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'आप' के अरविंद की असलियत

by
Apr 17, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 Apr 2017 13:09:28

 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि केंद्र सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही, लेकिन केंद्र से पैसे मिलने के बावजूद दिल्ली सरकार की कोताही से अनेक विकास योजनाएं रुकी पड़ी हैं। ऊपर से केजरीवाल पर मनमाने तरीके से काम करने और सरकारी खजाना लुटाने के आरोप लग रहे

अरुण कुमार सिंह

दिल्ली की राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा-अकाली गठबंधन की जीत हुई। केजरीवाल पार्टी तीसरे नंबर पर रही। नतीजे आने के बाद आआपा और अरविंद केजरीवाल को जैसे सांप सूंघ गया है। उनकी बोलती भले बंद है पर उनके खिलाफ आरोपों की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है। अभी वरिष्ठ वकील रामजेठमलानी के भेजे गए बिल का मामला ठंडा नहीं पड़ा था कि शंुगलू कमेटी की रपट ने विपक्ष को उन पर हमला करने का मौका दे दिया। रही-सही कसर 13,000 रु. की थाली ने पूरी कर दी है। कहा जा रहा है कि फरवरी, 2016 में दिल्ली सरकार का एक वर्ष पूरा होने पर दो दिन जलसा मनाया गया। इसमें मेहमानों के लिए खाना मंगाया गया, जिसमें एक थाली की कीमत 13,000 रु.से ज्यादा थी। लेकिन 'मैं ईमानदार बाकी सब चोर' का दंभ पालने वाले केजरीवाल कहते हैं, ''ये सभी आरोप राजनीतिक दुर्भावनावश लगाए जा रहे हैं। केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को काम नहीं करने देना चाहती।'' जबकि हकीकत यह है कि दिल्ली सरकार केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पैसे को खर्च भी नहीं कर पा रही है। इसलिए विकास रुका पड़ा है। भाजपा सांसद डॉ. उदित राज कहते हैं, ''दिल्ली सरकार ने दिल्ली की जनता को न केवल धोखा दिया है, बल्कि दिल्ली के लिए केंद्र से मिलने वाली योजनाओं को बाधित कर विकास की गति को रोका है।''

केजरीवाल के संदर्भ में अण्णा हजारे का वह बयान गौरतलब है, जिसमें वे कहते हैं, '' भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में वे (केजरीवाल) मेरे सहयोगी थे, उस समय मैंने अनुभव किया कि शिक्षित नई पीढ़ी देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने में सहायता कर सकती है, लेकिन यह एक बड़ा सपना था और मेरा सपना टूट गया।''

अण्णा के इस बयान में दिल्ली के लाखों लोगों के दिल की बात भी छिपी है। तिलक नगर के सुमित कहते हैं, ''सच में केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों के सपने तोड़ दिए हैं। वे पहले कहते थे कि आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के विरुद्ध हुए आंदोलन की उपज है। भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। लेकिन अब जब उन पर दाग लगने लगे हैं तो वे कहते हैं कि उन्हें जान-बूझकर बदनाम किया जा रहा है।'' जबकि आम लोगों की धारणा है कि केजरीवाल अपनी कमियों को छिपाने के लिए केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हैं कि वह दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दे रही। दिल्ली उच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील एस.डी. बिंदलेश कहते हैं, ''दिल्ली एक केंद्र शासित राज्य है। यहां के मुख्यमंत्री को अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री की  तरह पूरे अधिकार प्राप्त नहीं हैं। यह बात केजरीवाल को भी पता है। इसके बावजूद वे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर केवल अपनों के लिए काम कर रहे हैं। इन्हीं कामों को परखने के लिए शुंगलू कमेटी बनाई गई थी।'' कुछ ऐसी ही राय शाहदरा में प्रिटिंग व्यवसाय से जुड़े राजेश कुमार की है। वे कहते हैं, ''केजरीवाल मीडिया की सुर्खियों में बने रहने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर काम करते हैं। उनकी सोच है कि दिल्ली में काम करके वे दूसरे राज्यों में अपनी पार्टी को नहीं बढ़ा सकते हैं। इसलिए वे कुछ ऐसा करते हैं कि मीडिया में उनकी चर्चा होती रहती है।'' वही कुछ लोग यह भी कहते हैं कि केजरीवाल की नीयत काम करने वाली कभी रही ही नहीं है। बटुकेश्वर दत्त कॉलोनी में रहने वाले व्यवसायी अनिल चौधरी कहते हैं, ''केजरीवाल को जनता ने 70 में से 67 सीटें दी हैं। वे चाहते तो दिल्ली में काम करके पूरे देश के सामने एक आदर्श प्रस्तुत कर सकते थे, लेकिन उनकी नीयत काम करने की कभी रही ही नहीं। जब वे नौकरी करते  थे उस समय भी उन्होंने ईमानदारी से काम नहीं किया। ज्यादातर समय तो वे छुट्टियों पर रहे और गैर-सरकारी संगठन बनाकर पैसा कमाते रहे। अब वे प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, उनका यह सपना कभी पूरा नहीं होगा।''

 ऐसे ही विचार केजरीवाल के समर्थक रहे लोगों के भी हो चुके हैं। उन्हें भी लगने लगा है कि केजरीवाल लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। पुनर्वास कॉलोनी पप्पनकलां (द्वारका) में रहने वाले सोनू कहते हैं, ''दिल्ली के लोग ठगा-सा महसूस करने लगे हैं। मेरी कॉलोनी में मीठा पानी लाने का वादा किया गया था, लेकिन अब तक कुछ भी नहीं हुआ। ''

खजाना लुटाती सरकार

दिल्ली डिस्ट्रक्टि क्रिकेट एसोिएशन (डीडीसीए) के मामले में  वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा अरविंद केजरीवाल पर मानहानि का मुकदमा दायर किया गया है। केजरीवाल के वकील हैं राम जेठमलानी।  जेठमलानी ने केजरीवाल को 3 करोड़ 40 लाख रुपए का बिल भेजा था, जिसमें 22 लाख प्रति पेशी के हिसाब से 11 पेशियों का शुल्क और एक करोड़ रुपए रिटेनर फीस (काम के एवज में अनुबंध शुल्क) शामिल है। खुद जेठमलानी कह चुके हैं कि यह मामला अरविंद का व्यक्तिगत मामला है, फिर भी केजरीवाल सरकारी खजाने से उनका शुल्क देना चाहते हैं।

  केजरीवाल ने नियमों की अनदेखी करते हुए देश के हर भाग में 97 करोड़ रु. के विज्ञापन प्रकाशित करवाए हैं। उपराज्यपाल ने इस राशि को आम आदमी पार्टी से वसूलने को कहा है। इन्हीं सब वजहों से दिल्ली के ज्यादातर लोग केजरीवाल से खुश नहीं हैं। लोगों के आक्रोश के रूप में इसकी झलक दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणामों में दिख सकती है।   

शंुगलू कमेटी का कहना है…

4 अगस्त, 2016 को आए दिल्ली उच्च न्यायालय के एक निर्णय  के बाद तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली सरकार के सभी विभागों को आदेश दिया था कि ऐसे सभी फैसलों की फाइलें उपराज्यपाल के कार्यालय में भेजी जाएं, जिनके लिए उनकी अनुमति लेनी जरूरी थी, लेकिन नहीं ली गई। इसके बाद जंग ने दिल्ली सरकार के फैसलों की जांच के लिए पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) वी.के. शुंगलू की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाई। इस कमेटी में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रदीप कुमार भी थे। कमेटी ने 440 फैसलों से जुड़ी फाइलों की जांच की। इनमें से 36 मामलों की फाइलें लौटा दी गई थीं, क्योंकि अभी इन मामलों के निर्णय लंबित हैं। कमेटी ने अपनी रपट में कहा है कि दिल्ली सरकार ने कई फैसलों में संवैधानिक प्रावधानों का पालन नहीं किया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि नियुक्ति, आवंटन, प्रशासनिक प्रक्रिया संबंधी नियमों की अनदेखी की गई है। कमेटी ने कहा है-

स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की बेटी सौम्या जैन की मोहल्ला क्लीनिक परियोजना के निदेशक सलाहकार पद पर हुई नियुक्ति में नियमों का पालन नहीं किया गया।

   निकुंज अग्रवाल को स्वास्थ्य मंत्री का विशेष कार्य अधिकारी नियुक्त करने से पहले उपराज्यपाल की स्वीकृति नहीं ली गई। 

    राउज एवेन्यू में आम आदमी पार्टी के कार्यालय के लिए बंगले का आवंटन गलत। 

  दिल्ली सरकार ने करीब 150 ऐसे निर्णय लिए, जिनके बारे में उपराज्यपाल को नहीं बताया गया।

    उपराज्यपाल ने अप्रैल, 2015 में मुख्यमंत्री को कानून के पालन की सलाह दी थी। वहीं मुख्यमंत्री के सचिव की ओर से सभी विभागों को निर्देश जारी कर कहा गया कि जमीन, कानून-व्यवस्था और पुलिस से जुड़े मामलों को छोड़कर विधानसभा के विधायी क्षेत्राधिकार में आने वाले सभी मामलों पर सरकार बेबाकी से फैसले कर सकेगी।

    दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को सरकारी आवास देने और आआपा के विधायक अखिलेश त्रिपाठी को  टाइप-5 बंगला आवंटित करने में नियमों की अनदेखी की गई। 

    केजरीवाल सरकार ने कई महत्वपूर्ण पदों पर मनमाने ढंग से नियुक्तियां कीं और इनमें से कुछ के लिए विज्ञापन भी नहीं दिए गए।

दिल्ली सरकार की सुस्ती से परियोजनाओं में देरी

दिल्ली मेट्रो प्रशासन ने मेट्रो के चौथे चरण के विस्तार की योजना 7 अक्तूबर, 2014 को दिल्ली सरकार को सौंपी थी। उस समय राष्ट्रपति शासन था। फरवरी, 2015 में दूसरी बार केजरीवाल सरकार बनी। यह ऐसी योजना है कि दिल्ली सरकार को अपनी पहली ही मंत्रिमंडल बैठक में इसे स्वीकृति देनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जून, 2016 में इस परियोजना को स्वीकृति दी गई, पर वित्तीय संसाधनों की मंजूरी नहीं दी गई। दबाव के बाद 12 जनवरी, 2017 को सरकार ने इस परियोजना को मंजूर किया। इस कारण दिल्ली मेट्रो के विस्तार के चौथे चरण का काम दो वर्ष पीछे हो गया है।  केंद्र सरकार ने अमृत जल योजना के अंतर्गत सोनिया विहार, करावल नगर, राजीव नगर, श्रीराम कॉलोनी, बुद्ध विहार, रिठाला, भलस्वा, रोहिणी, ओखला, राजघाट से ग्रेटर कैलाश, पल्ला और शाहदरा क्षेत्रों के लिए नई पानी एवं सीवर लाइनें डालने, पुरानी लाइनों का नवीनीकरण करने, फीडर लाइनें डालने, स्कूलों एवं समुदाय भवनों के शौचालयों के पुनर्विकास और नए जिला उद्यान विकसित करने के लिए 900 करोड़ रुपए की योजनाएं 2016-17 में दी हैं, पर दिल्ली सरकार ने उन पर कोई कार्य प्रारंभ नहीं किया है।  

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