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मेहनत के बल पर हासिल किया मुकाम: नीरज
भारतीय एथलेटिक्स में सनसनी के तौर पर उभरे हरियाणा के पानीपत जिले के खांडरा गांव के नीरज चोपड़ा को विश्व पटल पर पहचान बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। भाला फेंक के प्रशिक्षण सत्र में खिलाड़ी आमतौर पर अपनी तकनीक सुधारने में लगे रहते हैं। लेकिन नैसर्गिक प्रतिभा के धनी नीरज एक दिन में एक हजार बार भाला फेंकने का अभ्यास करते हैं, फिर भी थकान उन पर हावी नहीं होती। लंदन में होने वाली विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए पटियाला में इन दिनों प्रशिक्षण ले रहे नीरज आत्मविश्वास से लबरेज हैं। साथ ही, लक्ष्य हासिल करने के लिए सफलता के मंत्र को आत्मसात कर रहे हैं। उनके व्हाट्सएप का स्टेटस है- शांति से मेहनत करते रहो, सफलता खुद ही शोर मचा देगी। अपने सुनहरे अंतरराष्ट्रीय करियर के सफर के बारे में नीरज ने जो बताया, प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश –
पानीपत के एक छोटे-से गांव से विश्व एथलेटिक्स जगत में अपनी पहचान बनाने तक का सफर कैसा रहा?
देखिए, एक गांव से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी के रूप में खुद को स्थापित करना कभी आसान नहीं होता। इस मुकाम को हासिल करने के लिए मुझे लंबे समय तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी। भाला फेंक खेल भारत में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है और न ही मेरे गांव में इसके लिए विश्वस्तरीय सुविधाएं ही उपलब्ध थीं। लेकिन मुझे शुरू से ही यह खेल अच्छा लगता था। इसलिए मैंने इसी को करियर के रूप में अपनाने की ठानी। छह-सात साल तक कठिन परिश्रम के बाद मैंने साई के प्रशिक्षण केंद्रों में इसकी तकनीक सीखी। उसी का नतीजा रहा कि मैं जूनियर विश्व एथलेटिक्स में विश्व रिकॉर्ड सहित स्वर्ण जीतने में सफल रहा। 2011 से जब सफलता मिलनी शुरू हुई तो परेशानियां पीछे छूटती चली गईं और मैं देश के लिए एशियाई एथलेटिक्स और दक्षिण एशियाई एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहा।
क्या आपको देश में भाला फेंक की सुविधाएं, विशेषकर, पर्याप्त प्रशिक्षण मिला?
शुरुआत में देश के वरिष्ठ खिलाड़ियों से मुझे काफी सहायता मिली। इसके बाद जेएसडब्ल्यू, खेल संघ और साई से काफी मदद मिली, जिससे मैं अपने प्रदर्शन में सुधार करने में सफल रहा। सरकार अब कई नए खेलों को बढ़ावा दे रही है जो हम जैसे युवा खिलाड़ियों के लिए उत्साहवर्द्धक है। जहां तक प्रशिक्षण की बात है तो गैरी कालवर्ट काफी अच्छे कोच थे। उनसे मुझे काफी तकनीक सीखने को मिलीं। लेकिन कालवर्ट अब चीन चले गए हैं तो खेल संघ ने अच्छे विदेशी कोच लाने का आश्वासन दिया है। जिस विदेशी कोच को भारत बुलाने की बात चल रही है वे भी काफी अच्छे हैं। इस दौरान मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहा हूं।
आपने जूनियर वर्ग में 86 मीटर भाला फेंक कर विश्व रिकॉर्ड कायम किया था, लेकिन उसके बाद उस प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाए। क्या यह विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतने के लिए काफी है?
मैं 86 मीटर के प्रदर्शन को बहुत अच्छा मानता हूं। लेकिन विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतने के लिए मुझे और बेहतर प्रदर्शन करना होगा। इस साल विश्व चैंपियनशिप, फिर अगले साल राष्ट्रकुल खेल और एशियाड होने वाले हैं। इसके अलावा, 2020 में टोक्यो ओलंपिक है। मैं इन प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन करने को कृत संकल्प हूं। मैं हर स्पर्धा में देश के लिए पदक लाने की भरपूर कोशिश करूंगा।
लंदन विश्व चैंपियनशिप की तैयारी कैसी चल रही है?
लंदन विश्व चैंपियनशिप के लिए मेरी तैयारी अच्छी चल रही है। चूंकि प्रतिस्पर्धा काफी कड़ी है, इसलिए अपने प्रदर्शन को कायम रखने की कोशिश कर रहा हूं। निरंतर प्रतियोगिताओं में भाग ले रहा हूं। लंदन में। अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करूंगा।
भाला फेंक के अलावा आपके अन्य शौक क्या-क्या हैं?
मैं शुरू से खेलों से ही जुड़ा रहा हूं। भाला फेंक में ही पूरी तरह से रमा हुआ हूं। लंबे अभ्यास के बाद अन्य प्रतियोगिताओं में भाग लेने की तैयारी में जुटा रहता हूं। अगर कभी खाली समय मिलता है तो अन्य खेलों में थोड़ा-बहुत हाथ आजमाता हूं या मॉल वगैरह में घूम आता हूं।
अगर आप भाला फेंक खिलाड़ी नहीं होते तो क्या होते?
मैं बचपन में क्रिकेट खेलता था। लेकिन साथी मुझे वट्टा गेंदबाज कहा करते थे, क्योंकि गेंदबाजी के लिए मैं अपने हाथ को सही तरह से नहीं घुमा पाता था। इसके अलावा, मैं धावक भी था। अगर सुविधा या प्रशिक्षण मिलता तो धावक भी बन सकता था। लेकिन मुझे इसका मलाल नहीं है। मुझे खुशी है कि मैं अपने पसंदीदा खेल में अच्छा प्रदर्शन कर पा रहा हूं।
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