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समन्वयकारी पहल के बाद सांस्कृतिक सहोदर आ रहे निकट
भारत में पहली जनगणना 1872 में हुई थी। हमारे पास तब से लेकर 2011 तक के जनगणना के आंकडे़ उपलब्ध हैं। इस पूरे कालखंड में जनगणना में आये बदलावों के संदर्भ में ले. कर्नल यू़ एऩ मुखर्जी की 1912 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक था-'हिन्दू : ए डाइंग रेस'। उसी कालखंड में शुद्धि आंदोलन के प्रणेता स्वामी श्रद्धानंद जी ने भी एक किताब लिखी थी, जिसका शीर्षक था-'हिन्दू संगठन: सेवियर ऑफ डाइंग रेस'। ऐसे समय यानी 1925 में संघ की स्थापना हुई थी। चेन्नै स्थित समाज नीति समीक्षण केंद्र ने पहली बार 2003 में इन तमाम जनगणनाओं का धर्म के आधार पर तथ्यात्मक विश्लेषण प्रकाशित किया, जिसमें शोध डॉ़ ए़ पी. जोशी, एम़ डी़ श्रीनिवास और जितेन्द्र बजाज का है। 2011 में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी, उसमें हिंदू धर्मावलंबियों की संख्या 101 करोड़ एवं मुस्लिम जनसंख्या 17़ 22 करोड़ आंकी गई है। भारत में 2001-2011 के दशक में मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि 24़ 65 रही, जबकि हिन्दू जनसंख्या में यह 16़ 67 प्रतिशत रही है। ईसाई जनसंख्या में वृद्धि 14़ 97 प्रतिशत है। देखा जा सकता है कि मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर हिन्दू जनसंख्या वृद्धि दर से 50 प्रतिशत अधिक है।
जनसंख्या असंतुलन
भारतीय उपमहाद्वीप में 1881 से 2011 तक 13 बार जनगणना हुई है जिसमें प्रत्येक दशक में भारत में जन्मे बौद्ध, जैन और सिख जैसे मतों में 1 प्रतिशत कमी देखने में आई है। इस 130 वर्ष के कालखंड में हिंदू जनसंख्या 13 प्रतिशत घटी है। देखने में आया है कि जिन सीमांत जिलों मंे हिंदू जनसंख्या घटी, वे जिले1947 में पाकिस्तान में शामिल हो गए। 1947 में 24 प्रतिशत मुसलमानों के लिए हमने भारत का 30 प्रतिशत भू-भाग गंवा दिया। विभाजन के बाद 1951 में भारत मंे मुस्लिम जनसंख्या 10़ 45 प्रतिशत थी। 2011 में यह प्रतिशत बढ़कर 14़ 45 हो गई। 2011 की जनगणना मे ईसाई 2़ 2 प्रतिशत बताए गए हैं, लेकिन वर्ल्ड क्रिश्चियन ट्रेंड, वर्ल्ड क्रिश्चियन एंन्साइक्लोपीडिया में यह संख्या 6 से 7 प्रतिशत लिखी गई है। इनमें 4 प्रतिशत ईसाई 'छुपे ईसाई' हैं, जो कागजों में तो हिंदू हंै लेकिन व्यवहार में ईसाई। इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की संख्या ज्यादा है।
पूर्वोत्तर में मिशनरी मुहिम
भारत के उत्तर में उत्तर प्रदेश, बिहार, और उत्तराखंड तथा पूर्व में असम और बंगाल के अनेक जिलों में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर हिंदू जनसंख्या वृद्धिदर से ज्यादा है। पूर्वोत्तर भारत के राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय और असम में मिशनरी द्वारा कन्वर्जन की समस्या अत्यंत गंभीर है। सुदूर दक्षिण का केन्द्र शासित प्रदेश निकोबार ईसाई बहुल (71 प्रतिशत) हो गया है। केरल और जम्मू-कश्मीर मंे हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं। जनसांख्यिक आंकड़ों का गंभीर विश्लेषण करने के बाद अध्ययनकर्ताओं का अनुमान है कि यदि हिंदुओं की जनसंख्या इसी तरह घटती गई तो 2061 की जनगणना में भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। 'हिंदू घटा तो देश बंटा' का अनुभव देश को 1947 में हो चुका है। इतना ही नहीं, देश के जिन भागों में गैरहिंदू जनसंख्या बढ़ी है वहां सामाजिक संघर्ष और सुरक्षा की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। इन समस्याओं के निदान के लिए समाज को जाग्रत और कन्वर्जन रोकने का काम करना बेहद जरूरी हो गया है। इस हेतु को ध्यान में रखते हुए धर्मजागरण समन्वय का कार्य महत्वपूर्ण है।
हिन्दू जागरण
धर्मजागरण समन्वय एक काल-सुसंगत पहल जैसी है। भारत अनेक वषार्ें से मजहबी और मिशनरी आक्रमण झेल रहा है। कट्टरपंथियों की गतिविधियों के कारण देश में आतंकवाद, लव जिहाद तथा कन्वर्जन किए जा रहे हैं। मिशनरी तत्व सारे देश में कन्वर्जन तथा अन्य अराष्ट्रीय गतिविधियां संचालित कर रहे हैं। गत 90 साल के राष्ट्र जागरण के इस प्रयास के कारण हिंदू जागरण कुछ प्रमाण में दिखाई देने लगा है। उसके परिणामस्वरूप मजहबी तथा मिशनरियों की अराष्ट्रीय गतिविधियों को स्थान-स्थान पर समाज के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, सैकड़ों वषार्ें के अत्याचार, लोभ, लालच, धोखाधड़ी के बल पर किए गए कन्वर्जन के खिलाफ समाज मे अस्मिता जाग रही है। इस जाग्रत अस्मिता के कारण अनेक कन्वर्टिड बंधु अपनी जड़ेें खोज रहे हैं। आर्य समाज, शुद्धि सभा, विश्व हिंदू परिषद जैसी अनेक संस्थाओं पूर्व में इस प्रकार का काम किया है और आज भी कर रही हैं। धर्मजागरण की गतिविधियों में शामिल है ऐसी सभी संस्थाओं के साथ संपर्क बनाकर समन्वित प्रयास से कन्वर्जन रोकना महत्वपूर्ण है।
कार्य का प्रसार
धर्मजागरण की ये गतिविधियां निम्न बिंदुओं पर कार्य कर रही हैं-
1) हिंदू जगाओ-देश भर में कन्वर्टिड जातियों एवं भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान करके वहां जागरण के कार्यक्रम करना, उसके लिए वहां धर्मरक्षा समितियों का गठन करना। कन्वर्टिड जातियों और क्षेत्रों को संवेदनशील जातियां तथा क्षेत्र कहा जाता है।
2) हिंदू बचाओ-जागरण कार्यक्रम के माध्यम से संपर्क में आए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके उनसे व्यापक संपर्क की योजना बनाकर संभावित व्यक्तियों को कन्वर्ट होने से रोकना।
3) हिंदू बढ़ाओ-अस्मिता जाग्रति के कारण जो लोग अपनी जड़ांे से जुड़ना चाहते हैं उनको जरूरी कानूनी मदद उपलब्ध करवाना।
4) हिंदू संभालो-अपनी जड़ों से फिर से जुड़े लोगों को हिंदू संस्कार देने की व्यवस्था करना।
देशभर में धर्मजागरण की ओर से रक्षाबंधन के समय धर्म-रक्षाबंधन, 26 जनवरी को भारतमाता पूजन और अस्मिता जागरण के लिए जिन्होंने प्रयास किया है और जो आज हमारे बीच नहीं हैं, ऐसे लोगों की जयंती या पुण्यतिथि मनाकर धर्मरक्षा दिवस मनाए जाते हैं। 25,000 धर्मरक्षा समितियों द्वारा लाखों लोगों से हर वर्ष संपर्क होता है। धर्मजागरण की इस यात्रा में जागरण के कुछ बड़े कार्यक्रम भी हुए हैं, उसकी संक्षिप्त जानकारी देना यहां उचित रहेगा-
शबरी कुम्भ, 2006-यह कुम्भ वनवासी कल्याण आश्रम के नेतृत्व में गुजरात के डांग जिले में 2006 में संपन्न हुआ था। धर्मजागरण के सभी कार्यकर्ता इस कुम्भ मंे शामिल हुए थे। कुम्भ में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश से लाखों वनवासी आये थे। अन्य कई प्रांतों का प्रतिनिधित्व भी था। इस बड़े जागरण कार्यक्रम से इन प्रांतों के वनवासी विस्तार के लगभग 6,000 गांवांे में इतना जागरण हुआ कि बड़ी तादाद में कन्वर्टिड लोग स्वयं अपनी मूल आस्था में लौटे। इस कुम्भ के बाद डॉ. आंबेडकर वनवासी ट्रस्ट के माध्यम से गुजरात के डांग और तापी जिलों में स्वावलंबन के विविध प्रयोग शुरू हुए। ऐसा ही प्रयास महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले में डॉ. हेडगेवार सेवा समिति द्वारा शुरू किया गया है।
जल, जमीन, जंगल और जानवरों के बारे में अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं समन्वय से काम कर रही हैं। वनवासी विकास का काम लगभग 1000 से ज्यादा गांवों में चल रहा है। सतत संपर्क और जागरण के कार्यक्रमों से स्थानीय भोले-भाले जन अब मिशनरियों के बहकावे में नहीं आ रहे हैं। इस क्षेत्र में मिशनरियों के लिए नए लोगों को कन्वर्ट करने में काफी कठिनाई आ रही है।
नर्मदा कुम्भ, 2011-यह कुम्भ महाकौशल प्रांत में मंडल जिले में नर्मदा के तट पर संपन्न हुआ था। इस सामजिक कुम्भ मंे 40 लाख से जादा लोगों ने नर्मदा में स्नान किया।
यह देश के सभी प्रांतों से आए श्रद्धालुओं का एकत्रीकरण था। इसमें सभी संवेदनशील जातियों और क्षेत्रों की उपस्थिति थी। इस कुम्भ के कारण हुआ व्यापक संपर्क धर्मजागरण के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ। ऐसा ही परिणाम महाकौशल, ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ प्रांत में हुआ है।
वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान-वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान का पंजीकरण होने के बाद धर्म जागरण के कार्य में यह आयाम जुड़ा था। समाज के लोग अपनी वंशावली लिखने वालों को तो जानते थे, लेकिन इस विधा की ओर आकर्षण न होने से यह विधा लुप्त होने के कगार पर थी। इस विधा की जानकारी के लिए जागरण यात्रा निकालना, लेखकों के लिए संगोष्ठी करना, नयी पीढ़ी द्वारा यह विधा अपनाई जाए, ऐसा प्रयत्न हो रहा है। उज्जैन कुम्भ में वंशावली लेखकों का द्वितीय अधिवेशन हुआ, जिसमंे 9 प्रांतों से 2,500 वंशावली लेखक उपस्थित थे।
योजक-शबरी कुम्भ के कारण महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में जागरण के बड़े कार्यक्रम हुए, जिनसे उन क्षेत्रों में मतांतरण पर रोक लगी। इन्हीं क्षेत्रों के साथ देश के अन्य भागांे में विकास के कामों को गति देने हेतु धर्मजागरण के तत्वावधान में योजक नामक आयाम शुरू हुआ। योजक का कार्यालय पुणे में है और महाराष्ट्र, गुजरात, छतीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश में काम शुरू हो गया है।
रुद्राक्ष महासभा-धर्मजागरण का सघन काम करते हुए कार्यकर्ताओं के ध्यान में आया कि कन्वर्जन का मुख्य कारण समाज के उन संवेदशनशील घटकों से संपर्क न होना है। इस कमी को दूर करने के लिए लाखों लोगों को हिंदू समाज का आस्था-केंद्र रुद्राक्ष पहनने के लिए प्रेरित करने का सफल प्रयोग मालवा प्रांत मंे हुआ। अभी तक 20 लाख से ज्यादा लोगों को रुद्राक्ष धारण कराए जा चुके हैं। भारतीय संत सभा के माध्यम से 7,500 संतांे से संपर्क हुआ है, 1000 से ज्यादा संत सक्रिय हो चुके हैं। इससे काफी हद तक कन्वर्जन पर रोक लगी है।
संस्कृति समन्वय-धर्मजागरण के विषय को समाज का विषय बनाने के लिए साहित्य निर्माण हेतु एक न्यास गठित किया गया है, जिसका मुख्यालय जयपुर मंे है। अभी तक इस व्यवस्था से 22 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिनका वितरण देश में कार्यकर्ताओं के साथ संत भी कर रहे हैं।
इन सभी विधाओं के आधार पर कन्वर्जन को रोकने का प्रयास चल रहा है।
लेखक अखिल भारतीय धर्म जागरण समन्वय के सह-प्रमुख हैं
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