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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक पुस्तक प्रकाशित हुई है- 'उत्तर प्रदेश विकास की प्रतीक्षा में'। गहन अध्ययन और आरटीआई से जुटाई गई जानकारियों को आधार बनाते हुए लेखक शांतनु गुप्ता ने अपने इस राज्य के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक आदि विविध पक्षों को छूते हुए मुख्यतया इसके राजनीतिक अतीत और वर्तमान को टटोलने का प्रयास किया है। खासतौर से इस बात पर जोर दिया है कि राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होने के बावजूद विकास के लिहाज से यह प्रदेश बेहद पिछड़ा क्यों है? क्या कारण है कि आज भी प्रदेश की अधिकांश जनता बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है? प्रदेश के इस पिछड़ेपन के लिए मुख्यत: कौन जिम्मेदार है? साथ ही, एक अंदेशा भी जताया है कि उत्तर प्रदेश कहीं राजनीतिक दलों के लिए महज वोट बैंक बन कर तो नहीं रह गया है? प्रस्तुत पुस्तक ऐसे तमाम ज्वलंंत प्रश्नों का सिलसिलेवार पड़ताल करती दिखती है। खास बात यह कि सूबे में विकास के भारी अभाव को तथ्यों, आंकड़ों और तकार्ें के साथ बेबाकी से रखा गया है।
सूबे में सर्वाधिक समय तक कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का शासन रहा है। इसमें भी आखिरी डेढ़ दशक सिर्फ सपा और बसपा को ही समर्पित रहा है। लिहाजा, इन दलों की चर्चा स्वाभाविक रूप से अधिक है। पुस्तक में कुल चौदह अध्याय हैं, जिनमें प्रदेश के राजनीतिक महत्व, इसके प्रभाव से लेकर उसके छोटे-बड़े मुद्दों तथा उन मुद्दों पर मौजूदा एवं पिछली सरकारों के फैसलों की सच्चाई को बेबाकी से रखा गया है। शुरुआती अध्यायों में प्रदेश की शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली और उसकी वजहों की गहराई से विवेचना की है। साथ ही, बीते डेढ़ दशक में घोटालों ने किस तरह सूबे को हाशिये पर लाकर पटक दिया, इसका भी विस्तार से उल्लेख है। इस दौरान सपा-बसपा सरकारों द्वारा बिजली मुहैया कराने के सब्जबाग दिखाकर सत्ता-सुख भोगने की हकीकत को सामने रख गया है। इसके अलावा, किस तरह इन सरकारों ने उद्योग-धंधों को बदहाली की राह पर धकेला और राज्य की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाली कृषि व्यवस्था दिनोंदिन गर्त में ले जा रही है, इन पहलुओं को भी रेखांकित और विश्लेेषित किया गया है।
प्रदेश के मुद्दों पर किस सरकार ने क्या किया, इसे भी तुलनात्मक नजरिये से स्पष्ट करने की कोशिश की गई है। बाद के अध्यायों में प्रदेश की लचर कानून व्यवस्था, घोटालों में सपा-बसपा की मिली-भगत, धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुख्यत: सपा की मुस्लिम मतों के तुष्टीकरण की राजनीति आदि विविध विषयों पर प्रकाश डाला गया है। कुल मिलाकर लेखक ने प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य और उस पर विकास की दृष्टि से विश्लेेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
पुस्तक में विशेष रूप से एन.आर.एच.एम घोटाला, यादव सिंह घोटाला, ताज कोरिडोर घोटाला, पुलिस भर्ती घोटाला, कुम्भ घोटाला, जननी सुरक्षा योजना घोटाला, स्मारक घोटाला आदि को आंकड़ों और तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने प्रदेश में हुए दंगांे और महिलाओं से जुड़े जघन्य अपराधों का भी विस्तार से विश्लेषण किया है। आखिरी अध्याय प्रदेश के सबसे कमाऊ शहर नोएडा पर है, जो बहुत दिलचस्प है। इसमें बताया गया है कि मुलायम, मायावती और अखिलेश किस तरह नोएडा पर एक सीईओ के जरिये लखनऊ से राज करते रहे और इसे जमीनी लोकतंत्र यानी नगर निकाय चुनाव से महरूम रखा। लेखक ने न सिर्फ यादव सिंह घोटाले में सपा-बसपा से जुड़ते तारों की ओर इशारा किया है, बल्कि इसकी पुष्टि भी की है।
भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रारंभ में ही स्पष्ट किया गया है। इसमें कहा गया है कि यह प्रदेश कई दशकों से तय करता आया है कि केंद्र की सत्ता किसके हाथों में रहेगी। 2014 लोकसभा चुनाव में भी सर्वाधिक लोकसभा सीटों वाले इस राज्य ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस समय प्रदेश की 80 में से 71 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं। अब जबकि प्रदेश में सात चरणों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, ऐसी स्थिति में यह पुस्तक सूबे के मतदाताओं के लिए उनके मुद्दों और उनके सामने करबद्घ वोट मांगने के लिए खड़े राजनीतिक दलों की नीति, मंशा अैर उद्देश्यों को समझने में मद्दगार साबित हो सकती है। इसके लेेखक युवाओं के प्रमुख संगठन 'युवा फाउंडेशन' के संस्घ्थापक और निदेशक हैं। यह संस्था युवाओं को नीति, राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर जागरूक करने का काम करती है।
* नागार्जुन
पुस्तक : उतर प्रदेश विकास की
प्रतीक्षा में
लेखक : शांतनु गुप्ता
पृष्ठ : 234
मूल्य : 100 रु.
प्रकाशक : ब्लूमबर्ग पब्लिशिंग इंडिया प्रा़ लि़,
द्वितीय तल, एलएससी बिल्डिंग
नंबर- 4, पॉकेट सी- 6 एवं 7,
वसंत कुंज, नई दिल्ली- 70
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