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लोकतंत्र में भरोसे का मापदंड मतदान होता है जो लोगों का तंत्र और दल विशेष के प्रति भरोसे का प्रकटीकरण करता है। इस लिहाज से 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने वाली भाजपा ने उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में जनमानस के भरोसे की ऐतिहासिक पटकथा लिख डाली। इन चुनावों में उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिले वोट शेयर से लेकर उम्मीदवारों की उम्र और जीत के अंतराल तक के कई दिलचस्प आंकड़े सामने आए। 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर 15 फीसदी और कांग्रेस का 12 फीसदी था। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर बढ़कर 40 फीसदी से अधिक रहा और कांग्रेस का घटकर 6 फीसदी रह गया। सपा और बसपा भी वोट शेयर के मामले में भाजपा से काफी पीछे छूट गईं। जाहिर है, मतों के बीच का अंतराल यह प्रकट करता है कि भाजपा और विरोधी दलों के बीच लोगों के भरोसे का कितना बडा अंतर था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की शानदार जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गरीबोन्मुख नीतियों को जाता है। जनता ने जाति, मत-पंथ के बंधन से ऊपर उठकर विकास के लिए वोट दिया। मोदी देश के ऐसे सबसे कद्दावर नेता के रूप में सामने आये हैं जिसे समाज के सभी वगार्ें का समर्थन मिल रहा है।
उत्तर प्रदेश और उत्तरांखड में जहां भाजपा ने खुद के दम पर बहुमत हासिल किया, वहीं गोवा और मणिपुर में बडी पार्टी के रूप में उभरी कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने में कामयाबी हासिल कर इस बात का भी संकेत दे दिया कि कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व में न तो चुनाव जिताने की क्षमता है और न ही गठबंधन बनाने का सलीका। असल में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव, खासकर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से जाति और मजहबी राजनीति का समीकरण बनाकर चुनाव जीतने की कवायद होती रही, वह भी इस बार गलत साबित हुई। टीवी स्टुडियों में बैठकर जाति और मजहब के आधार पर जीत-हार की भविष्यवाणी करने वाले बुद्घिजीवी गलत साबित हुए और मतदाता अधिक परिपक्व इसी का परिणाम है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से लेकर यादव बहुल इलाकों में भी भाजपा को भारी सफलता मिली। जाट बहुल इलाकों में अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल एक सीट पर सिमट गया। बसपा ने दलित और मुस्लिम का जो गठजोड़ बनाने की कोशिश की, वह विफल रही। बसपा ने मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रख 99 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे तो समाजवादी पार्टी ने 80 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खडे किए, लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा को अधिक सफलता मिली।
उत्तर प्रदेश में 70 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 से 25 प्रतिशत और 73 सीटों पर 30 से 49 प्रतिशत है। इन 143 सीटों में 115 सीटों पर भाजपा को कामयाबी मिली। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 300 से अधिक और उत्तराखंड में 55 से ज्यादा सीटें हासिल कर यह जता दिया कि विपक्ष ने नोटबंदी को मुद्दा बनाकर गलत किया। नोटबंदी के फैसले के जरिये भाजपा ने उस गरीब तबके तक भी अपनी पहुंच बनाई जो उसका प्रतिबद्घ समर्थक नहीं था। नोटबंदी ने गरीबों को यह एहसास कराया कि यह सरकार दो नंबर का कारोबार करने वालों पर अंकुश लगाने और निर्धन-वंचित आबादी का हित करने के लिए प्रतिबद्घ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोगों ने पूरा भरोसा किया। इसकी भी कई वजहें हैं। मोदी सरकार के तकरीबन तीन साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। प्रधानमंत्री होते हुए भी मोदी ने स्वयं के परिवार को सत्ता के गलियारे से दूर रखा, तब जबकि देश में परिवारवाद राजनीति और लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बनकर खड़ा है। नोटबंदी पर भी गरीबों ने यह समझा कि अकूत धन जमा करने वालों से काला धन छीना जा रहा है।
कांग्रेस मुक्त भारत के बाद भाजपा के पास उन राज्यों पर कब्जा करने का सुनहरा मौका है जहां हमेशा क्षत्रपों की सत्ता रही है। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा को सत्ता से दूर करने के बाद अब फिलहाल भाजपा का अगला लक्ष्य ओडिशा, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य हैं। भाजपा मान रही है कि 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के लिए इन राज्यों में भी हिन्दी पट्टी की तरह कमल का खिलना जरूरी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 282 सीटें मिली थीं। यह 1984 के बाद किसी राजनीतिक दल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। पार्टी इस स्थिति में थी कि वह बगैर राजग के सहयोगियों के अपने दम पर केंद्र में सरकार बना सके। ओडिशा में हाल के दिनों में भाजपा का ग्राफ तेजी से चढ़ा है। पंचायत चुनाव इसके गवाह हैं, जिसमें भाजपा ने जहां सत्ताधारी बीजद के गढ़ में सेंध लगाई तो कांग्रेस को तीसरे नंबर पर छोड़ दिया। भाजपा को 2012 में 851 पंचायत सीटों में से सिर्फ 36 सीटें ही नसीब हो सकी थीं, मगर इस बार पार्टी ने 306 सीटें जीती हैं। वहीं बीजू जनता दल की सीटें 651 से घटकर 460 रह गईं। पश्चिमी बंगाल में वामपंथी पार्टियों के लगातार कमजोर होने के बाद भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभर रही है। यह बात तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को भी समझ में आ रही है। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि अब उनका मुकाबला वाम मोर्चे से नहीं बल्कि भाजपा से है। 2014 के बाद राज्य में हुए कुछ उप चुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ता दिखा है। गत अप्रैल में कांति दक्षिण विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा 31़2 फीसदी वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। 2016 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर पार्टी केवल 8़8 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई थी। चंडीगढ, गुजरात, महाराष्ट्र सहित भाजपा ने दिल्ली नगर निगम में भारी जीत हासिल की है, जो जनता में मोदी सरकार और भाजपा के प्रति भरोसा दिखाती है। भाजपा के मुकाबले विपक्ष, खासकर कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सिमटती जा रही है। कई राज्यों में तो कांग्रेस तीसरे और चौथे दर्जे की पार्टी बन कर रह गई है। पूर्वी भारत में भी भाजपा का विस्तार भारतीय राजनीति में भाजपा के शक्तिशाली राष्ट्रीय दल के रूप में स्थापित होने की गवाही दे रहा है।
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