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विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। उत्तर प्रदेश का नोएडा, हरियाणा का मानेसर,महाराष्ट्र का चाकण और हिमाचल का बद्दी जहां से बना माल देश ही नहीं विश्व के कोने में जा रहा है।
विवेक शुक्ला
भारत की छवि आर्थिक उदारीकरण के दौर के बाद एक सेवा क्षेत्र के शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में बनी है। यह स्वाभाविक ही है क्योंकि देश ने आईटी सेक्टर में अभूतपूर्व उपलब्धियां दर्ज की हैं। पर देश निर्माण क्षेत्र में भी लंबी छलांग लगा रहा है। देश मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में भी दुनिया के शिखर राष्ट्रों की कतार में खड़ा है। मानकर चलिए कि मेक इन इंडिया योजना से अनेक शहर निर्माण क्षेत्र के केन्द्र बनने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को दुनिया का बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने का आह्वान कर चुके हैं। और इससे पहले कि मेक इन इंडिया के असर से देश लाभान्वित हो, अब ही महाराष्ट्र में चाकण, कर्नाटक में होसपेट, हरियाणा में मानेसर, उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा, हिमाचल में बद्दी जैसे शहर निर्माण की गतिविधियों के गढ़ बन चुके हैं। इनमें दिन-रात उत्पादन हो रहा है। मजदूर काम कर रहे हैं। अगर ये मैन्यूफैक्चरिंग हब बन रहे हैं तो इसके मूल में बड़ी वजह इन राज्यों का अपने यहां पर उद्योगों को तमाम सुविधाएं देना हैं। इनमें टैक्स छूट से लेकर सड़क-रेल यातायात की उत्तम व्यवस्था का होना है।
पहले बात शुरू कर लेते हैं ग्रेटर नोएडा से। 1980 के दशक में भारत सरकार ने यह अनुभव किया कि जिस प्रकार राजधानी दिल्ली की जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखते हुए निकट भविष्य में समस्या खड़ी हो सकती है। अत: दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश व हरियाणा प्रान्तों के कुछ क्षेत्रों में आवासीय एवं औद्योगिक विकास के लिए योजनाओं का विचार किया गया और गुड़गांव व नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे नये नगर बसाये गये।
नोएडा में हुए विकास का जायजा लिया गया तो सरकार को लगा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को और अधिक विस्तृत किया जा सकता है इससे भारत की अर्थव्यवस्था और भी सुदृढ़ होगी। अतएव 1990 के दशक में ग्रेटर नोएडा की नींव रखी गयी। पहले ग्रेटर नोएडा का मुख्य कार्यालय नोएडा के सेक्टर 20 में अस्थायी रूप से खोला गया और वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी योगेन्द्र नारायण को इसका चेयरमैन तथा गणेश शंकर त्रिपाठी को उनका सचिव नियुक्त किया गया। बाद में जब शुरुआती तीन सेक्टर-अल्फा, बीटा और गामा कुछ-कुछ बसने लगे तो इसका प्रशासनिक कार्यालय भी ग्रेटर नोएडा में रामपुर जागीर गांव के सामने सेक्टर गामा-क क में स्थापित हो गया।
मुख्य उद्योग- ग्रेटर नोएडा में इलेक्ट्रानिक सामान और आटोमोबाइल सेक्टर से जुड़े उत्पादों का उत्पादन हो रहा है।
खास इकाइयां- ग्रेटर नोएडा में दक्षिण कोरिया की एलजी इलेक्ट्रानिक्स, मोजर बेयर, यामाहा, न्यू हालैंड ट्रैक्ट्रर्स,वीडियोकॉन इंटरनेशनल, श्रीराम होंडा पॉवर इक्विपमेंट तथा होंडा सिएल कारों का उत्पादन हो रहा है। ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों की चोटी की कंपनियां हैं। ग्रेटर नोएडा में इलेक्ट्रानिक सामान का उत्पादन करने वाली इकाइयां काफी संख्या में हैं। हालांकि ग्रेटर नोएडा कभी हिस्सा था मेरठ और फिर गाजियाबाद का। इन दोनों जिलों में ही अलग-अलग समय पर मोदीनगर जैसा मैन्यूफैक्चरिंग हब था। अब वहां पर पुरानी इकाइयों पर तो कमोबेश ताले लग गए,पर मोदी नगर कोचिंग हब के रूप में उभर गया।
क्यों देखते-देखते ग्रेटर नोएडा बन गया प्रमुख मैन्यूफैक्टरिंग सेक्टर का हब? भारतीय हैवी इलेक्ट्रानिक लिमिटेड (बीएचईएल) के जनरल मैनेजर प्रेम भूटानी मानते हैं कि बेहतर सड़क लिंक, चौबीस घंटे पानी की सप्लाई तथा यहां से देश के उत्तर, पूर्व तथा पश्चिम राज्यों के बाजारों में पहुंचने की सुविधा के चलते ग्रेटर नोएडा जम गया। पर कहने वाले कह रहे हैं कि ग्रेटर नोएडा में कुशल पेशेवर कभी-कभी मिलने मुश्किल हो जाते हैं कंपनियों को। क्योंकि अधिकतर पेशेवर दिल्ली में रहना पसंद करते हैं। एक बार यहां पर मैट्रों के आने के बाद ग्रेटर नोएडा की इकाइयों के सामने पेशेवरों की कोई कमी नहीं रहेगी।
सबका मनपसंद मानेसर
आइये अब आपको ले चलते हैं मानेसर। ये हरियाणा के प्रमुख औद्योगिक शहर के रूप में स्थापित हो चुका है। मानेसर गुड़गांव जिले का एक तेजी से उभरता औद्योगिक शहर है, साथ ही यह दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एनसीआर का एक हिस्सा भी है। दिल्ली से इसकी निकटता के कारण सरकार ने यहां राष्ट्रीय महत्व के कुछ संस्थानों जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (और इसका प्रशिक्षण केंद्र), राष्ट्रीय बम डेटा केंद्र और राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र के मुख्यालयों की स्थापना की है। आसपास के स्थानों से हजारों लोग काम करने के लिए मानेसर आते हैं।
कौन से उद्योग- मानेसर में आटो और आटो पार्ट्स की अनेक इकाइयां खड़ी हो चुकी हैं। इनमें मारुति सुजुकी, होंडा मोटर साइकिल एंड स्कूटर इंडिया लिमिटेड शामिल हैं। इनमें हजारों लोग काम करते हैं। मानेसर को आप उत्तर भारत का श्रीपेरम्बदूर मान सकते हैं। तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में भी आटो सेक्टर की कम से कम 12 बड़ी कंपनियां उत्पादन कर रही हैं। मानेसर शिखर आटो कंपनी मारुति उद्योग लिमिटेड के लिए अहम शहर हो गया है। यहां मारुति कारों का उत्पादन होता है। मारुति और होंडा मोटर साइकिल एंड स्कूटर इंडिया की उपस्थिति के चलते मानेसर में दर्जनों आटो स्पेयर पाटर््स की इकाइयां भी आ गई हैं। तो ये भी जान लीजिए क्यों आई? कॉरपोरेट जगत पर नजर रखने वाले सीए श्री राजन धवन कहते हैं कि दरअसल मानेसर एक बड़े और सफल मैन्यूफैक्चरिंग हब के रूप में इसलिए सफल रहा क्योंकि हरियाणा सरकार ने स्थानीय विनिर्माण को मजबूत करने के साथ-साथ उद्यमियों को टैक्स में राहत दी। वक्त पर प्रोजेक्ट शुरू करने पर जमीन के दस फीसद दाम वापस किए गए। इन इनसेटिव के मिलने के चलते यहां पर उद्योग आए और छा गए। हालांकि मानेसर में बिजली और पानी की आपूर्ति अब भी कोई बहुत बेहतर नहीं है। इसमें और सुधार संभव है। पर लगता है कि कुल मिलाकर मानेसर में काम करने वाली इकाइयां खुश हैं। अब तो इसने फरीदाबाद को बहुत पीछे छोड़ दिया है।
चमक चाकण की
चाकण महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे से 50 किलोमीटर तथा मुंबई से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
मुख्य उद्योग
यहां पर बजाज आटो तथा टाटा मोटर्स की इकाइयां है। आप समझ सकते हैं कि इन दोनों बड़ी कंपनियों की इकाइयों के आ जाने के बाद चाकण अपने आप में एक खास निर्माण हब का रूप ले चुका है। इधर हजारों पेशेवर और श्रमिक काम कर रहे हैं।अब महिन्द्रा समूह ने भी चाकण में दस हजार करोड़ रुपये की लागत से अपनी इकाई स्थापित करने का फैसला किया है। वाक्सवैगन भी इधर आ चुकी है। ये भी आटो सेक्टर की कंपनी है। महाराष्ट्र सरकार चाकण को देश के प्रमुख आटो हब बनाना चाह रही है। इसमें उसे सफलता भी मिल रही है। इधर निवेश करने की इच्छुक कंपनियों की फाइलों को तेजी के साथ स्वीकृति मिलती है। स्कोडा के भी इधर दस्तक देने की खबरें हैं। महाराष्ट्र सरकार को उम्मीद है कि चाकण से हर साल तीन लाख कारों और ट्रकों का उत्पादन होने लगेगा। सच में ये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी चाकण के लिए।
चाकण में बीते एक दशक के दौरान 40 हजार करोड़ रुपये की इनवेस्टमेंट हुई है। ये बेशक बहुत बड़ी राशि है। पर अब एक चिंता ये भी जताई जा रही है कि चाकण में इंफ्रास्ट्रक्चर के स्तर में और बड़े स्तर पर सुधार करना होगा। स्कोड़ा कार अपनी फाबिया कार इकाई को औरंगाबाद से चाकण लेकर जा रही है। बजाज भी अपनी प्रस्तावित छोटी कार का उत्पादन चाकण से ही करेगी। अगर भारत के नए दौर के मैन्यूफैक्चरिंग के प्रमुख केन्द्रों की बात होगी तो होसपेट का उल्लेख तो अवश्य करना होगा।
स्टील क्षेत्र बनता होसपेट
होसपेट उत्तरी कर्नाटक के बेल्लारी जिले का शहर है। ये मैन्यूफैक्चरिंग हब के रूप में अपनी देश भर में साख बना ली है। होसपेट में स्टील और स्पंज आयरन की कई बड़ी इकाइयां हैं। इनमें जिंदल साउथ वेस्ट (जेएसडब्लू स्टील) कल्याणी स्टील तथा किर्लोस्कर इंड्स्ट्रीज लिमिटेड जैसी कंपनियां शामिल हैं। शायद कम लोगों को मालूम हो कि जेएसडब्लयू की होसपेट इकाई के स्टील से बीजिंग ओलंपिक खेलों के स्टेडियम बने थे। हालांकि इधर कई स्टील का उत्पादन करने वाली इकाइयां हैं, पर सबसे बड़ी सज्जन जिंदल की जेएसडब्ल्यू ही है। सबसे बड़ी बात ये है कि इन स्टील क्षेत्र की इकाइयों के सामने बिजली का कोई संकट नहीं है। सबके अपने पावर प्लांट हैं। लेकिन इधर सड़कों की हालत को और सुधारा जा सकता है।
आटो सेक्टर की नगरी
निर्विवाद रूप से भारत दुनिया में आटो सेक्टर की एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा है। इसे देखने के लिए तमिलनाडु के श्रीपेरुमदूर की यात्रा करना जरूरी रहेगा। ये स्थान चेन्नई से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित होगा। इधर सबसे पहले साउथ कोरिया की हुंडुई ने अपनी कार का उत्पादन करने वाली इकाई स्थापित की। उसके चलते यहां पर 50 छोटी आटो पार्ट बनाने वाली इकाइयां भी आ गईं। हुंदुई के 1996 में इधर आने से इस छोटे से शहर किस्मत ही बदल गई। देशभर से इधर नौकरी करने के लिए पेशेवर ने आने लगे। हुंडुई ने इधर 5000 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है। इसके बाद यहां पर फ्रांस की ग्लास मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी सेंट-गोबिन ने दस्तक दी करीब 600 करोड़ रुपये के निवेश के साथ। इसने आगे चलकर 800 करोड़ रुपये का और निवेश किया।
यहां ही 2005 में नोकिया ने सेलफोन बनाने चालू किए। इसमें कोई शक नहीं है कि स्व. जे.जयललिता ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में श्रीपेरुंबदूर को देश के औद्यगिक मानचित्र में लाकर खड़ा कर दिया। उन्हीं की नीतियों के चलते यह शहर तमिलनाडु आटो के बाद आईटी सेक्टर का भी हब बना। आज तमिलनाडु में लाखों नौजवानों को इन क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों में रोजगार मिला हुआ है। तमिलनाडु में पिछले साल आई भारी बाढ़ से इन कंपनियों को तगड़ा नुकसान हुआ तब जयललिता इनके साथ खड़ी थीं। इसलिए कंपनियों का भी तमिलनाडु सरकार पर भरोसा बढ़ा है। भारत की 50 फीसद कारें यहां पर बनकर सड़कों पर दौड़ती हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि तमिलनाडु में निवेश करने वाली कंपनियों को घूस नहीं खिलानी नहीं पड़ती। अगर तमिलनाडु को पसंद करती हैं आटो कंपनियां तो इसकी वजहें हैं। यहां पर यूनियनबाजी नहीं होती, बिजली आपूर्ति शानदार है तथा सड़कों का सुंदर जाल बिछा है। उद्योग परिसंघ एसोचैम के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, विकास के नौ मानदंडों में से आठ में तमिलनाडु सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य बनकर उभरा है। अर्थव्यवस्था, बिजली, सड़क और स्वास्थ्य जैसे मानकों पर तमिलनाडु शीर्ष पर रहा है।
नाम है नीमराणा का
दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-आठ पर पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने वाले नीमराणा फोर्ट और आभानेरी जैसी कलात्मक बावड़ी के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध ऐतिहासिक ‘नीमराना’ कस्बे में इन दिनों जापानी उद्यमियों की चहल पहल देखते ही बनती है। जापान के उद्यमियों के यहां लगाए जा रहे उद्योगों के कारण यह क्षेत्र कमोबेश जापानी उद्योगों का केंद्र बनता जा रहा है।
नीमराणा राष्ट्रीय राजमार्ग-आठ पर दिल्ली-जयपुर के बीचोंबीच बसा हुआ है। यह दिल्ली से मात्रा 122 किलोमीटर दूर है और दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से इसकी दूरी मात्रा सौ किलोमीटर ही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के साथ ही दिल्ली-मुम्बई औद्योगिक गलियारे (डीएमआईसी) और दिल्ली-मुम्बई फ्रंट रेल गलियारा का हिस्सा होने के कारण नीमराणा का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है। चूंकि यह क्षेत्र निकट भविष्य में देश का सबसे बड़ा ‘आॅटो केंद्र’ बनने के साथ ही देश के सबसे बड़े आॅटोमोबाईल्स बाजार दिल्ली का निकटतम केंद्र स्थल भी होगा। राजस्थान सरकार ने राजस्थान औद्योगिक विनियोजन निगम (रीको) के माध्यम से अलवर जिले के नीमराणा में औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित किया है। इधर देश-विदेश की कई जानी मानी कंपनियों ने अपनी औद्योगिक इकाइयां लगाई हैं और कई नए उद्योगों का आगमन हो रहा है, जिससे एक ओर जहां राजस्थान की औद्योगिक प्रगति में नए आयाम जुड़ रहे हैं, वहीं प्रदेश में रोजगार के नए मार्ग भी खुल रहे हैं। नीमराणा का उद्योग क्षेत्र बारह सौ एकड़ में फैला है। इधर के जापानी जोन के लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र में जापानी उद्यमियों की अपनी औद्योगिक इकाइयां हैं।
इधर एयरकंडीशनर के क्षेत्र में दुनिया की नंबर वन कंपनी मानी जानी वाली डेकन एयर कंडीशन की यूनिट है। इसने भारत में अपनी पहली यूनिट नीमराणा में लगाई है और इस पर करीब 600 करोड़ रुपए का निवेश किया जा रहा है। इसी प्रकार ‘निसान इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ ने यहां 240 करोड़ रुपए का निवेश कर अपनी इकाई लगाई है। इनके अलावा 400 करोड़ रुपए के निवेश से मित्सुई केमिकल प्राईवेट लिमिटेड, 160 करोड़ रुपए की लागत से यूनीयार्च हाईजेनिक प्राईवेट लिमिटेड, 120 करोड़ रुपए के निवेश से एसीआई मित्सुई प्राईम एडवांस कंपोजिट प्राईवेट लिमिटेड, 155 करोड़ के निवेश से आॅटोपार्टस की कंपनी मिकुनी इंडिया प्राईवेट लिमिटेड एवं 100 करोड़ रुपए के निवेश से लगाई गई एनवायके लॉजिस्टिक इंडिया लिमिटेड के साथ ही डिस्किंग, मित्सुबिशी, डिकीकलर, टीकुकी, हॉवेल्स आदि उद्योगों के नाम प्रमुखता से गिनाए जा सकते हैं, जो नीमराणा को जापानी उद्योगों का केंद्र बना रहे हैं। इस केंद्र के विकसित होने से नीमराना में 21.5 अरब के निवेश की साथ ही हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा, साथ ही यहां आवास एवं अन्य योजनाओं का तेजी से विकास होगा।
सुंदर बद्दी
देश के नए मैन्युफैक्चरिंग हब में बद्दी का नाम बेहद अहम है। इधर फार्मा, एफएमसीजी, टेक्सटाइल, केबल वायर वगैरह क्षेत्र की दर्जनों इकाइयां हैं।
चंडीगढ़ के करीब और हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के इस खूबसूरत शहर में हजारों लोग काम कर रहे हैं इन इकाइयों में। मनोज सहगल की केबल वायर की इकाई है। वे कहते हैं कि बद्दी में काम करना बेहद सुविधाजनक है। यहां पर लगातार बाहर से निवेश आ रहा है। पर बद्दी में ट्रैफिक व्यवस्था, अवैध रूप से जगह-जगह बन रहे खोखे और अव्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम की समस्याएं भी हैं।
इन समस्याओं को जल्द दुरुस्त किया जाना चाहिए। उभरते भारत के ये औद्योगिक केन्द्र जहां लाखों लोगों को रोजगार का साधन बन रहे हैं वहीं देश के विकास में सहायक हो रहे हैं। वैसे अधिकतर क्षेत्रों में तो भारत की अभी तो शुरुआत है। आगे इस तरह के अनेक हब बनेंगे।
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