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वनवासी कल्याण परिषद ने तेलंगाना के अचमपेट में एक छात्रावास का पूरा खर्च उठाने के अलावा गुड़ीबंद में राम मंदिर भी बनवाया है।
-परिमला आयुष नादिमपल्ली-
तेलंगाना में चार साल पहले भाग्यंदर संभाग (हैदराबाद और सिकंदराबाद का क्षेत्र) वनवासी कल्याण परिषद् के महिला समूह ने एक सफर की शुरुआत की थी। इसके तहत समूह ने नगर कुन्नूर जिला के अचमपेट स्थित वनवासी बच्चों के एक छात्रावास का खर्च वहन करने का बीड़ा उठाया था। 'मल्लिकार्जुन विद्यापति निलयम' नामक यह छात्रावास चेन्चू जनजाति के बच्चों के लिए है। शुरू में तो समूह ने छात्रावास में बच्चों के खाने पर होने वाले खर्च का भार उठाया लेकिन दूसरे ही साल से छात्रावास का पूरा खर्च उठा लिया। अब वनवासी कल्याण परिषद् के महिला समूह ने अचमपेट छात्रावास से करीब 12 किलोमीटर दूर गुड़ीबंद गांव को गोद लिया है।
गुड़ीबंद चेन्चू जनजाति बहुल गांव है। इस जनजाति के लोग भगवान नरसिंह की पत्नी चेन्चू लक्ष्मी को अपना पूर्वज मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। कुछ समय पहले वनवासी कल्याण आश्रम ने गुड़ीबंद गांव में मंदिर निर्माण कार्य शुरू किया था, लेकिन किसी कारणवश काम अधूरा छोड़ना पड़ा। मंदिर निर्माण रुकने पर ग्रामीणों ने दोबारा काम शुरू करने का आग्रह किया। उनकी श्रद्धा और भक्तिभाव को देखते हुए भाग्यंदर वनवासी महिला समूह ने ग्रामीणों के साथ मिलकर मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी संभाली। मंदिर निर्माण के लिए समूह ने धन एकत्र किया और निर्माण कराया। इस अभियान से बहुत से लोग जुड़े जिनमें प्रख्यात वेदज्ञाता ब्रह्मश्री नरेंद्र कापड़े यानी गुरुजी भी शामिल हैं।
मंदिर निर्माण कार्य पूरा होने के बाद वनवासी कल्याण परिषद की टीम ने पिछले साल 25 से 31 दिसंबर तक भाग्यंदर में एक महिला कार्यकर्ता के घर में राम कथा का आयोजन किया। इसका उद्देश्य गुड़ीबंद में राम मंदिर को लेकर लोगों में जागरूता लाना था। इसमें करीब 300 लोगों ने हिस्सा लिया। इस साल 26 जनवरी को गुड़ीबंद में भारत माता पूजन का आयोजन किया गया। इसके बाद 26 जनवरी से 2 फरवरी तक भिक्षाटन के लिए ग्रामीण करीब दस गांवों में गए। उन्हें भिक्षा में जो चावल, दाल, इमली, चीनी, तेल और अन्य सामग्री मिलीं, उनका प्रयोग प्रसाद बनाने में किया गया। वहीं, शहरी महिलाओं ने पूजन सामग्री जुटाई। 2 फरवरी से अखंड राम नाम संकीर्तन शुरू हुआ और 7 फरवरी को मूर्तियों की शोभायात्रा निकाली गई। इसके बाद गुरुजी द्वारा तय शुभ मुहूर्त पर 9 फरवरी को माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन पूरी श्रद्धा, भक्तिभाव और उत्साह से 'विग्रह प्रतिष्ठा' कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस समारोह में 1000 से अधिक लोग शामिल हुए। इनमें भाग्यंदर के 20 परिवार भी शामिल थे। वहीं, छात्रावास में चेन्चू बच्चों के साथ रहने वाले वेदों के जानकार पंडित भी ग्रामीणों से जुड़ाव बढ़ाने के लिए पांच दिन तक गांव में रहे।
मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ग्रामीणों ने नित्य पूजा की जिम्मेदारी उठाई है। कुछ माह पहले आटा चक्की के लिए भी कुछ धनराशि एकत्र की गई थी, जिसे ग्रामीणों को दान कर दिया गया। इस आटा चक्की से होने वाली कमाई का आधा हिस्सा मंदिर और गांव की बेहतरी पर खर्च होगा। समूह ने एक बार इस गांव में बैठक की थी, जिसमें कुछ महिलाओं ने कहा था, 'हमें भीख नहीं, मार्गदर्शन की जरूरत है।' इसी को ध्यान मंे रखते हुए यह व्यवस्था की गई है।
(लेखिका वनवासी कल्याण परिषद (तेलंगाना)
की प्रांत सह महिला प्रमुख हैं)
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