साख के सवाल में घिरा चर्च
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साख के सवाल में घिरा चर्च

by
Jul 10, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Jul 2017 10:56:11

 

वेटिकन के पोप के करीबी कार्डिनल पैल पर यौनाचार का आरोप लगने के बाद अमेरिका और यूरोप में पोप के विरुद्ध आवाजें उठ रही हैं। लोगों का मानना है कि वे ऐसे यौन अपराधियों को संरक्षण देकर पाप के भागीदार बन रहे हैं। वहीं कैथोलिक चर्च साख बचाने की जुगत में हैं

सतीश पेडणेकर
चर्च एक बार फिर यौन शोषण के आरोपों में फंसा है। आरोपी हैं कैथोलिकों के पंथ-प्रमुख और वेटिकन सिटी के राष्ट्र-प्रमुख पोप के करीबी, वेटिकन के तीसरे सबसे बड़े चर्च अधिकारी कार्डिनल जॉर्ज पैल। वैसे आए दिन दुनियाभर में चर्च के किसी न किसी पादरी या बिशप द्वारा किसी के यौन शोषण की खबरें मिलती ही रही हैं। उन पर दुनियाभर में हंगामा मचता ही है। लेकिन अब तो सीधा वेटिकन ही सवालों के घेरे में है जिसके सामने दुनिया के तमाम कैथोलिक झुकते हैं। अब ईसाइयत के बारे में जो लोग असलियत नहीं जानते थे, वे अकसर चर्चों के बारे में कहते थे कि चर्च सेवाभावना से काम करते हैं। जैसे-जैसे इससे संबंधित खबरें सामने आ रही हैं, वैसे-वैसे साफ होता जा रहा है कि ईसाइयत के प्रमुख पीठाधिकारी आकंठ यौन अपराधों में लिप्त रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि स्वयं पोप पर उस दागी अधिकारी को संरक्षण देने का आरोप लगता रहा है। कहना न होगा कि इससे पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कैथोलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत पर सवालिया निशान गहरा गया है। उल्लेखनीय है कि जब पोप बेनेडिक्ट सोलहवें और कैथोलिक चर्च का क्रूर, अनैतिक चेहरा सामने आया, तब ‘विशेषाधिकार’ का कवच हटाया गया। कैथोलिक चर्च ने नई परिभाषा गढ़ दी कि उनके पंथ-प्रमुख पोप बेनेडिक्ट 16वें पर न तो मुकदमा चल सकता है और न ही उनकी गिरफ्तारी संभव है। इसलिए कि पोप न केवल ईसाइयों के पंथ प्रमुख हैं, बल्कि वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष भी हैं। जबकि अमेरिका और यूरोप में कैथोलिक चर्च और पोप बेनेडिक्ट सोलहवें की गिरफ्तारी को लेकर जोरदार मुहिम चल रही है। न्यायालयों में दर्जनों मुकदमे दर्ज करा दिए गए हैं जहां उपस्थित होकर पोप बेनेडिक्ट सोलहवें को आरोपों का जवाब देने के लिए कहा जा रहा है।
 यह सही है कि पोप बेनेडिक्ट 16वें के पास वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष का कवच है। इसलिए वे न्यायालयों में उपस्थित होने या फिर पापों के परिणाम भुगतने से बच जाएंगे, लेकिन कैथोलिक चर्च और पोप की छवि तो धूल में मिली ही है। चर्च पादरियों द्वारा यौन शोषण के शिकार बच्चों के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं किया गया और न ही आरोपी पादरियों के खिलाफ कोई कार्रवाई ही हुई है। इस पूरे घटनाक्रम को अमेरिका-यूरोप के मीडिया ने ‘वैटिकन सेक्स स्कैंडल’ का नाम दिया हैं। पोप बेनेडिक्ट 16वें पर कोई सतही नहीं, बल्कि गंभीर और प्रमाणित आरोप हैं, जो उनकी पंथ-प्रमुख और राष्ट्राध्यक्ष की छवि को तार-तार करते हैं। आखिर उनपर आरोप हैं क्या? उन पर दुष्कर्मी पादरियों को संरक्षण देने और उन्हें कानूनी प्रक्रिया से छुटकारा दिलाने के आरोप हैं। उन्होंने कई पादरियों को यौन शोषण के अपराधों से बचाया है। इनमें भी सर्वाधिक अमानवीय, लोमहर्षक व चर्चित प्रकरण है पादरी लारेंस मर्फी का। लारेंस मर्फी 1990 के दशक में अमेरिका के एक कैथोलिक चर्च में पादरी थे। उस चर्च में अनाथ, विकलांग और मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए एक आश्रम भी था। मर्फी पर ऐसे 230 से अधिक बच्चों के यौन शोषण का आरोप है। मानसिक रूप से बीमार और विकलांग बच्चों के यौन उत्पीड़न की घटना सामने आने पर अमेरिका में तहलका मच गया था और कैथोलिक चर्च की साख पर संकट खड़ा हो गया। चर्च में आस्था रखने वाले इस घिनौने कृत्य से न केवल आक्रोशित थे, बल्कि चर्च से उनका विश्वास भी डोल रहा था।
कैथोलिक चर्च को बच्चों के यौन उत्पीड़न का संज्ञान लेना चाहिए था और सचाई उजागर कर आरोपी पादरी पर आपराधिक दंड संहिता के अनुसार कार्रवाई में मदद करनी चाहिए थी, लेकिन चर्च ने ऐसा नहीं किया। उसे इसमें अमेरिकी सत्ता की सहायता मिली। विवाद के बढ़ने पर कैथलिक चर्च की नींद उड़ी और उसने आरोपी पादरी लारेंस मर्फी पर कार्रवाई के लिए उसका मामला वेटिकन सिटी और पोप के पास भेजा। पोप बेनेडिक्ट 16वें का उस समय नाम था कार्डिनल जोसेफ और वे वेटिकन सिटी के उस विभाग के अध्यक्ष थे, जिनके पास पादरियों द्वारा बच्चों के यौन उत्पीड़न की जांच का जिम्मा था। पोप बेनेडिक्ट ने पादरी मर्फी को सजा दिलाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। बात इतनी भर नहीं थी। मामले को रफा-दफा करने की पूरी कोशिश हुई। लारेंस मर्फी की अमेरिकी कानूनों के तहत गिरफ्तारी और दंड दिए जाने में रुकावटें डाली गर्इं। वेटिकन सिटी का कहना था कि ‘‘पादरी लारेंस भले आदमी हैं और उन पर दुर्भावनावश यौन शोषण के आरोप लगाए गए हैं। इसमें कैथोलिक चर्च विरोधी लोगों का हाथ है’’, जबकि मर्फी पर लगे आरोपों की जांच चर्च के दो वरिष्ठ आर्चबिशपों ने की थी।
यौन शोषण को लेकर दुनिया में रोमन कैथोलिक साम्राज्य आज जैसे संकट में घिरा है, वैसा पहले शायद कभी नहीं था। खुलेआम पोप पर इन सारे आरोपों की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने और पद छोड़ने की मांग की जा रही है। कई देशों में मांग उठ रही है कि ईसाई पादरियों और ननों के आचरण नियमों में से ब्रह्मचर्य (सेलीबेसी) का नियम हटाया जाए। स्वयं इटली की 40 महिलाओं ने पोप को खुला पत्र लिखा था कि ‘सेलीबेसी’ का सिद्धांत हटाया जाए। ये वे महिलाएं थीं, जिनके रोमन कैथोलिक चर्च के किसी न किसी पादरी से प्रेम संबंध रहे हैं। इन महिलाओं ने लिखा था कि ‘पादरियों को भी प्रेम करने, प्रेम पाने या शारीरिक सुख उठाने की इच्छा होती है।’’ कई देशों में यह सवाल उठाया जा रहा है कि ‘सेलीबेसी’ कोई ईश्वरीय सिद्धांत नहीं है। यह मानव निर्मित नियम है, इसलिए इसे बदला जा सकता है।
कुछ साल पहले जर्मनी में की गई एक जांच में 250 महिलाओं ने शिकायत की थी कि बचपन में चर्च के पादरी ने उनके साथ जोर-जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाया। पूर्व पोप बेनेडिक्ट के पास तो अनेक देशों से आए ऐसी शिकायतों वाले पत्रों का अंबार लगा था। इन पोप पर तो यह भी आरोप था कि जब वे जर्मनी में कार्डिनल थे, तो उन्होंने पादरियों द्वारा बच्चों और महिलाओं के साथ किए गए यौनाचार को छुपाने की कोशिश की। यदि उनके पास कोई शिकायत पहुंचती, तो वे ज्यादा से ज्यादा संबंधित पादरी को उस चर्च से हटाकर किसी और चर्च में भेज देते थे।
वास्तव में चर्च अपनी स्थापना के समय से ही यौन अपराधों के केंद्र बने हुए हैं, लेकिन इससे जुड़ी शिकायतों को हमेशा बाहर आने से रोका गया। ईसाई मत प्रतिष्ठान को कोई क्षति न पहुंचे, इसके लिए किसी पंथ-प्रमुख अथवा पादरी को कभी कोई सजा नहीं दी गई। यहां तक कि उसकी सार्वजनिक निंदा से भी बचा गया। लेकिन ईसा के दो सहस्राब्दी बाद 21वीं सदी में अब लोग चुप रहने को तैयार नहीं हैं। कल के यौन शोषण के शिकार बच्चे अब बड़े ही नहीं, प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुके हैं। अब उन्होंने अपने सारे कटु अनुभवों को सार्वजनिक करने का बीड़ा उठाया है। बहुतों ने तो पूरे विस्तार से सारे सूक्ष्म विवरण के साथ अपनी कहानी पेश की है। पुरुषों-महिलाओं ने संकोच त्यागकर चर्च के काले कारनामों को उजागर करना शुरू कर दिया है। इस चारित्रिक भ्रष्टाचार की कहानी कहने के लिए कई पादरी सामने आ रहे हैं। एक ऐसे पादरी ने लिखा है-‘‘कैथोलिज्म के पास एक बड़ा शानदार फॉर्मूला है। इसकी शुरुआत इस बात से होती है कि मूलत: हम सब पापी (सिनर्स) हैं, इसलिए हमें पाप मुक्त होने या अच्छा बनने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए और यदि हम ऐसा नहीं कर पाते, तो हमारे पास एक ओर आसान रास्ता है-पश्चाताप का। हम पश्चाताप करके अपने को पवित्र कर सकते हैं।’’
पादरियों के पापाचार के शिकार लोगों की संख्या कितनी बड़ी है, इसका अनुमान इससे लग सकता है कि अमेरिका और प्रत्येक यूरोपीय देश में इसके विरुद्ध मंच गठित हो गये हैं और उनकी सार्वजनिक अपीलों पर हजारों भुक्तभोगी अब खुलकर सामने आ रहे हैं। नीदरलैंड में 1995 में ही ‘हेल्प एंड लॉ लाइन’ बन गयी थी। इन मंचों के बनने से चर्च से प्रताड़ित हुए लोगों में साहस आया है। आज वे अपने जैसों की भारी भीड़ के हिस्से हैं। नीदरलैंड में पहले मुश्किल से 10 भुक्तभोगी सामने आये थे, बाद में उनकी संख्या 1300 के पार हो गई। जर्मनी में सहायता केन्द्र खुलने की घोषणा होते ही तीन दिन में 2,700 शिकायतें आ गयीं।
चारों ओर से उमड़ती आंधी के विरुद्ध वेटिकन का आरोप है कि हमारे विरुद्ध यह अपप्रचार अमेरिका की यहूदी लॉबी और विश्व इस्लामवाद ने खड़ा किया है। किंतु यदि चर्च सचमुच यौनाचार के विरुद्ध है तो उसने अनेक देशों के अनेक पादरियों के बारे में अनेक वर्षों से आ रही शिकायतों की जांच क्यों नहीं होने दी? पापाचारी पादरियों की सार्वजनिक भर्त्सना क्यों नहीं की? उन्हें चर्च से निष्कासित क्यों नहीं किया? गरीब और पिछड़े वर्गों का कन्वर्जन करने के पूर्व अपने घर का शुद्धीकरण करना आवश्यक क्यों नहीं समझा? पापाचार को रोकने से अधिक महत्वपूर्ण वेटिकन के हित क्या हो सकते हैं? चर्च को ऐसे पापाचारी पादरियों से मुक्त करना उसकी पहली चिंता होनी चाहिए। पर वेटिकन किन्हीं अन्य हितों की रक्षा के लिए इन पापाचारियों को संरक्षण दे रहा है और नये-नये क्षेत्रों में कन्वर्जन की फसल काटने में जुटा है। यौन शोषण प्रकरण ने चर्च में ब्रह्मचर्य पालन से जुड़े सवाल भी उठा दिए हैं। इस संबंध में चर्च की दलील यह है कि इससे पादरियों को पांथिक कार्यों के लिए ज्यादा वक्त मिलता है। यह भी कहा जाता है कि ईसा अविवाहित थे तो ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पादरी और बिशप ज्यादा करीब से ईसा का अनुसरण कर सकते हैं। बहरहाल, समय-समय पर ब्रह्मचर्य के इस नियम को चुनौती मिलती रही है। लेकिन वेटिकन ब्रह्मचर्य की अनिवार्यता को दोहराता रहा  है।
हाल ही में केरल के कन्नूर जिले में एक चर्च पादरी द्वारा एक लड़की के साथ बलात्कार की घटना से जुड़े तथ्यों को छुपाने के लिए 5 नन सहित आठ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। कुछ वक्त पहले यहां के अस्पताल में एक 16 वर्षीया लड़की ने एक लड़के को जन्म दिया था। चाइल्डलाइन में पीड़िता की मां द्वारा दर्ज कराई गई एक शिकायत के आधार पर 28 फरवरी, 2017 को उस पादरी को गिरफ्तार किया गया था। पीड़िता की मां ने कहा था कि फादर रोबिन उर्फ मैथ्यू वडक्कनचेरिल ने पिछले साल उसकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया था। इस मामले से एक बार फिर ईसाइयत और चर्च की पवित्रता को संदेह के कठघरे में खड़ा कर दिया। इस पूरे मामले में देश-विदेश का मीडिया खामोश है क्योंकि यह मामला ईसाइयत से जुड़ा है।  
भारत में यह ईसाई पादरियों द्वारा यौन शोषण का पहला मामला नहीं है। इससे पहले केरल में ही कोच्चि के एक कॉन्वेंट स्कूल के प्रधानाचार्य फादर बेसिल कुरियाकोस को 10 साल के लड़के के साथ कुकर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यह बच्चा किंग्स डेविड इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ता था। मां-बाप की शिकायत के बाद यह इस पादरी को गिरफ्तार कर लिया गया था। आज कान्वेंट स्कूलों की संख्या बढ़ रही है। आधुनिक दौर में लोग इन्हें शिक्षा के बेहतर विकल्प के तौर पर चुन रहे हैं । जबकि इनका असली रूप कुछ और ही बयान करता है। 2014 में केरल के त्रिचूर में सेंट पॉल चर्च के पादरी राजू कोक्कन को 9 साल की बच्ची से बलात्कार के मामले में गिरफ्तार किया गया था। इस पादरी ने बच्ची का कई बार बलात्कार किया था। कम से कम तीन बार तो उसने यह कुकर्म चर्च के अंदर अपने कमरे में किया था। 2014 में फरवरी से अप्रैल के बीच केरल के अंदर ही 3 कैथोलिक पादरियों को बच्चों से बलात्कार के मामले में गिरफ्तार किया गया। ज्यादातर मामलों में ईसाई संगठनों ने शर्मिंदा होने के बजाय इनका बचाव किया। कुछ समय पहले केरल के एर्नाकुलम में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी 41 साल के पादरी एडविन फिगारेज को एक साथ दो उम्रकैदों की सजा सुनाई गई थी। पादरी द्वारा बच्ची को संगीत सिखाने के नाम पर उसके साथ कई महीने तक दरिंदगी की गई। केरल की एक पूर्व नन ने अपनी आत्मकथा लिखकर खलबली मचा दी थी। इसमें चर्च में हुए यौन शोषण का जिक्र है। अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में सिस्टर मैरी चांडी (67) ने लिखा है कि एक पादरी ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की, इसका विरोध करने पर उन्हें चर्च छोड़ना पड़ा। उसका कहना था, ‘‘चर्च में जिंदगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी।’’ इससे पहले एक नन सिस्टर जेस्मी की पुस्तक ‘आमेन: द आॅटोबायोग्राफी आॅफ ए नन’ ने तहलका मचा दिया था। इस किताब ने भी कॉन्वेंटों में हो रहे यौन शोषण और व्यभिचार का खुलासा किया था। कैथोलिक चर्च के बारे में आंखें खोलने वाला अध्ययन प्रोफेसर मैथ्यू शेल्म्ज का है। उन्होंने एक लेख में माना था कि भारतभर में फैले कैथोलिक चर्च में नन और बच्चों के साथ यौन शोषण के मामले बढ़ रहे हैं। दूरदराज के इलाकों में चल रही मिशनरी गतिविधियों में यौन शोषण के ज्यादातर मामले दबे रह जाते हैं, क्योंकि पीड़ित अक्सर गरीब तबके के लोग होते हैं और उन्हें पैसे देकर चुप करा दिया जाता है।   

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