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पाञ्चजन्य ने 1968 में क्रांतिकारियों पर केंद्रित चार विशेषांकों की शंृखला प्रकाशित की थी। दिवंगत श्री वचनेश त्रिपाठी के संपादन में निकले इन अंकों में देशभर के क्रांतिकारियों की शौर्य गाथाएं थीं। पाञ्चजन्य पाठकों के लिए इन क्रांतिकारियों की शौर्य गाथाओं को नियमित रूप से प्रकाशित कर रहा है। प्रस्तुत है 22 जनवरी ,1968 के अंक में प्रकाशित शम्भूनाथ आजाद का आलेख :-
मार्च 1933 की बात है। अंतरप्रांतीय षड्यंत्र (कलकत्ता) के सिलसिले में संपूर्ण देश में सैकड़ों क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियां हुईं। इससे दक्षिण भारत में काम कर रहे रोशनलाल मेहरा और उनकी टोली के अन्य साथी आर्थिक संकट में पड़ गए। उन्होंने उटकमंड बैंक (ऊटी) को लूटने की योजना बनाई। रोशन मेहरा ने हजारासिंह और मुझे इस काम में जाने से रोक दिया और स्वयं ही बैंक लूटने जाने के लिए कटिबद्ध हुए।
रोशन मेहरा ने स्वयं अपने हाथों से दस्ती बम बनाया। उसका स्वयं परीक्षण करने के लिए आग्रह किया। मद्रास के रायपुरम् क्षेत्र में रात्रि के 9 बजे समुद्रतट पर बम का परीक्षण किया। वे बम के घेरे से बाहर न निकल सके और उनका संपूर्ण शरीर बुरी तरह से घायल हो गया। दाहिना हाथ तो बिलकुल अलग होकर उड़ गया। तत्काल ही हजारों की भीड़ वहां उमड़ पड़ी। पुलिस भी आ गई। पुलिस मेहरा को खून से लथपथ हालत में रायपूरम् क्षेत्र के गिरजाघर में लग गई। साथी इन्द्रसिंह उस समय यह पता लगाने के लिए वहां गए कि पुलिस से रोशनलाल को छीन कर लाया जा सकता है या नहीं। पुलिस शीघ्र ही श्री रोशनलाल को लॉरी में लिटा कर मद्रास के मुख्य अस्पताल में ले गई।
पानी देंगे, मगर…
वहां पहुंचने पर रोशनलाल ने डॉक्टरों और पुलिस के उच्च अधिकारियों से कहा, ''मुझे क्लोरोफॉर्म या पानी दो।'' उत्तर में अधिकारियों ने कहा, ''हम आपका उपचार करेंगे और पानी भी देंगे, अगर पहले आप अपना और अपने साथियों का नाम और पता बताइये।'' रोशनलाल ने कहा, ''ईश्वर मेरा पिता और यही मेरे साथियों के पिता का नाम है।''अंतिम क्षण तक अस्पताल और पुलिस के अधिकारियों ने उनके मुंह के पास अनेक बार बर्फ के पानी का गिलास ले जाकर दबाव डाला कि अपना नाम और पता बताइये, तब हम पानी देंगे। रात 12 बजे साथी रोशनलाल मेहरा मातृभूमि की बलिवेदी पर बलिदान हो गए। रोशनलाल अमृतसर के निवासी थे। मृत्यु के समय उनकी आयु केवल 19 वर्ष थी। उनके पिता का नाम लाला धनीराम मेहरा था। उनका परिवार अमृतसर की गली नैनसुख में रहता था। उनके बड़े भाई 1947 के साम्प्रदायिक दंगे में मोहल्ले की रक्षा करते हुए एक पाकपरस्त सिपाही की गोली से मारे गए थे। 1928 में अनुशीलन पार्टी के पंजाब और दिल्ली क्षेत्र के संगठक दयानंद डी. पटेल ने एक दिन मुझसे कहा कि रोशनलाल मेहरा का अमृतसर के व्यापारियों में पता लगाइए। उनकी स्वर्गीय माता की हार्दिक आकांक्षा थी कि रोशनलाल अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के संग्राम को सफल बनाने में अपना पूरा योगदान दें। दयानंद को घर का पता मालूम था। हम लोग जब रोशनलाल से मिले तो उन्होंने अपनी मां की भावनाओं का अनुमोदन किया। 1929 में अमृतसर की एक गुप्त बैठक में कुछ क्रांतिकारियों को दक्षिण भारत भेजने की योजना बनी। मेहरा ने इस कार्य में अपना जीवन और धन दोनों ही अर्पण किया। उन्होंने लगभग छह हजार रुपए अपने घर से लाकर क्रांतिकारी दल को सौंप दिये।
डकैती का दुरूह प्रश्न
1931 में अंबाला कांड में पटियाला निवासी मनसद सिंह की फांसी का समाचार सुनने पर दयानंद डी. पटेल ने अंबाला जेल से रोशनलाल मेहरा के पास एक पत्र पार्टी के साथियों के नाम भेजा था। उन्होंने लिखा था, ''देश के क्रांतिकारियों ने अब तक धन के लिए जो राजनीतिक डकैतियां डाली हैं, उनसे और साथी मनसद सिंह की फांसी से यह सबक मिलता है कि देश के क्रांतिकारियों को डकैतियां नहीं डालनी चाहिए और धन की समस्या क्रांतिकारी साथी अपने घरों को कुर्बान करके हल करें। इन राजनीतिक डकैतियों से हमारे बहुत से साथियों ने भारी बलिदान चुकाये हैं और देश के राजनीतिक कल्याण के कार्य पड़े रह गए हैं। इससे मातृभूमि के स्वाधीनता संग्राम की हानि होती है।
चुनौती का जवाब
एक दिन 1931 के प्रारंभ में हम कई क्रांतिकारी लाहौर वोर्स्टल जेल के प्रेस में बैठे हुए थे। (क्रांतिकारियों को यह सजा सरदार भगतसिंह आदि पर लाहौर षड्यंत्र केस चलाने का मुख्य दायित्व निभाने वाले सीआईडी पुलिस के मुख्य अधिकारी खान बहादुर अब्दुल अजीज को मारने के प्रयास में हुई थी। पठानकोट में अजीज की कोठी के पास हजारासिंह और नित्यानंद को संदग्धि अवस्था में गिरफ्तार किया गया था। 15 दिन की भयंकर यातना देकर भी पुलिस उनसे कुछ न जान पाई।) हजारा सिंह उर्फ बन्ता सिंह ने लाहौर से निकलने वाले दैनिक पत्र 'सिविल एंड मिलिटरी गजट' का अंक दिखाया और मद्रास के गवर्नर का भाषण पढ़कर सुनाया जिसका आशय था कि हमारे प्रांत के लोग ब्रिटिश साम्राज्य के अत्यंत भक्त हैं और यहां पर आतंकवादी गतिविधि नहीं है। इस सबको सुनाने के बाद हजारासिंह ने कहा कि यह देश की जनता पर कलंक थोपने वाली बात है और हमारे लिए एक चुनौती है। हमने इस चुनौती का जवाब देने का निश्चय किया कि जेल से छूटने के बाद हमारा यह प्रथम कर्तव्य होगा। साथी हजारासिंह, रोशनलाल मेहरा एवं सीतानाथ को इस कार्य और क्रांतिकारी संगठन के लिए पंजाब से मद्रास प्रांत 1932 के अंत में भेजा गया। उनके साथ खुशीराम मेहता, नित्यानंद वात्स्यायन बच्चूलाल, इन्द्र सिंह उपनाम प्रेमप्रकाश मुनि और मैं भी मद्रास गए। वहां थोड़ा-सा संगठन कार्य खड़ा कर योजना को सफल बनाने का उद्देश्य था। सीतानाथ डे बंगाल अनुशीलन पार्टी की तरफ से उत्तर भारत के संगठनकर्ता थे। वह काफी लंबे समय से भूमिगत थे और 1934 में इंटर प्रोविन्सियल कान्सपरेसी केस कलकत्ता के प्रमुख अभियुक्तों में से एक थे। 1934 में अलीपुर न्यू सेंट्रल जेल की तन्हाई कोठरियांे में से गार्ड के पहरे से अपने दो अन्य साथियों के साथ दिन मंे भाग गए थे।
1932 की फरवरी में मद्रास में यह निश्चय हुआ था कि आप मार्च के अंत तक बंगाल से वापिस आ जाएंगे। तभी मद्रास गवर्नर का कांड किया जाएगा। 1932 की फरवरी के अंत में रोशनलाल मेहरा ने मुझे बताया कि मद्रास के वाईएमसीए क्रिश्चियन यंगमैन के जलसे में मद्रास गवर्नर आकर भाषण देंगे। उसमें नित्यानंद, रोशनलाल मेहरा, प्रेमप्रकाश मुनि पहुंचे। मगर नित्यानंद ने बाकी दो साथियों को कुछ भी करने से रोका और कहा कि बंगाल के गवर्नर एंडरसन के साथ ही इसे भी उटकमंड में गोली मार देंगे। अत: वाईएमसीए में कोई कांड नहीं हुआ।
इसी बीच, लाहौर में अंतरप्रांतीय षड्यंत्र के दो फरार क्रांतिकारी पिस्तौल सहित रामविलास शर्मा के मकान में पकड़े गए और सीआईडी पुलिस की यंत्रणा के प्रभाव में आकर मुखबिर बन गए। उसके पास मद्रास में कार्य कर रहे क्रांतिकारियों के लिए जो भारी धन राशि जमा थी वह पुलिस के हाथ पड़ गई। फलत: मद्रास में काम करने के लिए धन नहीं पहुंचा। परिणामस्वरूप मद्रास के अधिकांश साथियों ने हजारा सिंह, रोशन लाल मेहरा और मुझे मजबूर कर दिया कि दोनों गवर्नरों की हत्या के पूर्व काफी धन संचित करना अति आवश्यक है। अंतत: शेष क्रांतिकारियों ने 21 अप्रैल 1933 को उटी बैंक को लूटना तय किया और वहीं उटकमंड शहर में भूमिगत होकर अप्रैल के अंतिम दिन मद्रास के गवर्नर आदि का अंत कर दिया जाने का विचार था। 30 अप्रैल 1933 को समारोह में दोनों गवर्नरों की हत्या कर दी जाए, यदि वहां समय नहीं मिल पाया तो बाद में जहां शिकार को जाने वाले थे, वहां हत्या कर दी जाए—निश्चय हुआ।
इस योजना के अनुसार, नित्यानंद और श्री रत्नम् (जो मद्रास के दल में सम्मिलित हुए थे) 25 अप्रैल को उटकमंड के पूर्व तैयारी के लिए चल दिए। पूर्व निश्चित कार्यक्रम के अनुसार श्री हजारासिंह, बच्चूलाल, खुशीराम मेहता और मैं 26 अप्रैल को चल दिए।
टाइगर हिल से प्रस्थान
लवदिल स्टेशन पर, जो उटकमंड से पूर्व जंगल में स्थित है, सभी साथी 27 की दोपहर को चार बजे के लगभग पहुंचे। नित्यानंद व श्री रत्नम ने साथियों को बताया कि गरमी का मौसम होने के कारण किसी भी मूल्य पर कोई कोठी किराए पर नहीं मिली है, अब हमें जंगल में 'टाइगर हिल' की गुफा में ठहरकर रात बितानी होगी और वहां से प्रात: चार बजे 28 अप्रैल को निकलकर उटकमंड शहर के निकट जंगल में पहुंचना होगा। उनकी येाजना के अनुसार सभी साथी अपना-अपना सामान लेकर मूसलाधार बारिश में टाइगर हिल पर चढ़े। वहां पहुंचकर बैंक लूटने की योजना बनाई गई और प्रात: चार बजे गुफा से निकलकर हम सभी उटकमंड शहर से लगभग दो मील पूर्व जंगल में ठहर गए। श्री नित्यानंद और हजारासिंह को 25 अप्रैल को सुबह नौ बजे बैंक की स्थिति का अध्ययन करने के लिए और अच्छी किस्म की मोटर टैक्सी लाने उटी भेजा गया। ऊटी मद्रास प्रांत की गरमी की राजधानी थी। ये दोनों साथी उपरोक्त कार्य के लिए शहर गए। शेष सभी साथी यूरापियन सैनिक अफसरों की वर्दी पहनकर और शस्त्रास्त्र सहित तैयार हो गए। लगभग 11:30 बजे इसी स्थान पर एक मोटर टैक्सी लेकर दोनों साथी शहर से लौटे। चारों साथी टैक्सी में जा बैठे। ये दोनों साथी पोशाक पहनने चले गए। कुछ ही मिनटों बाद वे साथी भी तैयार होकर आ गए। ड्राइवर ने कुछ आपत्ति की, फिर भी छहों साथी टैक्सी में बैठकर चल दिए।
टैक्सी ड्राइवर
सड़क के अंतिम सिरे पर पहुंचकर ड्राइवर ने टैक्सी को रोक दिया और कहा कि आगे रास्ता नहीं है। चार साथी टैक्सी से उतरकर बाहर आ गए। टैक्सी ड्राइवर एक मुसलमान कंपनी का नौकर था। उसे पकड़कर बाहर निकाला और उससे कहा, ''तुमसे दो घंटे का पचीस रुपए का किराया तय है, इसलिए किराए के अतिरिक्त पचास रुपए इनाम में देंगे। मगर जहां हम जैसे रखें, उसी स्थिति में तुमको आधा घंटा रहना होगा। अन्यथा, रिवाल्वर की ओर संकेत करते हुए कहा कि इसकी गोलियां तुम्हारे सीने में समा दी जाएगी। चुपचाप हमारे साथ चलो।'' हमने पहाड़ी से नीचे ले जाकर उसे एक युक्लिपट्स के पेड़ से बांध दिया।
बैंक लूट लिया
सभी साथी टैक्सी लेकर शहर चल दिए और पेट्रोल की दुकान से काफी मात्रा में पेट्रोल लिया। पेट्रोल की दुकान वाला गाड़ी और ड्राइवर के बारे में पूछना चाहता था, पर भय से चुप रहा। ठीक दोपहर बारह बजे 28 अप्रैल 1933 को उटकमंड शहर के मुख्य बाजार में स्थित उटी बैंक पर टैक्सी पहुंची। बच्चूलाल ने बैंक के मुख्य दरवाजे पर मौजूद बंदूकधारी सिपाही से उसकी रायफल छीन ली और बंदूक का कुन्दा पहरेदार सिपाही पर मारा और धक्का देकर बैंक में धकेल दिया। बच्चूलाल का गेट पर चौकसी करना निश्चित हुआ था। हजारासिंह और अन्य सभी बैंक के चीफ मैनेजर के ऑफिस में घुस गए और टेलीफोन के तार काटकर चीफ मैनेजर को 'हैंड्सअप' कराकर कतार में खड़ा करा दिया। उन पर खुशीराम मेहता और श्री रत्नम की ड्यूटी थी। हजारासिंह ने मैनेजर से तिजोरी की चाभियां मांगी। उसने टालमटोल का प्रयास किया, दूसरे ही क्षण अपनी मौत की नली को देखकर चाभियों का गुच्छा जेब से निकालने का संकेत किया। (जारी)
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