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आलोक गोस्वामी
ये पूछता है सबसे मार्तण्ड का वो मंदर
लगी है मेरे कश्मीर को किसकी बुरी नजर…
कश्मीरियत के नाम पे वो चलाते हैं गोलियां
इंसानियत के नाम पर न उनको सुकूं मगर…
करते हैं बात अमन-ओ-ईमान की जो बंदे
रखते हैं अपनी बगल में ‘मजहब’ की भी खंजर…
जुर्म था क्या शिव के उन तलबगारों का बोलो
जो गए थे झुकाने शीश शैवों की उस धरती पर…
केसर की घाटी को खूं से रंगने वालो सुन लो
ये धरती शिव की थी, है…और रहेगी उम्र भर…
मासूमों के कत्लोगारद का होगा बुरा अंजाम
खुलने दो जरा शिव की वो एक तीसरी नजर..
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