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दशकों तक वामपंथी हिंसा और अतिवाद के प्रयोग झेल चुका बंगाल अपने नए राजनीतिक प्रयोगों के बाद भी सामाजिक कराहों से उबर नहीं पाया है। तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा तुष्टीकरण के लगातार प्रयोग, भारी-भरकम घपले-घोटालों की खुलती कहानियां, गतवर्ष मालदा की लौमहर्षक हिंसा और अब धूलागढ़ से आती मजहबी उन्मादियों द्वारा की गई हिंसा की खबरें…जनता के रोने-पिसने का सिलसिला रुका नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने इन सभी मुद्दों पर विस्तार से बात की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश –
धूलागढ़ की घटना पहली नहीं है, पहले मालदा में भी ऐसा ही देखने में आया था, प. बंगाल से आती इन बुरी खबरों को आप कैसे देखते हैं?
धूलागढ़ की घटना निश्चित रूप से सांप्रदायिक दंगा है। वहां पर घुसपैठ हुई, घुसपैठियों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है। यह लोग डरा-धमकाकर वहां पर हिंदुओं को परेशान कर रहे हैं ताकि वे अपने मकान खाली करके या सस्ते में बेचकर भाग जाएं। जैसे मालदा में हुआ वही धूलागढ़ में हो रहा है। धीरे-धीरे जितने भी सीमावर्ती जिले हैं वहां इस प्रकार की घटनाएं हो रही है और सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। पुलिस के सामने घटना होती है, पथराव होता है लेकिन वह हस्तक्षेप नहीं करती। मैं वीडियो दिखा सकता हूं जिसमें उन्मादी पथराव कर रहे हैं स्थानीय निवासी सामान लेकर भाग रहे हैं उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई। स्वयं मुख्यमंत्री जी ने बयान दिया है है कि यह कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं है। मुझे आश्चर्य होता है कि कोई मुख्यमंत्री इस प्रकार सांप्रदायिक दंगे को दबाकर वोट की राजनीति करता हो। यह देश में, पश्चिम बंगाल में हो रहा है।
अभी तमिलनाडु में मुख्य सचिव के घर आयकर छापा पड़ा तो बंगाल की मुख्यमंत्री विचलित थीं, उन्होंने इसे बदले की कार्रवाई बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया भी दी। लेकिन अपने ही राज्य में दंगे पर उनकी ऐसी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली?
वही मैं कह रहा हूं कि बंगाल की मुख्यमंत्री नोटबंदी को लेकर सारे देश में घूमती है पर धूलागढ़ नहीं देखतीं। वहां पर सांप्रदायिक दंगे होते हैं वहां पर उनका कोई मंत्री नहीं जाता। तृणमूल के जो नेता जाते हैं वो सिर्फ दंगाइयों के साथ खड़े होते हैं। स्थानीय लोग सब बातें बता रहे हैं। हमारे पास इस बारे में तथ्य हैं। यह सब सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के कारण है। आज वोट बैंक की राजनीति इतनी बड़ी हो गई है कि भले सामाजिक समरसता का तानाबाना टूटे, संवैधानिक पद पर बैठी मुख्यमंत्री पूरे मामले से आंखें मूंद रही हैं। यह बहुत ही शर्म की बात है, चिंता की बात है।
भाजपा और कुछ अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडल वहां जाने वाले थे। किसी को प्रभावित क्षेत्र में भीतर नहीं जाने दिया गया?
हां, निश्चित रूप से वहां पर जाने नहीं दिया पर अभी हमारे पास प्रकरण से जुड़ी तथ्यात्मक जानकारियां आई हैं। क्षेत्र के समीकरण खतरनाक रूप से बदल रहे हैं और इन्हें कुछ लोगों से सोची-समझी शह भी मिल रही है। इसपर भी सरकार कह रही है कि वह सांप्रदायिक दंगा नहीं है! यह दुख, हैरानी और चिंता की बात है।
घुसपैठ और नोटबंदी को कैसे देखते हैं? एक तरफ भ्रष्टाचार से लड़ाई थी, एक तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न था घुसपैठ का। बंगाल देश की चिंताओं के साथ खड़ा नहीं दिखा?
पूरे बंगाल नहीं बल्कि यहां के राजनैतिक नेतृत्व के बारे में यह बात सही हो सकती है। देखिए, इस बौखलाहट को समझना चाहिए। सीमावर्ती जिलों के अंदर जिस तरीके से अवैध रूप से नकली मुद्रा आ रही थी, हथियार आ रहे थे और अवैध गतिविधियां वहां संचालित हो रही थीं, देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा और देश की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ने का काम वहां से हो रहा था, उन सबको संरक्षण देने का काम तृणमूल के लोग कर रहे थे। जैसे ही नोटबंदी हुई वैसे ही ये सारी गतिविधियां रुक गईं। अवैध रूप से वहां अफीम की खेती हो रही है। इस सब पर बड़ा करारा चमाचा लगा है। यदि आप बंगाल की गरीब जनता के बीच जाएंगे और उनसे पूछेंगे कि प्रधानमंत्री जी ने कैसा काम किया है तो सब कहेंगे कि नोटबंदी का कदम बहुत अच्छा है। आज भ्रष्टाचारियों के आर्थिक स्रोत बंद हो गए हैं। तो, बौखलाहट के कारण यही हैं।
नारदा, सारदा और अब रोजवैली चिटफंड…घपले-घोटालों की गंूज दिल्ली में कुछ समय सुनाई दी लेकिन दब गई। आपको लगता है कि बंगाल में अब भी लोगों को ये चीजें याद हैं?
सीबीआई इन मामलों में जांच कर रही है। सीबीआई की जांच के बीच कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। अभी तृणमूल के सांसद गिरफ्तार भी हुए हैं। मामलों की और तहें खुलनी बाकी हैं। अभी तृणमूल के सांसद को उन्होंने नोटिस दिया है अभी वो सीबीआई के सामने पेश नहीं हो रहे हैं। मुझे लगता है कि तथ्यों के आधार पर जांच एजेंसियां इसमें सही निर्णय पर पहुंचेंगी और जो लोग घोटालों में लिप्त हैं उनके चेहरे अतिशीघ्र उजागर होंगे। जनता को इसकी प्रतीक्षा है।
हाल में उत्तराखंड सरकार ने सरकारी नौकरी में मुसलमानों को शुक्रवार की नमाज के लिए डेढ़ घंटे की छुट्टी देने का फैसला किया। इसे कैसे देखते हैं? क्या तुष्टीकरण की राजनीति का विस्तार बंगाल से उत्तराखंड तक अलग-अलग रूप में दिख रहा है?
देखिए, ऐसा है कि लोग भारतीय जनता पार्टी के ऊपर सांप्रदायिकता का आरोप लगाते हैं जबकि हमने हमेशा राष्ट्रभाव से प्रेरित राजनीति की है। और जो वास्तव में सांप्रदायिक काम कर रहे हैं चाहे कांग्रेस हो चाहे तृणमूल। वह बंगाल के अंदर कर रही है, जिस प्रकार कांगे्रस की सरकार उत्तराखंड में कर रही है। यह सिर्फ वोटबैंक की राजनीति है, इसके अलावा कुछ भी नहीं। अभी हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया है कि जाति या पंथ के आधार पर कोई भी वोट न मांगे। उत्तराखंड की सरकार ने भी सिर्फ वोट प्राप्त करने के लिए इस प्रकार का निर्णय लिया है। हमने इसकी निंदा की है। लोग अब इन बातों को, पैंतरों को समझते हैं।
अभी तक उत्तर प्रदेश में भी अल्पसंख्यक वोटों की लामबंदी का प्रयोग चलता रहा! लोग यदि समझते हैं तो तुष्टीकरण बनाम विकास की राजनीति किस करवट बैठेगी?
मुझे लगता है कि सपा की सरकार पिछले पांच वर्षों में दंगों के कारण ही इतनी बदनाम हो गई थी। तुष्टीकरण की नीति के कारण इतनी बदनाम हो गई थी। कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के कारण बदनाम हो गई थी। जिस तरह से महिलाओं के साथ बलात्कार की लगातार घटनाएं हुईं उसके कारण बदनाम हो गई थी। ऐसे में इस बदनामी का बोझ बड़ा भारी था। इस बदनामी से जनता का ध्यान हटाने के लिए ये कुनबा-झगड़ा हुआ। मुझे आज भी लगता है कि यह सिर्फ ड्रामा है। मैं अभी भी आप से कह रहा हूं कि इस ड्रामे का समापन यह होगा कि अखिलेश जी सपा के नेता बनेंगे और उनके नेतृत्व में चुनाव होंगे और मार्गदर्शक मंडल में शिवपाल जी और मुलायम जी भी आ जाएंगे। सिर्फ जनता का ध्यान हटाने के लिए उन्होंने अखिलेश जी को हीरो बनाने की कोशिश की है।
चाहे अंत यही हो, परंतु चुनावों की घोषणा हो चुकी है। आपको क्या लगता है कि जनता इतनी जल्दी इस राजनैतिक पैंतरे को समझ पाएगी?
निश्चित रूप से समझ पाएगी। जनता अब 1947 वाली जनता नहीं रही। अब जनता टीवी देखती है। मोबाइल हाथ में रखती है, सोशल मीडिया से जुड़ी रहती है। लोगों में काफी जागरूकता आई है। यह बात सही है कि आज भी उत्तर प्रदेश में पिछड़ापन बहुत है और अशिक्षा बहुत है परंतु इसके बाद भी जो नई पीढ़ी है, वह अब समझने लगी है। आप लोगों को बहुत लंबे समय तक गलतफहमी में नहीं रख सकते।
आपने कहा कि लोगों को लंबे समय तक गलतफहमी में नहीं रख सकते। राजनीति राजनीतिक दल करते हैं। परंतु मीडिया में भी धूलागढ़ दंगे की इतनी बड़ी घटना को ठीक से स्थान भी नहीं मिला। आप इसको कैसे देखते हैं। क्या सच जनता से छुपाया जा सकता है?
नहीं, जनता से छुपाया जा रहा है। मैं समझता हूूं कि इसकी प्रतिक्रिया भी हो रही हैं। मीडिया में पाञ्चजन्य व कुछ अन्य बेबाक अपवादों को छोड़ दिया जाए तो वे सब बड़े-बड़े चैनल जो अपने आपको बड़ा धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, जब ऐसी घटना हो जाती है तो उसको नहीं छापते हैं। आज भी जब मैं आप से बात कर रहा हूं। धुलागढ़ में कम से 150 की संख्या में हिंदू घर से बाहर हैं। पर इस पर मीडिया की नजर नहीं जा रही। क्यों? क्या यह खबर नहीं है? क्या यहां
सरकार पर सवाल नहीं है? भारतीय जनता पार्टी इसकी बात करती है तो यह सांप्रदायिक पार्टी है! सच कहना भी आज की तारीख में लोगों की गाली सुनने जैसा है। धूलागढ़ मामले में आगे क्या करेंगे?
रास्ता रोकने वाले यह बात समझ लें, हम जाएंगे वहां पर। वहां पर जो पीडि़त लोग हैं उनके साथ भाजपा खड़ी हुई है, उनकी मदद कर रही है। मीडिया की हमें चिंता नहीं है, हमें जनता की चिंता है। वे लोग जो वहां से विस्थापित हैं, उन्हें हम संरक्षण दे रहे हैं। कैसे वे फिर अपने घर पर लौट सकें उसके लिए आवश्यक हुआ तो हम आंदोलन भी करेंगे। पर इस घटना से सरकार को जरूर 'एक्सपोज' करेंगे। ममता सरकार वहां पर हिंदुओं के साथ ठीक नहीं कर रही है।
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