पाठकों के पत्र : बिन हिन्दी सब सून
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पाठकों के पत्र : बिन हिन्दी सब सून

by
Jun 23, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Jun 2017 15:07:33

'बोलने लगा भारत' आलेख देश की भाषायी अस्मिता को उजागर करता है। इंटरनेट पर हिन्दी व भारतीय भाषाएं केवल बाजार की जरूरत ही नहीं, हमारी सभ्यता-संस्कृति की वाहक, संरक्षक और संवर्धक भी हैं। सरकार का 'डिजिटल' भारत का स्वप्न भी भारतीय भाषाओं के निरंतर बढ़ते प्रवाह के चलते साकार हो रहा है। स्थिति यह है कि तमिलनाडु का हिन्दी थोपने के आरोप का स्वर बहुत मुखर नहीं हो पा रहा है। जैसे ही तमिल कारोबारी, विद्यार्थी, नौकरीपेशा राज्य के बाहर कदम रखते हैं, उन्हें हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं का आश्रय लेना ही पड़ता है। 'मन की बात' का प्रसारण सभी माध्यमों, सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होना, एक प्रधानमंत्री का जनता से सीधे जुड़ना और सभी को उनसे संवाद करने का अवसर मिलना असरदार साबित हो रहा है।
—हिम्मत जोशी, नागपुर (महाराष्ट्र)

ङ्म  सरकार 'लालगढ़ जेएनयू' पर 500 करोड़ रु. खर्च करती है, जो भारतीयों की गाढ़ी कमाई है। जेएनयू में विश्व में सबसे सस्ती उच्च शिक्षा उपलब्ध है। लेकिन इसके परिसर में अफजल गुरु की मौत पर मातम और दंतेवाड़ा में सैनिकों की शहादत पर जश्न मनाया जाता है। यह कैसा राष्ट्रवाद है? कुछ साल पहले चीन में छात्रों ने लोकतंत्र बहाली के लिए प्रदर्शन किया तो उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया। क्या जेएनयू में कभी इसका विरोध हुआ?
—बीएल सचदेवा, नई दिल्ली

ङ्म हमें अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने गद्दारी और साम्प्रदायिकता का जहर उगलने वाले बिके हुए कठमुल्लाओं को तुरंत पाकिस्तान या बांग्लादेश भेज कर भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करनी होगी। देशभक्तों के खिलाफ फतवा जारी करने वाले कठमुल्लाओं की नागरिकता रद्द कर उन्हें जेल भेज देना चाहिए। कोई भी मजहब गद्दारी नहीं सिखाता। कांग्रेस ने मुल्लाओं और उनके फतवों के जरिए हमेशा ही देशभक्त मुसलमानों को परेशान किया है। इन्हें जेल भेजना राष्ट्र व मानवता के हित
में होगा।
—प्रमोद, नई दिल्ली

ङ्म शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों का चहुंमुखी विकास कर जीवन में सरलता, सहजता व मौलिकता का समावेश करे, देश और समाज के प्रति सोचने और कुछ करने का जज्बा पैदा करे। लेकिन बस्ते का बोझ लादकर, भारी-भरकम पाठ्यक्रम थोपकर उन्हें बचपन और समाज से ही काट दिया जाता है। उनके पास न खेलने का समय है और न बाल सुलभ क्रिया-कलापों के लिए कोई गंुजाइश। बच्चे रोबोट बन गए हैं, जिनकी चाभी स्कूल में शिक्षक या घर में माता-पिता के पास होती है। जब तक शुष्क, स्वार्थी और पैसा कमाने वाले स्कूल होंगे, तब तक आप बच्चों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे राष्ट्र, समाज के हितैषी या चिंतक होंगे।
—आनंद मोहन भटनागर, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

ङ्म भारतीय सिनेमा की सबसे चर्चित फिल्मों में से एक 'बाहुबली-2' के निर्माण से जुड़ी जानकारियां विस्मित करने वाली हैं। सबसे रोचक बात यह है कि फिल्म के 90 फीसदी दृश्य काल्पनिक हैं। इसके बावजूद फिल्म ने कारोबार और कमाई के सारे कीर्तिमान तोड़ते हुए नया इतिहास रचा है। माहिष्मती साम्राज्य का महल भारत में किसी भी फिल्म के लिए बने अब तक के सभी महलों से भव्य और विशाल है। इसकी ऊंचाई एफिल टॉवर के बराबर है। यह ऐसी फिल्म है जिसके कलाकारों से ज्यादा चर्चा इसके निर्देशक की हो रही है। वाकई मिथक इतिहास बन गया।
—राममोहन चंद्रवंशी, हरदा (मध्य प्रदेश)
ङ्म कांग्रेस ने आजादी के बहाने देश के तीन टुकड़े किए जिसमें दो मुस्लिम राष्ट्र बने। विभाजन के दौरान लाखों हिन्दू मारे गए, लाखों विस्थापित और बर्बाद हो गए। उसी पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। लेकिन कांग्रेस और उसके सहयोगी दल मौकापरस्त मुसलमानों को पूजने में जुटे हुए हैं। देश विरोधी और भड़काऊ बयान देकर राजनीति रोटियां सेंकने वाले ये मुसलमान नेता राजकीय सुख-सुविधाएं भोग रहे हैं। राष्ट्रवादी, मानवतावादी, सुधारवादी मुस्लिम नेताओं को आगे आना चाहिए।
—सुहासिनी किरानी, हैदराबाद (तेलंगाना)

ङ्म गत लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने भाजपा और नरेंद्र मोदी में जो विश्वास जताया, उसका ईमानदार आकलन करने पर यह तथ्य सामने आता है कि मोदी के रूप में देश को कुशल नेतृत्व मिला है। तीन वर्षों में भ्रष्टाचार, कालेधन के विरुद्ध की नीतियों से लगता है कि आर्थिक एवं सामाजिक समानता के लक्ष्य को पाया जा सकता है। विश्व में जहां भारत की साख बढ़ी है, वहीं पाकिस्तान का नापाक चेहरा दुनिया के सामने उजागर हुआ है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत के साथ यह साबित हो गई कि देश में मोदी सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है।
—मनोहर 'मंजुल', प. निमाड़ (मध्य प्रदेश)

ङ्म लालू यादव की अकूत बेनामी संपत्ति की आयकर जांच शुरू हुई तो वे तिलमिला उठे और इसे बदले की कार्रवाई बताकर खुद को निर्दोष साबित करने में लग गए। ये वही लालू हैं, जो चारा घोटाले में सजा भुगत रहे हैं और पेरोल पर बाहर आए हुए हैं। क्या सिर्फ नेता या मंत्री हो जाने भर से ही कुछ लोगों को भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस मिल जाता है? चाहिए तो यह कि नेता होने के नाते वे संविधान और उसके तहत गठित संस्थानों का सम्मान करें और जांच का सामना करें। अगर निर्दोष हैं तो घबराते क्यों हैं?
—अरुण मित्र, रामनगर (नई दिल्ली)

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