंगों में राज्य के कट्टरपंथियों के साथ ही बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम शामिल होते हैं जो उत्पात मचाने के बाद आसानी से बांग्लादेश भाग जाते हैं। यहां तक कि पड़ोसी देश के आतंकी भी बंगाल में शरण लिए रहते हैं। खुफिया सूचनाओं के बाद भी राज्य पुलिस उन्हें पकड़ने में निष्क्रियता
बरतती है।
—हरीश चन्द्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)
देश में एक राजनीतिक वर्ग ऐसा है जो वोट बैंक के लिए कुछ भी कर सकता है। ममता बनर्जी की पार्टी उसी वर्ग में से एक है। राज्य में वोट पाने के लिए वह सब कुछ कर रही हैं। वह हर उस चीज का विरोध करती है जो भारत और भारतीयता से प्रेरित होती है। वह दुर्गा पूजा का विरोध करती है। हिन्दू त्योहारों को मनाने का समय सीमित करती हैं, जबकि मुसलमानों को पूरी छूट देती हैं। यह तो किसी भी
शासक का पैमान नहीं होता। एक को छूट तो दूसरे पर शिकंजा।
—बी.एल.सचदेवा, 263, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)
देश में जिस तरह से मुसलमानों की तादाद बढ़ती जा रही है, वह न केवल चिंताजनक है बल्कि आने वाले दिनों में संकट बनने वाली है। हिन्दू दिनोंदिन बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक होते जा रहे है। ऐसा सोची-समझी साजिश के तहत हो रहा है। मुल्ला-मौलवी देश को ‘इस्लामिक देश’ बनाने में जुटे हुए हैं। इसके लिए वे लव जिहाद से लेकर कन्वर्जन तक के सारे हथकंडे अपनाते हैं। सरकार को चाहिए कि वह देश में परिवार नियोजन कानून लाए और जो भी इस कानून का उल्लंघन करे, उसके सभी अधिकार समाप्त कर दिए जाएं। जिस दिन यह कानून
बन जाएगा, उसी दिन से मुसलमानों की बढ़ती संख्या खुद-ब-खुद थमने लगेगी। वैसे इसके लिए और कारक भी
जिम्मेदार है। जिन पर समाज को ध्यान देना होगा।
—एस.एम.जोशी, नाशिक (महाराष्ट्र)
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