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हिंदू-बहुल जम्मू क्षेत्र पर भी जिहादियों की नजर पड़ चुकी है। जितनी जल्दी हो इनकी नजर उतारी जाए, वरना घाटी की तरह जम्मू भी अशांत हो जाएगा
जम्मू से विशेष संवाददाता
जम्मू-कश्मीर में जिहादी आतंक आज प्त्थरबाजों के जरिए चलाया जा रहा है जिसका सुरक्षाबल अपने स्तर पर प्रतिकार कर रहे हैं। लेकिन इसके पीछे कौन-सी ताकतें हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। अलगाववादी तत्व और हुर्रियत जिसकी शह पर चल रहे हैं उसके सूत्र सीमा पार से जुड़े हुए हैं। लेकिन इस परिदृश्य को बिगाड़ने में, मजहबी उन्माद को खाद-पानी देने में प्रदेश में तेजी से उभरे मदरसों की भी बड़ी भूमिका मानी जा रही है।
उल्लेखनीय है कि 1990 में जब आतंकवाद चरम पर था तब राज्य में राष्टपति शासन लगाया गया था। तब राज्यपाल का पद ग्रहण करते ही श्री जगमोहन ने एक कड़ा फैसला लिया था। उन्होंने जमाते इस्लामी की देखरेख में चलने वाले सभी 900 के लगभग मदरसों को बंद कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और विकास कार्यों को गति देने के लिए अनेक पग उठाए थे।
तब मदरसों को इसलिए बंद किया गया था कि क्योंकि पता चला था कि इन्हीं के जरिए बच्चों में मजहबी जहर भरा जा रहा था। जगमोहन द्वारा बंद कराए गए मदरसे कई वर्ष तक जड़ रहे। 1996 तक राज्य में यही स्थिति रही। इसके बाद कुछ मदरसे खुलने लगे थे। इसमें गति 2004 के बाद आई, जब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में संप्रग सरकार आई। उन दिनों केंद्र सरकार ने ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ के नाम पर मदरसों को सरकारी मदद देने की घोषणा की। इसके बाद तो जम्मू-कश्मीर में नए सिरे से मदरसे खुलने लगे। एक सरकारी रपट के अनुसार 2008 में राज्य में बहुत थोड़े मदरसे थे। किन्तु सरकारी मदद मिलने के कारण पांच वर्ष के अंदर राज्य में लगभग 500 मदरसों का जाल बिछ गया। उनमें पढ़ाने वाले मौलवियों की संख्या 836 और छात्रों की संख्या 11,800 थी। ये मदरसे मुख्य रूप से अनंतनाग, बारामूला, श्रीनगर, डोडा, पुंछ जैसे संवेदनशील जिलों में खोले गए।
एक जानकारी के अनुसार अब इन जिलों में मदरसों की संख्या 1,200 से भी अधिक हो गई है। इनमें कितने छात्र पढ़ते हैं, इसका अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि नियमित छात्रों के अतिरिक्त छुट्टियों में बड़ी संख्या में इनमें मजहबी शिक्षा के लिए भी छात्र आते हैं। इन मदरसों में पढ़ाने वाले मौलवी कौन हैं, ये लोग किस संगठन से जुड़े हैं और कैसी शिक्षा दी जा रही है। इन सबकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। ज्यादातर मदरसे मस्जिदों या अन्य मजहबी संस्थानों से जुड़े हैं। घाटी में जारी गड़बड़ी, विशेषकर पत्थरबाजी करने वालों में बड़ी संख्या युवाओं की है। ये युवा 15 से लेकर 30 वर्ष तक के बताए जाते हैं। घाटी में होने वाले विरोध प्रदर्शनों में भी इन युवाओं को आगे रखा जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि ये युवा मदरसों के ही उत्पाद हैं। इन्हीं बच्चों से दीवारों पर देशद्रोही और सैनिकों के विरुद्ध नारे लिखवाए जाते हैं। एक रपट के अनुसार पत्थरबाजों ने लगभग 700 सरकारी शिक्षण संस्थानों को नुकसान पहुंचाया है, उनको आग के हवाले किया है। गत जुलाई से लेकर अब तक 46 सरकारी शिक्षण संस्थानों में आग लगाई गई है।
पर दिलचस्प तथ्य है कि आज तक इन लोगों ने किसी मदरसे में तोड़फोड़ तक नहीं की है। इससे यह साबित होता है कि इन लोगों के मदरसों से संबंध हैं। यहां एक और बात भी उल्लेखनीय है कि विरोध प्रदर्शनों और पत्थरबाजी के दौरान जितने भी लोग मारे गए हैं या घायल हुए हैं, उनमें 80 से 90 प्रतिशत बच्चे हैं, ज्यादातर बच्चे गरीब या मध्यमवर्गीय परिवारों के। अमीर परिवार या किसी नेता के परिवार से इन प्रदर्शनों में कोई नहीं जाता है। इस संबंध में एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा है कि घाटी में देशविरोधी अभियान चलाने वाले अलगाववादियों और उन जैसे लोगों के बच्चे राज्य या देश के दूसरे हिस्सों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और शेष सरकारी नौकरी कर रहे हैं।
एक बात यह भी देखने को मिल रही है कि जहां जम्मू क्षेत्र में भी मदरसे और मजहबी स्थल बनाने की गति बढ़ गई है। वहीं दूसरी ओर, रोहिंग्या मुसलमानों को भी जम्मू में तेजी से बसाया जा रहा है। कह सकते हैं कि जम्मू क्षेत्र पर भी जिहादियों की नजर है। इसे नासूर बनने से पहले रोका जाना जरूरी है। ल्ल
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