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आतंकवाद से लड़ने के लिए सऊदी अरब ने नाटो की तर्ज पर एक सैन्य संगठन बनाया है। इसकी अगुआई सऊदी अरब करेगा जो खुद दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। तिस पर आतंकवाद के मामले में सबसे अविश्वसनीय माने जाने वाले पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल राहील शरीफ को सैन्य अभियान की कमान सौंपी गई ह
सतीश पेडणेकर
खुद मियां मुसीबत, औरों को दे नसीहत। आतंकवाद के खिलाफ बने मुस्लिम देशों के संगठन 'इस्लामिक मिलिट्री अलाएंस टू फाइट टेररिज्म' (आईएमएएफटी) के बारे में कुछ ऐसा ही है। यह सैन्य गठबंधन नाटो की तर्ज पर बनाया गया है। 2015 में सऊदी अरब ने ऐलान किया था कि वह दुनिया के 39 इस्लामी देशों की इस्लामी सेना तैयार करेगा। इस सैन्य गठबंधन का मकसद इन देशों के बीच सुरक्षा मामलों पर सहयोग, सैन्य प्रशिक्षण, हथियारों का लेन-देन करना है। इसका मकसद नाटो जैसा है।
मान लीजिए, किसी एक देश पर आतंकी हमला होता है तो उस आतंकी संगठन को खत्म करने के लिए सभी देशों के संसाधन इस्तेमाल होंगे। इसमें आवश्यक सैनिक सहयोग दिया जाएगा। यह तय होगा कि दहशतगर्दी के खिलाफ उलेमाओं का इस्तेमाल कैसे किया जाए। हालांकि, कहा तो यही जा रहा है कि इस गठजोड़ का मकसद आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई छेड़ना है। इस तरह कहने के लिए यह आतंकवाद के खिलाफ एक किस्म का सैनिक संगठन है। इसमें इस्लामी जगत के मध्य-पूर्व से बांग्लादेश तक के मुस्लिम देश शामिल होंगे। लेकिन इस गठबंधन का असली चेहरा अब सामने आया है, जिसे देखने के बाद 'करेला और नीम चढ़ा' कहावत बरबस याद आती है। 2016 में राहील शरीफ पाकिस्तानी सेना के जनरल पद से सेवानिवृत्त हुए। वे इस इस्लामी सैनिक गठबंधन की कमान संभालेंगे और उनकी तैनाती सऊदी अरब में होगी। है न अजीब सी बात? आतंकवाद से लड़ने के लिए सैनिक संगठन को सऊदी अरब ने तैयार किया है जो खुद दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। जबसे सऊदी के रेगिस्तान में पैट्रोडॉलरों की बाढ़ आई है, वह दुनियाभर में इस्लाम के सबसे कट्टर संस्करण वहाबियत के प्रचार के लिए बेतहाशा पैसा फूंक रहा है। उस पैसे से दुनियाभर में आतंकवादी संगठन पैदा हो गए हैं। यहां हम आपको याद दिला दें कि अलकायदा, आईएसआईएस, बोको हराम, तालिबान, अल शबाब, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे बड़े आतंकी संगठन वहाबी ही हैं। इनका संबंध कहीं न कहीं सऊदी पैसे के साथ है। इसके अलावा आतंकवाद के मामले मंे सबसे ज्यादा अविश्वसनीय पाकिस्तान के पूर्व सैन्य प्रमुख को कमान सौंपा जाना इसकी पुष्टि करता हैै। पाकिस्तान आतंकवाद ऐसा अजायबघर है, जहां हर तरह का आतंकवाद मौजूद है।
अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक यह मानते हैं कि आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान दोहरी भूमिका निभा रहा है। एक तरफ तो वह आतंक के खिलाफ जंग लड़ने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में चल रहे अभियान का हिस्सा होता है और इसके नाम पर अरबों डॉलर की सैन्य सहायता राशि डकार जाता है। दूसरी तरफ, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के महानायक ओसामा बिन लादेन को अपने देश में गुप्त रूप से पनाह देकर आतंक के खिलाफ लड़ाई से गद्दारी भी करता है। कुछ लोग पाकिस्तान को आतंकवाद की उद्गम स्थली कहते हैं, जहां से अफगानिस्तान और भारत में आतंकवाद का निर्यात हुआ। वहीं, कुछ कहते हैं कि 'पाकिस्तान आतंकवाद का शिकार' बन रहा है। इस दोहरी भूमिका के कारण वह अपनी विश्वसनीयता खो बैठा है। बढ़ते आतंकवाद के कारण उसकी गिनती नाकाम देशों में होती है। आतंकवाद पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है। ऐसा देश आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का नेतृत्व कैसे कर पाएगा?
सऊदी अरब ने जब यह गठबंधन बनाने की घोषणा की थी, तब पाकिस्तान का नाम बिना मंजूरी के इसमें शामिल कर लिया गया था। लेकिन वह मध्य-पूर्वी देशों की राजनीतिक रस्साकशी में शामिल होने को लेकर पहलेे पसोपेश में था कि इसमें शामिल हो या नहीं। शुरुआत में इसे लेकर चीजें साफ नहीं थीं, फिर बाद में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपनी रजामंदी दे दी। हालांकि यह तय नहीं था कि पाकिस्तान सेना के सेवानिवृत्त जनरल को इस सैन्य संगठन में इतने बड़े ओहदे से नवाजा जाएगा। जाहिर है कि सऊदी अरब के साथ पाकिस्तानी की बड़ी नजदीकी बनने जा रही है, जिसे भारत की विदेश नीति के लिए झटका माना जा रहा है। भारत ने कूटनीति से मुस्लिम देशों के अंदर एक ऐसा माहौल बनाया कि कुछ दिन पहले तक ये सीभी देश भारत के साथ थे। इसीलिए पाकिस्तान इस गठबंधन में शामिल होना चाहता था। गौरतलब है कि अप्रैल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सऊदी अरब यात्रा के दौरान आतंकवाद पर समझौता हुआ था। इस यात्रा के बाद ही सऊदी अरब ने पाकिस्तान के दो आतंकी संगठनों पर पाबंदियां लगाई थीं, लेकिन अब आतंक को पोसने वाले देश के सेवानिवृत्त जनरल को सैन्य अभियान का मुखिया बनाकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सेना जैसे संवेदनशील मामलों में विश्वासपात्र को ही कमान सौंपी जाती है। जाहिर है, पाकिस्तान सऊदी अरब के बहुत नजदीक पहुंच चुका है। अभी इस 'मुस्लिम नाटो' की संरचना के बारे में इससे ज्यादा कोई जानकारी नहीं है जो 'सुन्नी नाटो' ज्यादा लगता है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान में अंदरखाने यह विवाद का मुद्दा बन चुका है। इस संगठन की छवि एक मुस्लिम गठबंधन की नहीं, बल्कि सुन्नी संगठन की बन रही है। इसलिए स्वयं पाकिस्तानी शिया आबादी इस गठबंधन में शामिल होने का विरोध कर रही है। पाकिस्तान की आबादी में शिया 20 प्रतिशत हैं। वैसे 1960 के दशक से इसकी सेना का एक दस्ता सऊदी अरब की राजशाही की सुरक्षा में तैनात रहा है, जिसका इस्लाम की पवित्रतम जगहों का संरक्षक होने के नाते सुन्नी इस्लाम की दुनिया में एक विशेष दर्जा है। भारत में यह नियुक्ति एक विडंबना के साथ देखी जाएगी। जनरल शरीफ पाकिस्तान के सबसे प्रतिष्ठित जनरलों में से एक रहे हैं। पेशावर में सेना के एक स्कूल पर आतंकी हमले के बाद उन्होंने पाकिस्तानी तालिबान पर लगाम लगाने की कोशिश की और कुछ हद तक सफलता भी पाई। लेकिन भारत और पाकिस्तान के मामले में वे पाकिस्तान की पारंपरिक सैन्य नीति पर ही चलते रहे। यह नीति है चुनिंदा आतंकी संगठनों के जरिये छद्म युद्ध। कश्मीर के उरी में पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा भारतीय सेना के मुख्यालय पर हमले से यह बात जाहिर हुई। सऊदी अरब की मदद से उनका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ना यानी अपने ही दांतों से अपनी ही उंगलियां चबाने जैसे है। विश्व के सभी इस्लामी आतंकी संगठन वहाबी ही हैं। फिर जो पाकिस्तान अपनी जमीन पर आतंकी संगठनों से नहीं लड़ पाया वह बाकी देशों में कैसे लड़ पाएगा। आज तो सारी इस्लामी दुनिया आतंकवाद के चपेट में है। फिर आईएमएएफटी का मतलब क्या है? जल्द ही इसका जवाब मिल जाएगा। इस गठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इसका सारा खर्च केवल सऊदी अरब जुटा रहा है। इसलिए उसमंे सऊदी अरब की ही चलेगी, बाकी देश नाममात्र के सदस्य होंगे। आईएएमएफटी में सऊदी अरब और पाकिस्तान के अलावा तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, बांग्लादेश और नाइजीरिया जैसे देश शामिल होंगे।
भारत के लिहाज से यह घटना इस मामले में चिंताजनक है कि पाकिस्तान का सऊदी अरब के मुख्यालय में प्रवेश भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के मुद्दों में पाकिस्तान के प्रति सुन्नी मुस्लिम देशों का समर्थन बढ़ने का कारण बन सकता है। कुल मिलाकर यह आतंकवाद से लड़ने के नाम पर इस्लामी देशों का सैन्य संगठन बनाने की कोशिश है। कम से कम अभी तो दुनिया में मजहब के आधार पर कोई सैनिक गठबंधन नहीं है। ऐसे में नाटो की तर्ज पर इस्लामी सैन्य गठबंधन बनाने की कोशिश साम्प्रदायिकता फैलाने की कोशिश है जो 'चोर से कहो चोरी करो, हवलदार से कहो जागते रहो' कहावत की मिसाल है। एक तरफ सऊदी अरब और पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों की मदद करके दुनियाभर में आतंकवाद फैला रहे हैं। दूसरी तरफ, उनसे लड़ने की आड़ में 'मुस्लिम नाटो' जैसा सैनिक गठबंधन बना रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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