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प. बंगाल में ममता बनर्जी की सेकुलर सरकार के शासन में हो रहे हिन्दू दमन का अध्याय इस बार बशीरहाट में देखने में आया। मजहबी उन्माद को रोकने को लेकर ममता की संदिग्ध चुप्पी पर उठे सवाल
कोलकाता से जिष्णु बसु
कलियाचक और धूलागढ़ के बाद अब प. बंगाल में ममता की सेकुलर सरकार की कथित शह पर इस बार बशीरहाट में मजहबी उन्मादियों का हिन्दुओं पर दमन-चक्र चला। उनके घर, दुकानें, प्रतिष्ठान जलाए गए, पर पुलिस हमेशा की तरह मूक-दर्शक बनी बैठी रही। हिन्दुओं पर सुनियोजित हिंसक हमले हुए पर कोलकाता में ममता हिन्दुओं के प्रति हमेशा की तरह दुर्भावना का दुशाला ओढ़े बैठी रहीं।
3 जुलाई को पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के बशीरहाट-बडुरिया इलाके में 12वीं के छात्र ने फेसबुक पर एक आपत्तिजनक पोस्ट डाली थी। बस इस बात पर लगभग 3 हजार से ज्यादा मुसलमान हिन्दुओं के घरों को तहस-नहस करते हुए भड़काऊ नारे लगाते स्कूल पर जमा हो गए। इसी भीड़ में तृणमूल के नेता तुषार सिंह और सिद्धार्थ भट्टाचार्य भी थे। उन्माद देखकर स्कूल प्रशासन ने तत्काल उस छात्र को पुलिस के हवाले कर दिया। लेकिन भीड़ का गुस्सा इस पर भी नहीं थमा। उन्मादियों ने हिन्दुओं के घरों में घुसकर लूटपाट शुरू कर दी, छात्र के घर को तहस-नहस कर दिया। गोपालपुर, मोगरा, तेतुलिया में सैकड़ों घरों को आग लगाई और जो सामने दिखा, उसे मारा-पीटा।
मुसलमानों ने हिन्दू परिवारों पर आक्रमण करके उनके घरों को आग लगाई। उन्हें मारा-पीटा। लेकिन प्रशासन ने कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया। घटना से जो तथ्य निकलकर सामने आ रहे हैं उसमें बड़ी संख्या में स्थानीय अराजक तत्वों के साथ बंग्लादेशी घुसपैठियों के शामिल होने के समाचार मिल रहे हैं।
—कैलाश विजयवर्गीय
राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रभारी पश्चिम बंगाल, भाजपा
बडुरिया के नारायण सरकार (परिवर्तित नाम) ने हिंसक भीड़ की अराजकता के बारे में बताया, ‘‘भीड़ से आवाजें आ रही थीं कि लड़के को हमारे हवाले कर दो।’’ नारायण आगे कहते हैं कि यह उन्मादी भीड़ कब, किस बात पर हिंसक हो जाए और हिन्दुओं का कत्लेआम मचाना शुरू कर दे, पता नहीं।
घुसपैठियों ने आग में डाला घी
बडुरिया की हिंसक घटना के बाद हिन्दुओं ने 6 बांग्लादेशी घुसपैठियों को पुलिस के हवाले किया, जो सीमापार से आकर हिंसा को भड़काने का काम कर रहे थे। दरअसल दक्षिण 24 परगना जिला बांग्लादेशी का सीमावर्ती जिला है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आएदिन यहां मुसलमानों का आतंक रहता है। पिछले वर्ष मालदा जिले के कलियाचक में उत्तर प्रदेश के एक नेता के आपत्तिजनक बयान पर ऐसे ही दंगा हुआ था। यह भी सीमावर्ती जिला है। एक बार फिर से मौके की ताक में बैठे बांग्लादेशी घुसपैठियों ने आग में घी डालने का काम किया और एक फेसबुक पोस्ट को तूल देकर मामले को हिंसक रूप दे दिया। इससे पहले भी कट्टरपंथी धूलागढ़, मालदा, बर्धमान में अराजकता फैलाते रहे हैं। कोलकाता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता राजर्षि हलधर कहते हैं,‘‘बंगाल में आज जो भी कुछ हो रहा है वह एक तरह से सुनियोजित है। बांग्लादेशी घुसपैठियों का आना लगातार जारी है। ये जहां भी रहते हंै, वहां आतंक और उन्माद ही फैलाते हैं। मौका पाते ही ये हिन्दुओं पर एकजुट होकर हमला करते हैं जिससे इलाके के हिन्दू अपनी जमीन और घर छोड़कर पलायन कर जाते हैं।’’ राजर्षि बताते हैं कि बांग्लादेश से लगते जिलों में कमोबेश यही स्थिति है। बडुरिया भी इससे उतना ही पीड़ित है।
ताजा मामले की तह में जाएं तो पता चलता है कि उन्मादी पहले से ही तीन क्षेत्रों (स्वरूप नगर, बशीरहाट,बडुरिया) से हिन्दू परिवारों को भगाना चाहते थे। फेसबुक पोस्ट ने तो मानो उनको एक मौका दे दिया। 3 जुलाई की घटना के बाद खबर लिखे जाने तक ‘उन्मादी तत्वों’ ने शहीता नगर, टीनेटुलिया, कटियाहाट, बीरमपुर, रामचंद्रपुर, सतीराबाद, शिबाती बांकरा, कामरगंगा, रघुनाथपुर और त्रिमोहिनी में निर्दोष हिन्दुओं को हिंसा का शिकार बनाया। प्रत्यक्षदर्शियो की मानें तो भीड़ ने बशीरहाट के एक पुराने काली मंदिर को अपना निशाना बनाया। कौसा गांव के मंदिरों को लूटा और क्षतिग्रस्त किया। बोरोकली मंदिर, मोलखोला का लोकनाथ मंदिर, दर्दिरहाट का काली मंदिर, मिर्जापुर का शिव मंदिर और कंकमीर नगर का काली मंदिर भी उन्मादियों के कहर का शिकार बने। 6 जुलाई तक करीब 500 घरों और 150 से अधिक दुकानों को लूटा-जलाया गया।
पलायन कर रहे हिन्दू
बशीरहाट और उसके आसपास के तनाव को देखते हुए कई निर्दोष हिन्दू परिवार पलायन करने पर मजबूर हुए हैं। जो किसी कारण यहां रहने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं, उन्हें जिहादी बेरहमी से मार रहे हैं। कार्तिक घोष इसके गवाह हैं। कार्तिक बशीरहाट जाने वाली सड़क पर एक चाय की छोटी दुकान चलाते हैं। हिंसक घटना के बाद अराजक तत्वों ने उनसे अपनी दुकान बंद करने को कहा लेकिन कार्तिक ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। घटना के दो दिन बाद किसी राहगीर ने कार्तिक को बताया कि अराजक भीड़ तुम्हारी दुकान की तरफ आ रही है, तब भी वह डरे नहीं और अपनी दुकान पर बैठे रहे। पहले से तैयार भीड़ ने कोई बात किए बिना दुकान पर हमला कर दिया। कार्तिक ने विरोध करने की कोशिश की लेकिन भीड़ के सामने उनकी एक न चली और तेज धारदार हथियार से उनके शरीर पर कई वार किए गए। कार्तिक को गंभीर हालत में बारसात जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन हालत न सुधरते देख डॉक्टरों ने उन्हें कोलकाता के सरकारी अस्पताल में रैफर कर दिया जहां 6 जुलाई को सुबह उनकी मौत हो गई।
राज्यपाल की नाराजगी, ममता की भौंहें तनीं
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी ने उत्तर 24 परगना जिले में हुई हिंसा पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से फोन पर बात की और वस्तुस्थिति की जानकारी मांगी। उन्होंने मुख्यमंत्री को तत्काल कानून-व्यवस्था संभालकर दंगा रोकने को कहा। लेकिन मुख्यमंत्री ने दंगाइयों पर सख्ती न करके उलटे मीडिया के सामने राज्यपाल पर ही अपना गुस्सा निकाला। मामले की गंभीरता को देखते हुए गृह मंत्रालय ने जिले में केंद्रीय बल (बीएसएफ) की तीन कम्पनियों को तैनात किया है। लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो राज्य सरकार घटना के प्रति गंभीर नहीं है। तृणमूल के नेता खुलेआम कहते घूम रहे हैं,‘‘तुम्हें (मुसलमानों को) जो करना है करो, पुलिस सबको बचाएगी।’’
नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर कुछ दिन पहले ‘नॉट इन माय नेम’ से एक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें करीब हजार-बारह सौ लोग जुटे थे। इसमें अधिकतर वे चेहरे दिखाई पड़ रहे थे जो हर बात के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार को दोषी ठहराने में आगे रहते हैं। देशी और विदेशी मीडिया का जमावड़ा था। आयोजक हरियाणा के जुनैद खान की ट्रेन में भीड़ द्वारा की गई हत्या को देश के माहौल से जोड़ते हुए संवाददाताओं को प्रतिक्रिया देते हुए कह रहे थे,‘‘देश में असहिष्णुता हावी है। मुसलमानों पर अत्याचार किया जा रहा है। कभी गोरक्षा के नाम पर तो कभी मस्जिद-मदरसे के नाम पर।
कार्यक्रम खत्म होने के बाद समाचार चैनल और बेवसाइट बड़े-बड़े भड़काऊ शीर्षकों के साथ उस प्रदर्शन को तड़का लगाकर परोस रही थीं और पढ़ने और देखने वालों को ऐसा आभास करा रही थीं जैसे एक वर्ग विशेष संकट में हो। लेकिन जुनैद और अखलाक की मौत पर देश में ‘असहिष्णुता’ देखने वाले पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं पर खुलेआम हो रहे दमन पर चुप्पी ओढ़ते रहे हैं। वहां मजहबी तत्व हिन्दुओं के घर-दुकान जलाते हैं, पर कहीं कोई आवाज नहीं उठती। -साथ में अश्वनी मिश्र
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