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जनशक्ति, जलशक्ति, ऊर्जाशक्ति, ज्ञानशक्ति और रक्षाशक्ति के जरिए गुजरात सरकार ने वह कर दिखाया है, जिसकी चर्चा भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में होती है। गांवों में भी 24 घंटे बिजली देना और सूखाग्रस्त कच्छ में पाकिस्तान की सीमा तक पानी पहुंचा देना कोई साधारण काम नहीं हैं। गुजरात दिवस के अवसर पर गुजरात की विकास यात्रा पर एक नजर
किशोर मकवाणा
इतिहास गवाह है कि एक दूरदर्शी और सक्षम नेतृत्व किसी प्रांत और उसकी ख्याति को कहां से कहां पहुंचा सकता है। गुजरात के साथ यह बात पूरी तरह लागू होती है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच गुजरात दुनियाभर में ख्याति प्राप्त कर अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करे, तो इसका श्रेय स्वाभाविक रूप से दूरदर्शी नेतृत्व को ही जाता है। गुजरात का सौभाग्य है कि उसे नरेंद्र मोदी जैसा दूरदर्शी नेतृत्व मिला। आज वही मोदी भारत के विकास का भी नया अध्याय लिख रहे हैं। मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने विकास का जो खाका तैयार किया था, उस पर गुजरात आज तीव्रगति से दौड़ रहा है। नरेंद्र मोदी के बाद गुजरात की बागडोर संभालने वालीं गुजरात की प्रथम महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने गतिशील गुजरात का नारा देकर गुजरात के विकास की गति को और तेज किया। उनके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री विजयभाई रूपाणी ने विकास को और अधिक गति दी है। आज उनके नेतृत्व में गुजरात एक समृद्ध, शक्ति संपन्न राज्य बनकर देश को शक्ति प्रदान कर रहा है।
विकास यात्रा
अक्तूबर, 2001 में राज्य की कमान संभालने वाले नरेंद्र मोदी के 12 वर्ष के शासन में गुजरात ने देश ही नहीं, अपितु विश्व स्तर पर विकास के सवार्ेच्च शिखर हासिल करने के साथ ही नए कीर्तिमान स्थापित किए। उनके इन्हीं कार्यों को देखते हुए पूरे देश के लोग नरेंद्र मोदी के प्रशंसक बन गए। यही कारण रहा कि वे आज प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री के रूप में वे जो कार्य कर रहे हैं, उन पर जनता की मुहर भी लग रही है। आज पूरे देश में परिवर्तन का एक नया ही माहौल तेजी से फैलता जा रहा है। परिवर्तन कोई राजनीतिक परिवर्तन नहीं, बल्कि यह देश की गरिमा और देश के स्वाभिमान को विश्व स्तर पर स्थापित करने की क्षमता से लैस नेतृत्व को स्थापित करने वाला परिवर्तन है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बदले हुए वातावरण का आधार है गुजरात और देश का समर्पित नेतृत्व। गुजरात के विकास की चर्चा आज पूरी दुनिया में हो रही है। सर्वांगीण विकास के केंद्र में होता है-पंचामृत। इसमें जनशक्ति, जलशक्ति, ऊर्जाशक्ति, ज्ञानशक्ति और रक्षाशक्ति शामिल हैं। नरेंद्र मादी ने कमान संभालते ही इसी पंचामृत का नया विचार प्रशासन के सामने रखा।
इसी पंचामृत के सिद्धांत पर चल कर गुजरात के कृषि, सिंचाई, जलापूर्ति, ऊर्जा, शिक्षा, सड़क एवं परिवहन, स्वास्थ्य, राजस्व, पंचायत तथा ग्रामीण विकास, मत्स्य उद्योग, वन, समाज कल्याण आदि विभागों ने पिछले 40 वर्ष में जो उपलब्धियां हासिल नहीं की थीं, वे मोदी के कार्यकाल में हासिल कीं। शिक्षा, अनुसंधान तथा वितरण के बुनियादी कामकाज से आज राज्य की कृषि विकास दर 10 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है। एक समय औसत वार्षिक कृषि मूल्य उपार्जन 9,000 करोड़ रुपए था, वह आज एक लाख करोड़ रुपए पर पहुंचा है। सिंचाई के पानी के साथ-साथ 9,000 से ज्यादा गांवों में नर्मदा का पेयजल पहुंचने लगा है। ज्योति ग्राम योजना से गुजरात के सभी गांवों को 24 घंटे थ्री फेज से बिजली मिल रही है। इसी प्रकार राजस्व विभाग में ई-धरा, किसानों को छूने वाले राजस्व कानूनों में सुधार, पंचायत विभाग में ग्रामीण सचिवालय की कल्पना से लेकर ई-ग्राम, विश्वग्राम जैसी योजना, वन विभाग में वनबंधु योजना, मत्स्य उद्योग विभाग में सागरखेडू योजना, स्वास्थ्य विभाग में कन्या भ्रूणहत्या निरोध हेतु प्रबल अभियान, शिक्षा विभाग में कन्या शिक्षा अभियान, सड़क एवं भवन विभाग में प्रगति-पथ जैसी योजनाओं से आज गुजरात विकास के नए अध्याय लिख रहा है।
ज्ञानशक्ति
राज्य सरकार ने ज्ञानशक्ति को बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के उपाय किए। शिक्षा के क्षेत्र में ढांचागत सुविधाएं बढ़ाई गईं, गुजरात ग्लोबल एजुकेशन एंड एंप्लायमेंट बोर्ड, ज्ञानरथ प्रोजेक्ट, दूरंतर शिक्षा, विद्यालक्ष्मी योजना, सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा दिया गया। लड़कियों की शिक्षा में गुणात्मक सुधार करने के उद्देश्य से कन्या शिक्षा, शाला प्रवेशोत्सव जैसे अभियान शुरू किए गए। फलस्वरूप कन्या शिक्षा की साक्षरता दर में वृद्धि हुई, वहीं एक से पांचवीं कक्षा तक स्कूल छोड़ने वाली छात्राओं की संख्या भी घटी। पहली कक्षा में प्रवेश पाने वाली प्रत्येक कन्या को एक बॉण्ड मिलता है। जब वह कन्या सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी कर लेती है तो उस बॉण्ड की रकम ब्याज सहित उसे मिलती है। इसके अलावा गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले परिवारों की कन्याओं को स्कूल में दाखिले के बाद से 60 किलो अनाज मुफ्त दिया जाता है।
शिक्षा को व्यवसाय का माध्यम समझ बैठे और शिक्षा को मंडी समझकर व्यापार करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके शिक्षा का शुद्धिकरण किया गया। जो बच्चे गणित, विज्ञान जैसे विषयों में कमजोर पाए गए, उन्हें खास प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रकार राज्य की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार का सफल प्रयास हुआ। उच्च शिक्षा में और राज्य से बाहर के पाठ्यक्रमों में गुजरात के युवा पीछे न रह जाएं, इसके लिए गणित-विज्ञान जैसे विषय अंग्रेजी भाषा में शामिल किए गए। प्राथमिक स्कूल के बच्चों से लेकर उच्च शिक्षा पाने वाले छात्रों तक को दुर्घटना समूह बीमा योजना में शामिल किया गया है। ऐसा केवल गुजरात में ही हुआ है। इसके अलावा वनवासी क्षेत्रों में शिक्षण संस्थान और राज्य के अनेक हिस्सों में विश्वविद्यालय खोले गए।
जलशक्ति
राज्य सरकार ने सरदार सरोवर के साथ जल संचय की विभिन्न योजनाओं से राज्य की सूखी धरती को सुजलाम्-सुफलाम् बनाने का जो सपना संजोया, उसके फल आज गुजरात को मिलने लगे हैं। एक समय राज्य में ऐसा भी था कि एक घड़ा पानी के लिए महिलाओं-बेटियों को मीलों दूर जाना पड़ता था। किसानों को सैकड़ों फुट नीचे से पानी खींचकर खेती करनी पड़ती थी। सभी जलाशय और जल स्रोत सूख जाते थे। जल संचय के लिए अनेक कदम उठाए गए, पुरानी बावडि़यों को पुनर्जीवित करने का अभियान चलाया गया। इन उपायों से पिछले पांच वर्ष में करोड़ों घन मीटर बारिश का पानी जमा हो सका। इस कारण सौराष्ट्र, उत्तर गुजरात तथा पूर्वी गुजरात के अनेक इलाकों में बोरवेल-कुएं पानी से लबालब हैं। जिन कुओं में पहले रस्सी छोटी पड़ जाती थी, वहां आज हाथ बढ़ाकर अंजलि भरकर पानी पिया जा सकता है। राज्य में बंूदों से सिंचाई को बढ़ावा दिया गया। इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है।
ऊर्जाशक्ति
गुजरात में बिजली उत्पादन तथा बिजली वितरण क्षेत्र में गुणात्मक सुधार के परिणाम दिखने लगे हैं। गैस के जरिए बिजली बनाने की ठोस व्यवस्था की गई। सरदार सरोवर बांध से भी बिजली पैदा की जा रही है। इसके अलावा पवन चक्की द्वारा ऊर्जा प्राप्ति की दिशा में भी निश्चित कदम उठाए गए। कल्पसर योजना के तहत समुद्री लहरों के जरिए 5,000 मेगावाट बिजली पैदा करने का वर्तमान सरकार ने जो संकल्प लिया, उस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है। राज्य में बिजली चोरी रोकने के लिए ऊर्जा विभाग ने जो व्यवस्था की और जो कठोर कदम उठाए, उसके कारण बिजली चोरी की घटनाएं अब समाप्त सी हैं।
रक्षाशक्ति
वैसे तो गुजरात की छवि एक शांतिप्रिय राज्य की ही है। इसके बावजूद पूर्व के वर्षों में राज्य की शांति भंग करने के कोई कम प्रयास नहीं हुए। खासकर पड़ोसी राष्ट्रों की ओर से आतंकवाद का भय गुजरात ने 2001-02 में अनुभव किया है। दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति द्वारा आतंकवाद को दबाया नहीं जाता तो आज गुजरात भी आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बन गया होता। आतंकवाद का सामना करने के लिए चेतक कमांडो का गठन किया गया। प्रत्येक जिले में महिला पुलिस थाने बनाए गए। सीमा सुरक्षा को मजबूत बनाने और सीमा पार से होने वालीं देश-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए सीमावर्ती गांवों का शक्ति ग्राम के रूप में विकास किया गया। गुजरात कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट यानी 'गुजकोक' द्वारा संगठित अपराधों पर नियंत्रण के लिए कड़े कदम उठाए गए। इन कारणों से आज गुजरात शांत है। यही कारण है कि आज विश्व के उद्योगपतियों की नजर राज्य की शांति के कारण गुजरात पर टिकी है। वायब्रेंट गुजरात के तहत करोड़ों रुपए का मूल्यवान पूंजीनिवेश हुआ और आज उसके कारण अनेक उद्योग काम कर रहे हैं।
जनशक्ति
राज्य की जनशक्ति को संगठित और रचनात्मक कार्य में लगाने के लिए भी अनेक कदम उठाए गए। तभी यह राज्य अनेक आपदाओं का सामना करके भी आगे बढ़ रहा है। जनजागरण से ही राज्य में तमाम चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो रहे हैं। गुजरातभर में यह महसूस किया जा सकता है कि जनशक्ति क्या चीज होती है। फलस्वरूप ग्रामीण विकास के लिए आलस्य झाड़ कर प्रशासन भी गतिशील हुआ है। वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मुख्यमंत्री सचिवालय में बैठकर गांव के लोगों के साथ संवाद करते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आती है और वे विकास के लिए तत्पर हो जाते हैं। समरस गांव योजना को जनता और पंचायतों का उत्साहपूर्ण समर्थन मिला है। राज्य की 5,000 से अधिक ग्राम पंचायतें समरस बन चुकी हैं। राज्य में 18,000 से अधिक गांवों में ग्राम सभाएं आयोजित हुईं। 'वेस्ट से बेस्ट' की तर्ज पर गोबर को ऊर्जा के स्रोत में बदलने का नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया, जिसमें प्राकृतिक खाद, गोबर-गैस और बिजली के उत्पादन की प्रक्रिया बनाकर गांव को ऊर्जा ग्राम बनाने का विचार है। ग्रामीण सड़कों के शत-प्रतिशत लक्ष्य पूर्ण करने में गुजरात देश का पहला राज्य बना, तो पहली बार समर्थन मूल्य पर खरीद की पहल राज्य सरकार ने करके कृषकों को सहारा दिया। ई-गवर्नेंस जैसा नया शब्द प्रयोग भी गुजरात की जनता ने इसी समयावधि में सुना। जनता की सुख-सुविधा के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के लिए भी उद्देश्य तय किए गए। इसमें बाल मृत्यु दर घटाना, माता के स्वास्थ्य का स्तर ऊंचा लाना, जनसंख्या नियमन प्रयोगशालाओं का आधुनिकीकरण, आयुर्वेदिक फार्मेसी का आधुनिकीकरण, आयुर्वेदिक वनस्पति उद्यान का विकास करना, आयुर्वेदिक अस्पतालों का विकास, आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक पद्धति के नए दवाखाने शुरू करना आदि शामिल थे।
वर्षा की कमी के कारण राज्य के अधिकांश हिस्से पहले सूखे से प्रभावित रहतेे थे। मध्य एवं पूर्व गुजरात में खासकर वडोदरा, पंचमहल, भरुच, नर्मदा, खेड़ा, आणंद एवं अमदाबाद जिलों में फसलें बर्बाद हो जाती थीं। मुख्यमंत्री ने खेतों तक नर्मदा का पानी पहुंचाने के लिए इंजीनियरों को निर्देश दिया। इसके लिए जो भी करना चाहिए था वह किया गया।
कच्छ में नर्मदा जल
कच्छ की सीमा पाकिस्तान से लगती है। यहां वर्षा बहुत कम होती है। इसलिए यह क्षेत्र सूखाग्रस्त ही रहता है। वहां रहने वाले लोगों और सैनिकों के लिए पहले ऊंटों के जरिए पानी पहुंचाया जाता था। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समस्या का गहरा अध्ययन किया और वहां तक पाइप के जरिए पानी पहुंचाने का निर्णय लिया। फलस्वरूप 18 मई, 2003 को कच्छ की सूखी धरती पर नर्मदा का जल पहुंचा। वह दिन कच्छी मांडुओं (कच्छ की जनता) के लिए ऐतिहासिक और अविस्मरणीय था। आज कच्छ की सीमा तक पानी पहुंच गया है।
वस्त्र उद्योग में आगे
गुजरात का सूरत शहर सूती, रेशमी, जरीदार कपड़ों, सोने और चांदी की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। सूरत के हीरा उद्योग ने प्रवासी मजदूरों को अपनी और आकर्षित किया है। वर्तमान में सूरत शहर देश में वस्त्र निर्माण में प्रथम स्थान पर है। यहां हर प्रकार के वस्त्रों का निर्माण होता है। सूरत में पूरे भारत के लोग रहते हैं। इसलिए इसे 'लघु भारत' के नाम से भी जाना जाता है। राजधानी दिल्ली में आज भी अनेक जगहों पर टैंकरों के जरिए पीने का पानी पहुंचाया जाता है। वहीं मोदी ने केवल दो साल के अंदर गुजरात में कच्छ के रण तक पाइप के जरिए पानी पहुंचा दिया था। ऐसी मिसाल भारत में बहुत कम दिखती है। कहना न होगा, अल्प समय में गुजरात ने पंचामृत के जरिए सफलता के असाधारण सोपान तय किए हैं।
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