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सोशल मीडिया – मलाईदार कमाई के हर रास्ते पर एनडीटीवी

by
Jun 26, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Jun 2017 10:11:56

आखिर हो गया 'फ्री स्पीच' पर अब तक का सबसे बड़ा 'हमला'! एनडीटीवी के खिलाफ सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर ली। हालांकि शिकायतकर्ता सरकार नहीं है। कोई सरकारी एजेंसी भी नहीं है। एनडीटीवी का ही एक शेयरधारक है। एनडीटीवी ने आईसीआईसीआई बैंक से 350 करोड़ रु. का कर्ज लिया था। उस वक्त एनडीटीवी के पास महज 74 करोड़ रु. की सम्पत्ति थी। मगर कांग्रेस राज में 'फ्री स्पीच' के इस सबसे बड़े कथित मसीहा की धमक का आलम यह था कि 74 करोड़ रु. की सम्पत्ति की कीमत पर 350 करोड़ का कर्ज हासिल कर लिया। वह भी तब, जब उसके शेयर औंधे मुंह गिर चुके थे। उनका भाव 438 रु. प्रति शेयर से गिरकर 156 रु. प्रति शेयर पर आ चुका था। ऐसी कंपनी को इतना भारी-भरकम कर्ज! फिर इस कर्ज का एक बड़ा हिस्सा प्रणय रॉय और राधिका रॉय के निजी खातों में डायवर्ट कर दिया गया। यह एक और बड़ा कारनामा किया इन 'फ्री स्पीच' वालों ने। इस कर्ज की एवज में ब्याज की रकम 48 करोड़ रु. बनती थी। लेकिन एनडीटीवी इसे भी पी गया। इसी मामले में सीबीआई की बैंकिंग फ्रॉड डिविजन ने एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय, उनकी पत्नी राधिका रॉय और होल्डिंग कंपनी आरआरपीआर प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।
हालांकि बैंकिंग फ्रॉड डिविजन ने इसके पहले भी ब्याज की रकम हड़प करने के न जाने कितने मामलों में प्राथमिकी दर्ज की, लेकिन 'फ्री स्पीच' पर कभी भी इस तरह का कोई हमला नहीं हुआ। यहां तक कि बैंकों के करोड़ों रु. हड़पने वाले विजय माल्या ने भी 'फ्री स्पीच' पर हमले का आरोप नहीं लगाया। ट्विटर पर ही सही, माल्या की 'फ्री स्पीच' दनादन जारी है। दिक्कत यह है कि एनडीटीवी ने अपनी ईमानदारी का कथित प्रमाणपत्र खुद ही जारी किया हुआ है और इसके चारों कोनों पर वामपंथ की गली हुई प्लास्टिक से बाइंडिंग भी कर दी है। इस प्रमाणपत्र के चारों ओर 'सेकुलरिज्म' के नंगे तार झूलते रहते हैं। छूने की सोचना भी मत! चेतावनी अलिखित है, मगर बिल्कुल स्पष्ट है। लालू यादव भी चारा घोटाले से लेकर हजार करोड़ की बेनामी सम्पत्ति के मामले में सेकुलरिज्म के ऐसे ही कवच का इस्तेमाल कर चुके हैं और किए जा रहे हैं। इसी एनडीटीवी के रवीश पांडेय (सिगरेट के पैकेट पर लिखी चेतावनी वाले नियम के मुताबिक-रवीश कुमार) के सगे बड़े भाई एक दलित लड़की को प्रताडि़त करने और सेक्स रैकेट चलाने के मामले में महीनों से फरार चल रहे हैं। मगर इस 'फ्री स्पीच' और अभिव्यक्ति की आजादी को तब काठ मार गया था, जब इसी चैनल पर ब्रजेश पांडेय की खबर बिना ताबूत के ही दफन कर दी गई। देश के तमाम चैनलों और अखबारों में बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे ब्रजेश पांडेय (रवीश पांडेय के भाई) की खबरें प्रमुखता से चलीं और छपीं। मगर अभिव्यक्ति की आजादी के इस सबसे बड़े कथित झंडाबरदार ने उस पीडि़त दलित लड़की की आवाज कुचल दी। भाई का मामला जो था। दिल्ली के किस बाजार में बिकते हैं, इतने मजबूत मुखौटे? निविदा निकल जाए तो ठेकेदारों में होड़ लग जाएगी!
जांच में एनडीटीवी के खिलाफ एक और मामला सामने आया है। विदेशों में 33 'पेपर कंपनियां' (जो सिर्फ कागजों पर चलती हैं) बनाईं, 1,100 करोड़ उगाहे और सारी कंपनियां भंग कर दीं। यह रकम भी उन अज्ञात लोगों ने दी जो ब्रिटिश वर्जिनिया आइलैंड और केमन आइलैंड जैसे कर पनाहगाह देशों या यूं कह लें कि काली कमाई के अड्डों से ताल्लुक रखते हैं। यह सारी जानकारी घरेलू एजेंसियों से छुपा ली गई। न आयकर विभाग को और न कंपनी मामलों के मंत्रालय को इसकी भनक लगी। हो गए चुपचाप करोड़ों रुपये पार।
सिलसिला है यह। एक-दो नहीं कई-कई मामले। हिन्दुस्तान टाइम्स की रपट पर यकीन करें तो एयरसेल मैक्सिस सौदे से एयर इंडिया विमान खरीद तक, हर जगह एनडीटीवी। मलाईदार कमाई के हर रास्ते पर। मगर नहीं। मामला 'फ्री स्पीच' का है। मामला कथित ईमानदार पत्रकारिता के इकलौते ठेकेदार, सेकुलर और वामपंथी सोच के झंडाबरदार का है। सो सारे गुनाह माफ। सारी एजेंसियां 'संघी'। उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले लोग 'साम्प्रदायिक'। देश का लोकतंत्र 'खतरे' में। 'फ्री स्पीच' 'कोमा' में। उफ्फ, शाम के 7.30 बज गए। अब यहीं खत्म करता हूं। 'काली स्क्रीन' भी देखनी होगी।
(अभिषेक उपाध्याय की फेसबुक वॉल से)

कोयला घोटाले से जुड़े हैं तार!
एनडीटीवी के पूर्व निदेशक और पूर्व कार्यकारी उपाध्यक्ष  केवीएल नारायण राव ही तो काला चिट्ठा खोल रहे हैं। यह केस नया थोड़े है। इसके तार तो कोयला घोटाला से जुड़े हैं, जब केंद्र में मनमोहन सरकार थी।
यही कोई नौ अरब रुपये के गोलमाल का केस है! यह घोटाला 2011 से ही चल रहा है। इसमें तो पश्चिम बंगाल की पूर्व कम्युनिस्ट सरकार भी शामिल है। अब एनडीटीवी पर छापा पड़ रहा है तो पड़ना चाहिए। निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। अगर कोई देश का पैसा चोरी करता है तो वह पैसा हमारा और आपका भी है। सरकारी एजेंसी किसी भी दबाव में छापा मारे या जांच करे, यह उनका अधिकार है। लेकिन हमें एकतरफा सरकार के खिलाफ भी नहीं होना चाहिए। जांच में सहयोग करना ही सच्चे और अच्छे लोगों की निशानी है। तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा।     
(चंदन प्रतिहस्त की फेसबुक वॉल से)

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