रामकृष्ण-मंत्र के मूर्त रूप
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रामकृष्ण-मंत्र के मूर्त रूप

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Jun 26, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Jun 2017 10:11:56

श्रद्धांजलि / स्वामी आत्मस्थानंद जी

रामकृष्ण मठ और मिशन के 15वें अध्यक्ष स्वामी आत्मस्थानंद जी महाराज का 18 जून को कोलकाता में महाप्रयाण हो गया। 98 वर्षीय स्वामी जी लगभग दो वर्ष से बीमार थे। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोलकाता प्रवास के दौरान उन्हें देखने गए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि यह उनका व्यक्तिगत नुकसान है। कहा जाता है कि मोदी अपनी युवावस्था में संन्यासी बनने की इच्छा लेकर बेलूर मठ में स्वामी जी से मिले थे। उस समय स्वामी जी ने उनके अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि उनकी जरूरत और कहीं है।
स्वामी आत्मस्थानंद जी का जन्म 10 मई, 1919 को ढाका के पास सबजपुर में हुआ था। उन्होंने 1938 में स्वामी विरजानंद जी से मंत्र दीक्षा ली थी। इसके बाद वे 22 वर्ष की उम्र में 3 जनवरी, 1941 को रामकृष्ण मिशन से जुड़े। स्वामी विरजानंद जी के कहने पर ही वे 1949 में संन्यासी बने। इसके बाद उनका नाम रखा गया आत्मस्थानंद। संन्यास ग्रहण करने के बाद उन्हें देवघर स्थित रामकृष्ण मिशन की शाखा का दायित्व सौंपा गया। 1952 में उन्हें रांची के टी.बी. अस्पताल का सहायक सचिव बनाया गया। देवघर और रांची में उन्होंने पूरी लगन से सेवा की। उन्होंने सेवा कार्यों का विस्तार किया और बहुत-से लोगों को  जोड़ा। 1958 में उन्हें बर्मा (म्यांमार) की राजधानी रंगून (यांगून) स्थित सेवाश्रम अस्पताल का सचिव बनाया गया। उनके समय में इस सेवाश्रम का भी काफी विस्तार हुआ। वे घंटों काम करते थे। इसका सुफल यह मिला कि उन दिनों इस अस्पताल की गिनती म्यांमार के अच्छे अस्पतालों में होने लगी थी। उन्हीं दिनों वहां फौजी शासन लागू हुआ और उसने अस्पताल को अपने अधीन ले लिया। इसके बाद 1965 में स्वामी जी भारत वापस आ गए। 1966 में उन्हें रामकृष्ण मिशन, राजकोट का प्रमुख बनाया गया। उन्हीं की पहल पर वहां रामकृष्ण मंदिर बना। 1973 में वे रामकृष्ण मठ के न्यासी और रामकृष्ण मिशन की संचालन समिति के सदस्य बने। 1975 में उन्हें इन दोनों संस्थाओं का सह सचिव नियुक्त किया गया। इसके साथ ही उन्हें राहत कार्य देखने वाली इकाई का सचिव भी बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारत के अनेक हिस्सों के साथ-साथ नेपाल और बांग्लादेश में बड़ी संख्या में राहत कार्य चलाए।
1992 से 1997 तक वे रामकृष्ण मठ और मिशन के महासचिव रहे। 1997 में ही उन्हें इन दोनों संस्थाओं का उपाध्यक्ष बनाया गया। इस दौरान उन्होंने अमेरिका, कनाडा, जापान, सिंगापुर, मलेशिया, फिजी, श्रीलंका आदि देशों में प्रवास किया। प्रवास के दौरान उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और मां शारदा के संदेशों के साथ-साथ रामकृष्ण मिशन के उद्देश्यों का प्रचार-प्रसार किया। 3 दिसंबर, 2007 को वे रामकृष्ण मठ और मिशन के अध्यक्ष बने।  
उम्र अधिक होने के बावजूद वे कड़ी मेहनत करते थे और हर केंद्र की खोज-खबर रखते थे। उनका पूरा जीवन सेवा और अध्यात्म को समर्पित था। ऐसी दिव्य विभूति को पाञ्चजन्य परिवार की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।    

– प्रतिनिधि

सात्विक और प्रेरणादायी व्यक्तित्व
परमश्रद्धेय आत्मस्थानंद जी का शांत होना हम सभी के लिए वेदनादायक और क्षतिकारक अनुभव है। श्रीरामकृष्ण मिशन के द्वारा सेवा, धर्मजागृति और स्वजागृति की प्रवाहित की हुई धारा देश में अनवरत चल रही और बढ़ रही है। उस भगीरथ प्रयास के स्व. आत्मस्थानंद जी महाराज सन् 2007 से अगुआ रहे। उन्हीं की अध्यक्षता में स्वामी विवेकानंद जी की सार्ध जन्मशती के निमित्त देश के कोने-कोने में उपरोक्त भावना सफलतापूर्वक पहुंचाई गई। मुझे उनके दर्शन का सौभाग्य उसी समय एक बार मिला था और उनके शांत, सात्विक तथा प्रेरणादायी व्यक्तित्व से बहुत स्फूर्ति मिली थी।
परंतु नियति की गति मनुष्य नियंत्रित नहीं है। उनकी दी हुई प्रेरणा के आधार पर श्री रामकृष्ण जी का दिव्य संदेश, दुनिया के कोने-कोने में ले जाने का पवित्र कर्तव्य सभी भारतवासियों के सम्मुख है। वह धैर्य और संतुलन इस दु:ख-प्रसंग में भी हम सबको प्राप्त हो, यह प्रार्थना करते हुए उनकी पवित्र स्मृति में मैं स्वयं की व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पण करता हूं।
-मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 

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