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गत 14 जून को विश्व संवाद केन्द्र, पटना के सभागार में पाटलिपुत्र सिने सोसायटी द्वारा आयोजित फिल्म प्रतियोगिता में चयनित फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि तथा पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो़ शरदेन्दु कुमार ने कहा कि पाटलिपुत्र सिने सोसायटी द्वारा फिल्म प्रतियोगिता के आयोजन से नई प्रतिभाओं को एक मंच मिला है। इससे आने वाले समय में बिहार में फिल्म निर्माण की स्वस्थ संस्कृति विकसित होगी।
दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष डॉ. आतीश पाराशर ने कहा कि उभरते फिल्मकारों के लिए नई जमीन उपलब्ध कराना हम सभी का दायित्व है। संत जेवियर्स कॉलेज में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष नीरजा लाल ने कहा कि यह अच्छी बात है कि सिनेमा विधा को भारत में भी शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है।
पाटलिपुत्र सिने सोसायटी द्वारा आयोजित वृत्तचित्र एवं लघु फिल्म प्रतियोगिता में 35 प्रविष्टियां आई थीं। कार्यक्रम में चयनित आठ वृत्तचित्र एवं लघु फिल्मों को प्रदर्शित किया गया। इसके बाद फिल्म के कलाकारों एवं फिल्म निर्देशकों ने अपने अनुभव साझा किए। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विश्व संवाद केन्द्र के संपादक संजीव कुमार ने कहा कि पाटलिपुत्र सिने सोसाइटी द्वारा आयोजित यह प्रतियोगिता का यह दूसरा साल है।
अगले वर्ष वृत्तचित्र एवं लघु फिल्म अनुभाग के अतिरिक्त एक मोबाइल वर्ग भी रखा जाएगा, जिसमें स्मार्टफोन से बनाई गई फिल्मों को पुरस्कृत किया जाएगा। मंच संचालन पाटलिपुत्र सिने सोसाइटी के संयोजक प्रशांत रंजन ने किया। इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे।
-प्रतिनिधि
किसान आंदोलन की आड़ में फैलाया जा रहा भ्रम
देशभर में हो रहे किसान आंदोलनों को देखते हुए 11 जून को भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री श्री बद्रीनाथ चौधरी ने विश्व संवाद केंद्र, शिमला में पत्रकारों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि भारतीय किसान संघ देश का सबसे बड़ा किसान प्रतिनिधि संगठन है, ऐसे में देश में आंदोलन के नाम पर कई भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि किसानों का कभी भी हिंसक आंदोलनों और राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले विरोध प्रदर्शनों में हाथ नहीं रहा है।
उन्होंने कहा कि देश में कुछ ऐसे नीति निर्माता रहे हैं जिनके कारण किसान को फसलों का समर्थन मूल्य प्राप्त नहीं हो पाता है। वर्तमान में भी कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें फसलों का बंपर उत्पादन तो हो गया लेकिन समर्थन मूल्य के कारण किसानों को समस्याएं हुईं।
तीन वर्ष पूर्व वर्षा न होने के कारण दलहन का उत्पादन देशभर में गिर गया था। इसके बाद प्रधानमंत्री ने किसानों से दलहन उत्पादन में वृद्धि करने को कहा था। अब दलहन का उत्पादन तो बढ़ गया मगर सरकार ने विदेशों से दालें आयात कर लीं। साथ ही देश में भंडारित फसलों पर किसान को सही समर्थन मूल्य नहीं मिल पाया। इस कारण किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने लगे। वे अपनी मांगें सरकार के सामने रखते हैं जिसमें भारतीय किसान संघ की सकारात्मक भूमिका
रहती है।
उन्होंने माना कि शांतिपूर्ण आंदोलन से किसानों और सरकार के बीच चल रहा गतिरोध थम गया था, लेकिन 5 जून के बाद किसानों के नाम पर जो आंदोलन किया गया उसमें किसान शामिल नहीं थे। कुछ राजनीतिक और स्वार्थी तत्वों ने अपने हितों के साधन के लिए किसानों को मोहरा बनाया, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके पीछे छिपे लोगों को सामने लाने के लिए भारतीय किसान संघ निष्पक्ष जांच की मांग करता है। इस अवसर पर किसान संघ के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे। -प्रतिनिधि
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