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संन्यासी बना बाजार का नया ‘बाहुबली’

by
May 15, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 May 2017 13:03:04

बाबा रामदेव की अपील युवाओं में बहुत ज्यादा है। उनके उत्पादों का बड़ा खरीदार भी यही वर्ग है। इसी के दम पर बाबा रामदेव या पतंजलि यहां काम कर रही विदेशी कंपनियों को चुनौती दे पा रहे हैं

अजय विद्युत
इस समय देश-दुनिया में या तो बाहुबली-2 की धूम है या बाबा रामदेव के पतंजलि की। दोनों शुद्ध भारतीय और भारतीयता के ध्वजवाहक। देश के शहरों-गांवों की गलियों से अपार्टमेंट तक सुबह कहीं भी नजर डालिए, लोग बाबा का योग करते मिलेंगे। बाबा की आयुर्वेदिक दवाएं, तेल, शैम्पू, टूथपेस्ट, घी आदि का सालाना कारोबार 10,561 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा और पतंजलि का राजस्व पिछले साल से सौ प्रतिशत बढ़ जाएगा, इससे बड़ी-बड़ी बहुराष्टÑीय कंपनियां सदमे में हैं।

पतंजलि का राजस्व
2009-10
163 करोड़ रु.
2010-11
317 करोड़ रु.[

2011ंं-ं12
446 करोड़ रु.
ं
2012-13
850 करोड़ रु.

2013-14
1,200 करोड़ रु.

2014-15
2,006 करोड़ रु.

2015-16
5,000 करोड़ रु.

2016-17
10,561 करोड़ रु.

एक संन्यासी योगगुरु तक तो ठीक है। लेकिन बहुराष्टÑीय कंपनियों के लिए यह हजम कर पाना तब मुश्किल होता है, जब वह उनके क्षेत्र में कड़ी चुनौती दे और उनके हौसले पस्त कर दे। जहां वे कारोबार में 10-15 फीसदी की वृद्धि नहीं कर पा रहे हों और संन्यासी की कंपनी सौ फीसदी वृद्धि दर्ज करे। वह देश में आयुर्वेद, प्रकृति से समरस भारतीय जीवन शैली की चेतना जगाए और केवल मुनाफा बटोर रही बहुराष्टÑीय कंपनियों के हानिकारक उत्पादों के खिलाफ हल्ला बोले, उन्हें हाशिए पर पहुंचा दे— तब उनका संन्यासी के विरोध में उतरना स्वाभाविक है। क्या एक संन्यासी कारोबार के क्षेत्र में उतर सकता है और उस क्षेत्र में जमे दुनिया के तमाम देशों के सूरमाओं को चित कर सकता है? क्या कारोबार में भी शुचिता बरती जा सकती है?
देश-विदेश में ध्यान की अलख जगा रहे स्वामी चैतन्य कीर्ति कहते हैं, ‘‘संन्यास की एक बहुत पिटी-पिटाई भाषा है। त्याग की और पलायन की। इसे गीता की इस भाषा से बदल देना चाहिए कि संन्यास पलायन करना नहीं है। त्याग नहीं करना है, बल्कि जीवन को सघनता में जीना है। एक संन्यासी राजनीति और कारोबार के क्षेत्र में भी आ सकता है। लोगों का जीवन बचाने के लिए वह योद्धा भी हो सकता है। वह जहां होगा, वहीं संन्यास की सुगंध बिखेरेगा। दूसरों के लिए उसके जैसा प्रदर्शन कर पाना आसान नहीं होगा, क्योंकि उसने अपनी पकड़ छोड़ दी है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि आश्रम की पूरी व्यवस्था चलाते थे। हजारों गाय पालते थे, उत्पाद बनाते थे। उनका विक्रय होता था। दूसरों का जीवन समृद्ध करना संन्यासी और योगी की सहज प्रकृति है। बाहरी जगत, उसकी समृद्धि से उसे कोई द्वेष, शत्रुता या विरोध नहीं है।’’
रोजमर्रा के उपयोग में आने वाली वस्तुओं के कारोबार में पतंजलि ने ‘खेल के नियम’ बदल दिए हैं। चीजें सस्ती, अच्छी, भारतीयों के अनुकूल, जीवन शैली समृद्ध करने वाली और एक भारतीय ब्रांड के तले। बड़ी कंपनियों ने जहां लाखों-करोड़ों खर्च कर अपना आधा बजट जानी-मानी हस्तियों से उत्पादों का विज्ञापन कराने पर खर्च कर दिया, वहीं बाबा रामदेव खुद ही पतंजलि उत्पादों की गुणवत्ता की गारंटी लेते लोगों के समक्ष होते हैं। लोग उनकी बजाए बाबा पर अधिक भरोसा करते हैं, क्योंकि लोगों ने उन्हें ओशो की भाषा में ‘कल्याणमित्र’ के रूप में देखा और अनुभव किया है।
मैरिको के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी और इनक्रिएट वैल्यू एडवाइजर्स के संस्थापक मिलिंद सरवाते कहते हैं, ‘‘विदेशी कंपनियां उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए विज्ञापन पर अंधाधुंध पैसा खर्च करती हैं। इससे उत्पादों की कीमत काफी बढ़ जाती है। पतंजलि ने  विज्ञापन का फालतू खर्च बचाकर काफी कम दर पर उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाया और देश का बड़ा ब्रांड बन गया है।’’
पतंजलि का प्रकृति से जुड़ाव और आयुर्वेदिक उत्पादों का विज्ञापन खुद कर बाबा रामदेव ने यह भी साबित किया है कि बड़ी हस्तियों से विज्ञापन कराकर उत्पाद तभी बेचे जा सकते हैं, जब उस हस्ती का उन उत्पादों से कोई संबंध उपभोक्ता को मालूम हो। वरना उसके लिए भरोसा करना मुश्किल हो जाएगा। फिजूलखर्ची बंद कर और कम लाभ पर सस्ते उत्पाद पेश करने के अलावा पतंजलि ने गुणवत्ता के ऊंचे मानक भी अपनाए हैं। कुल मिलाकर बड़े खिलाड़ी पतंजलि की प्रगति देखकर घुटनों पर आ गए हैं। ऊपर से बाबा रामदेव की यह घोषणा कि ‘‘पतंजलि आयुर्वेद का लक्ष्य 2018 में 20,000 करोड़ का राजस्व हासिल करने का है।’’ दुनिया हैरत से कारोबार के क्षेत्र में एक योगी संन्यासी के शौर्य के उद्घोष को सुन रही है।      ल्ल

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