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पिछले कई वषार्ें से जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) समाज के लिए नए विचारों के मंच की भूमिका निभाता रहा है। यह महोत्सव कला जगत, विचार-विनिमय एवं बौद्धिक धड़ों को अपने स्तर पर सहेजने का काम करता है। कहने की जरूरत नहीं कि विश्व के इस सबसे बड़े मुक्त महोत्सव में इस वर्ष भी कुछ रोचक घटनाक्रम देखने को मिले। 'चिर-परिचित कथाओं' से लेकर 'साहित्यिक अनुवाद की राजनीति' तक विभिन्न विषयों को महोत्सव निदेशकों ने परिचर्चाओं के लिए उठाया।
निदेशकों एवं अन्य प्रतिनिधियों के साथ राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने महोत्सव के 10वें संस्करण का उद्घाटन किया। स्थानीय राजस्थानी लोकसंगीत एवं नृत्यों की छटा में महोत्सव की 10 वर्षीय यात्रा की यादें ताजा हुईं। प्रमुख संबोधन शायर-फिल्मकार गुलजार का था एवं अमेरिकी कवि एन्ने वेल्डमैन ने उद्घाटन के अवसर पर अपनी नई कविताओं के अंशों का पाठ किया। लोगों की मौजूदगी ही नहीं बल्कि दुनिया भर से आए सहभागियों की पोशाकों, परिधानों एवं चलते-फिरते फैशन की विविधता ने समूचे परिवेश को आनंदोत्सव का-सा माहौल दे दिया था। इस 5 दिवसीय साहित्यिक महोत्सव में हिस्सा लेने आए तमाम लोगों के लिए प्रतिदिन विभिन्न सत्रों में कुछ न कुछ नया खोजने-जानने को था।
स्वप्न दासगुप्ता, सुहेल सेठ से लेकर प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय जैसे वक्ताओं की गहन एवं विचारोत्तेजक बहस उम्मीद के अनुरूप ही रही। सत्र का संचालन बरखा दत्त ने किया। स्नोडेन फाइल्स पर विदेशी पत्रकार ल्यूक हार्डिंग ने दुनिया के 'मोस्ट वांटेड' व्यक्ति से जुड़े कई अनजान पक्षों का खुलासा किया।
नागरिक अधिकारों से लेकर दलित अधिकारों तक, महिला अधिकारों से लेकर लिंग समानता और इस मुद्दे पर कुछ क्षेत्रों में फैले विद्वेष पर बहस सुनाई दी। लेखिका अमृता त्रिपाठी एवं अन्य ने झूठे पुरुषवादी वर्चस्व और समाज के प्रत्येक स्तर पर उसके असर को बहस के दायरे में समेटा।
विमुद्रीकरण पर एक सत्र होना अनिवार्य था। सुहेल सेठ ने प्रधानमंत्री को इस बेहतरीन कार्य के लिए धन्यवाद दिया। 'गैम्बिट एंड गेम चेंजर्स' सत्र में भारतीय अर्थव्यवस्था पर विभिन्न पक्षों से बात की गई। ब्रिटिश पत्रकार जॉन इलियट ने इस बहस का आगाज किया कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ने विमुद्रीकरण के साथ एक संकट स्थिति को जन्म दिया है। इस मुद्दे पर सत्र में एक-दूसरे के पाले में गेंद उछालने के प्रयास दिखाई दिए। कुछ प्रतिभागियों ने कर चोरों पर सख्ती में पारदर्शिता एवं टैक्स अनुकूलता के मौजूदा हालात पर सवाल उठाए।
'पेज माइटियर दैन द स्क्रीन' सत्र में मैनबुकर पुरस्कार विजेता उपन्यासकार एवं पटकथा लेखक रिचर्ड फ्लैनागन ने पिछले एक दशक में डिजिटल मीडिया के तूफान के कारण प्रकाशित कथा साहित्य पर बढ़ते खतरे पर अपने विचार रखे। संचालक स्वप्न दासगुप्ता एवं कुछ अन्य बुद्विजीवियों सदस्यों ने 'कोहिनूर' हीरे पर विमर्श किया। सत्र में उम्मीद से कहीं अधिक भीड़ जुटी।
भारतीय पत्रकारों सुधीर चौधरी एवं रोहित गांधी ने न्यूजरूम के सच एवं देश व उसके बाहर खबरों से जुड़े अविश्वास एवं निराशावाद पर एक रोचक सत्र में विमर्श किया। 'पेड न्यूज एवं मीडिया संस्थानों में राजनीतिक दखलंदाजी' पर पत्रकार रोहित गांधी ने कहा, ''आज तकनीक का ऐसा स्तर है कि कोई भी झूठ कुछ ही मिनटों में पकड़ा जा सकता है।'' हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया तंत्र पर भरोसा कुछ कम हुआ है। सुधीर चौधरी ने रिपोर्ताज के स्वर एवं उसकी अवधि पर बात की। खबरों में ईमानदारी और पारदर्शिता की कमी पर उन्होंने कहा कि खबरिया जगत में तार्किक, निश्छल एवं जांची-परखी रिपोर्टिंग को अधिक स्थान मिलना चाहिए।
उत्सव के दूसरे दिन 'ऑफ सैफ्रन एंड द संघ' सत्र का सबको बेसब्री से इंतजार था। इस सत्र में रा. स्व. संघ के दो अ. भा. अधिकारियों ने अपने विचार रखे। संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले तथा अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ़ मनमोहन वैद्य ने कुछ कठिन प्रश्नों का सामना किया और विभिन्न मुद्दों पर संगठन के विचार और विचारधारा की चर्चा की।
सत्र की शुरुआत में संघ के दोनों अधिकारियों ने मूल मुद्दों पर चर्चा की एवं संघ के हिंदुत्व एवं राष्ट्रवाद से जुड़े कार्य एवं दर्शन को सबके सामने रखा। हिन्दुत्व के संदर्भ में संघ का विचार रखते हुए डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा, ''यह भारत का चरित्र, उद्भव एवं दृष्टि है। हम अनेकता में एकता में यकीन रखते हैं। सभी पंथों को समायोजित करना ही हिंदुत्व है। यह धर्म से संबंधित न होकर जीवनशैली से जुड़ा विचार है। भारत एक आध्यात्मिक लोकतंत्र है। इसलिए सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए।''
श्री दत्तात्रेय होसबाले ने राष्ट्रवाद को देशभक्ति का मनोभाव एवं अपने देश से जुड़ी निष्ठा बताया। उन्होंने कहा, ''हमें एक ही राष्ट्र के तौर पर मिलकर रहना है। राष्ट्र सभी लोगों को जोड़ता है। राष्ट्र में विश्वास अटूट रहना चाहिए।''
राजनीतिक हिंसा पर संघ के विचारों के संबंध में एक प्रश्न पर श्री होसबाले ने कहा, ''संघ किसी किस्म की हिंसा का समर्थन नहीं करता। यदि कुछ लोगों का मकसद अराजकता पैदा करना है तो कुछ मामलों में प्रतिक्रिया करना मानव स्वभाव है। हम कानून-व्यवस्था का पालन करने वाले नागरिक हैं।'' केरल में संघ कार्यकर्ताओं की लगातार हो रही हत्याओं पर उन्हेांने कहा,''आज भी संघ के स्वयंसेवकों को मारा जा रहा है। महिलाओं एवं बच्चों को जिंदा जलाया जा रहा है, लेकिन इस संबंध में केरल सरकार ने क्या किया? राज्य में हिंसा बढ़ती जा रही है परन्तु सरकार कुछ नहीं कर रही है। हम कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं, लेकिन मीडिया उसकी कवरेज नहीं करता। इसी कारण सच लोगों के सामने नहीं आता है। केरल सरकार से मेरी अपील है कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाए और लोगों की रक्षा करे।''
संघ के अधिकारियों को बुलाए जाने पर उनके सत्र का बहिष्कार करने वाले नेताओं एवं गुटों पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा, ''वे लोग कहां हैं जो खुद को 'सहिष्णु' कहते हैं? वे केरल के लोगों के लिए क्या कर रहे हैं?''
जाति व्यवस्था एवं आरक्षण नीति के मुद्दे पर डॉ. मनमोहन वैद्य ने स्पष्ट कहा, ''हम आरक्षण का समर्थन करते हैं, परंतु हम पंथाधारित आरक्षण के पक्ष में नहीं हैं।'' संघ अपने संस्थापक डॉ़ हेडगेवार के एकीकृत राष्ट्र के सपने के कितना निकट पहुंचा, इस प्रश्न के उत्तर में डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा, ''संघ समाज को संगठित कर रहा है, न कि समाज के भीतर का एक संगठन है। हम अध्यात्म आधारित जीवन दर्शन को मानते हैं। हम लोगों को एक देश के रूप में साथ ला रहे हैं। लोगों को समस्याओं का सामना करने के लिए खुद ही सशक्त होना चाहिए, न कि सरकार पर आश्रित रहना चाहिए।''
इसके अलावा, एक अनियतकालीन सत्र में बंगलादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन पुलिस की सुरक्षा में वहां पहुंचीं। महोत्सव के अंतिम दिन उनकी मौजूदगी ने एक बार फिर कट्टरवाद के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता और भारत के प्रति उनके प्रेम के संकल्प को दोहराया। भारत में महिला अधिकारों को आधार बनाकर उन्होंने समान नागरिक संहिता पर अपने विचार रखे। खुद को पंथनिरपेक्ष कहने वालों पर बरसते हुए उन्होंने कहा, ''लोग पंथनिरपेक्ष देश की बात करते हैं। पंथनिरपेक्षता से उनका क्या मतलब है? क्या पंथनिरपेक्षता का अर्थ यही है कि आप मुस्लिम कट्टरवादियों को लोगों के खिलाफ फतवों की घोषणा करते रहने दें?''
उन्होंन आगेे कहा, ''मुस्लिम जो भी करें, उसके लिए उनकी जगह हिंसा के शिकार हुए लोगों को दंड भोगना पड़ता है।'' बाद में सभा स्थल के बाहर मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों द्वारा उनके खिलाफ नारेबाजी करने की भी खबर मिली। इस वर्ष के जेएलएफ में संघ के अधिकारियों की मौजूदगी के बाद यह महोत्सव पहली बार समाज के सभी पक्षों के साझा मंच के तौर पर उभर कर सामने आया। -खुशबू अग्रहरि
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