|
आखिरकार रूस को भी अपने यहां ‘पंथ स्वातंत्र्य कानून’ बनाना पड़ा। इसके पीछे वजह वहां विदेशी ईसाई मिशनरियों की ऐसी गुपचुप मुहिमें हैं जो लोगों को मास्को के अधिकृत आॅर्थोडॉक्स चर्च से दूर ले जा रही हैं। वहां के कट्टर उइ्रगर मुसलमानों से भी कन्वर्जन का खतरा बना ही रहता है
मोरेश्वर जोशी
रूस की संसद ने हाल ही में ‘पंथ स्वातंत्र्य कानून’ यानी यरोवाया कानून पास किया है। हालांकि मुख्य तौर पर यह कानून यूरोपीय ईसाई मिशनरियों के कन्वर्जन अभियानों से उपजे अतिवाद को काबू करने के लिए लाया गया दिखता है पर इसके अन्य आयाम भी हो सकते हैं। दरअसल यह कानून 25 वर्ष पूर्व के सोवियत काल के फौलादी राज की याद दिलाता है। रूस में आज जितनी समस्या ईसाई मिशनरियों की है, उतनी ही कट्टरवादी मुसलमानों की भी है। लेकिन पुतिन सरकार का इस ओर कड़ा रवैया है। यह इस कानून के प्रावधानों से ही स्पष्ट होता है। रूस के इस नए कानून पर यूरोपीय मीडिया का कहना है कि अब रूस में सोवियत काल की तरह ही भूमिगत चर्च तैयार हो रहे हंै।
रूस के इस घटनाक्रम की यूरोप एवं अमेरिका में जो प्रतिक्रिया हुई, वह गौरतलब है। सोवियत काल में रूस में यूरोपीय चर्च पर पाबंदी थी। इसलिए लोग चोरी-छुपे ईसाई प्रार्थना करते थे। उस समय वहां बड़े पैमाने पर ‘भूमिगत चर्च’ थे। कई विदेशी मिशनरी कन्वर्जन करते थे। यह मामला चीन में अधिक प्रखरता से उजागर हुआ था। बहुराष्टÑीय कंपनियों ने चीन में आने के बाद अपनी-अपनी बस्तियों में भूमिगत चर्च बनाए। इस रास्ते कम्युनिस्ट चीन में पिछले करीब 10 वर्ष में 12 करोड़ लोग ईसाई हो चुके हंै। उससे वहां राष्ट्रवाद के संदर्भ में भी अनेक समस्याएं उभरी हैं। वैसी स्थिति रूस में न आए, शायद इसीलिए रूस में यह कानून लाया गया है। सरगेई अच्क्सॉव नामक रूसी मिशनरी ने रूस में खुद 9 जगह चर्च बनाए हैं। करिज्मा न्यूज नामक समाचार पत्र में स्तंभ लेखक स्टीव रीज का कहना है, ‘बचपन में सोवियत संघ का काल देखा। तब मैंने एक बार मां-पिता जी से कहा था कि मुझे भगवान अच्छा लगता है। तब मां-पिता दोनों घबराए और बोले, खबरदार, फिर से घर में ऐसा बोलोगे तो घर से बाहर कर दिए जाओगे। मैं भी अबोध था, फिर से ईश्वर-भक्ति के बारे में बोलने लगा, तो मुझे घर से बाहर निकाल दिया गया। बाद में मैंने अपने दोस्तों के साथ समय बिताया। आज लगता है जैसे वही समय फिर से लौट आएगा।’ उन्होंने आगे कहा,‘मैंने बाद में रूस के अधिकृत आॅर्थोडॉक्स चर्च की सदस्यता ली। लेकिन फिर भी मेरी उत्कंठा बढ़ती गई। तो मैं बैप्टिस्ट, पेंटाकोस्टल और कैथोलिक चर्च की प्रार्थनाओं में जाने लगा, जिन्हें रूस में मान्यता नहीं थी। रूस में अपना स्वयं का आॅर्थोडॉक्स चर्च है जिसके दो गुट बन चुके हैं। सोवियत संघ के काल से रहे मूल आॅर्थोडॉक्स चर्च के समानांतर ही एक दूसरा आॅर्थोडॉक्स चर्च बनाया गया है। आज आरोप यह है कि मास्को चर्च के पीछे विदेशी संगठन हंै। इसलिए स्थानीय चर्च को मान्यता देकर वहां की सरकार ने यह पूरी मुहिम छेड़ रखी है। चार माह पूर्व पोप फ्रांसिस और मास्को आॅर्थोडॉक्स चर्च के वरिष्ठ पादरी किरील की मुलाकात हुई थी। इस भेंट को लेकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिकों में काफी गहमा-गहमी देखी गई थी।
फिलहाल रूस के ही आश्रय में रह रहे दुनिया के कई नामी खुफिया प्रकरण सामने लाने वाले एडवर्ड स्नोडन ने इस तर तीखा निशाना साधा है। स्नोडन ने कहा है कि यह कानून अव्यावहारिक है यानी इसके अमल मे आने की संभावना कम है। उसका कोई समर्थन नहीं करेगा। इससे आम आदमी के मानवाधिकार भी खतरे में पड़ जाएंगे। इस कानून को यरोवाया कानून नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि वहां के सत्ताधारी दल की सांसद इरिना यरोवाया ने ही उसे संसद में पेश किया था। इस कानून के तहत इंटरनेट के रास्ते अपने मत का अवैध प्रचार करने वालों को 5 से 10 साल के सश्रम कारावास और 10 लाख रूबल के जुर्माने का प्रावधान है। रूस के इस फौलादी कानून के विरोध में यूरोप-अमेरिका के मानवाधिकारी संगठन, संबंधित देशों के विदेश विभाग, ईसाई मिशनरियों के अंतरराष्ट्रीय संगठन एवं विभागीय संगठनों ने एक बड़ा मोर्चा खोल रखा है।
टिप्पणियाँ