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कर्नाटक की पर्यटन नगरी उडुपी मुख्यत: वहां स्थित श्री कृष्ण मंदिर के लिए जानी जाती है। परंतु 6 जनवरी से वहां आयोजित संस्कृत भारती का अखिल भारतीय सम्मेलन अपने आप में समूचे देश की संस्कृतियों का अनोखा संगम प्रतीत हो रहा था। खास बात यह थी कि इस अवसर पर देशभर से आए 2000 से अधिक प्रतिनिधि एक ही भाषा में बात कर रहे थे। यहां पहुंचे भाषा विशेषज्ञ संस्कृत के आम इस्तेमाल को व्यापक बनाने के तरीकों पर चिंतन करने के लिए एकत्र हुए। देश में मौजूदा दौर में संस्कृत किस चरण में है, यह भी उनकी चिंता का विषय था।
इस अवसर पर एक भव्य प्रदर्शनी भी आयोजित की गई जिसमें संस्कृत की दुर्लभ पांडुलिपियां, पुस्तकें एवं रोजमर्रा के इस्तेमाल में लाई जाने वाली शब्दावली को दर्शाया गया। संस्कृत विकीपीडिया भी आकर्षण का केंद्र था। इसके अलावा, संस्कृत यक्षगान सहित कई सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी सराही गईं।
दरअसल, इस तीन दिवसीय आयोजन का लक्ष्य देश के आमजन में फैली कई भ्रांतियों को दूर करना था। उदाहरणार्थ, यहां दिखाया गया कि कैसे छोटे बच्चों तक को धाराप्रवाह संस्कृत बोलना सिखाया जा सकता है; कैसे अब तक संस्कृत एवं अन्य उत्तर भारतीय भाषाओं की धुर विरोधी रही तमिल भूमि देवभाषा संस्कृत की दिशा में मुड़ी है एवं कैसे पूवार्ेत्तर क्षेत्र भी संस्कृत की ओर जा रहा है। युवाओं में संस्कृत के अप्रचलित होने का मिथक यहां जुटी भीड़ और पुस्तक बिक्री के बाद टूटता दिखा।
सम्मेलन को पेजावर मठ के स्वामी श्री विश्वेशतीर्थ जी का अशीर्वाद मिला। इसके अलावा जगद्गुरु श्री चन्न सिद्धराम पंडिताराध्याय शिवचर्य महास्वामी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी, लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर, मंगलुरु के सांसद श्री नलिन कुमार कतील, उडुपी-चिकमगलूर की सांसद शोभा करंदलजे आदि ने सम्मेलन को संबोधित किया। अपने आशीर्वचन में स्वामी श्री विश्वेशतीर्थ जी ने कहा, ''संसार को प्रज्ज्वलित करने के कई प्रकाश स्रोत होते हैं परंतु कमल सूर्य के प्रकाश से ही खिलता है। इसी तरह प्रत्येक भाषा ज्ञान का प्रकाश देती है, परंतु संस्कृत हृदय के कमल को खिलाने के लिए आवश्यक है।'' श्रीमती सुमित्रा महाजन ने कहा, ''संस्कृत को पुनरुज्जीवित करने का यह पावन कर्म न केवल चरित्र निर्माण में मदद करता है, बल्कि यह भारत का श्वास है।''
सम्मेलन का संज्ञान लेते हुए खुद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संस्कृत में ट्वीट किए जिन्हें सम्मेलन के दौरान दिखाया गया। प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा, ''उडुपी में संस्कृत भारती के सम्मेलन पर मुझे बेहद खुशी है। मुझे उम्मीद है कि यह सम्मेलन संस्कृत के शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी एवं सफल होगा।''
सम्मेलन का एक प्रमुख आकर्षण संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के साहित्य का संस्कृत में प्रकाशित अनुवाद रहा। श्रीगुरुजी का समूचा अनूदित साहित्य 12 खंडों में संकलित है। इनमें से छह खंड पहले ही लोकार्पित किए जा चुके हैं और शेष छह सम्मेलन के दौरान लोकार्पित किए गए। श्री प्रकाश जावडेकर ने कहा, ''केंद्र सरकार ने संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं के विकास संबंधी एक विजन डॉक्युमेंट तैयार किया है। भाषाओं के विकास से संबंधित यह समयबद्ध कार्यक्रम जल्दी ही शुरू किया जाएगा।'' श्री जावड़ेकर के अनुसार हमारी भाषाएं तब तक विकास नहीं कर सकतीं जब तक कि स्कूली किताबें उन भाषाओं में प्रकाशित न की जाएं। दुनिया के कई देश ऐसा करते हैं और ऐसा कोई कारण नहीं कि हम ऐसा न कर सकें।
श्री सुरेश सोनी ने सम्मेलन के दौरान भारतवर्ष की मजबूती एवं सदचारिता पर जोर देते हुए कहा, ''भारत शाश्वत राष्ट्र है, यह मानवीयता की आत्मा है। और सशक्त एवं परोपकारी भारत ब्रह्मांड की जरूरत है। यह तभी संभव हो सकेगा जब लोग हिंदू धर्म के बुनियादी सिद्धांतों को समझें और संस्कृत ही परिवर्तन को लाने का वाहन हो सकती है।'' उन्होंने कहा, ''भारत इस मायने में दुर्भाग्यशाली है कि लोग यहां राष्ट्र से जुड़े विचार पर ही सवाल उठाते हैं। वैदिक साहित्य हमें हमारे राष्ट्र की परिभाषा देता है। प्राचीन साहित्य में मौजूद ज्ञान से हम आज की सभी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। जब पिटमैन ने ध्वनि को शब्दों में रूपांतरित कर शॉटहैंड का आविष्कार किया था, तब उन्होंने माना था कि अपने कार्य के लिए उन्होंने संस्कृत की मदद ली थी।''
आशा की जानी चाहिए कि इस सम्मेलन से संस्कृत की स्वीकार्यता और बढ़ेगी।
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