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ढहने लगा ताश का महल

by
May 15, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 May 2017 12:20:22

आम आदमी पार्टी में भगदड़ मची हुई है। उसके अनेक नेता पार्टी की नीतियों और भ्रष्ट आचरण पर खुलकर बोलने लगे हैं। यहां तक कि उनके अपने लोग ही भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। लेकिन पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल उनकी बातों को सुनने की बजाए, उन्हें ही पार्टी से खदेड़ रहे हैं

अवधेश कुमार
जब 9 मई को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की बात की तथा ट्वीट किया कि सत्य की विजय होगी तो ऐसा लगा, जैसे अपने पर, अपने ही एक साथी द्वारा लगाए गए आरोपों पर उसमें चर्चा होगी। लेकिन यह क्या? वहां तो इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का एक प्रारूप लाकर उसका उपहास उड़ाया जा रहा था। यह केजरीवाल की पुरानी रणनीति है— चर्चा में बने रहो तथा जो कुछ अपने पर आरोप है, उससे ध्यान हटाकर बहस को किसी और दिशा में मोड़ दो। किंतु कई बार अपने पापों पर परदा डालने में सफल होने वाले केजरीवाल इस बार असफल साबित हो गए। केवल मीडिया ने ही नहीं, दिल्ली और देश की जनता ने इसे कथनी और करनी में खाई रखने वाले एक नेता की असफल रणनीति के रूप में ही लिया। वास्तव में दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा द्वारा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर अपने एक मंत्री सत्येन्द्र जैन से दो करोड़ रुपए लेने सहित दूसरे साथियों पर जो आरोप लगाए गए हैं, उनसे मचा तूफान शांत होने का नाम नहीं ले रहा। हालांकि अभी भी ऐसे लोग हैं जिनके लिए सहसा यह विश्वास करना कठिन है कि जो अरविंद  कल तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाते थे, दूसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते थे, आज वे खुद अपने ही साथी के आरोप से कठघरे में खड़े हो गए हैं। हालांकि इस मामले में केजरीवाल के दाहिने हाथ और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कह रहे हैं कि जिस तरह से उन्होंने बेबुनियाद आरोप लगाए, वे जवाब देने के लायक तक नहीं हैं। कपिल मिश्रा कुमार विश्वास के करीबी माने जाते थे, लेकिन उन्होंने भी यह बयान दिया कि केजरीवाल कभी घूस लेंगे, यह मैं सोच भी नहीं सकता। वहीं अरविंद केजरीवाल के धुर विरोधी योगेन्द्र यादव ने भी कहा कि ऐसे आरोपों के लिए प्रमाण चाहिए। इस तरह देखा जाए तो अरविंद केजरीवाल के साथ इस मामले में काफी लोग हैं। यह भी कहा जा सकता है कि कपिल मिश्रा को चूंकि मंत्री पद से हटा दिया गया इसलिए वे खीझ में ऐसा आरोप लगा रहे हैं। किंतु खीझ में दूसरा आरोप भी तो लगा सकते थे। सत्येन्द्र जैन से ही धन लेने का आरोप क्यों लगाया? उन्होंने यह कहा कि जब मैंने केजरीवाल से पूछा कि आप पैसा क्यों ले रहे हैं तो उन्होंने कहा कि राजनीति में बहुत-सी बात उसी समय नहीं बताई जाती, बाद में बताई जाती है। कपिल मिश्रा केवल आरोप नहीं लगा रहे, बल्कि बाकायदा वे पहले उपराज्यपाल अनिल बैजल से मिले और उन्हें सब बातों से अवगत कराया, उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो जाकर उसे तथ्य दिए और उसके बाद वे सीबीआई तक चले गए।  
अगर कपिल मिश्रा केवल आरोप लगाकर रुक जाते तो इसकी गंभीरता कम हो जाती। लेकिन वे तो शिकायतकर्ता और गवाह दोनों बन चुके हैं। जो व्यक्ति इस सीमा तक जा चुका हो, उसे केवल हवा में बात करने वाला नहीं कहा जा सकता। उसे बखूबी पता है कि अगर उसने झूठी गवाही दी तो उसके खिलाफ मामला बन सकता है। अपने को सत्यवादी साबित करने के लिए ही लगता है, कपिल पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि पर अपनी पत्नी के साथ गए और बाद में गांधी जी की तस्वीर लगाकर अनशन आरंभ कर दिया। निस्संदेह, मामले के न्यायालय में जाने पर अनेक सवाल उठेंगे और कपिल को उन सबका उत्तर देना होगा। यह सवाल तो उठेगा ही कि केजरीवाल ने धन लेने के लिए वही समय क्यों चुना जब कपिल मिश्रा उनके पास हों या आने वाले हों? उन्हें धन लेना ही था तो वे इसके लिए कोई दूसरा समय चुन सकते थे। सवाल वाजिब है और इसका जवाब देना आसान नहीं है। संजय सिंह यही सवाल पत्रकारों के समक्ष उठा रहे थे। किंतु कपिल का कहना है कि केजरीवाल को विश्वास था कि यह तो हमें भगवान् की तरह मानता है, इसलिए संदेह नहीं करेगा। कुछ समय के लिए कपिल मिश्रा के आरोप को यहीं छोड़ दें। संजय सिंह तो यह भी कह रहे थे कि कपिल मिश्रा किस दिन और कब गए मुख्यमंत्री के घर गए ये तो बता दें, फिर उस दिन का सीसीटीवी फुटेज दिखा दिया जाएगा। कपिल मिश्रा ने जो शिकायत दर्ज कराई है, उसमें दिन, तिथि और समय तीनों अंकित हंै। यहां एक प्रश्न अपने आपसे करिए कि क्या हमको, आपको यह विश्वास है कि अरविंद केजरीवाल जिस ईमानदारी, सचाई, सदाचार और आदर्श की राजनीति का वादा कर सत्ता में आए थे, वाकई उनकी सरकार उस पर खरी उतर रही है? अगर आप निष्पक्षता से इसका उत्तर तलाशेंगे तो कम से कम आप हां तो नहीं कह सकते। ध्यान रखिए, सत्येन्द्र जैन पर हवाला से लेकर भूमि सौदे, अपनी बेटी को गलत तरीके से नियुक्त करने के साथ गलत बिल भुगतान कराने का मामला चल रहा है। उनके खिलाफ पहले भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो था, अब सीबीआई उनसे जुड़े स्थलों पर छापा मार चुकी है। हम यह नहीं कहते कि किसी के घर छापा पड़ने या उस पर मुकदमा हो जाने मात्र से ही वह दोषी हो जाता है, लेकिन आप आम आदमी पार्टी के ही कुछ नेताओं और विधायकों से सत्येन्द्र जैन के बारे में अकेले में बात करिए, वे स्वयं वो सारी बातें बोल देंगे जिसका आरोप उन पर लग रहा है। सत्येन्द्र जैन की अकूत संपत्ति को लेकर अनेक कहानियां सत्ता के गलियारे में तैरती
रहती हैं।
सत्येन्द्र जैन जैसे व्यक्ति को अपने मंत्रिमंडल में लेना ही  केजरीवाल के चरित्र को संदेह के घेरे में ला देता है। कपिल मिश्रा का कहना है कि सत्येन्द्र जैन ने ही उन्हें बताया कि उन्होंने केजरीवाल के रिश्तेदार की जमीन का सौदा कराया है। अगर यह सच है तो इसका मतलब इतना तो है कि मंत्री बनने के बावजूद सत्येन्द्र जैन संपत्ति की दलाली का काम कर रहे थे। कपिल मिश्रा के सारे आरोपों को कुछ क्षण के लिए अलग रख दीजिए। क्या अरविंद केजरीवाल सरकार के पांच मंत्रियों की दो साल में ही छुट्टी नहीं हो चुकी है? आखिर क्यों? केवल कपिल मिश्रा के बारे में कहा गया है कि वे जल विभाग को ठीक से संभाल नहीं पा रहे थे और विधायकों की इस बारे में शिकायतें थीं, लेकिन इसके अलावा जो मंत्री हटाए गए, उनमें से किसी को उनके प्रदर्शन के आधार पर नहीं हटाया गया। कोई फर्जी डिग्री मामले में फंसा और जेल गया,  कोई सेक्स सीडी कांड में फंसा, कोई घूस मांगने के आरोप में फंसा। तो ऐसा मंत्रिमंडल केजरीवाल ने बनाया था। ध्यान रखिए, मंत्री बनाते समय केजरीवाल को 67 में से उन्हीं लोगों को चुनना चाहिए था जिनकी विश्वसनीयता और योग्यता उनकी नजर में असंदिग्ध रही होगी। क्या केजरीवाल ने कोई दूसरी कसौटी बनाई थी? ऐसा तो होना नहीं चाहिए। भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करके सत्ता तक पहुंचने वाला व्यक्ति कम से कम ऐसे लोगों को तो मंत्री नहीं बनाएगा जिसकी ईमानदारी और सचाई पर उसको विश्वास नहीं होगा। जाहिर है, केजरीवाल से या तो भूलें हुर्इं या वे सत्ता में आने के साथ पिछले क्रांतिकारी भाषण, वादे और दावों को ताक पर रखकर इस मामले में भी राजनीति में व्यावहारिकता अपनानी पड़ती है, के सिद्धांत का वरण करने लगे। कपिल मिश्रा को कुछ भी कह दीजिए, लेकिन आज वे यह दावा करने की स्थिति में हैं कि केजरीवाल के मंत्रिमंडल में एकमात्र वही मंत्री रहे जिन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा या जिन पर किसी तरह का कोई मामला नहीं चल रहा है। शेष सारे पूर्व एवं वर्तमान मंत्रियों पर कोई न कोई आरोप है और उन पर मामले चल रहे हैं। बिना आग के कहीं भी धुआं नहीं उठता। जो आग है, वह हम सबको दिखाई दे रही है, केवल केजरीवाल और उनके समर्थकों को नहीं दिख रही है।  
स्वाभाविक है कि हर बार अरविंद केजरीवाल और उनके साथ कई कारणों से मजबूती से डटे दिखते उनके सहयोगी जो भी मामला खिलाफ उठे, उसके लिए  केन्द्र सरकार एवं विरोधियों को दोषी ठहराते हैं कि उनके खिलाफ जान-बूझकर ऐसा किया जा रहा है। कपिल मिश्रा के पीछे भी भाजपा की साजिश का शोर मचाया जा रहा है। सवाल है भाजपा को आम आदमी पार्टी के खिलाफ साजिश करने की क्या आवश्यकता है? जो पार्टी खुद ही अपने बनाए मानकों का एक-एक कर खून कर रही है और जनता की नजर में जिसकी साख न्यूनतम बिंदु पर है, उसके खिलाफ किसी तरह की साजिश की आवश्यकता ही नहीं। फिर शुंगलू समिति की रिपोर्ट पर क्या कहेंंगे? इस समिति ने साफ कहा है कि केजरीवाल सरकार द्वारा प्रशासनिक फैसलों में संविधान और प्रक्रिया संबंधी नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया गया। शुंगलू समिति ने अपनी रिपोर्ट में भ्रष्ट व्यवहार की बात उजागर की है। समिति ने केजरीवाल सरकार के कुल 440 फैसलों से जुड़ी फाइलों को खंगालकर यह निष्कर्ष निकाला। आम आदमी पार्टी के नेता इस समिति का भी उपहास उड़ाते हैं। लेकिन ध्यान रखिए, पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग द्वारा गठित इस समिति में पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक वीके शुंगलू के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रदीप कुमार शामिल थे। इतने महत्वपूर्ण पद पर काम कर चुके व्यक्ति के सम्मान और साख के बारे में किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है। इन तीनों व्यक्तियों से आप राजनीतिक पूर्वाग्रह की उम्मीद तो नहीं कर सकते। यहां इस रिपोर्ट का विस्तार से वर्णन नहीं किया जा सकता। लेकिन इसने केजरीवाल सरकार के काम करने में बरती गई अनियमितताओं का जैसा तथ्यवार विवरण सामने रखा है, उससे दिल दहल जाता है। रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार द्वारा शासकीय अधिकारों के दुरुपयोग के मामलों में अधिकारियों के तबादले, तैनाती और अपने करीबियों की पदों पर नियुक्ति करने में कानूनों और प्रक्रियाआें के पालन न करने का साफ जिक्र किया गया है। आम आदमी पार्टी के कार्यालय को लेकर केजरीवाल एवं उनके साथियों ने बहुत शोर मचाया कि उनसे उनका कार्यालय तक छीना जा रहा है। जरा शुंगलू रिपोर्ट को देखिए। इसमें कहा गया है कि केजरीवाल सरकार ने आम आदमी पार्टी को दफ्तर देने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई वही अवैध है। समिति के अनुसार दिल्ली सरकार ने इसके लिए पार्टियों को दफ्तर के लिए जमीन देने की बाकायदा नई नीति बनाई जिसमें यह भी कहा गया कि जमीन पाने योग्य पार्टियों को 5 साल तक कोई इमारत या बंगला दिया जा सकता है क्योंकि इतने समय में वह अपनी आवंटित जमीन पर दफ़्तर बना सकती हैं। इसके अनुसार यह साफ है कि राजनीतिक पार्टी को जमीन देने का फैसला इसलिए लिया गया ताकि आम आदमी पार्टी को सरकारी आवास मिल सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 जनवरी, 2016 को आम आदमी पार्टी को यह घर मिल गया, वह भी पूरी साज-सज्जा के साथ जैसे किसी मंत्री को मिलता है। कैबिनेट फैसले में साज-सज्जा का जिक्र नहीं है तथा फाइल में किराए का भी कोई उल्लेख नहीं है। ऐसी तमाम बातें हैं जिनसे केजरीवाल की सदाचार, ईमानदार और आदर्श राजनीति की धज्जियां उड़ जाती हैं। इसमेंं सत्येन्द्र जैन की बेटी सौम्या जैन की नियुक्ति को हर तरीके से अवैध और अनैतिक बताया गया है। बिंदुवार बताया गया है कि यह नियुक्ति किस तरह पक्षपातपूर्ण थी। सीधे-सीधे कहा जाए तो भारत की तीन मान्य शीर्ष संस्थाओं के पूर्व प्रमुखों की समिति ने तथ्यों और नियमों के आलोक में केजरीवाल सरकार के चेहरे पर ऐसी कालिख पोती है जिससे वह किसी तरह बाहर नहीं निकल सकती। दलील चाहे जो भी दें, केजरीवाल के पास शुंगलू समिति की काट के लिए मान्य तर्क हैं ही नहीं।  वास्तव मेंं केजरीवाल के रूप में देश में एक ऐसे व्यक्ति का उदय हुआ जिसने देश के एक बड़े वर्ग को नई राजनीति का सपना दिखाया, जिसने दिल्ली को भ्रष्टाचार-मुक्त प्रदेश बनाकर एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत करने का वादा किया ताकि उसके आधार पर वह देश पर शासन करने का दावा कर सके। उसकी सरकार का ऐसा हश्र भारतीय राजनीति के लिए कोई सामान्य त्रासदी नहीं है। हालांकि अरविंद केजरीवाल पर अण्णा अनशन अभियान के समय से नजर रखने वालों के लिए इसमें आश्चर्य का कोई तत्व नहीं है।
आज आप नजर उठाकर देख लीजिए, अण्णा अभियान के समय जो चेहरे अरविंद और मनीष के साथ दिखते थे, उनमें से कितने साथ हैं, तो आपको इनकी कार्यशैली और इनके चरित्र का बहुत हद तक प्रमाण मिल जाएगा। दरअसल, केजरीवाल ने पार्टी पर पूरी तरह अपनी पकड़ बनाए रखने की एकाधिकारवादी नीति के तहत उन्हीं लोगों को महत्व दिया और चुनाव में टिकट भी दिए जो उनकी हां में हां मिला सकें। उनमें कौन ईमानदार है, जिस राजनीति की वे बात कर रहे हैं, उस पर कौन खरा उतर सकता है, किसके पास भविष्य की बेहतर सोच है तथा सत्ता की मादकता में भी कौन बचा रह सकता है, इन सबका विचार करने की कोई उन्होंने आवश्यकता महसूस नहीं की। आदर्श और ईमानदारी की बात करते हुए केजरीवाल ने वह सब किया जो एक व्यक्ति पर आधारित दूसरे क्षेत्रीय दल करते हैं। ऐसे सारे लोग पार्टी से बाहर हो गए या कर दिए गए जो कोई प्रश्न उठा सकते थे। तो इसका हश्र हम आज देख रहे हैं। वास्तव में कपिल मिश्रा प्रकरण तो घनीभूत हुई सड़ांधों का एक हल्का विस्फोट है। यह प्रकरण न होता तब भी केजरीवाल के नेतृत्व वाली आआपा एवं दिल्ली सरकार से नैतिकता, आदर्श, सदाचार…..के आवरणों के चीथड़े उड़ रहे थे।     (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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