|
सुरेंद्र सिंघल
उत्तर प्रदेश को उत्तराखंड तथा हरियाणा से जोड़ने वाला पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रमुख जिला सहारनपुर गत एक माह से हिंदू विरोधी ताकतों के निशाने पर है। इस जिले में 38 फीसदी आबादी मुस्लिम और 30 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग हैं। इसलिए राजनीतिक दलों और उनके नेताओं, खासकर मुस्लिम नेतृत्व की मंशा हमेशा ही दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की रही है जिसे पूरा करने के लिए वे हिंदुओं में बिखराव पैदा करने की चालें चलते हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद यहां से जनता पार्टी, जनता पार्टी (सेक्युलर), जनता दल एवं सपा उम्मीदवार के रूप में 6 बार लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। एक बार जरूर बसपा के मंसूर अली खान दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे लोकसभा में पहुंच सके थे। बाद में उन्हें मायावती ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। हाल के विधानसभा चुनाव से पहले के तीन चुनावों में सहारनपुर जिले में बसपा 3-4 सीटें जीतती रही थी, लेकिन यह पहला अवसर था जब वह अपना खाता भी नहीं खोल पाई।
इसी सहारनपुर का सड़क दूधली गांव पूरे उत्तर प्रदेश में ऐसा क्षेत्र है जहां इमरान मसूद जैसे उग्र तेवर वाले मुसलमानों ने पिछले 12 साल से दलितों को न तो आंबेडकर शोभा यात्रा निकालने दी है, और न ही कभी रविदास जयंती समारोह आयोजित करने दिए हैं। सहारनपुर के मुस्लिमों पर रशीद मसूद के भतीजे और वर्तमान में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष पूर्व विधायक इमरान मसूद का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। खुफिया एजेंसियों और आईपीएस अधिकारी डॉ़ अशोक कुमार राघव के मुताबिक सड़क दूधली के मुसलमानों को इमरान मसूद की ही शह है। लेकिन बसपा में जगह बनाने में नाकाम रहने वाले इमरान के चाचा रशीद मसूद इसी माह के शुरू में पार्टी में शामिल होने में सफल हो गए। सहारनपुर के सपा के नगर विधायक संजय गर्ग के अनुसार रशीद मसूद हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान सपा में होने के बावजूद बसपा से साठगांठ किए हुए थे और दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की जी-तोड़ कोशिश में लगे थे। सहारनपुर से बसपा संस्थापक कांशीराम को भी लोकसभा चुनाव में भाजपा के चौधरी नकली सिंह के हाथों शिकस्त झेलनी पड़ी थी। 1995 में जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह सपा-बसपा गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे उस दौरान कांशीराम ने इस संवाददाता से लंबी बातचीत में माना था कि भारत में कभी भी दलित-मुस्लिम गठजोड़ सफल नहीं हो सकता। मायावती के सियासी तौर पर लगातार नाकाम रहने और उलटे-सीधे गठजोड़ बनाने के कारण दलितों का बसपा से मोह भंग हुआ जिसके नतीजे में भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में और अब विधानसभा चुनाव में भारी सफलता मिली। भाजपा की यही सफलता स्थानीय मुस्लिम नेतृत्व को अखरती रही है और उसकी नीयत हिंदुओं के सौहार्द में दरारें डालने का काम करती है।
सहारनपुर में योजनाबद्व तरीके से माहौल बिगाड़ने का काम किया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले को अत्यन्त गंभीरता से लिया है। उन्होंने राज्य की शीर्ष नौकरशाही को असामाजिक तत्वों के मंसूबों को नाकाम करने में लगाया है, जिसके नतीजे सामने आने लगे हैं। उधर जिला प्रशासन भी इस राजनीतिक और समाज विरोधी साजिश को समझ गया है और उसी के अनुरूप नीति बनाकर सामाजिक सद्भाव स्थापित करने के प्रयासों में लगा है। उल्लेखनीय है कि योगी सरकार ने कथित तौर पर इन्हीं कोशिशें के तहत पिछली सरकारों द्वारा यहां तैनात डीआईजी, डीएम, एसएसपी और दो अतिरिक्त एसपी स्तर के अधिकारी हटा दिए हैं।
स्थानीय वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता नेता ठाकुर विक्रम सिंह कहते हैं कि छोटे-मोटे विवादों और मतभेदों के बावजूद हिंदू समाज एकजुट ही रहा है। सहारनपुर की रामपुर मनिहारन सुरक्षित सीट से जीते भाजपा के युवा विधायक देवेंद्र निम, जो दलित समाज के अंतर्गत जाटव बिरादरी से हैं, कहते हैं कि उन्हें अनुसूचित जातियों के साथ-साथ हिंदुओं की सभी बिरादरियों का समर्थन प्राप्त हुआ जिसके कारण बसपा से दो बार विधायक रहे रविंद्र मोल्लू, जो मायावती के भाई आनंद के कारोबार में साझीदार भी हैं, की पराजय हुई। विधायक निम कहते हैं कि उनकी जीत से इमरान मसूद और रशीद मसूद को काफी धक्का लगा है। उनकी बौखलाहट अब सहारनपुर में गत दिनों हुई हिंसा के रूप में साफ दिखाई दी। सहारनपुर में मुसलमानों का कट्टरपंथी तबका दलित-मुस्लिम गठबंधन के नाम पर हिन्दू समाज में दूरियां पैदा करने में लगा हुआ था। लेकिन उनकी मंशा कभी पूरी नहीं हो सकी। सहारनपुर में दलित-मुस्लिम आबादी वाले गांव सड़क दूधली में इस बार भाजपा और हिन्दू संगठनों ने 20 अप्रैल को दलितों के सहयोग से आंबेडकर यात्रा निकालने का प्रयास किया लेकिन मजहबी कट्टरवादियों ने यात्रा इस बार भी नहीं निकलने दी थी। उसके बाद से ही यह जिला हिंसा की चपेट में है। गत दिनों जिले में सामाजिक समरसता को तोड़ने की बड़ी साजिश सामने आई है। 5 मई को राजपूत और दलित बहुल गांव शब्बीरपुर में भी जातीय उन्माद पैदा कर जातीय संघर्ष की बड़ी घटना को अंजाम दिया गया। 9 मई को सहारनपुर नगर में एक बार फिर से खुद को दलित बताने वाले एक उग्र तबके ने कानून को अपने हाथ में लेकर जमकर हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ की। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक सहारनपुर में 2 साल पहले ‘भीम आर्मी’ नाम से एक अतिवादी ‘दलित संगठन’ की स्थापना की गई थी, जिसमें कुछ भटके नौजवान शामिल हैं। यह संगठन ‘दलित एकता’ के नाम पर समाज को तोड़ने और भाईचारे की भावना को नुकसान पहुंचाने में लगातार सक्रिय है। इसे बसपा के हाल के चुनाव में रामपुर मनिहारान सीट से हारे नेता रविन्द्र मोल्हू और एक मुस्लिम नेता का कथित संरक्षण प्राप्त है। पुलिस ने 10 मई को राजपूत सभा की ओर से रविन्द्र मोल्हू और ‘भीम आर्मी’ के चंद्रशेखर के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।
शब्बीरपुर में राजपूत-दलित संघर्ष के बाद सहारनपुर में हुए उपद्रव में ‘भीम आर्मी’ की भूमिका को उजागर होने के चलते पुलिस ने इस संगठन को गैरकानूनी घोषित कर दिया है। जांच में पता चला है कि यह संगठन पंजीकृत नहीं है। संगठन के लोग समाज को गुमराह करने की कोशिशों में लगे हैं। एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने बताया कि संगठन के बैंक खातों की जांच कराई जा रही है। पुलिस को पता चला कि संगठन के नाम पर समाज के लोगों से निजी खातों में लाखों रुपए एकत्र किए गए हैं। पुलिस की जांच में ‘भीम आर्मी’ की कार्यशैली को आपत्तिजनक पाया गया है। समूह से जुड़े लोगों पर पुलिस पैनी नजर रखे हुए है।
एसएसपी सुभाष चन्द दुबे और जिलाधिकारी नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने सहारनपुर में शांति भंग करने वाले तत्वों की पहचान का काम शुरू कर दिया है। उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 6 मई को प्रदेश के प्रमुख गृह सचिव देवाशीष पंडा और डीजीपी सुलखान सिंह को खासतौर पर सहारनपुर भेजा था। जिलाधिकारी नागेन्द्र प्रसाद सिंह ने बताया कि प्रशासन ने समाज के सभी लोगों से संवाद स्थापित करने के लिये तीन स्तर पर कार्य करने की योजना बनाई है। ल्ल
टिप्पणियाँ