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थल सेना, नौसेना और वायु सेना देश की शक्ति के तीन सैन्य अंग हैं। युद्ध का इतिहास गवाह है कि युद्घभूमि में अंतिम विजय तीनों सेनाओं के संयुक्त प्रयास से ही प्राप्त होती है।
—श्री प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
एयर मार्शल पी. के. राय
इक्कीसवीं सदी में युद्धनीति की जटिलता लगातार बदलती जा रही तकनीकी एवं उससे जुड़ा सामरिक और सुरक्षा परिवेश इस बात पर निर्भर करता है कि युद्ध के समय विभिन्न रक्षा सेनाओं के बीच प्रशिक्षण, तैयारी एवं उसे अमल में लाने के लिए वह किस हद तक एक दूसरे से संपर्क, सहयोग एवं साझा प्रयास कर सकती हैं। इसलिए आज एकजुटता विकल्प नहीं है, आज की गहन जरूरत है।
भारतीय सशस्त्र सेनाओं को बढ़ती जरूरतों के अनुसार तैयार रहना होगा जो केवल अपनी क्षमता में सुधार करना नहीं है, यह प्रशिक्षित सैनिकों एवं अत्याधुनिक उपकरणों की तैयारी है। उन संबद्ध ढांचों को स्थापित करना है जिनके अनुसार उनकी क्षमता में वृद्धि हो सके। यह सच है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारतीय सशस्त्र सेनाओं में संयुक्त भाव भरने के प्रयास नहीं किए गए। हालांकि, करगिल युद्ध के बाद, करगिल पुनरीक्षण समिति की सिफारिशों पर मंत्रियों के समूह ने अंदमान एवं निकोबार कमान यानी एएनसी की स्थापना की थी। यह देश की पहली और अभी तक की एकमात्र एकीकृत परिचालक कमान है। इसका एक अनुमोदित हेडक्वाटर्स इंटिग्रेटिड डिफेंस स्टाफ भी है जिसके जरिये सरकार को एक ही स्थान से सेना के तीनों अंगों के बारे में सलाह दी जाती है। एएनसी 8 अक्तूबर 2001 को गठित की गई थी। इसके जरिये जल एवं वायु से जुड़े 'अंदमान एवं निकोबार द्वीपसमूह के रक्षा कार्य' को समाहित किया गया। यह एएनसी की तटवर्ती रक्षा की भी जिम्मेदारी संभालता है। तीनों सेनाओं के प्रमुख का चुनाव बारी-बारी से तीनों सैन्य बलों से किया जाता है। इस संगठित कमान का लक्ष्य तीनों सेनाओं एवं तटरक्षकों के बीच एकजुटता को बढ़ावा देकर एएनआई का विशिष्ट कार्यकारी परिवेश स्थापित करना है।
हालांकि, मंत्री समूह ने एएनसी में विभिन्न रक्षा सेनाओं को उनके अपने एकल सर्विस मुख्यालय स्थापित करने का प्रावधान दिया है, जहां वे अपने सैन्य कर्मियों की आपूर्ति, उपकरण, प्रशिक्षण एवं उनके रहने का इंतजाम खुद करती हैं। दुर्भाग्यवश सैन्य मुख्यालय में विभिन्न सैन्य धड़े भीतरी खींचतान में लगे हैं। उनका दावा है कि वहां उनके मूल हित, क्षमता एवं योग्यता पर विपरीत असर पड़ रहा है। सच यह भी है कि 2001 से आज तक सैन्य स्तरों में बड़े सुधार नहीं देखे गए हैं। संभवत: ऐसा खतरे की मौजूदा स्थिति और विभिन्न सैन्य मुख्यालयों की प्राथमिकताओं को देखते हुए हुआ है। हालांकि, अवसंरचना विकास को सैन्य अभिवृद्धि का जरूरी पक्ष माना गया है, परंतु अलग-अलग सैन्य शक्तियां अपने अवसंरचना विकास के लिए खुद ही जिम्मेदार होती हैं और द्वीपीय क्षेत्रों में मौजूद जमीन को जरूरत के अनुसार ही बांटा जाता है। यही कारण है कि वहां मौजूद सैन्य इकाइयों के लिए ज्वॉइंट मैटीरियल ऑर्गेनाइजेशन (थल सेना, नौसेना, वायु सेना एवं तटरक्षक) के विकास में टालमटोल होती रही है। नौसेना और वायु सेना के लिए ऑटोमेटिड मैटीरियल मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर की अनुकूलता से जुड़े गंभीर मुद्दे भी बड़ी समस्या हैं। तटरक्षक दल सहित एएनसी की सभी सेवाओं के लिए अनुकूल सॉफ्टवेयर सिस्टम बनाना उसकी क्षमता बढ़ाने की दिशा में अनिवार्य है।
दरअसल, जिस स्तर पर यह एकजुटता लाने का लक्ष्य है, उससे जुड़ी बहस खासी लंबी है। यह जरूर है कि तीनों सेनाओं के संगठन एवं एकीकृत कमान समय के साथ विकास करेगी।
इस संबंध में एएनसी के नौसैन्य परिवेश को देखते हुए रक्षा मंत्रालय एएनसी की कमान और संचालन भारतीय नौसेना के हाथों में ही रखने को राजी हुआ है। पर समस्या एएनसी की कमान और संचालन संबंधित न होकर खुद सैन्य मुख्यालय द्वारा एएनसी को अमल में लाने की है। समस्या केवल सैन्य मुख्यालयों में है। इसलिए मुख्यभूमि पर स्थित सेना के तीनों अंगों के मुख्यालयों में, उनके अपने कायार्ें की प्राथमिकताओं के बीच, उन्हें एकीकृत कमान के तौर पर नहीं जोड़ा जा सकता।
(लेखक अंदमान निकोबार कमान के कमांडर इन चीफ रह चुके हैं।)
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