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बंगाल में बढ़ते मजहबी उन्माद के कारण कानून-व्यवस्था नियंत्रण से बाहर जा रही है। एक ओर हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है तो दूसरी ओर ममता के तुच्छ स्वार्थ ने अराजक तत्वों के हौसले इतने बुलंद कर दिये हैं कि ‘भद्रजन’ की धरती की संस्कृति और सभ्यता को ही मिटाने के प्रयास किए जा रहे हैं
प्रशांत बाजपेई / अश्वनी मिश्र
देश ‘हाईवे’ और ‘आईवे’ (संचार व इंटरनेट में तेजी) की चर्चा कर रहा है लेकिन पश्चिम बंगाल लगता है, किसी और युग में जी रहा है। सत्ता की निर्ममता के चलते बेबस राज्य सुहरावर्दी के मानसपुत्रों से भयाक्रांत है। फतवों के शोर ने रवींद्र संगीत के सुरों को दबा दिया है। जिस धरती से स्वामी विवेकानंद की पुकार गूूंंजी थी वहां से अब जिहाद की ललकार उठ रही है। संविधान की धज्जियां उड़ा दी गई हैं। पंथनिरपेक्षता का गला घोट दिया गया है। इतना ही नहीं, रक्त सने हाथों को चूमते हुए भी वोट बैंक की राजनीति लजा नहीं रही। वोटों के खेल में टोल प्लाजा पर तैनात भारत के जवान को भी मोहरा बना दिया गया, जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सेना के नियमित अभ्यास (सालाना रोड डाटा संचय अभ्यास) को उनके तख्तापलट की साजिश करार दे दिया। वामपंथियों से सत्ता छीनने के बाद ममता ने कम्युनिस्ट निर्ममता की विरासत को आगे ही बढ़ाया है। निरंकुश मुख्यमंत्री नए-नए षड्यंत्र सिद्धांत खोज रही हैं। वे सार्वजनिक मंचों पर कलीमा शहादा गाती हैं जो वास्तव में इस्लाम स्वीकारने का संकल्प या आह्वान है। कानून व्यवस्था ठप है, राज्य की बेरोजगारी दर 49 फीसद है और तृणमूल सरकार के गलियारे भ्रष्टाचार से बजबजा रहे हैं। आज विश्वास करना कठिन है कि ये सुभाष, अरविन्द, बाघा जतिन, खुदीराम बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और बिपिन चंद्र पाल का बंगाल है।
तुष्टीकरण की निर्लज्ज राजनीति
बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री के लिए बांग्लादेश से आये अवैध मुस्लिम घुसपैठिये तो आंख के तारे हैं लेकिन तस्लीमा नसरीन जैसी भारत प्रेमी लेखिका उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती। 2013 में तस्लीमा ने एक बांग्ला टीवी धारावाहिक ‘’दुसाहबास’ की पटकथा लिखी। दिसंबर, 2013 में उसका प्रसारण होना था, लेकिन तस्लीमा का नाम सामने आते ही मुस्लिम कट्टरपंथी तलवारें खींचकर सामने आ गए और तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता भी उनके कंधे से कंधा मिलाकर मैदान में कूद पड़े। बेचारी तस्लीमा कहती रहीं कि इस कहानी में मजहब का ‘म’ भी नहीं है और यह कहानी एक हिंदू परिवार की पृष्ठभूमि पर आधारित है, परंतु चंूकि उस धारावाहिक की लेखिका तस्लीमा नसरीन थीं, अत: ममता दी ने इस ‘सांप्रदायिक’ धारावाहिक के प्रसारण पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी। टीपू सुल्तान मस्जिद के जिस मौलाना नुरूर रहमान बरकती ने तस्लीमा का सिर कलम करने की धमकी दी थी, उसके साथ मुस्कुराते हुए रोजा इफ्तार करतीं ममता की तस्वीरें लोगों में खौफ पैदा कर रही हैं।
2014 के चुनावों में जब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में नरेन्द्र मोदी बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठा रहे थे तब ममता धमका रही थीं,‘‘हिम्मत है तो एक भी बांग्लादेशी को छूकर दिखाएं।’’ आज ममता के बंगाल में गैरकानूनी रूप से रह रहे बंगलादेशी आगजनी और तोड़फोड़ के दम पर राजधानी कोलकाता को बंधक बनाने की ताकत रखते हैं।
पश्चिम बंगाल का तेजी से इस्लामीकरण किया जा रहा है। इंद्रधनुष को बंगला में रंगधोनु कहा जाता है। सातवीं के पाठ्यक्रम में इसे ‘आसमानी धोनु’ कर दिया गया है। विद्यालयों में परंपरा से मनाए जा रहे सरस्वती पूजन को बाधित करके उसके स्थान पर नबी दिवस समारोह ( पैगम्बर का जन्मदिवस ) मनाने की परिपाटी प्रारंभ हो रही है। नदिया जिले के तेहट्टा हाई स्कूल में इस मांग को लेकर खासी गुंडागर्दी की गई। प्रशासन ने कार्रवाई करने के स्थान पर विद्यालय को लंबे समय तक बंद रखा। सरस्वती पूजा नहीं हो सकी। उधर ममता बनर्जी ने गत 11 जनवरी को राज्य के पुस्तकालयों में नबी दिवस मनाने का आदेश जारी कर दिया। भारत में छद्म सेकुलर राजनीति का एक विशिष्ट गुणधर्म रहा है। छद्म सेकुलरवादी जिहादी तत्वों की तो चम्पी मालिश और चिरौरी करते हैं लेकिन खुली सोच रखने वाले मुस्लिमों का उत्पीड़न किया जाता है। तल्पकुर आरा हाई मदरसे के प्रधानाचार्य काजी मासूम अख्तर को मुस्लिम छात्रों को राष्ट्रगान सिखाने के अपराध में प्रतिबंधित कर दिया गया।
ममता जी का उर्दू प्रेम भी चर्चा का विषय है। राज्य के 12 जिलों में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। मुस्लिम विश्वविद्यालय और कॉलेज स्थापित किये जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में सरकारी खजाने से दो लाख इमामों और मुअज्जिमों को सात से दस हजार तक तनख्वाह दी जा रही है। कोलकाता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के इस कदम को संविधान का उल्लंघन बतलाते हुए रोक लगा दी थी , लेकिन ममता सरकार ने नया रास्ता खोज निकाला। उसने यह पैसा राज्य के अल्पसंख्यक मंत्रालय के द्वारा वक्फ बोर्डों को दिलवाना शुरू कर दिया और वक्फ बोर्ड इमामों और मुअज्जिनों को तनख्वाह देने लगे। दरअसल वक्फबोर्ड पैसे का मनचाहा उपयोग करने को स्वतंत्र है। इसी तकनीकी खामी का फायदा उठाकर न्यायालय और संविधान को धता बताई गई। इस समय कुल 32,000 मस्जिदें और उनके इमाम इससे लाभन्वित हो रहे हैं। भत्ता पा रहे इमामों और मुअज्जिन की संयुक्त संख्या 55,000 है। मस्जिद का रखरखाव करने वालों को भी प्रतिमाह हजार रुपए का प्रावधान किया गया। मामला यहीं समाप्त नहीं हो जाता। 17 फरवरी, 2017 को हजारों इमाम और वक्फबोर्ड के लोग कोलकाता की सड़कों पर उतरे और इमामों तथा मुअज्जिन भत्ते को अपर्याप्त बतलाते हुए प्रदर्शन किया। ताजा मांग है कि इमामों को कम से कम बीस हजार रुपए प्रतिमाह और मुअज्जिनों को दस हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाएं। साथ ही यह कहा गया है कि यदि ये मांगें जल्दी पूरी नहीं की गईं तो राज्य की बोर्ड परीक्षाओं के बाद राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा।
‘‘बंगाल की स्थिति चिंताजनक’’
तथागत रॉय
पश्चिम बंगाल में जो घटनाक्रम हो रहा है, उसकी शुरुआत बहुत पहले हुई है। मेरी जानकारी के अनुसार इसके पीछे वह एक प्रमुख घटना है जो मैंने 2010 में उत्तर 24 परगना जिले के देगंगा में देखी। उस समय राज्य में सीपीएम का राज था। उनके एक स्थानीय सांसद हाजी बहरुल इस्लाम ने देगंगा में हिन्दू व्यापारियों के घर में लूटपाट की, मंदिरों को अपवित्र किया, मूर्तियां तोड़ीं और हिन्दू समाज को भयभीत किया। जब मुझे इस बारे में जानकारी हुई तो मैं तत्काल घटनास्थल पर गया। उस समय मैं भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य था। मैंने वहां की स्थिति देखी तो चौंका और श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को घटना की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दो सांसदों के प्रतिनिधिमंडल को हालात की समीक्षा के लिए भेजा। इन सांसदों ने हालात को देखकर अपनी रिपोर्ट दी। लेकिन इस पूरे मामले में बंगाल के मीडिया का चेहरा सामने आया। राज्य का मीडिया कितना बिका हुआ है, उसका एक उदाहरण तब देखने को मिला जब कलकत्ता हवाई अड्डे पर हमने संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया तो कोई भी पत्रकार नहीं आया सिर्फ सरकारी चैनल को छोड़कर। क्योंकि यह अत्याचार मजहबी उन्मादियों ने किया है और उसमें हिन्दू प्रताड़ित हुए, बस इसीलिए सरकार ने मीडिया पर शिकंजा कस दिया कि कुछ भी न तो छापना है और न ही दिखाना है। इसके बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार यहां आए और एक बड़ी सभा हुई। जब तृणमूल के लोगों को पता चला कि विनय कटियार आ रहे हैं तो वे शोर मचाते हुए गालियों की बौछारें करने लगे।
इन सभी घटनाक्रमों से जहां तक मैं समझता हूं बंगाल के हालात ज्यादा बदतर होने शुरू हुुए। 2011 में तृणमूल सत्ता में आई और तुष्टीकरण की राजनीति दोगुनी बढ़ गई। सीपीएम के समय भी ऐसा था लेकिन ममता के समय इसकी कोई थाह ही नहीं है। तृणमूल का एक और सांसद अहमद हसन इमरान पश्चिम बंगाल में सिमी का संस्थापक सचिव है जबकि सिमी एक प्रतिबंधित संगठन है। लेकिन ममता ने फिर भी उसे सांसद बनाया। यह वही इमरान है, जिसने नलियाखाली में दंगा-फसाद किया था। उसके बाद तो छोटे-बड़े दंगे होते रहे। इससे पहले हावड़ा के पांचला में भी दंगा हुआ था। लेकिन हाल ही में कलियाचक और धूलागढ़ में जो दंगे हुए उन्होंने सभी सीमाओं को तोड़कर रख दिया। इसकी वजह यह है कि राज्य के कट्टरपंथी मुसलमान यह समझ गए हैं कि हम यहां कुछ भी करेंगे तो न यहां का प्रशासन कुछ करने वाला है और न ही कहीं इसकी कोई बड़ी चर्चा होने वाली है। इन सब चीजों से उनका डर मर गया है। बस इसी के चलते वे खुलेआम राज्य में गुंडागर्दी और उन्मादी घटनाओं को अंजाम देते हैं।
राज्य में कामदुनी की घटना को लेकर कुछ वर्ष पहले बड़ा आक्रोश देखने को मिला था। यहां की एक हिन्दू लड़की के साथ 4-5 मुस्लिम लड़कों ने पहले बलात्कार किया। फिर उसके शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया। जब इस वीभत्स घटना के विरुद्ध आन्दोलन किया गया तो ममता ने कहा कि ये माओवादी लोग आन्दोलन कर रहे हैं। इसके बाद उसे दबाने का भरसक प्रयास हुआ। यह घटना तो एक उदाहरण के रूप में है। ऐसी बहुत सी घटनाएं आएदिन राज्य में होती ही रहती हैं।
लेकिन अब पश्चिम बंगाल की जो स्थिति है वह बड़ी चिंताजनक है। यहां जो कुछ भी चल रहा है उसे किसी भी मायने में ठीक नहीं कहा जा सकता। राज्य की हालत यह है कि जिन स्थानों पर मुसलमान सिर्फ 20 से 30 फीसद ही हैं वहां पर हिन्दुओं का रहना मुश्किल हो गया है। जैसे मुर्शीदाबाद जिले के दो हिस्से हैं। एक गंगा का पूर्वी छोर पर तो दूसरा पश्चिमी पार। पूर्वी पार में बैरमपुर शहर को छोड़कर अन्य सभी स्थानों पर हिन्दू भयभीत हैं। हालात ये हैं कि अर्जुनपुर में कट्टरपंथी मुसलमानों ने हिन्दुओं को श्मशान तक से बेदखल किया और कहा,‘‘यहां किसी को जलाया नहीं जाएगा। अपने मुर्दे को नदी में फेंक दो।’’ यह सचाई है ममता के राज की। मोटे तौर पर कहा जाए तो दिन-प्रतिदिन ऐसी घटनाएं होती जा रही हैं, लेकिन अब कुछ प्रतिवाद भी होने लगा है। भाजपा की तरफ से तो हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों की ओर से भी। लेकिन इन कार्यों को मीडिया नहीं दिखाता। कोलकाता का मीडिया इतना दब्बू है कि उस पर ही अत्याचार होते हैं और वह कुछ नहीं बोलता। फरवरी,2009 में अंग्रेजी समाचार पत्र स्टे्टसमैन में एक लेख छपा था, जिसके बाद मुस्लिम समाज ने दफ्तर पर हमला किया और हंगामा काटा। 4 दिन तक उनके द्वारा सड़क बंद करके रखी गई। बाद में समाचार पत्र के संपादक को एक रात पुलिस पकड़कर ले गई और पुलिस मुख्यालय में बैठाकर रखा। लेकिन इस घटना के बाद भी पत्रकार बिरादरी ने अपने ही परिकर के व्यक्ति के साथ हुए अत्याचार की आलोचना तक नहीं की। मैंने कई बार सोशल मीडिया पर इसे लिखा, फिर भी मीडिया नहीं जागा।
ममता सरकार, जो तुष्टीकरण की नीति लेकर चल रही हैं, सीधा मकसद है कि कैसे मुसलमानों के वोट को पक्का करके रखना है। दूसरी बात राज्य की मुख्यमंत्री जो राजनीति करती हैं, उसमें देश और आम जनता की चिंता को कोई स्थान नहीं है। बस एक ही उद्देश्य है कि आने वाला चुनाव कैसे जीतना है। उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि राज्य में आधिकारिक रूप से 27 फीसद मुसलमान हैं, जबकि अनधिकृत तो और ज्यादा है। और यह वर्ग एकजुट होकर वोट करता है। ऐसे में अगर इस वोट पर अपना कब्जा कर लें और हिन्दुओं के 10-20 फीसद वोट इधर-उधर से आ जाए, तो वे ही जीतेंगी। यही सोचकर ममता भयंकर तुष्टीकरण राजनीति करती हैं। उन्होंने मुसलमानों को लुभाने के लिए राज्य में ओबीसी के नाम पर आरक्षण दिया। मुस्लिम लड़कियों को साइकिल से लेकर अन्य सुविधाएं देकर तुष्टीकरण की राजनीति को हवा दी।
दरअसल ममता मुसलमानों को अपने पाले में रखने के लिए यह सब कर रही हैं। लेकिन अब उनके मन में एक डर पैदा हो गया है- ‘काउंटर पोलराइजेशन’ का। उन्हें डर लग रहा है कि कहीं यहां भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हालात हो गए तो? इस सबको देखकर वे बहुत ही परेशान हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि अगर ऐसा कहीं हो गया तो वह जरूर हार जाएंगी। इसलिए वह सब सोच-समझकर करती हैं।
वर्तमान में पश्चिम बंगाल के जो हालात हैं, उसे देखते हुए लोगों और सामाजिक संगठनों को इसे सुधारने के लिए प्रयास करने होंगे। इसे करने के लिए बहुत श्रम करना होगा। लेकिन अभी स्थिति यह है कि यहां सभी क्षेत्रों में राजनीति प्रवेश कर चुकी है। इसलिए जरूरी है कि राष्ट्रीय भावना से
काम करने वाले लोग आगे आएं।
(लेखक पश्चिम बंगाल के जानेमाने शिक्षाविद् एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे हैं। वे वर्तमान में त्रिपुरा के राज्यपाल हैं।)
ममता बनर्जी गर्वपूर्वक कहती हैं कि उनके शासन में सबसे ज्यादा छात्रवृत्तियां मुस्लिम छात्रों को दी गई हैं। साल 2017-18 के लिए अल्पसंख्यक मामलों और मदरसों के लिए 2,815 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है। यह खर्च बड़े उद्योग, छोटे और मझोले उद्यमियों तथा सूचना व प्रौद्योगिकी के कुल खर्च से भी अधिक है। बंगाल में विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता सौरीष मुखर्जी कहते हैं,‘‘ममता बनर्जी संदेश दे रही हैं कि उनकी सरकार के लिए सिंचाई, भारी उद्योग, कपड़ा उद्योग और आईटी से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण मदरसे हैं।’’ लघु उद्योग ऋण का भी मजहबी बंटवारा कर दिया गया है। हर मुस्लिम युवा को लगभग 5 लाख रुपए का कर्ज बांटा जा रहा है। इस योजना के तहत अब तक कुल 880 करोड़ रुपए खर्च किये गए हैं। भूमिहीनों और गृहविहीनों के लिए बनी योजना की आड़ में ‘निजी गृहा निजोभूमि प्रकल्प’ से इमामों को चुन-चुनकर भूमि अनुदान दिया गया है। इसके अलावा राज्य सरकार अल्पसंख्यकों के लिए 50 हजार आवास भी निर्मित करने जा रही है। अल्पसंख्यक विकास के नाम पर पहाड़ों और सरकारी जमीनों पर कब्जा हो रहा है। सरकार इस ओर से सिर्फ आंख ही नहीं मूंदे हुए है बल्कि प्रोत्साहन दे रही है। पिछले पांच साल में तीन हजार कब्रगाहों को सरकारी खर्च पर पक्की दीवार से घेरा गया है। हर जिले में हज हाउस बनाए गए हैं।
ममता बनर्जी के करीबी और उनके साथ सार्वजनिक मंचों पर नजर आने वाले मौलाना नुरूर रहमान बरकती की बोली राज्य में बढ़ते जिहादी उन्माद और इस उन्माद को सरकारी संरक्षण का प्रमाण है। जब ममता नोटबंदी पर हायतौबा मचा रहीं थीं तब 8 जनवरी को बरकती ने प्रधानमंत्री के ही खिलाफ फतवा जारी किया । इसके दो दिन बाद इस्लामी विदन तारेक फतह ने बरकती के नरेन्द्र मोदी पर दिए गए फतवे पर आपत्ति उठाई तो बरकती ने तारेक फतह को भी जान की धमकी दे डाली। इतना ही नहीं, जब फतह ने इस घटना की वीडियो फुटेज अपने ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट की तो बरकती ने जवाब दिया,‘‘खुदा से खौफ खाओ मियां तारेक फतह! सच्चे दीन के होकर भी तुम काफिरों का साथ देते हो। लानत है तुम पर।’’ कहने की जरूरत नहीं कि ममता सरकार के कानो पर जूं तक नहीं रेंगी।
हिंदुओं का उत्पीड़न
बीरभूम जिले के एक गांव कंगला पहाड़ी में ममता सरकार पिछले चार साल से 25 मुस्लिम परिवारों को खुश करने के लिए 300 हिन्दू परिवारों को दुर्गा पूजा का आयोजन नहीं करने दे रही। सालों से दुर्गा प्रतिमा अधूरी पड़ी है। मामला तब शुरू हुआ जब परम्परा से पड़ोस के गांव जाकर दुर्गा पूजा करने वाले हिंदुओं ने 2012 में स्वयं धन एकत्र कर अपने ही गांव में दुर्गा प्रतिमा स्थापित कर नवरात्र मनाने का निश्चय किया। गांव के मुस्लिमों ने प्रशासन से शिकायत की कि इस पूजन से शांति व्यवस्था बिगड़ने की आशंका है। तब से बस अधूरा पड़ा दुर्गा विग्रह हिंदू समाज के सीने में चुभ रहा है। मुर्शीदाबाद जिले के अनेक स्थानों पर जिहादियों द्वारा दुर्गा पंडाल तोड़े जाने की घटनाएं आम हो चली हैं। बीरभूम जिले में एक मंदिर को क्षतिग्रस्त करके हनुमान प्रतिमा को बाहर फेंक दिया गया। घटना से क्षुब्ध स्थानीय हिंदुओं ने जब संबंधित थाने मयूरगंज में रिपोर्ट लिखवानी चाही तो उनकी प्राथमिकी भी नहीं लिखी गई। हिन्दू त्योहारों-आयोजनों पर हमले और मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया जाना संक्रामक रोग बन गया है। 11-12 अक्तूबर, 2016 को बंगाल में 12 स्थानों पर दंगे भड़क उठे। कारण, मुहर्रम जुलूस में शामिल लोगों द्वारा दुर्गा पंडालों पर बम फेंककर आक्रमण और देवी प्रतिमाओं को खंडित किया गया। घटना के बाद ममता सरकार ने दंगाइयों पर सख्ती करने के स्थान पर हिंदुओं को फरमान सुनाया कि वे ताजियों के विसर्जन के पहले शाम 4 बजे तक दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन करें या फिर दो दिन बाद। इस निर्लज्ज तुष्टीकरण में कोलकाता उच्च न्यायालय ने दखल देते हुए टिप्पणी की,‘‘राज्य सरकार के रवैये से स्पष्ट नजर आ रहा है कि वह अल्पसंख्यकों को ज्यादा मान दे रही है और जो लोग बहुमत में हैं, उनके प्रति कोई भी उत्तरदायित्व नहीं निभा रही है…. राज्य सरकार एक समुदाय के पक्ष में कार्य कर रही है जो कि एक गैर जिम्मेदाराना रवैया है। और उन्होंने मां दुर्गा की पूजा कर रहे लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया है।’’ पर इन जिहादी उपद्रवियों पर प्रशासन कार्रवाई नहीं करता बल्कि विरोध जताने वाले हिंदुओं का उत्पीड़न अवश्य प्रारंभ कर देता है। ममता का हिंदुओं से ये कहना,‘‘कोई मंदिर तोड़ दे तो परेशान मत हो फिर से बनवा देंगे’’ उनके शासन की उपद्रवियों से मिलीभगत और शह देने की प्रवृत्ति की तरफ साफ इशारा करता है।
दंगों का दावानल
सीमा लांघता जिहादी उन्माद बंगाल को दंगों की राजधानी में बदल रहा है। ये तत्व बिना किसी उकसावे के हिंदुओं पर हमले कर रहे हैं। ममता के शासनकाल में 40 बड़े दंगे हो चुके हैं। इनमें हिंदुओं को जानो-माल का काफी नुकसान उठाना पड़ा है। 13 दिसंबर, 2016 को हावड़ा के धूलागढ़ में मार्गशीर्ष पूर्णिमा की पूजा के दिन ईद-ए-मिलाद का जुलूस निकाला गया जबकि ईद-ए-मिलाद एक दिन पहले संपन्न हो चुका था। जुलूस उन हिन्दू बस्तियों से निकल रहा था, जहां से कभी पहले नहीं निकला। हिन्दुओं ने इस बात का विरोध किया, बस फिर क्या था, मुस्लिम भड़क उठे और हिंदुओं के मकान और दुकानों पर हमले शुरू कर दिए। आगजनी और बमों की गूंज से इलाका थर्रा उठा। अगले 3-4 दिनों में सैकड़ों घर-दुकानें पूरी तरह ध्वस्त कर दी गर्इं। पुलिस तमाशा देखती रही। प्रशासन ने रोकथाम करने के स्थान पर प्रश्न पूछने वाले पत्रकारों की प्रताड़ना आरम्भ कर दी। एक समाचार चैनल के तीन कर्मचारियों पर पीनल कोड की धारा 153 ए लगाईं गई। मामले के तूल पकड़ने के बाद मुस्लिम पीड़ितों के लिए करोड़ों बरसाने वाले शासन ने पीड़ित हिंदुओं को पैंतीस हजार रु. की अनुग्रह राशि दे कर खानापूर्ति की। ऐसी ही नीतियों का परिणाम है कि बंगाल में कहीं न कहीं दंगे भड़कते ही रहते हैं। तोड़े गए अथवा जलाए गए मंदिरों की संख्या राज्य में सैकड़ों में है। जबकि ध्वस्त किये गए मकानों और दुकानों की संख्या हजारों में है। अक्तूबर, 2014 में 20 फीसद से अधिक मुस्लिम आबादी वाले इलाके बर्द्धमान जिले के खागरागढ़ के एक मकान में बम धमाका हुआ। जिसका मालिक तृणमूल कांग्रेस का नेता नूरुल हसन चौधरी है और भवन के प्रथम तल पर तृणमूल कांग्रेस का कार्यालय था। धमाके के बाद मौके पर पहुंची पुलिस को अंदर जाने से रोका गया ताकि ज्यादा से ज्यादा सबूत आग में नष्ट हो जाएं। बाद में जांच में भारी मात्रा में बम बनाने की सामग्री मिली। साथ ही आतंक का प्रशिक्षण देने वाले तालिबान के वीडियो, कई मानचित्र और गैर मुस्लिमों के विरुद्ध हिंसा का प्रचार करने वाला साहित्य भी मिला। इतना सब होने के बाद भी चोरी और सीनाजोरी की तर्ज पर बंगाल की मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए। ममता के नगरपालिका मामलों के मंत्री बॉबी हकीम अपने निर्वाचन क्षेत्र को ‘मिनी पाकिस्तान’ बताकर चर्चा में आए थे।
राज्य में जिहादी तत्वों के हौंसले इतने बढ़े हुए हैं कि वे पुलिस पर भी ताबड़तोड़ हमले कर रहे है। सीमा सुरक्षा बल भी इनके निशाने पर है। तो वहीं अबाध बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण पश्चिम बंगाल में हिंदू आबादी घटी है।
दुर्भाग्य से राज्य में एक महिला मुख्यमंत्री होते हुए भी लड़कियों की तस्करी, द पार्क स्ट्रीट रेप केस, कामधुनी बलात्कार मामले आदि में सरकार का उसका रवैया घोर आपत्तिजनक है। कामधुनी बलात्कार बंगाल इतिहास के दोराहे पर खड़ा है। भारत के सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को चुनौती दे रही और इक्कीसवीं सदी को मुंह चिढ़ा रही ममता सरकार बंगाल पर जो निर्ममता दिखा रही है वह एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है। आज ममता के बंगाल में नागरिक अधिकार और मानवाधिकार दोनों ही खिलौना बनकर रह गए हैं। लेकिन ममता बेपरवाह और बेधड़क, वोटबैंक की राजनीति के सबसे स्याह अध्याय में, पन्ने द पन्ने रंगती जा रही हैं।
तृणमूल के काडर जैसी है बंगाल पुलिस
बाबुल सुप्रियो
कोयंबतूर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में
बंगाल में हिन्दुओं के दमन पर जो प्रस्ताव पारित किया गया, वह बिल्कुल ठीक है। मेरा मानना है कि जिस धर्म से आप आते हैं, उस धर्म के लिए सचाई की लड़ाई लड़नी चाहिए। रा.स्व.संघ भारत माता और उसके सभी पुत्रों से प्रेम करता है। लेकिन गलत कार्य के विरोध में रहता है। इसलिए उसने जो प्रस्ताव पारित किया है, हम उसके साथ हैं।
पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक राजनीति आज चरम पर है। यहां के अल्पसंख्यकों को लगता है कि ममता बनर्जी की जीत के पीछे सिर्फ और सिर्फ उनका ही हाथ है। इसलिए वे जब भी चाहते हैं, कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं। समय-समय पर प्रदेश में इसके उदाहरण दिखाई दिए हैं। राज्य सरकार मुस्लिमों को खुश करने के लिए इतनी मतान्ध हो गई है कि स्कूलों में सरस्वती पूजा रोकने की बात कर रही है, जो पूजा सैकड़ों वर्षों से होती चली आ रही है। यह सभी समुदायों का देश है और किसी का भी जन्मदिन मनाया जा सकता है, तो फिर सरस्वती पूजा पर आपत्ति क्यों? सरस्वती पूजा को रोक देना और विद्यालयों में लड़कियों के साथ मारपीट करना कितना सही है? जबकि अल्पसंख्यकों के त्योहारों पर ऐसा कुछ नहीं होता। तो यह सब बिल्कुल स्पष्ट संकेत हैं कि ममता के लिए विकास बाद में और वोट बैंक पहले है। दूसरी बात बंगाल की पुलिस की बात करें तो वह तृणमूल के काडर जैसी है।
हमेशा बंगाल में सत्ताधारी पार्टी ने पुलिस को अपने काडर के रूप में प्रयोग किया है। इसलिए वह किसी भी घटना पर कार्रवाई करने के बजाए उनके काडर जैसा ही काम करती है और दिशा-निर्देशों को मानती है। हालात यहां इतने खराब हैं कि राज्य सरकार की तुष्टीकरण नीति के चलते हिन्दू सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे। सोश्ल मीडिया, जो कि आज समाज का एक आईना बन चुका है, उस पर आए दिन बंगाल से जुड़े समाचार हिलाकर रख देते हैं। मैंने तो खुद एक बार मुख्यमंत्री से कहा था कि आप यहां के एक समुदाय को उनके त्योहार, धार्मिक अवसरों पर इतनी तकलीफें और बंदिशें लगाती हैं लेकिन किसी इमाम की सभा को रोक कर दिखाइये?
राज्य का माहौल ऐसा बना दिया गया है कि कोई हिन्दू अगर कार्यक्रम करता है तो उसे करने नहीं दिया जाता। उसमें अनेक रोड़े अटकाए जाते हैं। लेकिन इसके बाद भी राज्य के लोगों को भ्रमित करने के लिए मुख्यमंत्री मंदिर के सामने हाथ जोड़ती हैं तो मस्जिद के सामने सिर पर कपड़ा ढककर आदाब करती हैं। ये सब तुष्टीकरण की राजनीति का शर्मनाक पहलू है और राज्य के लोगों को यह राजनीति दिखने भी लगी है। ममता बनर्जी को मेरी सलाह है कि उन्हें इस प्रकार की राजनीति से बचना चाहिए क्योंकि वे आग से खेल रही हैं। दुर्भाग्य से कहीं वोट बैंक की यह आग बंगाल को ही जला न दे।
एक ओर जहां भारत के प्रधानमंत्री ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात कर रहे हैं तो वहीं अभी भी कुछ लोग समाज को बांटने की राजनीति करके अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं। मेरा मानना है कि समाज में किसी को भी यह नहीं लगना चाहिए कि हम संख्या में अल्प हैं या ज्यादा। वह कोई भी समुदाय क्यों न हो!
भारतीय जनता पार्टी बंगाल में विकास के तरीकों पर मनन करती है। हम राज्य में हो रही असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। इसमें जो बाधा डालेगा हम उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे।
(लेखक भारत सरकार में राज्यमंत्री हैं। यह लेख अश्वनी मिश्र से बातचीत पर आधारित है।)
हिन्दुत्व की पहचान को नष्ट करना जिहादियों का उद्देश्य
आर.के.ओहरी
पश्चिम बंगाल की स्थिति हर दिन नाजुक होती जा रही है। मैंने अपनी पुस्तक ‘ग्लोबल वॉर अगेंस्ट काफिर’ में लिखा है कि कश्मीर
में जो हो रहा है, वह विश्व में हो रहे जिहाद का एक हिस्सा है। और कट्टरपंथियों का यह जिहाद सिर्फ हिन्दुओं के खिलाफ है, अन्य किसी समुदाय के खिलाफ नहीं। बंगाल में जो भी समस्या है, वह भी विश्व में हो रहे जिहाद का एक हिस्सा ही है। आप देखिए, कश्मीर पर पहले कैसे मजहबी उन्मादियों द्वारा कब्जा किया गया। कुछ मदरसे, मस्जिदें और फिर कुछ ऐसी बस्तियां बना लीं उन्होंने जहां कोई आ-जा तक नहीं सकता। ये ऐसी बस्तियां होती हैं कि जहां कानून का क्रियान्वयन नहीं होता। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ऐसे कुछ स्थान राजधानी दिल्ली में भी हैं। यहां पर पुलिस आसानी के साथ नहीं जा सकती। यही सब कुछ आज पश्चिम बंगाल में हो रहा है। आज राज्य में जो जिहादी गतिविधियां बढ़ रही हैं, उसका कारण ‘ग्लोबल जिहाद’ है। प्रदेश में जो भी हिंसा की घटनाएं हो रही हैं, दंगे किये जा रहे हैं वे सब जिहादी ही हैं। इनके विभिन्न समूह यहां कार्य करते हैं और उन सबका एक ही षड्यंत्र रहता है कि भारत की जो हिन्दुत्व की पहचान है उसे जिहाद द्वारा तहस-नहस करना है। मेरा एक सवाल रहता है कि क्या आप जिहाद को किसी समझौते से हरा सकते हैं? और जो लोग बंगाल और कश्मीर में होने वाली घटनाओं को जिहाद नहीं कहते तो मैं पूछता हूं कि जिहादी सूडान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आकर लड़ते रहे हैं, क्यों? अगर कोई राजनीतिक समस्या होती तो ये बाहरी तत्व नहीं आते। कुल मिलाकर यह सब कुछ आज बंगाल और केरल में हो रहा है। यह सोची-समझी साजिश है और जिहाद का हिस्सा है। अगर इन पर समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो ये तकलीफ देंगी। रही बात बांग्लादेश से होती घुसपैठ की तो वह हो रही है और होती रहेगी, जब तक कड़ाई से कोई कड़ा निर्णय नहीं लिया जाता। जो लोग मानते हैं कि यहां घुसपैठ और असामाजिक गतिविधियां रुकनी चाहिए तो कमर कस कर लड़ें। और नहीं लड़ना चाहते हैं तो आपका वही हाल होगा जो पहले हुआ है। दरअसल समस्या यह है कि हिन्दू बहुत जल्दी चीजों को भूल जाता है। वह न तो अपने भूतकाल से कुछ सीखता है और न ही इतिहास से। मुझे ऐसा लगता है कि 2060 तक दुनिया में मुस्लिम आबादी बढ़कर इतनी ज्यादा हो जाएगी कि ‘सिविल वॉर’ होगा। और मेरा तो यहां तक मानना है कि जब भारत अपना 100वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा होगा तो उस समय यहां गृहयुद्ध के हालात होंगे। पश्चिम बंगाल में ये बात आम है कि ‘ममता बनर्जी हाव-भाव से मुसलमान हो गई हैं।’ और रही बात राज्य में सत्ता की तो बंगाल में ममता का राज नहीं, बल्कि इमाम बरकती का राज है। वह जो कहता है, ममता उसे टाल नहीं सकतीं। कुल मिलाकर बंगाल में आज जो चल रहा है और ऐसे ही चलता रहा तो दूसरा कश्मीर बन जाएगा।
(लेखक अरुणाचल प्रदेश में लंबे समय तक पुलिस महानिरीक्षक रहे हैं)
तुष्टीकरण की बढ़ती विषबेल
जिष्णु बसु
पश्चिम बंगाल में जिहादी गतिविधियों पर राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया। तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक हिस्सा इस विषय को दबाने की कोशिश कर रहा है। उनके अनुसार संघ स्थानीय सांप्रदायिक अशांति के साथ जिहादी आतंकवाद को तूल देने की कोशिश कर रहा है। कुछ समय पहले कलियाचक में उन्मादियों द्वारा पुलिस थाने में तोड़फोड़ और लूटपाट को आतंकवादी गतिविधि कहा जा सकता है, लेकिन कटावा या अन्य स्थानों पर मंदिरों में जो गोमांस फेंकनं की घटनाएं हुर्इं, उसे क्या कहा जाए? कालीग्राम और ईमारबाजार में हिंदुओं पर एकतरफा हमले हुए। इससे समाज में शांति भंग हुई। राज्य में नक्सलवादियों द्वारा जिहादियों का समर्थन भी एक अलग घटना है। हालांकि ऐसे लोग बर्द्धमान विस्फोट या सिमुलिया मदरसे में जो घटना घटी उसका तर्क देने की हिम्मत नहीं करते हैं। रही बात मीडिया की जो अपने आपको आधुनिक और पल-पल की खबर देने का दावा करता है, वह कलियाचक के दंगे पर एक शब्द भी प्रकाशित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। लेकिन संघ ने जो प्रस्ताव पारित किया उसके पक्ष में आम लोग खड़े हैं, और प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं। यह बंगाल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण समय है। स्वामी विवेकानंद ने सचाई के लिए सब कुछ छोड़ने को कहा। आज इस पवित्र भूमि में किसी कवि ने कल्याणिक या खगरागढ़ विस्फोट पर कोई कविता नहीं लिखी? हंसखली में गरीब दलित लड़की पर एसिड हमला हुआ लेकिन तथाकथित बौद्धिक जमात से सड़क पर कोई नहीं उतरा? यह वही बंगाल है जिसने दशकों तक देश का नेतृत्व किया अब वही राज्य इस दशा में आ गया।
राज्य के हालात की तरफ नजर डालें तो इसकी शुरुआत निश्चित रूप से वामपंथी शासन में हुई। दशकों से यहां बंगलादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ को प्रोत्साहित किया गया। उनके मतदाता कार्ड और राशन कार्ड बनाए गए। ऐसे लोगों ने वोट बैंक के स्वार्थ के लिए देशहित को त्याग दिया। बर्द्धमान धमाके में शामिल शकील अहमद मुख्य आतंकवादी था। 2007 में करीमपुर-नादिया में इसका नाम मतदाता सूची में दर्ज किया गया था। धीरे-धीरे स्थिति यह हो गई है कि सीमावर्ती जिलों में भूमि, जल, जंगल इन पर घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है। अधिक जनसंख्या के चलते हिंदुओं को इन गांवों से पलायन करने पर बाध्य होना पड़ रहा है। इसके कारण यह स्थान धीरे-धीरे जाली नोट, हथियारों की तस्करी और गोवंश तस्करी के लिए गढ़ बन गया है।
टीएमसी आज मुसलमानों के तुष्टीकरण में ऐसी लगी हुई कि उसके अलावा उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। हालत ये है कि बहुत ही सहज रूप से तृणमूल और जिहादी तत्वों का आपसी गठजोड़ बन चुका है। ऐसे तत्व पार्टी के काडर के रूप में ही कार्य कर रहे हैं। इसका एक उदाहरण हम देख चुके हैं जब बर्द्धमान में प्रथम तल पर तृणमूल का कार्यालय था तो दूसरे तल पर आईईडी की फैक्टरी। वर्तमान में यहां जमीनी स्तर पर जिहादी तत्व स्थानीय कट्टरपंथियों को हिंसा के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मुस्लिम छात्रों को स्कूलों में नमाजी टोपी के साथ आने के लिए कहा जाता है। जमात-ए-उलेमा स्कूलों में नबी कार्यक्रम के लिए बुलाता है और बड़े कम समय में अथाह भीड़ जुट जाती है।
हिंदू समाज का सबसे अधिक प्रभावित वर्ग दलित समुदाय है। राजनीति के चलते इस वर्ग का कोई विकास नहीं किया गया है। वामपंथी शासन में दलितों का बहुत कम प्रतिनिधित्व था और यह परंपरा अभी जारी है। जिहादी इस सबका फायदा बड़े ही आसानी के साथ उठाते हैं और इस समुदाय पर लक्षित करके हमला करते हैं। दो वर्ष पहले यानी 4 जून, 2015 को जूरानपुर में नादिया के कालीगांव पुलिस थाने में तीन दलित गरीब व्यक्तियों की मौत हो गई थी। लेकिन राज्य सरकार की ओर से न तो कोई वित्तीय सहयता मिली और न कोई कार्रवाई हुई। क्योंकि उनके परिवार ने कट्टरपंथियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की बात जो की थी। पिछले साल खड़गपुर में लोहे की राड से खटीक समुदाय के एक युवा रोहित तांती को मार डाला गया था। 17 साल की एक दलित लड़की पर हमला किया गया, क्योंकि उसने 58 वर्षीय सांप्रदायिक नेता, इमान अली शेख के अशिष्ट प्रस्ताव को नकार दिया था। तो जिस दौर से आज पश्चिम बंगाल से गुजर रहा है, ऐसे में यहां के बुद्धिजीवियों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
‘‘रामायण-महाभारत की पढ़ाई नहीं होगी तो क्या कुरान की पढ़ाई होगी’’
सचिन्द्रनाथ सिन्हा
पश्चिम बंगाल में आज अनेक स्थानों पर दंगे हो रहे हैं, हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है, उद्योग-धंधों को नष्ट किया जा रहा है, हिन्दू मां-बहनों की अस्मिता से खेला जा रहा है। हालात ये हैं कि कई स्थानों पर हिन्दुओं का रहना तक मुश्किल हो गया है। इस दमन के बाद भी यहां का शासन-प्रशासन इतना निष्ठुर हो चुका है कि वह हिन्दुओं की एक बात तक सुनने को तैयार नहीं है। हिन्दू अत्याचार सहन करने को मजबूर है। हाल ही में धूलागढ़ में जो हुआ, उसने ममता के चेहरे पर से नकाब उतारकर फेंकी है। इस घटना के बाद से तो बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि वे तुष्टीकरण की विषवेल बढ़ाने पर आमादा हैं। बंगाल में दुर्गा पूजा प्रमुख त्योहार होता है। कुछ समय पूर्व मूर्ति विसर्जन के दिन सरकार ने अनेक नाजायज प्रतिबंध लगाए। तो वहीं राज्य के स्कूलों में सरस्वती पूजा की अनुमति तक नहीं दी गई। लेकिन दूसरी ओर सरकार की ओर से आदेश आता है कि नबी दिवस मनाया जाना चाहिए। इस आदेश से यही समझ में आ रहा है कि ममता मुसलमानों को खुश करना चाहती हैं। और इसीलिए हिन्दुओं की उपेक्षा करके हमारे मान बिन्दुओं का अपमान कर रही हैं। मुस्लिमों के अधिक से अधिक वोट कैसे मिलें, बस ममता की राजनीति उनके ही आगे पीछे रहती है।
दुख की बात यह है कि राज्य में ऐसा कोई भी दिन नहीं होता होगा जब हिन्दुओं पर कोई जुल्म न होता हो। छोटी-छोटी घटनाओं को गिनना ही तो मुश्किल है। इस सबके बाद भी बंगाल का हिन्दू जात-पात के नाम पर बंटा हुआ है। यानी अधिक संख्या में होने के बाद भी वह संगठित नहीं है। यहां का मुसलमान और तुष्टीकरण करने वाली सरकार इसी का फायदा उठा रही है। सरकार द्वारा एक तरफ उन स्कूलों को बंद करने की बात की जाती है जहां भारतीय संस्कृति, परंपरा, देश के महापुरुषों और अपने देश का गौरवशाली अतीत पढ़ाया जाता है। लेकिन वहीं दूसरी ओर मदरसे में क्या पढ़ाया जाता है, ममता का उस ओर कोई ध्यान नहीं जाता। जबकि यह तथ्य आज किसी से छिपा नहीं रह गया है कि कट्टरपंथ की शिक्षा सबसे ज्यादा मदरसों में ही दी जाती है। मुल्ला-मौलवियों को खुश करने के लिए इमामों को बाकायदा सरकार की ओर से भत्ता दिया जाता है। हिन्दुओं को राज्य में इससे ज्यादा दुर्दिन और क्या देखने होंगे कि उसके अपने ही देश में राज्य के शिक्षा मंत्री द्वारा यह कहा जाता है कि स्कूलों में रामायण-महाभारत नहीं पढ़ाई जाएगी। ऐसे लोगों से एक सवाल है कि बंगाल में रामायण-महाभारत की पढ़ाई नहीं होगी तो क्या कुरान-बाइबिल की पढ़ाई होगी? मेरा मानना है कि यह सब एक षड्यंत्र के तहत किया जा रहा है। यही कार्य कम्युनिस्टों ने भी किया था, उससे बढ़कर तृणमूल कर रही है। तभी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं का रहना दूभर हो गया है।
(लेखक कोलकाता में विश्व हिन्दू परिषद के क्षेत्र संगठन मंत्री हैं। )
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