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नई दिल्ली में हर साल लगने वाला विश्व पुस्तक मेला पुस्तकों और पाठकों का एक ऐसा मिलन बिन्दु बनकर उभरा है जिसे ज्ञान का अनूठा उत्सव कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। तमाम लेखकों के साथ ही देशी-विदेशी प्रकाशकों का एक जगह आकर अपनी कृतियों का प्रदर्शन करना यूं भी पढ़ने के शौकीनों के लिए मुंहमांगी मुराद जैसी होती है। इस बार मेले में साफ झलका कि पाठकों में पुस्तकें बढ़ाती हैं प्यार और सदाचार
प्रदीप सरदाना
किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से,
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं।
जो शामें इनकी सोहबत में कटा करती थीं,
अब अक्सर
गुजर जाती हैं 'कम्प्यूटर' के पदार्ें पर,
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें
ये पंक्तियां जाने-माने गीतकार और फिल्मकार गुलजार की उस कविता से हैं जो उन्होंने कुछ बरस पहले तब लिखी थी जब उन्हें लगा था कि अब पाठक पुस्तकों के स्थान पर कम्प्यूटर में व्यस्त हो गए हैं, और इसलिए किताबें उदास और बेचैन रहने लगी हैं। लेकिन हाल ही में नयी दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में पाठकों का पुस्तकों के प्रति जिस तरह का भारी उत्साह दिखा है,उसे देखकर लगता है कि गुलजार का पुस्तकों के प्रति दर्द शायद अब कम हो जाए। हो सकता है कि गुलजार फिर से किताबों पर कोई और कविता लिखें। क्योंकि, विश्व पुस्तक मेला दर्शाता है कि पाठक में अब फिर से पुस्तकों के प्रति प्रेम जागा है। आज ज्ञान, बौद्धिक विकास और मनोरंजन के चाहे अनेक मंच उपलब्ध हो गए हैं, चाहे हम डिजिटल युग में तेजी से प्रवेश कर रहे हैं लेकिन पुस्तकों की लोकप्रियता फिर से सर चढ़कर बोलती प्रतीत हो रही है।
गत 7 से 15 जनवरी को प्रगति मैदान, नयी दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में रौनक देखते ही बनती थी। जबकि इस बार मेला आयोजक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अधिकारी ही नहीं, इस मेले में भाग लेने वाले प्रकाशक भी कुछ शंकाओं से घिरे थे। उसके सीधे से दो कारण थे-एक यह कि इस बार मेला फरवरी के स्थान पर जनवरी के आरम्भ में तब लगा जब दिल्ली की सर्दी अपने चरम पर होती है। फिर दूसरा कारण सर्वविदित है कि नोटबंदी के बाद नगद राशि के अभाव के चलते मेले में लोग कम पहुंचेंगे और इससे पुस्तकों की बिक्री भी कम होगी।
डर तब तो और भी सभी के दिलों में घर कर गया जब मेले के पहले दिन सुबह उद्घाटन के समय ही मौसम खराब होने से बरसात आ गयी और ठंड भी बढ़ गयी। लेकिन इसके बावजूद जब दिन चढ़ने के साथ आगंतुकों की भीड़ बढ़ने लगी तो सभी प्रकाशकों के चेहरे खिल उठे। शाम को जब टिकट बिक्री का आंकड़ा देखा तो सभी हैरान थे कि आशंकाओं के साए में भी पहले दिन 80 हजार लोग यह पुस्तक मेला देखने पहुंचे थे। और न सिर्फ देखने, वे पुस्तकों को खरीद भी रहे थे।
मेले के दूसरे दिन तो पाठकों की संख्या और भी बढ़कर सवा लाख के पार होने की खबर आई। लेकिन जब तीसरे और चौथे दिन अवकाश न होने पर भी मेला देखने आए लोगों की संख्या लाख-सवा लाख के आसपास हुई तो यह स्पष्ट हो गया कि इस बार मेले और पुस्तकों के प्रति पाठकों की उदासीनता कतई नहीं है। मौसम और नोटबंदी, दोनों का कोई नकारात्मक असर मेले पर नहीं पड़ा है। वैसे विश्व पुस्तक मेला आरम्भ होने से पहले राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने नोटबंदी के समस्या से निबटने के लिए विशेष प्रबंध किये थे।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की निदेशिका डॉ. रीटा चौधरी बताती हैं-''इस वर्ष हमारे सामने नोटबंदी बड़ी चुनौती थी। हमको डर था कि नगदी की कमी से किताबों की बिक्री पर असर पड़ेगा। इस पर हमने 2 महीने काम किया। बैंकों और पेटीएम जैसे मोबाइल वॉलेट्स से बात की। मेले में एटीएम की व्यवस्था को जांचा। साथ ही प्रकाशकों से भी कहा कि वे अपने यहां पेटीएम मशीनें लगवाएं और डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड की मशीनें लेकर आयें। हमें खुशी है कि इससे कोई समस्या नहीं हुई और इस बार यहां कैशलेस भुगतान के भी रिकार्ड बने।''
मेले में जब हमने एक युवक को हाथ में पुस्तकों के पांच-सात थैले उठाये मंडप 12 से खुशी-खुशी बाहर आते देखा तो उससे पूछा कि वह कहां से आया है और इतना खुश क्यों हैं? क्या कोई खजाना हाथ लग गया? उस युवक ने बताया कि उसका नाम सार्थक गुलाटी है। वह दिल्ली के गुरु रामदास नगर से आया है। फिर हमारे सवाल का जवाब देते हुए सार्थक ने मुस्कुराते हुए कहा-''मेरे हाथ दौलत का खजाना तो नहीं लगा, लेकिन मुझे आज कुछ ऐसी पुस्तकें मिल गयीं हैं जिनकी तलाश मैं पिछले तीन-चार महीने से कर रहा था। और सच तो यह है कि मुझे पुस्तकों का खजाना मिल गया है। दौलत का खजाना तो कोई किसी से छीन भी सकता है लेकिन पुस्तकों के ज्ञान के खजाने को मुझसे कोई नहीं छीन सकता।''
नयी दिल्ली के इस विश्व पुस्तक मेले में देश भर से कुल लगभग 800 प्रकाशकों ने अपनी भागीदारी की। इनमें हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, पंजाबी, बंगला, मराठी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, उडि़या, उर्दू और सिन्धी के साथ संस्कृत भाषा के प्रकाशक मौजूद थे। भारत के इन प्रकाशकांे के अतिरिक्त करीब 20 विदेशी प्रकाशकों ने भी इस मेले में हिस्सा लिया, जिनमें जापान, रूस, चीन, नेपाल, पाकिस्तान, ईरान, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, पोलैंड, इजिप्ट, दुबई और श्रीलंका भी शामिल हैं। साथ ही यूरोपियन यूनियन, यूनेस्को और विश्व स्वास्थ्य संगठन की पुस्तकें भी मेले में प्रदर्शित की गयीं। यहां यह भी बता दें कि इन देशों में से पाकिस्तान और ईरान से दो-दो प्रकाशक आये। यूं मेले में अधिकांश देशों की पुस्तकें उपलब्ध थीं, लेकिन विशेष भागीदारी वाले इन विदेशी प्रकाशकों को अपनी पुस्तकें प्रदर्शित करने के लिए मंडप 7 में व्यापक स्थान अलग से दिया गया था।
उधर भारतीय प्रकाशकों के लिए मेले में 1700 स्टॉल लगाए गए। हालांकि इस साल पुस्तक मेले को 32 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में से तीन हजार वर्ग मीटर स्थान इसलिए कम मिल पाया क्योंकि प्रगति मैदान में नवीनीकरण का कार्य चल रहा है। इससे पिछली बार के मुकाबले 200 प्रकाशक कम आ पाये। लेकिन जितने आए उनमें दिल्ली के लगभग सभी प्रमुख प्रकाशकों के साथ देश के अन्य राज्यों से बहुत से छोटे-बड़े प्रकाशक यहां उपस्थित रहे।
प्रकाशकों में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास और प्रकाशन विभाग के अतिरिक्त ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, प्रभात, राजकमल, वाणी, राजपाल, गीता प्रेस, ओम बुक्स इंटरनेशनल, डायमंड, साहित्य निकेतन, सामयिक, सेवा कुटीर, अंगूर, अयान, बोधि, दिशा, सेज, आधार, शलभ, मंजुल, अभिषेक, स्वराज, हरियाणा ग्रन्थ अकादमी आदि थे तो साथ ही आक्सफोर्ड, मैकमिलन, पेंगुइन और वेस्टलैंड जैसे प्रकाशकों ने भी यहां अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई।
विश्व पुस्तक मेले का आयोजन देश में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने पहली बार1972 में किया था। पहले यह दो वर्ष में एक बार होता था लेकिन 2013 से इसे वार्षिक आयोजन बना दिया गया है। मेले को अधिक आकर्षक बनाने के लिए जहां हर बार कुछ विषयों पर अलग से विशेष 'फोकस' करने की परंपरा बनी रही वहीं साहित्य के साथ कला और संस्कृति के संगम को भी बनाये रखा गया है। इसके अंतर्गत इस बार भी उद्घाटन से लेकर मेले की समाप्ति तक हंसध्वनी थिएटर में गीत-संगीत और नृत्य के जो विशेष कार्यक्रम हुए उनमें सुप्रसिद्ध नृत्यांगना नलिनी-कमलिनी के नृत्य के साथ ही हास्य कवि सम्मलेन, मुशायरा, मीरा बाई नृत्य नाटिका और लोक गायिका मालिनी अवस्थी से मुलाकात जैसे कार्यक्रम पसंद किये गए।
पुस्तकें कल भी, आज भी
इस बार मेले का उद्घाटन मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री डॉ. महेंद नाथ पांडे ने किया। डॉ. पांडे ने उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ दिन पहले बनारस में कहे गए उस वक्तव्य का भी उल्लेख किया जिसे हमारे बहुत से साहित्यकारों और कलाकारों ने काफी सराहा था। प्रधानमंत्री ने कहा था-''समाज में साहित्य, संस्कृति और कला यदि न हो तो मनुष्य को रोबोट होने से कोई नहीं बचा सकता।'' मेले में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. महेंद्र नाथ ने कहा-''हमारी सभ्यता और संस्कृति की विश्व में पहचान बनाने में हमारे रामायण और गीता जैसे ग्रंथों का भी अहम योगदान रहा है। गीता एक ऐसा ग्रन्थ है जो हमारा धर्म ग्रन्थ होने के साथ-साथ कर्म ग्रन्थ और ज्ञान ग्रन्थ भी है। हमारे यहां ग्रंथों की परंपरा ऋग्वेद से आरम्भ होकर रामायण, गीता और गुरु ग्रन्थ साहिब से आगे वर्तमान स्वरूप में अनवरत जारी है। इसलिए यह सत्य है कि पुस्तकें कल भी थीं और आज भी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमारा देश तो मेला संस्कृति का देश है। मेले में ह्दय से मिलने का भाव होता है, इसलिए मेलों में आना सुखद रहता है।
उद्घाटन समारोह के दौरान सम्मानित अतिथि के रूप में जहां उडि़या की सुप्रसिद्ध लेखिका प्रतिभा राय उपस्थित थीं वहीं भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत तोमाश कोजलौस्की भी थे। इन दोनों के विचार भी महत्वपूर्ण रहे। श्री तोमाश ने कहा-''भारत का प्रकशन क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। इसका विश्व में छठा स्थान है। साथ ही नयी दिल्ली का यह विश्व पुस्तक मेला लंदन, फ्रेंकफर्ट और शरजाह के पुस्तक मेलों की तरह प्रतिष्ठित और व्यापक है।'' उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय साहित्य की कई प्रमुख कृतियों का पोलिश में भी अनुवाद किया जा रहा है।
लेखन की कोई सीमा नहीं
ज्ञानपीठ और मूर्ती देवी जैसे बड़े साहित्य पुरस्कारों से सम्मानित उडि़या लेखिका प्रतिभा राय के विचारों को मेले में काफी सराहा गया। प्रतिभा राय ने कहा, ''यह सही है कि कुछ मायनों में स्त्री लेखन और पुरुष लेखन में भिन्नता हो सकती है। लेकिन साहित्य को लिंग और सीमा के साथ बांधकर अलग-अलग रेखाएं नहीं खींची जा सकतीं।'' उन्होंने मेले में 'मानुषी' पर अलग से थीम मंडप बनाने पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि इससे महिला लेखन को विशिष्ट पहचान मिलेगी। हालांकि भारत में महिला लेखन अतीत से रहा है, लेकिन महिला और पुरुष लेखन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
पढ़ना ही जिंदगी है
विश्व पुस्तक मेले में विभिन्न राजनेताओं, मंत्रियों के साथ देश-विदेश के अनेक लेखक और प्रकाशकों के आने से और उनके वक्तव्यों से कई अच्छे विचार और तथ्य सामने आए। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर मेले के पहले दिन तो नहीं आ सके लेकिन 10 जनवरी को उन्होंने मेले में न सिर्फ शिरकत की बल्कि हिंदी और मराठी की कुछ पुस्तकें भी खरीदीं। इस मेले के महत्व को लेकर उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि 'मेरा मानना है कि शिक्षा कालेज के साथ खत्म नहीं हो जाती। सच तो यह है कि पढ़ना ही जिंदगी है। पुस्तकों के बिना तो जिंदगी अधूरी है। मैं स्वयं हर रोज कुछ न कुछ पढ़ना पसंद करता हूं'।
क्या कहते हैं प्रकाशक
मेले के दौरान कुछ प्रकाशकों आदि से बातचीत में भी यह अहसास हुआ कि इस बार मेला काफी सफल रहा। इस बार पिछली बार की ऐतिहासिक भीड़ से भी कुछ अधिक लोगों के आने के कयास थे और वे आए भी। दिल्ली के प्रसिद्ध प्रकाशक प्रभात प्रकाशन के प्रमुख प्रभात कुमार ने बताया-''मेले पर नोटबंदी और मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जिसने पुस्तकें लेनी थीं वह चाहे नगद राशि लेकर आया या कोई कार्ड, वह अपना प्रबंध करके आया था। इधर हमने भी सभी प्रकार की व्यवस्था की हुई थी। दूसरे, पाठकों की पुस्तकों में रुचि पहले से अधिक हो गयी है। आज का युवा पुस्तक खरीद कर पढ़ना चाहता है जबकि पहले लोग पुस्तकालयों से या फिर एक-दूसरे से पुस्तक मांगकर पढ़ लिया करते थे। हम पहले जहां प्रतिवर्ष 100 से 250 पुस्तकें प्रकाशित करते थे, वहीं इस वर्ष हमने 400 पुस्तकों का रिकार्ड प्रकाशन किया है। हमारे यहां स्वामी विवेकानंद की पुस्तकों के साथ ही डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पर लिखी पुस्तकों की सबसे अधिक मांग रही है। साथ ही '1965 भारत पाक युद्ध की वीर गाथाएं' पुस्तक की भी अच्छी बिक्री हुई है।''
दिल्ली के एक और मशहूर प्रकाशक राजकमल प्रकाशन के सम्पादकीय निदेशक सत्यानन्द निरूपम ने बताया-''इस बार मेले में पाठको का प्रतिसाद काफी अच्छा है। हालांकि कुछ उन प्रकाशकों को थोड़ी बहुत समस्या आई जो अपने यहां पेटीएम आदि नहीं लगवा सके, लेकिन अधिकांश बड़े प्रकाशकों ने सभी प्रकार की व्यवस्था की हुई थी इसलिए हमको नोटबंदी से कोई समस्या नहीं आई। इधर हमने देखा कि इस डिजिटल युग में भी पुस्तकों का महत्व बना हुआ है। अब बड़ी बात यह है कि हम चाहे कुछ पुस्तकें कम संख्या में भी प्रकाशित करते हैं लेकिन वे जल्द ही बिक जाती हैं। इस पुस्तक मेले में इस बार हमने 30 नयी पुस्तकें जारी की है। नयी किताबों में शाजी जमां की पुस्तक 'अकबर' को पाठक काफी पसंद कर रहे हैं और इसकी काफी मांग है। इसके अतिरिक्त अनुराधा बेनीवाल की 'आजादी मेरा ब्रांड' और एक अन्य पुस्तक 'नन रेजिडेंट बिहारी' की भी भारी मांग रही है। अब हर साल यह मेला लगने से इसकी लोकप्रियता में और बढ़ोतरी हुई है। उम्मीद है आने वाले वषोंर् में इसकी लोकप्रियता इसी तरह बढ़ती जाएगी।''
पुस्तकें कल भी, आज भी
इस बार मेले का उद्घाटन मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री डॉ. महेंद नाथ पांडे ने किया। डॉ. पांडे ने उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ दिन पहले बनारस में कहे गए उस वक्तव्य का भी उल्लेख किया जिसे हमारे बहुत से साहित्यकारों और कलाकारों ने काफी सराहा था। प्रधानमंत्री ने कहा था-''समाज में साहित्य, संस्कृति और कला यदि न हो तो मनुष्य को रोबोट होने से कोई नहीं बचा सकता।'' मेले में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. महेंद्र नाथ ने कहा-''हमारी सभ्यता और संस्कृति की विश्व में पहचान बनाने में हमारे रामायण और गीता जैसे ग्रंथों का भी अहम योगदान रहा है। गीता एक ऐसा ग्रन्थ है जो हमारा धर्म ग्रन्थ होने के साथ-साथ कर्म ग्रन्थ और ज्ञान ग्रन्थ भी है। हमारे यहां ग्रंथों की परंपरा ऋग्वेद से आरम्भ होकर रामायण, गीता और गुरु ग्रन्थ साहिब से आगे वर्तमान स्वरूप में अनवरत जारी है। इसलिए यह सत्य है कि पुस्तकें कल भी थीं और आज भी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमारा देश तो मेला संस्कृति का देश है। मेले में ह्दय से मिलने का भाव होता है, इसलिए मेलों में आना सुखद रहता है।
उद्घाटन समारोह के दौरान सम्मानित अतिथि के रूप में जहां उडि़या की सुप्रसिद्ध लेखिका प्रतिभा राय उपस्थित थीं वहीं भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत तोमाश कोजलौस्की भी थे। इन दोनों के विचार भी महत्वपूर्ण रहे। श्री तोमाश ने कहा-''भारत का प्रकशन क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। इसका विश्व में छठा स्थान है। साथ ही नयी दिल्ली का यह विश्व पुस्तक मेला लंदन, फ्रेंकफर्ट और शरजाह के पुस्तक मेलों की तरह प्रतिष्ठित और व्यापक है।'' उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय साहित्य की कई प्रमुख कृतियों का पोलिश में भी अनुवाद किया जा रहा है।
लेखन की कोई सीमा नहीं
ज्ञानपीठ और मूर्ती देवी जैसे बड़े साहित्य पुरस्कारों से सम्मानित उडि़या लेखिका प्रतिभा राय के विचारों को मेले में काफी सराहा गया। प्रतिभा राय ने कहा, ''यह सही है कि कुछ मायनों में स्त्री लेखन और पुरुष लेखन में भिन्नता हो सकती है। लेकिन साहित्य को लिंग और सीमा के साथ बांधकर अलग-अलग रेखाएं नहीं खींची जा सकतीं।'' उन्होंने मेले में 'मानुषी' पर अलग से थीम मंडप बनाने पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि इससे महिला लेखन को विशिष्ट पहचान मिलेगी। हालांकि भारत में महिला लेखन अतीत से रहा है, लेकिन महिला और पुरुष लेखन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
पढ़ना ही जिंदगी है
विश्व पुस्तक मेले में विभिन्न राजनेताओं, मंत्रियों के साथ देश-विदेश के अनेक लेखक और प्रकाशकों के आने से और उनके वक्तव्यों से कई अच्छे विचार और तथ्य सामने आए। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर मेले के पहले दिन तो नहीं आ सके लेकिन 10 जनवरी को उन्होंने मेले में न सिर्फ शिरकत की बल्कि हिंदी और मराठी की कुछ पुस्तकें भी खरीदीं। इस मेले के महत्व को लेकर उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि 'मेरा मानना है कि शिक्षा कालेज के साथ खत्म नहीं हो जाती। सच तो यह है कि पढ़ना ही जिंदगी है। पुस्तकों के बिना तो जिंदगी अधूरी है। मैं स्वयं हर रोज कुछ न कुछ पढ़ना पसंद करता हूं'।
क्या कहते हैं प्रकाशक
मेले के दौरान कुछ प्रकाशकों आदि से बातचीत में भी यह अहसास हुआ कि इस बार मेला काफी सफल रहा। इस बार पिछली बार की ऐतिहासिक भीड़ से भी कुछ अधिक लोगों के आने के कयास थे और वे आए भी। दिल्ली के प्रसिद्ध प्रकाशक प्रभात प्रकाशन के प्रमुख प्रभात कुमार ने बताया-''मेले पर नोटबंदी और मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जिसने पुस्तकें लेनी थीं वह चाहे नगद राशि लेकर आया या कोई कार्ड, वह अपना प्रबंध करके आया था। इधर हमने भी सभी प्रकार की व्यवस्था की हुई थी। दूसरे, पाठकों की पुस्तकों में रुचि पहले से अधिक हो गयी है। आज का युवा पुस्तक खरीद कर पढ़ना चाहता है जबकि पहले लोग पुस्तकालयों से या फिर एक-दूसरे से पुस्तक मांगकर पढ़ लिया करते थे। हम पहले जहां प्रतिवर्ष 100 से 250 पुस्तकें प्रकाशित करते थे, वहीं इस वर्ष हमने 400 पुस्तकों का रिकार्ड प्रकाशन किया है। हमारे यहां स्वामी विवेकानंद की पुस्तकों के साथ ही डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पर लिखी पुस्तकों की सबसे अधिक मांग रही है। साथ ही '1965 भारत पाक युद्ध की वीर गाथाएं' पुस्तक की भी अच्छी बिक्री हुई है।''
दिल्ली के एक और मशहूर प्रकाशक राजकमल प्रकाशन के सम्पादकीय निदेशक सत्यानन्द निरूपम ने बताया-''इस बार मेले में पाठको का प्रतिसाद काफी अच्छा है। हालांकि कुछ उन प्रकाशकों को थोड़ी बहुत समस्या आई जो अपने यहां पेटीएम आदि नहीं लगवा सके, लेकिन अधिकांश बड़े प्रकाशकों ने सभी प्रकार की व्यवस्था की हुई थी इसलिए हमको नोटबंदी से कोई समस्या नहीं आई। इधर हमने देखा कि इस डिजिटल युग में भी पुस्तकों का महत्व बना हुआ है। अब बड़ी बात यह है कि हम चाहे कुछ पुस्तकें कम संख्या में भी प्रकाशित करते हैं लेकिन वे जल्द ही बिक जाती हैं। इस पुस्तक मेले में इस बार हमने 30 नयी पुस्तकें जारी की है। नयी किताबों में शाजी जमां की पुस्तक 'अकबर' को पाठक काफी पसंद कर रहे हैं और इसकी काफी मांग है। इसके अतिरिक्त अनुराधा बेनीवाल की 'आजादी मेरा ब्रांड' और एक अन्य पुस्तक 'नन रेजिडेंट बिहारी' की भी भारी मांग रही है। अब हर साल यह मेला लगने से इसकी लोकप्रियता में और बढ़ोतरी हुई है। उम्मीद है आने वाले वषोंर् में इसकी लोकप्रियता इसी तरह बढ़ती जाएगी।''
बाल मंडप में रही बच्चों की धूम
बच्चों के मन और पसंद को ध्यान में रखकर बाल मंडप का निर्माण और सजावट विशेष रूप से की गई थी। इसकी विशेष सजावट ने तो बच्चों को आकर्षित किया ही, साथ ही बच्चों के लिए खास तौर पर बनाये गए 'पठन कोना' और 'गतिविधि कोना' भी उनके कलात्मक स्वभाव के अनुकूल उन्हें प्रेरित करते दिखे। बच्चों में पुस्तकों के प्रति रुचि बढ़ाने का यह एक सार्थक प्रयास रहा। इस मंडप में प्रतिदिन कार्यशाला, परिचर्चा, संवाद जैसे सत्र हुए जिनमंे दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों के बच्चे और दिव्यांग बच्चे भी अपने शिक्षकों और अभिभावकों के साथ भागीदार बने। सभी बच्चों में इस मंडप की चर्चा रही और उनकी मासूम हंसी तथा मौज मस्ती से खूब रौनक लगी रही है।
विश्व पुस्तक मेले में चर्चित कुछ मुख्य पुस्तकें
विश्व पुस्तक मेले में इस वर्ष जहां अनेक नयी पुस्तकों का लोकार्पण हुआ वहीं कई पुरानी पुस्तकों को फिर से मुद्रित कर उनके नए संस्करण जारी किए गए। हाल ही में प्रकाशित कुछ नयी पुस्तकों पर चर्चा सत्र आदि भी आयोजित किए गए। ऐसी ही कुछ प्रमुख पुस्तकें रहीं-
पुस्तक का नाम लेखक प्रकाशक
तिरुवल्लुवर (तिरुकुरल जीवनपथ) रूपांतरण- डॉ. आनंद पयासी राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
हिमालय में विवेकानंद रमेश पोखरियाल निशंक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
अकबर शाजी जमां राजकमल प्रकाशन
पर्यावरण और विकास सुभाष शर्मा प्रकाशन विभाग
भारत में अंग्रेजीराज सुंदर लाल प्रकाशन विभाग
दिल्ली था जिसका नाम इंतिजार हुसैन सेज प्रकाशन
ब्रांड मोदी का तिलिस्म धर्मेन्द्र कुमार सिंह वाणी प्रकाशन
ऐसे क्यों हैं सलमान जसीम खान पेंगुइन
हरियाणवी सिनेमा:दशा और दिशा सुशील सैनी अर्थ विजन
भारत की लोक कथाएं मुल्क राज आनंद प्रकाशन विभाग
उपहार द्रोणवीर कोहली प्रकाशन विभाग
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता में व्यंग्य डॉ शेरजंग गर्ग साहित्य निकेतन
संत कथाएं मार्ग दिखाएं रेनू सैनी प्रभात प्रकाशन
दिस इज नॉट योर स्टोरी सवि शर्मा वेस्टलैंड लिमिटेड
'नेशनल बुक ट्रस्ट' की कुछ 'बेस्ट सेलर' पुस्तकें
(मौजूदा बिक्री रिकॉर्ड 1 अप्रेल 2001 से 31 मार्च 2016)
क्र. पुस्तक बिक्री
1. जोरासांको हाउस-खं.1 10,70,127
2. जोरासांको हाउस-खं.2 9,43,377
3. दिवास्वप्न 7,03,175
4. आर कॉनस्टीट्यूशन 4,86,976
5. मदर टेरेसा 4,47,476
6. बाल पोथी 3,44,020
7. आर पार्लियामेंट 3,16,184
8. दिवाली 3,11,012
9. वॉटर 3,05,539
10. रोमांस ऑफ पोस्टेज स्टैम्प्स 2,66,057
11. जलियांवाला बाग 2,51,141
12. सच की खोज 2,41,752
13. हाथ मिलाओ 2,27,799
14. महाराजा रणजीत सिंह 2,17,765
15. फेस्टिवल ऑफ इंडिया 2,16,732
16. स्टोरी ऑफ रानी झांसी 2,09,322
17. जवाहरलाल नेहरू 2,08,767
18. हाथी और भंवरे की दोस्ती 1,98,849
19. गौतम बुद्ध 1,98,214
20. गांधी-ए लाइफ 1,93,027
विश्व पुस्तक मेले का आकर्षण- 'मानुषी'
इस बार विश्व पुस्तक मेले का प्रमुख आकर्षण उसका थीम मंडप मानुषी रहा। इसका उद्देश्य महिलाओं द्वारा व उन पर आधारित लेखन को सामने रखना था। भारत में स्त्री लेखन की परंपरा दो हजार वर्ष पूर्व से रही हैं- गार्गी, मैत्रेयी और अपाला जैसी विदुषियां तो इसका प्राचीन प्रमाण हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए 'गार्गी से बहिणाबाई तक' थीम पर आधारित कैलेंडर-2017 का विमोचन किया गया, जिसमें भारत की 12 प्रतिनिधि विदुषियों के व्यक्ति-चित्र प्रस्तुत किये गए। साथ ही विभिन्न शैलियों, जैसे उपन्यास, कविता, सामाजिक विज्ञान, बाल साहित्य आदि पर आधारित पुस्तकें इस थीम प्रदर्शनी का मुख्य बिंदु रहीं। इसमें जिन भाषाओं की पुस्तकें सम्मिलित की गईं, वे हैं-हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, असमिया, कन्नड़, मराठी, मैथिली, तेलुगु, उडि़या और उर्दू।
मूल रूप से यह थीम आधुनिक युग में तो महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती है, साथ ही यह संदेश भी देती है कि प्राचीन और मध्यकाल में भी नारी की कलम और उसका ज्ञान उसकी शक्ति के स्त्रोत थे़ यह थीम प्रदर्शनी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना को भी प्रबल
बनाती दिखी।
आधुनिक भारतीय साहित्य की कुछ अग्रणी महिलाओं के प्रोफाइल पोस्टर, बाल पुस्तकों के लिए स्त्री चित्रकारों द्वारा बनाए कुछ चित्र, विभिन्न भाषाओं की लेखिकाओं की पुस्तकों के आवरण पृष्ठ भी इस प्रदर्शनी का हिस्सा रहे।
मेले में आई एक महिला पाठक स्नेहलता मलिक का कहना है- ''मैं वरिष्ठ अध्यापिका हूं और इस मेले में हर वर्ष आती हूं। इस बार मंै विशेषकर इसके थीम मंडप 'मानुषी' को देखने आई थी। इस प्रदर्शनी ने मुझे बेहद प्रभावित किया। महिला लेखिकाओं का इतना पुराना इतिहास देख कर मैंने गर्व की अनुभूति की। यह सभी महिलाओं को प्रेरणा देता है।''
हिंदी अनुवाद भी हो रहे हैं लोकप्रिय
मेले में ऐसी बहुत सी पुस्तकें भी दिखीं जो मूलत: अंग्रेजी में प्रकाशित हुईं लेकिन हिंदी पाठकों के लिए उनका हिंदी अनुवाद किया गया है। ऐसी पुस्तकों में चेतन भगत की पुस्तकों को प्रमुखता से दशार्या गया था। चेतन भगत के कुछ उपन्यासों पर तो फिल्में भी बन चुकी हैं। चेतन की मेले में लोकप्रिय हो रही ऐसी पुस्तकों में '2 स्टेट्स', 'हाफ गर्लफ्रेंड', 'रिवोल्यूशन 2020', 'वन इंडियन गर्ल' और 'द 3 मिस्टेक्स ऑफ माय लाइफ' शामिल हैं। इनमें से अधिकांश पुस्तकों को राजपाल एंड संस ने प्रकाशित किया है। साथ ही आर. के. नारायण की 'पेंटर की प्रेम कहानी' भी हिंदी में अनुवादित पुस्तक है, जिसमें पाठक रुचि लेते दिखाई दिए।
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