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7 नवंबर, 1966 को संसद के बाहर पुलिस की गोली से सैकड़ों गोभक्त शहीद हुए थे। 50 वर्ष बीतने के बावजूद आज तक पूर्ण गोहत्या बंदी कानून नहीं बन पाया है। इस वर्ष शहीद गोभक्तों की 50वीं बरसी मनाई जा रही है। इसी कड़ी में 6 नवंबर को दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई और सरकार से गोहत्या बंदी कानून बनाने की मांग की गई
अरुण कुमार सिंह
ई दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम 6 नवंबर को गोभक्तों के तप, त्याग और तपस्या का गवाह बना। उस दिन 7 नवंबर, 1966 को संसद भवन के सामने पुलिस की गोली से हुतात्मा गोभक्तों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इसकी अध्यक्षता स्वामी विश्वेश्वरानंद जी ने की। बलिदानी गोभक्तों को श्रद्धांजलि देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने कहा कि इस प्रकार की घटना सदैव हृदय में चुभती रहती है। गोपालन लाभ-हानि के हिसाब से नहीं, बल्कि कामधेनु के भाव से किया जाता है। इसलिए गोरक्षा के लिए संघर्ष करना पड़े तो निश्चित रूप से पीड़ा होती है। उन्होंने कहा कि भारत का किसान और असंख्य गोभक्त गोमाता की रक्षा मानव कल्याण हेतु करते हैं। गोसेवा, गोरक्षा तथा गोसंवर्धन एक तपस्या है। इसके साधकों का मार्ग निष्कंटक रहे, इस हेतु सभी गोभक्तों, समाजशास्त्रियों, राजनेताओं के साथ धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों को कार्य करना पड़ेगा। गोरक्षा हेतु कानून से अधिक महत्वपूर्ण है समाज का संकल्पबद्ध होना। कार्यक्रम में विश्व हिन्दू परिषद् के महामंत्री श्री चंपत राय ने उपस्थित जनसमूह को मन, वचन और कर्म से गोरक्षा, गोसंवर्धन और गोसेवा का संकल्प दिलाया। केन्द्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि संविधान के नीति-निदेशक तत्वों की मूल भावना को समझकर गोहत्या पर रोक लगाने के लिए अनेक राज्यों ने कानून बनाए हैं, जबकि केन्द्र सरकार ने बंगलादेशी सीमा पर बड़े पैमाने पर होने वाली गोतस्करी को रोका है, किन्तु अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय गोधन महासंघ ने किया था। इसके अध्यक्ष और विख्यात गीता मर्मज्ञ स्वामी ज्ञानानंद जी ने कहा कि केन्द्र सरकार के पास गोवंश से जुड़ा जो भी काम है, उसे जल्दी निपटाया जाए। उन्होंने बांग्लादेश की सीमा को बंद करने और मांस निर्यात नीति में बदलाव की भी मांग की। अन्य संतों ने अपने उद्बोधन में कहा कि सवा सौ करोड़ नागरिकों के इस देश में लगभग सवा लाख गौओं का प्रतिवर्ष वध क्या इसलिए किया जाता है कि उस पर केवल हिन्दुओं की आस्था है? सन्तों ने यह भी कहा कि गो हत्यारे और उनके समर्थक-पोषक हिन्दू समाज के धैर्य की परीक्षा न लें।
इस अवसर पर भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह, संगठन महामंत्री श्री रामलाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल, अखिल भारतीय धर्माचार्य सभा के महामंत्री स्वामी परमात्मानंद जी, जैन मुनि श्री लोकेश मुनि जी, श्री राजेन्द्र मुनि जी और विवेक मुनि जी, मलूक पीठ, वृन्दावन के राजेंद्रदास जी, सीकर के स्वामी राघवाचार्य जी, कथावाचक सुधांशु जी महाराज, विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री ओमप्रकाश सिंहल, संगठन महामंत्री श्री दिनेश चन्द्र, संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन सहित अनेक वरिष्ठ जन उपस्थित थे।
वह काला दिन
हमारे संत और अन्य गोभक्त 7 नवंबर, 1966 को काला दिवस मानते हैं। उस दिन गोपाष्टमी थी। गोरक्षा महाभियान समिति की देखरेख में सुबह आठ बजे से ही संसद के बाहर लोग जुटने शुरू हो गए थे। समिति के संचालक स्वामी करपात्री जी महाराज ने चांदनी चौक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। उनके साथ जगन्नाथपुरी, ज्योतिष्पीठ और द्वारकापीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय की सातों पीठ के पीठाधिपति और लाखों की संख्या में गोभक्त थे। संसद से लेकर चांदनी चौक तक जनसैलाब था। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग गो हत्या बंद कराने के लिए कानून बनाने की मांग लेकर संसद के समक्ष जुटे थे। उन दिनों इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और गुलजारी लाल नंदा गृह मंत्री। गोहत्या रोकने के लिए इंदिरा सरकार केवल आश्वासन दे रही थी, ठोस कदम नहीं उठा रही थी। सरकार के झूठे वायदों से उकता कर संत समाज ने संसद के बाहर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया था।
दोपहर एक बजे जुलूस संसद भवन पहुंच गया और संतों के भाषण शुरू हो गए। करीब तीन बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। उन्होंने कहा, ''यह सरकार बहरी है। यह गोहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा।''
इतना सुनना था कि गोभक्त हरकत में आ गए। उन्होंने संसद भवन को घेर लिया। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी चलाना और अश्रुगैस छोड़ना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने भीड़ पर गोलीबारी शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे पर गोलीबारी जारी थी। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि कम से कम 5,000 गोभक्त मारे गए थे। इसके बाद सरकार ने इस घटना को दबाने की कोशिश की।
यह घटना दिल्ली से बाहर न जा पाए, इसलिए शहर की टेलिफोन लाइन काट दी गई। ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिंदा-सभी को उसमें ठूंसा जाने लगा। जिन घायलों के बचने की संभावना थी, उनकी भी ट्रक में लाशों के नीचे दबकर मौत हो गई। पूरी दिल्ली में कर्फ्यू लागू कर दिया गया और संतों को तिहाड़ जेल भेज दिया गया। केवल शंकराचार्य को छोड़कर अन्य सभी संतों को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। करपात्री जी महाराज ने जेल से ही सत्याग्रह शुरू कर दिया। उनके ओजस्वी भाषणों से जेल गूंजने लगी। उस समय जेल में करीब 50,000 लोगों को बंद किया गया था। उनमें नागा साधु भी थे। नागा साधु छत के नीचे नहीं रहते, इसलिए उन्होंने तिहाड़ जेल के आंगन में ही अपना डेरा जमा लिया। लेकिन ठंड बहुत थी। साधुओं ने लकड़ी के सामान को तोड़ कर जलाना शुरू किया। उधर इंदिरा गांधी ने गुलजारी लाल नंदा पर इस गोलीकांड की जिम्मेदारी डालते हुए उनसे गृह मंत्री का पद छोड़ने को कहा। उनकी जगह यशवंत राव बलवतंराव चह्वान को गृह मंत्री बना दिया गया। पद संभालते ही चह्वान खुद तिहाड़ जेल गए और उन्होंने नागा साधुओं को आश्वासन दिया कि उनके अलाव के लिए लकड़ी की व्यवस्था की जा रही है। जब लकड़ी से भरे ट्रक जेल के अंदर पहुंचे, तब साधु शांत हुए।
लगभग एक महीने बाद लोगों को जेल से छोड़ा गया। जेल से निकल कर भी करपात्री जी सत्याग्रह करते रहे। पुरी के शंकराचार्य और प्रभुदत्त ब्रहमचारी जी का आमरण अनशन कई महीने चला। बाद में सरकार ने इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए छल का सहारा लिया। श्री चह्वान ने करपात्री जी से भेंट की और उन्हें भरोसा दिलाया कि अगले संसद सत्र में गो हत्या बंदी कानून बनाने के लिए अध्यादेश लाया जाएगा और इसे कानून बना दिया जाएगा। लेकिन देश का दुर्भाग्य देखिए कि आज 50 वर्ष बाद भी गोहत्या बंदी कानून को अखिल भारतीय स्वरूप नहीं मिला है।
केन्द्र सरकार के पास गोवंश से जुड़ा जो भी काम है उसे जल्दी निपटाया जाए, बांग्लादेश की सीमा बंद हो और मांस निर्यात नीति में बदलाव लाया जाए।
-स्वामी ज्ञानानंद जी
संविधान के नीति-निदेशक तत्वों की मूल भावना को समझकर गोहत्या पर रोक लगाने के लिए अनेक राज्यों ने कानून बनाए हैं, जबकि केन्द्र सरकार ने बंगलादेशी सीमा पर बड़े पैमाने पर होने वाली गोतस्करी को रोका है, किन्तु अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। -राजनाथ सिंह
''इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार जनतंत्र के सभी सिद्धान्तों को ताक पर रखकर देश की 85 प्रतिशत जनता की मांग की न केवल उपेक्षा कर रही है, बल्कि शक्ति के साथ उसे दबा देने पर तुली है। ''
-करपात्री जी महाराज (1966 में पुलिस द्वारा गोभक्तों की हत्या के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में)
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