चक्रों की गति न्यारी
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चक्रों की गति न्यारी

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Jun 19, 2017, 12:00 am IST
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दिंनाक: 19 Jun 2017 14:50:55


चक्रों का विज्ञान अनूठा और गहन है। मानव शरीर के व्यवहार, हाव-भाव और गति का निर्धारण करने वाले इन आठ चक्रों को जाग्रत रखकर जहां सकारात्मकता की ओर दु्रत गति से बढ़ा जा सकता है, वहीं प्राणायाम और प्रत्याहार के साथ ही योग के द्वारा चक्र जाग्रत किए जा सकते हैं

 प्रो़ बी़ एल़ चौधरी   
मानव शरीर में ऐसे चक्र हैं जो शक्ति और मानसिक बल के साथ-साथ एक इनसान को जीवन की राह पर पूरी ऊर्जा के साथ चलने में सहयोग देते हैं। अपनी स्वाभाविक अवस्था में, चक्रों की ऊर्जा एक घड़ी की दिशा में चलती है। थोड़े-से अभ्यास से हम चक्रों की प्रभा को अपने हाथ की हथेली से अनुभव कर सकते हैं और घूमने की दिशा तय कर सकते हैं। हम चक्रों के घुमाव को शरीर के उस हिस्से पर एक सेंटीमीटर ऊपर हाथ रखकर, जहां वह चक्र स्थित है, प्रभावित कर सकते हैं। 
इस आध्यात्मिक पथ पर हमारा सामना अपने आंतरिक गुणों और विशिष्टताओं से होता है, जब तक कि ये पूर्णरूप से शुद्ध और परिष्कृत नहीं होते। आज्ञा चक्र में हम आत्मज्ञान को प्राप्त होते हैं, बिन्दुचक्र में हम आत्मा के अमरत्व का अनुभव करते हैं और सहस्त्रार चक्र में परमचेतना का प्रगटीकरण और व्यक्ति का परमात्मा से मिलन, अपने आप घटित होता है। ‘दैनिक जीवन में योग’ और ‘आत्म-मनन ध्यान’ हमें यह मार्ग दिखाता है।
सुषुम्ना के अन्तर्गत सूक्ष्म नाड़ियां
सुषुम्ना के भीतर वज्र-नाड़ी है, वज्र के अंदर चित्रणी है और चित्रणी के मध्य में ब्रह्म-नाड़ी है। ये मकड़ी के जाले जैसी अति सूक्ष्म हैं, जिनका ज्ञान केवल योगियों को ही हो सकता है। ये नाड़ियां सर्व-प्रधान, प्रकाशमय और अद्भुत शक्ति वाली हैं। इनमें 7 चक्र मुख्य हैं-मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार।
स्वामी महेश्वरानन्द जी के अनुसार चक्र 8 हैं, जो ऊर्जा केन्द्र हैं।
’ मूलाधार चक्र-मूल केन्द्र
’ स्वाधिष्ठान चक्र-निचले पेट का केन्द्र
’ मणिपुर चक्र-नाभि केन्द्र
’ अनाहत चक्र-हृदय केन्द्र
’ विशुद्धि चक्र-कंठ केन्द्र
’ आज्ञा चक्र-भौंहों के मध्य केन्द्र
’ बिन्दु चक्र-चंद्र केन्द्र
’     सहस्त्रार चक्र-मुकुट केन्द्र
आइए जानें कि इनका राजयोग से क्या संबंध है तथा तान्त्रिक ग्रंथों की उन बातों यथा, तत्व-बीज का वाहन, अधिपति देवता, देवता की शक्ति, यन्त्र, फल इत्यादि के क्या अर्थ हैं—
चक्रों का वर्णन
1़ मूलाधार चक्र- मूल (जड़) केन्द्र:
स्थूल स्वरूप से इसके सूक्ष्म स्वरूप का संकेत किया जा सकता है। मूल =जड़, आधार=नींव
मूलाधार चक्र अनुत्रिक के आधार में स्थित है, यह सबसे पहला चक्र है। इसका समान रूप मंत्र ‘लम’ है। इस चक्र की सकारात्मक उपलब्धियां स्फूर्ति, उत्साह और विकास हैं।
’     चक्रस्थान-गुदामूल से दो अंगुल ऊपर और उपस्थ मूल से दो अंगुल नीचे।
’      आकृति-रक्त-रंग के प्रकाश से उज्ज्वलित चार पंखुड़ी (दलों) वाले कमल के    सदृश है।
’     दलों के अक्षर (वर्ण)-चारों पंखुड़ियों पर वं, शं, षं और सं-ये चार अक्षर हैं।
’     तत्व-स्थान-चौकोण सुवर्ण रंग वाले पृथ्वी तत्व का मुख्य स्थान है।
’      तत्व-बीज ’लं’ है।
’  तत्व बीज की गति-ऐरावत हाथी के समान सामने की ओर गति है।
’   गुण-गंध गुण है।
’  वायु-स्थान-नीचे की ओर चलने वाली अपान वायु मुख्य स्थान है।
’     ज्ञानेन्द्रिय-गंधतन्मात्रा से उत्पन्न होने वाली सूंघने की शक्ति नासिका का स्थान है।
’     कर्मेन्द्रिय-पृथ्वी-तत्व से उत्पन्न होने वाली मलत्याग-शक्ति गुदा का स्थान है।
’  लोक-भूलोक है। (भू)
’     तत्व बीज का वाहन-ऐरावत हस्ती, जिसके ऊपर इन्द्र विराजमान हैं।
’     अधिपति देवता-चतुर्भुज ब्रह्मा अपनी शक्ति चतुर्र्भुज डाकिनी के साथ।
’    यंत्र-चतुष्कोण, सुवर्णरंग।
’     चक्र पर ध्यान का फल—आरोग्यता, आनंदित, वाक्य, काव्य, प्रबन्ध-दक्षता। इस चक्र के नीचे त्रिकोण यन्त्र जैसा एक सूक्ष्म योनिमण्डल है, जिसके मध्य के कोण से सुषुम्ना (सरस्वती) नाड़ी, दक्षिण कोण से पिंगला (यमुना) नाड़ी और वाम कोण से इडा (गंगा) नाड़ी निकलती है। इसलिए इसको मुक्तत्रिवेणी भी कहते हैं।
मूलशक्ति अर्थात् कुण्डलिनी शक्ति का आधार होने से इस चक्र को मूलाधार कहते हैं।
जाग्रत करने के उपाय : शरीर की गंदगी दूर करने वाले योगासन से यह शक्ति जाग्रत होती है। जैसे, घूमना व व्यायाम करना। स्वास्तिका, पश्चिमोत्तानासन व भूनम्नासन जैसे आसन व कपालभाति प्राणायाम।
2़ स्वाधिष्ठान चक्र-निचले पेट का केन्द्र:
इसके स्थूल स्वरूप से इसके सूक्ष्म स्वरूप    का संकेत किया जा सकता है। स्व=आत्मा, स्थान =जगह।
स्वाधिष्ठान चक्र त्रिकास्थि (पेड़ू के पिछले भाग की पसली) के निचले छोर में स्थित है। इसका मंत्र ‘वं’ है।
स्वाधिष्ठान चक्र हमारे विकास के एक-दूसरे स्तर का संकेतक है। चेतना की शुद्ध, मानव चेतना की ओर उत्क्रांति का प्रारम्भ स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। यह अवचेतन मन का वह स्थान है जहां हमारे अस्तित्व के प्रारम्भ में गर्भ से सभी जीवन अनुभव और परछाइयां संग्रहित रहती हैं। मूलाधार चक्र हमारे कर्माें का भंडारग्रह है तथापि इसको स्वाधिष्ठान चक्र में सक्रिय किया  जाता है। स्वाधिष्ठान चक्र की जाग्रति स्पष्टता और व्यक्तित्व में विकास    लाती है।
’ स्थान-मूलाधार चक्र से दो अंगुल ऊपर पेड़ू के पास इस चक्र का स्थान है।
’ आकृति-सिंदूरी रंग के प्रकाश से प्रकाशित 6 पंखुड़ी (दलों) वाले कमल के समान है।
’  दलों के अक्षर (वर्ण)-छहों पंखुड़ियों (दलों) पर बं, भं, मं, यं, रं, लं – ये 6 अक्षर (वर्ण) हैं।
’ तत्व-स्थान-श्वेत रंग, अर्द्धचन्द्राकार वाले जल-तत्व मुख्य स्थान है।
तत्व-बीज-‘वं’ है।
’ तत्व-बीज-गति-जिस प्रकार मकर लम्बी डुबकी लगाता है, इसी प्रकार इस तत्व की नीचे की ओर लम्बी गति है।
’     गुण-रस है।
’     वायु-स्थान-सर्वशरीर में व्यापक होकर गति करने वाली व्यानवायु मुख्य स्थान है।
’     ज्ञानेन्द्रिय-रसरतंत्रता से उत्पन्न स्वाद  लेने की शक्ति रसना का स्थान है।
’     कर्म-इन्द्रिय-जलतत्व से उत्पन्न मूत्र-त्याग-शक्ति उपस्थ का स्थान है।
’     लोक-भुव: है।
’     तत्व-बीज का वाहन-मकर जिसके ऊपर वरुण विराजमान हैं।
’ अधिपति देवता-विष्णु अपनी चतुर्भुजा राकिनी शक्ति के साथ।
’     यन्त्र-अर्धचन्द्राकार, श्वेत रंग।
’     चक्र पर ध्यान का फल-तांत्रिक ग्रन्थों में इस चक्र में ध्यान का फल सृजन, पालन और निधन में समर्थता तथा जिह्वा पर सरस्वती देवी का होना बतलाया गया है।
चेतना की शुद्धि, मानव चेतना की ओर उत्क्रांति का प्रारंभ स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। यह हमारे कर्माें का भंडारगृह है। जानुशिरासन, मंडूकासन व कपालभाति प्राणायाम द्वारा। स्वाधिष्ठान चक्र का संबंध अवचेतन मन से है। स्वाधिष्ठान चक्र की जाग्रति से व्यक्ति में उत्साह, खुशी, सुखानुभव उत्पन्न होते हैं। व्यक्ति का रुझान भोजन तथा यौन सुख की ओर ज्यादा बढ़ता है।  
3़ मणिपूरक-चक्र नाभि केन्द्र:
वसंत के स्थूल स्वरूप द्वारा इसके सूक्ष्म स्वरूप का संकेत किया जा सकता है। मणि=गहना, पुर=स्थान, शहर।
मणिपुर चक्र नाभि के पीछे स्थित है। इसका मंत्र है ‘रम’। मणिपुर चक्र में अनेक बहुमूल्य मणियां हैं, जैसे स्पष्टता, आत्मविश्वास, आनन्द, आत्म भरोसा, ज्ञान, बुद्धि और सही निर्णय लेने की योग्यता जैसे गुण। शरीर में अग्नि तत्व सौर मंडल में गर्मी के समान ही प्रकट होता है। मणिपुर चक्र स्फूर्ति का केन्द्र है। यह हमारे स्वास्थ्य को सुदृढ़ और
पुष्ट करने के लिए हमारी ऊर्जा को नियंत्रित करता है। इस चक्र का प्रभाव एक चुबंक की भांति होता है, जो ब्रह्माण्ड से प्राण को अपनी ओर आकर्षित करता है। पाचक अग्नि के स्थान के रूप में, यह चक्र अग्नाशय और पाचक अवयवों की प्रक्रिया को विनियमित करता है। इस केन्द्र में अवरोध कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, जैसे पाचन में खराबियां, परिसंचारी रोग, मधुमेह और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव। जब इस चक्र की ऊर्जा निर्बाध प्रवाहित होती है तो प्रभाव एक शक्तिपुंज के समान, निरन्तर स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है, संतुलन और शक्ति बनाए रखता है।
’     स्थान-नाभिमूल है।
’     आकृति-नीले रंग के प्रकाश से आलोकित (प्रकाशित) दस पंखुड़ी (दलों) वाले कमल के तुल्य है।
’     दलों के अक्षर (वर्ण)-दसों पंखुड़ियों (दलों) पर डं, ढं, णं, तं, थं, दं, धं, नं, पं, फं-ये दस अक्षर (वर्ण) हैं। इन दस वर्णाे की ध्वनियां निकलती हैं।
’ तत्वस्थान-रक्त रंग त्रिकोणाकार वाले अग्नि-तत्व का मुख्य स्थान है।
’ तत्व-बीज- ‘रं’ है।
’ तत्व-बीज-गति-जिस प्रकार मेष (मेढ़ा) ऊपर को उछलकर चलता है, इसी प्रकार इस तत्व की गति ऊपर की ओर है।
गुण-रूप है।
’ वायु-स्थान-खान-पान के रस को सम्पूर्ण शरीर में स्व-स्व-स्थान पर समान रूप से पहंचाने वाली समान वायु का मुख्य    स्थान है।
’ ज्ञानेन्द्रिय-रूप-तन्मात्रा से उत्पन्न देखने की शक्ति चक्षु का स्थान है।
कर्मेन्द्रिय-अग्नि-तव से उत्पन्न चलने की शक्ति पाद (पैर) का स्थान है।
’ लोक-स्व: है।
’ तव‘-बीज का वाहन-मेष (मेढ़ा) जिसके ऊपर अग्निदेवता विराजमान हैं।
’ अधिपति देवता-रुद्र अपनी चतुर्भुजा शक्ति लाकिनी के साथ।
’ यन्त्र-त्रिकोण रक्त रंग।
’ फल-विभूतिपाद में इस चक्र पर ध्यान का फल शरीर व्यूह का ज्ञान बतलाया गया है। इसमें ध्यान करने से अजीर्ण आदि रोग दूर होते हैं।
जाग्रत करने के उपाय:-पवनमुक्तासन, मंडूकासन, एकपाद मुक्तासन, भस्त्रिका व कपालभाति प्राणायाम द्वारा। इस चक्र की जाग्रति से व्यक्ति में क्रियाशीलता, गतिशीलता, सामर्थ्य, इच्छाशक्ति, आत्मसम्मान का विकास होता है, यह स्वत: प्रदीप्त अवस्था है। यह प्रभुत्वशक्ति तथा बहिर्मुखता का प्रतीक है।
4़ अनाहत चक्र- हृदय केन्द्र:  
इसके सूक्ष्म स्वरूप का संकेतक कारडिएक प्लैक्सस का स्थूल स्वरूप है। अनाहत नाद= शाश्वत ध्वनि ‘ऊँ’ ध्वनि।
अनाहत चक्र हृदय के निकट सीने के बीच में स्थिति। इसका मंत्र ‘यं’ है। अनाहत चक्र आत्मा की पीठ (स्थान) है। जब अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होती है, तब हमारी भावनाएं भक्ति, शुद्ध, ईश्वर प्रेम और निष्ठा प्रकट करती है। अनाहत, ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा की लेखक या कवि के रूप में विकसित कर सकती है।
’     स्थान-हृदय के पास।
’     आकृति-सिंदूरी रंग के प्रकाश से भासित (उज्ज्वलित) बारह पंखुड़ी (दलों) वाले कमल के सदृश है।
’  दलों के अक्षर (वर्ण)-बारह पंखुड़ियों पर कं, खं, गं, घं, डं, चं, छं, जं, झं, ञं, टं, ठं-ये बारह अक्षर (वर्ण) हैं।
’     तत्व-स्थान-धूम्र रंग, षट्कोणाकार वायु तव का मुख्य स्थान है।
’  तत्व-बीज-यं है।
’ तत्व-बीज-गति-जिस प्रकार मृग तिरछा चलता है, इसी प्रकार इस तत्व की तिरछी गति है।
’      गुण-स्पर्श है।
’      वायुस्थान-मुख और नासिका से गति करने वाले प्राण वायु का मुख्य स्थान है।
’      ज्ञानेन्द्रिय-स्पर्श-तन्मात्रा से उत्पन्न स्पर्श की शक्ति त्वचा का केन्द्र है।
’  कर्मेन्द्रिय-वायु तव से उत्पन्न पकड़ने की
शक्ति कर (हाथ) का स्थान है।
’     लोक-महार्लोक है। अन्त:करण का मुख्य स्थान है।
’     तत्व-बीज का वाहन-मृग।
’     अधिपति देवता-ईशान-रुद्र अपनी त्रिनेत्र चतुर्भुजा शक्ति काकिनी के साथ।
’     यन्त्र-षट्कोणाकार ध्रूम रंग।
’     फल-वाक्पतित्व, कवित्वशक्ति का लाभ, जितेन्द्रिय होना इत्यादि तान्त्रिक ग्रन्थों में बतलाया है। शिवसार तन्त्र में कहा है कि इस स्थान में उत्पन्न होने वाली अनाहत ध्वनि ही सदा शिव है और त्रिगुणमय ओंकार इसी स्थान में व्यक्त होता
है। यथा—
शब्दं ब्रह्मेति तं प्राह साक्षाद्देव: सदाशिव:।
अनाहतेषु चक्रेषु स शब्द: परिकीर्त्यते॥
(परापरिमल्लोल्लास:)
जिसको शब्द ब्रह्म कहते हैं, वही साक्षात् सदाशिव है। वही शब्द अनाहत चक्र में है। कहीं-कहीं इस चक्र के समीप आठ दलों का एक ‘निम्न मनश्चक्र’ बतलाया गया है। स्त्रियों तथा भक्ति-भाव वालों को ध्यान करने के लिये अनाहत चक्र उपयुक्त स्थान है।
जाग्रत करने के उपाय—उष्टÑासन, भुजंगासन, अर्धचक्रासन, भस्त्रिका प्राणायाम द्वारा। अनाहत चक्र के जागृत होने पर व्यक्ति नि:स्वार्थ, अंहकार रहित तथा भावनात्मक आसक्तियों से मुक्त हो जाता है, जिससे मन तनावरहित तथा शांत हो जाता है हृदय केन्द्र में दिव्य प्रेम का वास होता है इसलिए व्यक्ति भक्ति की ओर उन्मुख होने लगता है एवं उसमें विश्वपे्रम की भावना जगने लगती है।
5़ विशुद्ध चक्र-कंठ केन्द्र-इसका संकेतक स्थूल स्वरूप है। विष =जहर, अशुद्धता, शुद्धि=अवशिष्ट निकालना।
विशुद्धि चक्र कंठ में स्थित है। इसका मंत्र ‘हं’ है। विशुद्धि का रंग बैंगनी है। इस चक्र में हमारी चेतना पांचवें स्तर पर पहुंच जाती है। विशुद्धि चक्र प्रसन्नता की अनगिनत भावनाओं और स्वतंत्रता को दर्शाता है जो हमारी योग्यता और कुशलता को प्रफुल्लित करता है। विशुद्धि चक्र ध्वनि का केन्द्र है, संख्या सोलह संस्कृत के सोलह स्वरों की भी प्रतीक है।
’     स्थान-कण्ठदेश है।
’     आकृति-धूम्र अथवा धुंधले रंग के प्रकाश से उज्ज्वलित 16 पंखुड़ी (दलों) वाले कमल-जैसी है।
’     दलों के अक्षर-सोलहों पंखुड़ियों पर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, लृ, ल, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:-ये सोलह अक्षर हंै।
’     तव-स्थान-चित्र-विचित्र आकार तथा नाना रंग वाले अथवा पूर्णचन्द्र के सदृश गोलाकार आकाश-तव का मुख्य स्थान है।
   तत्व-बीज-हं है।
’     तत्व-बीज की गति-इस तत्व की घुमाव के साथ गति है।
गुण-शब्द है।
’     वायु-स्थान-ऊपर की गति का हेतु शरीर पर्यन्त बर्तन वाले उदानवायु का मुख्य स्थान है।
’     ज्ञानेन्द्रिय-शब्द-तन्मात्रा से उत्पन्न श्रवण-शक्ति श्रोत्र का स्थान है।
’ कर्मेन्द्रिय-आकाश-तत्व से उत्पन्न वाक्शक्ति  वाणी का स्थान है।
’     लोक-जन: है।
’     तत्व-बीज का वाहन-हस्ती जिसके ऊपर प्रकाश देवता आरूढ़ हैं।
’     अधिपति देवता-पंचमुख वाले सदाशिव अपनी शक्ति चतुर्भुजा शाकिनी के साथ।
’    यन्त्र-पूर्णचन्द्र के सदृश गोलाकार आकाशमण्डल।
’     चक्र पर ध्यान का फल-कवि, महाज्ञानी, शान्तचित्त, नीरोग, शोकहीन और दीर्घजीवी होना बतलाया गया है। इसके  ‘विशुद्ध’ नाम रखने का यह कारण बताया गया है कि इस स्थान पर मन की स्थिति होने से मन आकाश के समान विशुद्ध हो जाता है।
जाग्रत करने के उपाय: हलासन, सेतुबंधासन, उच्च व सर्वांगासन द्वारा इसे जाग्रत किया जाता है। विशुद्धि चक्र की जागृति से व्यक्ति आंतरिक तथा बाह्य स्तर पर नकारात्मक दृष्टिकोण से मुक्त हो जाता है। वह जीवन के द्वंद्वों तथा ध्रुव तत्वों को समान रूप से स्वीकार करने लगता है, जिससे सभी प्रकार के नकारात्मक अनुभव समाप्त होने लगते हैं तथा व्यक्ति को पूर्ण आनंद की अनुभूति होने लगती है। इसकी जाग्रति से व्यक्ति की दूसरे व्यक्तियों के विचार तरंगों को ग्रहण करने क्षमता बढ़ जाती है। वह दूसरों के सुख-दुख को न केवल कान से बल्कि मन से सुनने लगता है।
6़ आज्ञा चक्र-भौंहों के मध्य केन्द्र में :
इसका संकेतक मैड्यूला प्लैक्सस का स्थूल रूप है। आज्ञा=आदेश, ज्ञान।
आज्ञा चक्र मस्तक के मध्य में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे ‘‘तीसरा नेत्र’’ भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केन्द्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह 3 प्रमुख नाड़ियों, इडा (चन्द्र नाड़ी), पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने  का स्थान है। जब इन तीनों नाड़ियों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वाेच्च चेतना प्राप्त होती है। इसका मंत्र है ऊं।  इस चक्र के गुण है—एकता, शून्य, सत, चित्त और आनंद। ‘ज्ञान नेत्र’ भीतर खुलता है और हम आत्मा की वास्तविकता देखते हैं- इसलिए ’तीसरा नेत्र’ का प्रयोग किया गया है।
’  स्थान-दोनों भौंहों के मध्य में भृकुटी के भीतर है।
’ आकृति-श्वेत प्रकाश के दो पंखुड़ियों (दलों) वाले कमल के सदृश है।
’      दलों के अक्षर (वर्ण)-दोनों पंखुड़ियों पर हं, क्षं हैं।
’      तत्व-लिंग अर्थात लिंग-आकार महत्व है।
   तत्व-बीज-ओम् है।
’     तत्व-बीज गति-नाद है।
’     लोक-तप: है।
’     तत्वबीज का वाहन-नाद जिस पर लिंग  देवता है।
’     अधिपति देवता-ज्ञानदाता शिव अपनी चतुर्हस्ता षडानना (छह मुख) हाकिनी शक्ति के साथ।
’     यन्त्र-लिंगकार।
’     फल-भिन्न-भिन्न चक्रों के ध्यान द्वारा जो फल प्राप्त होते हैं, वे सब एकमात्र इस चक्र पर ध्यान करने से प्राप्त हो जाते हैं।
इस स्थान पर प्राण तथा मन के स्थिर हो जाने पर सम्प्रज्ञात-समाधि की योग्यता होती है।  मूलाधार से इडा, पिंगला और सुषुम्णा पृथक-पृथक प्रवाहित होकर इस स्थान पर मिलती हैं; इसलिये इसको युक्त-त्रिवेणी भी कहते हैं।
इडा भागीरथी गंग पिंगला यमुना नदी।
तयोर्मध्यगता नाडी सुषुम्णाख्या सरस्वती॥
त्रिवेणीसंगमो यत्र तीर्थराज: स उच्यते।
तत्र स्नानं प्रकुर्वीत सर्वपापै: प्रमुच्यते॥
इडा को गंग और पिंगला को यमुना तथा इन दोनों के मध्य में जाने वाली नाड़ी सुषुम्णा को सरस्वती कहते हैं। इस त्रिवेणी का जहां संगम है, उसे तीर्थराज कहते हैं। इसमें स्नान करके सारे पापों से मुक्त हो जाते हैं।
तदेव हृदयं नाम सर्वशास्त्रादिसम्मतम्।
अन्यथा हृदि किंचास्ति प्रोक्त यत् स्थूलबुद्धिभि:॥
यही अर्थात् आज्ञाचक्र ही सर्वशास्त्र-सम्मत हृदय है। स्थूल-बुद्धि वाले ही अन्य स्थूल स्थान की हृदय कहते हैं। यह आज्ञा चक्र शिवनेत्र, दिव्यदृष्टि का यंत्र है।
प्राणतोषिणी तन्त्र में एक 64 दल वाले ललना-संज्ञक चक्र की तालु में और एक शतदल वाले गुरु चक्र की अवस्थिति ब्रह्मरन्ध्र में बतलाई है तथा किसी-किसी ने सोमचक्र (गुरु-चक्र), मानस-चक्र, ललाट-चक्र आदि का भी वर्णन किया है, किन्तु ये सब सातों चक्रों के ही अन्तर्गत हैं।
क्रियात्मक रूप से इनकी अधिक उपयोगिता नहीं है। जाग्रत करने के उपाय:- अनुलोम-विलोम, सुखासन, मकरासन व शवासन द्वारा।
मानसिक पहलू – आज्ञा चक्र की जाग्रति का प्रभाव मानसिक स्तर पर अत्यधिक पड़ता है। इसकी जाग्रति से व्यक्ति अत्यंत कुशाग्र बुद्घि का हो जाता है। उसमें विवेक तथा उच्च स्तरीय मानसिक क्षमताओं का विकास होने लगता है। व्यक्ति में दिव्य दृष्टि विकसित हो जाती है। फलस्वरूप ऐन्द्रिय शक्तियों के बिना ही उसे घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होने लगता है। इससे संकल्प शक्ति बहुत अधिक बढ़ जाती है जिससे व्यक्ति को सिद्धि की प्राप्ति होती है।
7़  बिन्दु चक्र-चन्द्र केंद्र:
पातंजल योगप्रदीप में 8 चक्रों का वर्णन है-7 बिन्दु चक्र- चन्द्र चक्र, 8 सहस्त्रार चक्र-मुकुट केन्द्र। बिन्दु चक्र के शीर्ष भाग पर केशों के गुच्छे के नीचे स्थित है। यह स्वास्थ्य के लिए अहम केन्द्र है, हमें स्वास्थ्य और मानसिक पुनर्लाभ प्राप्त करने की शक्ति देता है। यह चक्र नेत्र दृष्टि को लाभ पहुंचाता है, भावनाओं को शांत करता है और आंतरिक सुव्यवस्था, स्पष्टता और संतुलन को बढ़ाता है। बिन्दु
चक्र की सहायता से भूख और प्यास पर नियंत्रण पाया जा सकता है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाने की आदतों से दूर
रहने की योग्यता प्राप्त की जा सकती है। बिन्दु पर एकाग्रचित्तता से चिन्ता, हताशा और अत्याचार की भावना तथा हृदय दमन से भी छुटकारा मिलता है। बिन्दु चक्र शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, स्फूर्ति और यौवन प्रदान करता है।
8़ सहस्त्रार व शून्य चक्र- मुकुट केन्द्र:
इसका संकेतक स्थूल रूप है। सहस्त्रार= हजार, अनंत, अंसख्य। सहस्त्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित है। इसे ‘हजार पंखुड़ियों वाले कमल’, ‘ब्रह्म रन्ध्र’’ (ईश्वर का द्वार) या ‘लक्ष किरणों का केन्द्र’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह सूूर्य की भांति प्रकाश का विकिरण करता है। अन्य कोई प्रकाश सूर्य की चमक के निकट नहीं पहुंच सकता। इसी प्रकार, अन्य सभी चक्रों की ऊर्जा और विकिरण सहस्त्रार चक्र के विकिरण में धूमिल हो जाते हैं।
स्थान-तालु के ऊपर मस्तिष्क में, ब्रह्मरन्ध्र से ऊपर सब शक्तियों का केन्द्र है।
’     आकृति-नाना रंग के प्रकाश से युक्त सहस्त्र पंखुड़ियों (दलों) वाले कमल-जैसी है।
’     दलों के अक्षर-पंखों पर ’अ’ से लेकर ‘क्ष’ तक सब स्वर और वर्ण हैं।
’     तत्व-तत्वातीत है।
’    तत्व-बीज-विसर्ग है।
’     तत्व-बीज गति-बिन्दु है।
’     लोक-सत्यम् है।
’     तत्व-बीज का वाहन-बिन्दु है।
’     अधिपति देवता-परब्रह्म अपनी महाशक्ति   के साथ।
’     यन्त्र-पूर्ण चन्द्र शुभ्र वर्ण।
’     फल-अमर होना, मुक्ति।
शरीर में जीवात्मा का कौन-सा स्थान है? वास्तव में आत्मा के ज्ञान का प्रकाश चित्त पर पड़ रहा है। चित्त ही कारण शरीर सूक्ष्म शरीर में व्यापक हो रहा है और सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर में। इस प्रकार जीवात्मा सारे ही शरीर में व्यापक हो रहा है। फिर भी कार्य-भेद से उसके कई स्थान बतलाये जा सकते हंै।
सामान्यत: तथा सुषुप्ति अवस्था में जीवात्मा का स्थान हृदयदेश बतलाया गया है; क्योंकि हृदय शरीर का मुख्य स्थान है। यहीं से सारे शरीर में नाड़ियां जा रही हैं। सारे शरीर का आन्तरिक कार्य यहीं से हो रहा है। हृदय की गति रुकने से सारे शरीर के कार्य बन्द हो जाते हैं, इसलिये सुषुप्ति की अवस्था में जीवात्मा का स्थान हृदय कहा जा सकता है।
(लेखक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान के अध्यक्ष हैं)

विवेकानन्द योग और वैज्ञानिक आधार
ललित मोहन बंसल
‘अमेरिकी’ योग के विपरीत हिन्दू स्वयंसेवक संघ की ओर से विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के नाम से अमेरिका के सामुदायिक स्थलों और मंदिरों में योग को वैज्ञानिक आधार पर सिखाया जा रहा है। इस परियोजना के अंतर्गत मूलत: शिक्षित महिलाओं और युवाओं को जोड़ा गया है, जिनकी पहुंच घर-घर तक है। इसकी विशेषता यह है कि इसके पाठ्यक्रम में नियमित योगाभ्यास के साथ शिक्षक प्रशिक्षण की कक्षाएं भी लगाई जा रही हैं। इसमें  65 योग शिक्षक और एक पीएचडी शोध छात्र विभिन्न कार्य देखते हैं। इनमें प्रवासी भारतीय ही नहीं, ताईवानी और अफ्रीकी भी शामिल हैं।    
एक मिनी इंडिया के रूप में ज्ञात ‘सेरीटास’ में यहां विवेकानंद योग संस्थान के प्रधान बाबूभाई गांधी ने बताया कि पास के सनातन धर्म मन्दिर परिसर में एक सप्ताह में प्रतिदिन 9 कक्षाएं लगाई जाती हैं। इसमें 'साइक्लिक मेडिसिन' की ट्रेनिंग दी जाती है। इन कक्षाओं के उपरान्त सभी प्रशिक्षुओं को उपाधि दी जाती है, लेकिन मास्टर डिग्री बंगलुरु स्थित एसवीवाईएएसए की ओर से दी जाती है। इसके कुलाधिपति डॉ. नागेन्द्र और योग विभागाध्यक्ष डॉ. नागरत्ना हैं। अभी दो प्रशिक्षुओं ने मास्टर डिग्री हासिल की है। इनमें से एक सुश्री विजया कवरी ने योग में पीएचडी की डिग्री हासिल की है जो इन दिनों लॉस एंजेल्स के विलियम मेमोरियल अस्पताल में ‘इरिटेट बावल स्टोमक सिंड्रोम’ में योग थेरेपी से उपचार करने में जुटी हैं। उनके विभाग में 80 से 90 मरीज हैं। इस कार्य में मंदिर के ट्रस्टी भीखू भाई पटेल, योग थेरेपी के संस्थापक मनसुख भाई कनेरिया, चक्रपाणी तथा डा. विजया कवरी प्रबंध कार्य में जुटे हैं। उनका कहना है कि योग को वैज्ञानिक आधार पर चलाए जाने की प्रेरणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और विवेकानन्द शिला स्मारक के ट्रस्टी श्री एकनाथ रानाडे ने ही दी थी। वह दिन दूर नहीं, जब लॉस एंजेल्स में विवेकानन्द योग यूनिवर्सिटी स्थापित होगी। इसके लिए दस्तावेज जमा करवाए जा चुके हैं।  लॉस एंजेल्स में योग भारती भी योग प्रशिक्षण की कक्षाएं लेती है।    
उन्होंने बताया कि मुनाफा रहित आधार पर गठित इस संस्था की ओर से चलाए जा रहे पाठ्यक्रम में युवाओं की योग थेरेपी के प्रति रुचि बढ़ रही है। इस पाठ्यक्रम में अभी 9 छात्र-छात्राएं मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी दो परीक्षाएं भी ली जा चुकी हैं। दुनियाभर में मधुमेह रोग की बढ़ती शिकायतों के कारण पिछले कुछ अरसे से ‘स्टाप डायबिटिक मूवमेंट्स’ के अंतर्गत अमेरिका के विभिन्न स्थानों पर योग शिविरों में मधुमेह के बारे लोगों को जानकारी दी जा रही है। बाबु भाई गांधी ने बताया कि वह दिन दूर नहीं, उन्हें इस बात की खुशी है कि योग शिक्षक घर घर जा कर योग कक्षाएं लेते हैं। इन  कक्षाओं में शरीर, मन-मस्तिष्क और आत्मा को लेकर योग की क्रियाएं तो कराई जाती हैं, योग को अध्यात्म से भी जोड़ा जाता है। इनमें प्राणायाम का विशेष महत्त्व रहता है।

600 से अधिक शोध प्रस्ताव मिले
 योग तथा ध्यान के विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के लिए सरकार को वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों की तरफ से 600 से ज्यादा शोध प्रस्ताव मिले हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की तरफ से गठित विशेषज्ञ समिति प्रस्तावों पर विचार कर रही है। मंत्रालय को एम्स और नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (निमहांस) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से भी शोध प्रस्ताव मिले हैं। हर शोध परियोजना को सालाना करीब 20 करोड़ रुपये आबंटित किए जाएंगे। कार्यक्रम का उद्देश्य योग और ध्यान के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देना है।

अमेरिका में    योग बना एक ‘ब्रांड’

  ललित मोहन बंसल
अमेरिका में योग एक उद्योग है, जो अलग-अलग ब्रांड नाम से बिक रहा है। इस अरबों डॉलर के उद्योग में योग को उद्यमियों, व्यवसायियों और पेशेवरों को अमेरिका के आलीशान स्टूडियो, पंच तारा होटलों और सामान्यजन के लिए समुद्र तटों और पार्कों में परोसा जा रहा है।
अमेरिकी ‘योगगुरु’ पूछे जाने पर यह कतई स्वीकार नहीं करते कि उनके योग अथवा आसन भारतीय योग से कहीं मेल खाते हैं। बस, वे अपने योग में ‘बॉडी’ और ‘माइंड’ के तालमेल की बात करते हैं। ऐसे लोग जो मोटी योग फीस एंठते हैं, अपनी कक्षाएं वातानुकूलित स्टूडियो में लगाते हैं, ‘बॉडी’ और ‘माइंड’ को ‘सोल’ से ‘कनेक्ट’ करने का दावा करते हैं, अध्यात्म के गिने-चुने शब्दों का उपयोग करते हैं। एक जमात तो ऐसी है, जो ‘बीयर योग’ के नाम से खूब शोहरत हासिल करने में लगी है तो दूसरी ‘क्रिश्चियन योग’ अर्थात ‘होली योग’ एक मिशनरी के रूप में अमेरिका में अपने योग का डंका बजा चुकी है। ‘होली योग’ की संस्थापक ब्रुक बून कहती हैं, ‘‘संगीत की ध्वनि पर जीसस सही रास्ता दिखाता है। इसके तार सीधे प्रेस्बेटेरियन और वाईएमसीए से जुड़े हैं।’’ संभव है, यह योग मिशनरी आन्दोलन के रूप में पेटेंट हो जाए और भारत में ईसाई संगठनों की मदद से निर्यात होने लगे। ‘क्रिश्चियन योग’ के अध्याय नेपाल और थाईलैंड में रंग जमाने लगे हैं। ‘बीयर योग’ में है कि एक बोतल बीयर खरीदें और उसके सेवन के साथ-साथ आसन करें। बता दें, इस तरह के योग में यौन प्रताड़ना के किस्से अक्सर सुनाई देते हैं।    
मजे की बात यह है कि इन कथित अमेरिकी योग गुरुओं ने भारतीय योग के कुछ चुनिन्दा शब्दों, जैसे योग, नमस्ते, आसनों में प्राणायाम और सूर्य नमस्कार आदि का बेधड़क इस्तेमाल किया है। इन शब्दों का उपयोग करने में उन्हें कोई संकोच अथवा हिचकिचाहट नहीं है। वे यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि योग की उत्पत्ति भारत से हुई है, अथवा यह भारत की दुनिया को देन है। इसकी देखा-देखी पिछले कुछ अरसे से अमेरिका में बड़े नगरों के पंच तारा होटलों, स्टूडियो तथा डिस्ट्रिक्ट पार्क में योग की कक्षाएं लग रही हैं। ये कक्षाएं प्राय: गैर सरकारी संस्थाएं लगा रही हैं, जो बाकायदा पंजीकृत हैं और सरकार को टैक्स देती हैं। इस श्रेणी में ‘विक्रम योग’ भी खूब प्रचलित है और उसने खूब नाम और धन कमाया है। इस योग पर इन दिनों काली छाया मंडरा रही है। योग जर्नल और योग अलाएंस की मानें तो अमेरिका में योग चाहने वालों में तीन करोड़ साठ लाख लोग पंजीकृत हैं।           
अभी पिछले दिनों हॉलीवुड की एक सिने बस्ती ‘बेवरली हिल्स’ में हाई-फाई बोध महोत्सव के दौरान ‘विपश्यना’ योग के नाम पर ‘इनसाइट एल ए’ के लिए नाम पंजीकृत कराए जा रहे थे। यह संस्था सप्ताहांत पर सांता मोनिका सागरतट पर सैकड़ों की तादाद में योग कक्षा लगाती है। योग शिक्षक एलिसा डेनिस ने बताया कि उन्हें इतनी जानकारी जरूर है कि विपश्यना योग भारत में होता है, पर यहां श्वास प्रक्रिया पर ज्यादा गौर नहीं दिया जाता। उन्हें इस से कोई सरोकार नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को इसे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में स्वीकार कर लिया है।    
 अमेरिका में योग
अमेरिका में प्रवासी भारतीयों में इस बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रति उत्साह देखा जा सकता है। 21 जून के समीप एक सप्ताह के इर्द-गिर्द की तिथियों में सैकड़ों स्थानों पर योग दिवस मनाए जाने की तैयारियां की जा रही हैं। इन तैयारियों में हिन्दू स्वयंसेवक संघ के अलावा प्रवासी भारतीय समुदायों में प्रमुख तौर पर  गुजराती समाज, मराठी मंडल, तेलुगु, तमिल और कन्नड़ समाज तथा श्री श्री रविशंकर आर्ट आफ लीविंग, ब्रह्म कुमारी, रामकृष्ण मिशन, जे. के. योग, सहज योग और इशा फाउंडेशन आदि अपने-अपने स्तरों पर योग दिवस मना रहे हैं।   
अमेरिका स्थित भारतीय दूतावास की ओर से मुख्यत:  शिकागो, सैन फ्रांसिस्को, आस्टिन और वाशिंगटन डीसी में बड़े स्तर पर योग दिवस मनाये जाने की योजना है। अमेरिका के मध्य पश्चिमी महानगर नैपिरविले (शिकागो) में 24 जून, सैन फ्रांसिस्को में 25 जून, दक्षिण पश्चिम अमेरिका के टेक्सास स्थित आॅस्टिन में 17 जून और अमेरिका के पूर्व में वाशिंगटन डीसी में 17 जून को योग दिवस मनाया जाएगा। सुबह योगाभ्यास और सायंकाल में  सांस्कृतिक कार्यक्रमों में संगीत और नृत्य के कार्यक्रमों के लिए प्रवासी भारतीयों को   जोड़ा जा रहा है। इन मौकों पर अमेरिकी राज्यों के गवर्नर और कांग्रेस के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किए जाने की तैयारियां की जा रही हैं।
भारतीय दूतावास इस अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को प्रधानमंत्री की नजर में भारत की  प्राचीन परंपराओं के एक अमूल्य उपहार के रूप में मना रहे हैं।     

व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥
भावार्थ- व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्। विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते।।
भावार्थ- व्यायाम करने वाला मनुष्य गरिष्ठ, जला हुआ अथवा कच्चा किसी प्रकार का भी भोजन क्यों न हो, वह चाहे उसकी प्रकृति के भी विरुद्ध हो, फिर भी उसे भली-भांति पचा जाता है और उसे कोई हानि नहीं होती।

शरीरोपचय: कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता। दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा।।
भावार्थ- व्यायाम से शरीर बढ़ता है। शरीर की कान्ति व सुन्दरता बढ़ती है। शरीर के सब अंग सौष्ठवपूर्ण होते हैं। पाचन शक्ति बढ़ती है। आलस्य दूर भागता है। शरीर दृढ़ और हल्का होकर स्फूर्तिवान होता है। तीनों दोषों की (मृजा) शुद्धि होती है।

न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति।
स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च।।
भावार्थ- व्यायामी व्यक्ति पर वृद्धावस्था सहसा आक्रमण नहीं करती। ऐसे व्यक्ति का शरीर और हाड़-मांस सब स्थिर होते हैं।

श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता। आरोग्यं चापि परमं व्यायामदुपजायते।।
भावार्थ- श्रम, थकावट, ग्लानि (दु:ख), प्यास, शीत (जाड़ा), उष्णता (गर्मी) आदि सहने की शक्ति व्यायाम से ही आती है और परम आरोग्य अर्थात स्वास्थ्य की प्राप्ति भी व्यायाम से ही होती है।

समदोष: समाग्निश्च समधातुमल क्रिय:। प्रसन्नात्मकेन्द्रियमना: स्वस्थ इत्यभिधीयते।।
भावार्थ- जिस मनुष्य के दोष वात, पित्त और कफ, अग्नि (जठराग्नि), रसादि सात धातु, सम अवस्था में तथा स्थिर रहते हैं, मल मूत्रादि की क्रिया ठीक होती है और शरीर की सब क्रियाएं समान और उचित हैं और जिसके मन, इन्द्रिय और आत्मा प्रसन्न रहें, वह मनुष्य स्वस्थ है।

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