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15 जनवरी, 2017
आवरण कथा 'दर्द अनदेखा' मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शासन-प्रशासन के पंगु होने का उदाहरण है। धूलागढ़ में हिंदुओं पर जो जुल्म ढहाए गए, उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। आज ये परिवार एक-एक दाने को तरस रहे हैं। जहां इनका रोजगार छिना, वहीं किसी का व्यापार। आधे से ज्यादा परिवारों में तबाही का आलम है। लेकिन इस सबके बाद भी सेकुलरों के मुंह से आह तक नहीं निकल रही है। अब मानवाधिकारों की बात करने वाले कहां गए? क्या हिंदुओं के अधिकार इन्हें दिखाई नहीं देते? क्या फिर हिंदुस्थान में हिंदुओं के साथ होते अत्याचारों पर उन्होंने अपनी जुबान सिल ली है? आखिर तुष्टीकरण की राजनीति कब तक चलेगी?
—सूर्यप्रताप सिंह, कांडरवासा (म.प्र.)
धूलागढ़ की रपट आंखों में आंसू ला देती है। सैकड़ों उन्मादियों ने हिंदू घरों पर हमला करके निरीह मां-बहनों पर अत्याचार किया और घर, दुकान, संपत्ति सब कुछ जलाकर तहस-नहस कर दिया। इससे बढ़कर कट्टरता का उदाहरण और क्या हो सकता है? पश्चिम बंगाल में ममता सरकार बनने के बाद से उन्मादियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वे आए दिन इस तरह की वारदातें करते हैं और प्रशासन उन पर कोई कार्रवाई ही नहीं करता। मुख्यमंत्री इस मामले में अभी तक चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
यह रपट सभी भारतीयों की आंख खोलने के लिए काफी है। जो अभी भी सेकुलर बनने के लिए व्याकुल दिखते हों, उन्हें इस रपट को पढ़ना चाहिए। केंद्र सरकार को धूलागढ़ पीडि़तों को उचित न्याय दिलाने के लिए ठोस पहल करनी होगी। अभी तक उन्हें कोई ठोस राहत नहीं मिल पाई है। साथ ही बंगाल सहित देश के अन्य स्थानों पर जहां हिंदू दंगों में प्रभावित हुए हैं, सरकार उनके पुनर्वास और रोजगार की तत्काल व्यवस्था कराएं। ममता सरकार धुलागढ़ में शामिल सभी मुसलमानों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की भी पहल करे।
—आनंद कनौजिया, वाराणसी (उ.प्र.)
पश्चिम बंगाल में आए दिन हो रहे हैं दंगों का सबसे प्रमुख कारण बंगलादेश से आए हुए घुसपैठी मुसलमान हैं। ये लोग पहले अपनी जनसंख्या बढ़ाते हैं और बाद फिर यहां के हिंदुओं को प्रताडि़त करना शुरू कर देते हैं। विरोध करने पर मालदा और धूलागढ़ जैसा अंजाम होता है। ये घुसपैठिये इतने मजबूत हो चुके हैं कि शासन इनकी मदद करता है क्योंकि इनके पास वोटबैंक की ताकत जो है। ये हर गलत काम को करते हैं फिर भी किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं होती। आज बंगाल के हिंदुओं को जागने की जरूरत है। नहीं तो मालदा और धूलागढ़ जैसी घटनाएं आए दिन होंगी और हिंदुओं की चीख पुकार कोई नहीं सुनेगा।
—हरीशचन्द्र धानुक, लखनऊ (उ.प्र.)
ममता बनर्जी खुद एक महिला हैं और उन्हें महिलाओं के दु:ख-दर्द से ही कोई वास्ता नहीं, इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है। धूलागढ़ में सैकड़ों महिलाओं पर मुसलमानों ने जो अत्याचार किए, उन्हें शब्दों में बताना संभव नहीं है। लेकिन इसके बाद भी मुख्यमंत्री द्वारा ऐसी घटनाओं की भर्त्सना तक न करना सोचने पर विवश करता है। क्या यह उनके निष्पक्ष शासन को दिखाता है या तुष्टीकरण की तरफ इशारा करता है। वोट बैंक के लिए वे इतना गिर सकती हैं?
—मनमोहन वेनवंशी, समस्तीपुर (बिहार)
दुर्भाग्य से कुछ चंद लोग देश को उन्माद की आग में धकेलना चाहते हैं और शायद वे अपने मंसूबे में खरे भी उतर रहे हैं। बंगाल ही नहीं, देश के अन्य प्रदेशों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनती जा रही है। दादरी कांड, कैराना प्रकरण इसी उन्माद का हिस्सा हैं। ये सिर्फ चंद उदाहरण हैं जो यह बताने के लिए काफी हैं कि अगर हिंदू एक नहीं हुए तो आने वाला समय और ज्यादा खतरनाक होगा और हम ताकते
रह जाएंगे।
—रोशनलाल, मेरठ (उ.प्र.)
बंगाल में हिंदुओं पर जो अत्याचार हुआ, उसकी जितनी भी आलोचना और निंदा की जाए, कम है। यह सोचकर दुख होता है कि यह जिस प्रशासन के कंधे पर लोगों की सुरक्षा का दायित्व होता है वह सुरक्षा की जगह लोगों को डर से भागने के लिए तो कहे, इसे क्या समझा जाए? धूलागढ़ में पुलिस की मिलीभगत के चलते उन्मादी प्रशासन के सामने ही हिंदुओं के घर जलाते रहे और वह मूक दर्शक बनकर तमाशा देखता रहा। यहां तक कि देश विरोधी नारे भी लगाये गए लेकिन पुलिस ने उन पर कोई कार्रवाई ही नहीं की। आखिर इसे क्या समझा जाए?
—नीलम ठाकुर, अहमदनगर (महा.)
केंद्र सरकार को बंगलादेशी घुसपैठियों पर कड़ी कार्रवाई करनी ही होगी। क्योंकि देश में के कई हिस्सों में इनकी संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। और ये संख्याबल बढ़ने से अपराध और दंगे कर रहे हैं। बंगाल में ममता सरकार इनको पाल पोस रही है जिससे यह विषबेल लगातार बढ़ रही है। लेकिन अन्य स्थानों पर जहां ये घुसपैठिये बसे हुए हैं, उन्हें देश से खदेड़ा जाना चाहिए और इन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई
होनी चाहिए।
—निहाल सिंह, मेल से
ममता कैसे अपने प्रशासन का दुरुपयोग करती हैं, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 14 जनवरी को होने वाले कार्यक्रम में दिखा। पहले से तय कार्यक्रम को राज्य सरकार ने अनुमति देने से मना कर दिया। कार्यक्रम न होने पाए इसके लिए उसने कुतकोंर् को तर्क बनाकर पेश किया। लेकिन संघ तो शांति और सद्भाव का काम करता है, तो फिर उसके कार्यक्रम पर कौन ग्रहण लगा सकता था। न्यायालय ने इस पर त्वरित निर्णय लिया और कार्यक्रम के लिए अनुमति दी। ममता संघ से टकराने और इसे रोकने की कोशिश न करें क्योंकि इससे टकराना उनके वश
की बात नहीं है। संघ का कार्य ईश्वरी कार्य है।
—सौरभ त्यागी, मेल से
पूरे होते वादे
रपट 'कतार के पार' से जाहिर होता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी करके काली कमाई करने वालों को चोट दी है। आमजन को फैसले के बारे में ठीक से समझना चाहिए। फैसले के बाद कैसे कुछ चेहरे बिलबिला रहे थे। दरअसल ये सभी काली कमाई में डूबे हुए थे। माया-ममता के चेहरे पर जो छद्म आवरण पड़ा था, वह कम से कम दिखाई तो दिया और इनकी असलियत इसी बहाने समाज के सामने आ गई।
—अरुण मित्र, रामनगर (दिल्ली)
होते पस्त हौसले
रपट 'आतंक पर कसता शिकंजा' से स्पष्ट है कि केन्द्र में राजग सरकार बनने के बाद से आतंकवादियों के हौसले पस्त हुए हैं। हां, ये जरूर है कि हाल के दिनों में सीमा पार से आतंकवादी घटनाओं में इजाफा हुआ है लेकिन खुशी इस बात की है कि जितने आए, उतने साफ भी हो गए। दरअसल यह पाकिस्तान की छटपटाहट है, इसलिए वह भारत में आतंकवादियों को भेज रहा है। लेकिन सरकार को और सख्ती बरतनी चाहिए और इन पर लगाम लगानी चाहिए।
—जितेन्द्र कुमार, चड़ीगढ़ (हरियाणा)
पिछली सरकारों ने अगर कश्मीर में सख्ती बरती होती तो आज जो हालात यहां के हैं, वे नहीं होते। एक तरीके से कहा जाए कि पिछली सरकारें आतंकवादियों और अलगाववादियों के आगे नतमस्तक थी। वे जो कहते, सरकार वही करती थी। लेकिन अब समय और सरकार दोनों बदल गए हैं। ऐसी सरकार आई है जो बराबर राष्ट्र हित के बारे में सोचती है। ऐसे में इनके पेट में मरोड़ होना स्वाभाविक है।
—महेशचंद गंगवाल,अजमेर (राज.)
एक तरफ देश के प्रधानमंत्री अपने पड़ोसी देश के साथ मित्रता की हर संभव कोशिश में लगे रहते हैं लेकिन हमारा पड़ोसी है कि अपनी ओछी हरकत से बाज नहीं आता। आए दिन सीमा पार की ओर से होते हमले और टुकडि़यों में भेजे जा रहे आतंकवादी उसकी घृणित मानसिकता को दर्शाते हैं। अभी तक भारत ही पाकिस्तान का विरोध करता था लेकिन आज विश्व के कई दर्जन देश इस लाइन में हैं और उसे आतंकी राष्ट्र घोषित करने के लिए हुंकार भर रहे हैं। अब भी समय है कि वह अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकता है। बेहतर होगा कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवादी घटनाओं की बजाए विकास के लिए करे।
—विमल नारायण खन्ना, कानपुर (उ.प्र.)
रास्ता दिखाता संघ
हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर
केंद्रित संग्रहणीय विशेषांक के लिए
पाञ्चजन्य परिवार को बधाई। संघ के 90 वर्ष के इतिहास के बारे में बहुत कुछ जानने- समझने को मिला एवं कई प्रश्नों के उत्तर
भी मिले जो मन में घुमड़ रहे थे। इस नौ
दशक लंबे समय में संघ की देश के प्रति महती भूमिका रही और उसका भारत की सेवा में अभूतपूर्व योदगान रहा।
—दिनेश राजमोहन, भोपाल (म.प्र.)
लोकतंत्र को नरक बनाया॥
दोनों शहजादे मिले, क्या होगा परिणाम
लूटपाट के रास्ते, होंगे खुले तमाम।
होंगे खुले तमाम, आज हैं गले लगाते
जो कल तक थे दूजे को पापी बतलाते।
कह 'प्रशांत' फिर राजतंत्र परचम लहराया
शहजादों ने लोकतंत्र को नरक बनाया॥
— 'प्रशांत'
पुरस्कृत पत्र
अब न सहेगा हिन्दू
कब तक हिंदुओं की पीड़़ा और दर्द का उबाल ऐसे ही देश सहता रहेगा। बंगाल का धुलागढ़ उन्मादियों की बर्बरता का एक ऐसा उदाहरण है जिसे भारतवासी अनदेखा नहीं कर सकते। बंगाल में पहले वामपंथी शासन में हिंदुओं पर जुल्म ढहाये जाते रहे, अब ममता की तृणमूल सरकार में भी हिंदू ही निशाना बन रहे हैं। जो लोग दूर बैठे हैं उन्हें हिंदुओं की पीड़ा से कोई मतलब ही नहीं है। उन्हें तो ऐसी खबरें अतिरंजित और उन्माद फैलाने वाली लगती हैं। लेकिन जब वे हकीकत देखेंगे तो उन्हें घटना की गंभीरता का अंदाजा होगा। हिंदुओं पर हुई हिंसा सिर्फ हिंसा नहीं बल्कि कलंक है। इसे इंसानियत का पतन ही तो कहेंगे कि इन बेचारे हिंदुओं के घर जलने के बाद भी इनके आंसू तक पोंछने कोई नहीं गया। लेकिन जहां एक मुसलमान मरता है तो पूरी सेकुलर जमात और झोलेधारी मानवाधिकार कार्यकर्ता हांफते हुए पहुंच जाते हैं। लेकिन धुलागढ़ जाने के लिए उन्हें समय नहीं मिला और न ही उन्हें घटना की शायद जानकारी हुई। यहां कई दिनों तक उन्मादियों द्वारा उत्पात मचाया जाता रहा लेकिन राज्य की ममता सरकार को भी कुछ नहीं दिखा। क्या सरकार को इनकी चीखें सुनाई नहीं दीं? उलटे उनका प्रशासन हिंदुओं को सुरक्षा देने के बजाए अपने घर छोड़कर भागने के लिए कहता दिखाई दिया। केंद्र सरकार को इस हिंसा की कड़ाई से जांच करानी चाहिए और जो भी इसमें शामिल हों, उनको किसी भी हालत में नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
— हरिहर सिंह चौहान, जंबरीबाग, नसिया, इंदौर (म.प्र.)
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