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असहिष्णुता की सारी हदें पार करते हुए कट्टरवादियों ने क्रिकेटर मोहम्मद कैफ, मोहम्मद शमी और 'दंगल गर्ल' जायरा वसीम को सोशल मीडिया पर गंदी-गंदी गालियां दीं। उन्हें गैर-मजहबी ठहराने की कोशिश भी हुई, लेकिन इसके लिए किसी भी सेकुलर बुद्धिजीवी ने अपना पुरस्कार वापस नहीं किया। अब कहां हैं वे लोग?
गुलरेज शेख
आपको वह वक्त याद होगा जब असहिष्णुता के नाम पर तथाकथित कुछ सेकुलर बुद्धिजीवियों ने पुरस्कार वापसी के लिए राजनीतिक स्वयंवर रचाया था। वह स्वयंवर इतना सफल था कि उसने पुरस्कार वापसी की होड़ में सम्मिलित होने वाले दर्जनों बच्चों को जन्म दे दिया। परंतु बिहार चुनाव के बाद ये बुद्धिजीवी और इनके चेले कहां छुप गए, पता ही नहीं चल रहा है। अब असहिष्णुता के नाम पर कहीं कोई शोर नहीं है। मानो असहिष्णुता हो ही नहीं रही है। कन्हैया कहां है, कोई नहीं जानता। संभव है कोई राजनीतिक दल आगे के चुनावी प्रयोग हेतु उसका लालन-पालन कर रहा हो। पर इस राजनीतिक स्वयंवर में भाग लेने वालों में एक भी ऐसा नहीं दिख रहा है, जो कट्टरवादी मुसलमानों द्वारा की जा रही असहिष्णुता के बारे में कुछ बोल रहा हो। सबकी जुबान बंद है। मानो उनकी जुबान पर ताला लग गया हो।
वहीं दूसरी ओर इन कट्टरवादियों की असहिष्णुता से तरक्की-पसंद और प्रगतिशील मुसलमान परेशान हैं, लेकिन इसके लिए किसी भी बुद्धिजीवी ने न तो कुछ बोला और न ही अपना पुरस्कार वापस किया। आपको याद होगा कुछ दिन पहले क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने सूर्य नमस्कार करते हुए अपनी तस्वीर ट्वीटर पर डाली थी तो कट्टरवादी उन पर टूट पड़े थे। उन लोगों ने न जाने कितनी अभद्र बातें कैफ के लिए कीं। कैफ पर टूटने वाले कट्टरवादियों ने सेकुलर चादर ओढ़ रखी थी। शायद इसीलिए किसी भी बुद्धिजीवी ने उनके विरोध में अपनी जुबान तक नहीं हिलाई।
कट्टरवादी असहिष्णुता के दूसरे शिकार हैं क्रिकेटर मोहम्मद शमी। शमी ने ट्वीटर पर अपनी पत्नी की एक तस्वीर पोस्ट की थी। वह तस्वीर हर नजरिए से शालीन थी, लेकिन कट्टरवादियों ने उस तस्वीर को अश्लील बता कर मोहम्मद शमी को न जाने कितनी तरह की अश्लील गालियां दीं। परंतु शमी ने जिस प्रकार से इन कट्टरवादियोंं का न केवल विरोध किया, अपितु कैफ के सूर्य नमस्कार का उत्साहवर्धन भी किया, वह सराहनीय है। लेकिन शमी पर असहिष्णुता के प्रहार यहीं नहीं रुके। सुरक्षा बलों के ड्यूटी डॉग के संग पोस्ट की गई एक फोटो पर (कुत्ते को अपवित्र जीव बता कर) भी कट्टरवादी शमी को लताड़ने लगे। वे लोग शमी को गैर-मजहबी सिद्ध करने की होड़ में ऐसे भोंकने लगे जैसे चोर के पीछे कुत्ते, वह भी तब, जब शमी के पिता दिल के दौरे के पश्चात् अस्पताल में भर्ती थे। अब वे इस दुनिया में रहे भी नहीं। पर शमी तो शेर निकले और उन्होंने बता दिया कि शेर कुत्ते के सामने कभी नहीं झुकता। पर ऐसी अपेक्षा एक 16 वर्षीया किशोरी से नहीं की जा सकती। वह किशोरी कश्मीर की अशांत घाटी से निकल कर, अपनी प्रतिभा से सबका दिल जीतने वाली 'दंगल गर्ल' जायरा वसीम है। कट्टरवादियों ने उनको भी नहीं छोड़ा, लेकिन जायरा में वह हिम्मत नहीं हो सकती, जो शमी ने दिखाई है। इसलिए जायरा को बचाव की मुद्रा में आना पड़ा। पर असहिष्णुता की वास्तविक चांदमारी सोशल मीडिया की साइबर स्पेस नहीं, बल्कि समाज में पोषण पाने वाले मध्यकालीन मस्तिष्क हैं। ये लोग तरक्की पसंद लोगों की आवाज की गति को बूचड़खानों के बकरों की आवाज से भी कम आंकते हैं। कट्टरवादियों के विरुद्ध कार्रवाई न होने के कारण इनकी जुबान इतनी लंबी हो चुकी है कि टेलीविजन की लाईव चर्चा में भी ये लोग असहिष्णुता की सारी हदें लांघ जाते हैं। इनकी जुबान को बंद करनी होगी, अन्यथा ये देश के लिए खतरा बन जाएंगे।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
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