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आकाशीय तरंगों पर बाजार

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Oct 24, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 Oct 2016 14:58:28

 

संदीप अग्रवाल 43 वर्ष संस्थापक, शॉपक्लूज

साढ़े 66 करोड़ रु. के पैकेज को छोड़ खुद का व्यवसाय शुरू करना जोखिम से कम न था। लेकिन संदीप ने अपनी जिद-जुनून के चलते ऑनलाइन बाजार में दस्तक दी और आज सफल हैं

नागार्जुन
हरियाणा के संदीप अग्रवाल ने पांच साल के अंदर ऑनलाइन बाजार शॉपक्लूज खड़ा करके यह साबित कर दिया है कि जीत जिद और जुनून से मिलती है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बी़ कॉम करने के बाद संदीप परास्नातक करने इंदौर चले गए। राधिका उनसे एक साल जूनियर थीं और उसी कॉलेज में पढ़ती थीं। यहां दोनों के बीच दोस्ती हुई और 1997 में दोनों परिणय सूत्र में बंध गए। 1999 में संदीप अमेरिका गए और ओलिन बिनजेस स्कूल, वाशिंगटन विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। एक साल बाद राधिका ने भी वहीं दाखिला लिया। 2002 में संदीप ने बीपीओ कंसल्टिंग कंपनी शुरू की थी, लेकिन दो साल बाद उन्होंने इसे बंद कर दिया। इसके बाद कारोबार विश्लेषक की नौकरी की। लेकिन ध्यान व्यवसाय में ही अटका रहा।
2008 में उन्होंने ऑनलाइन ब्रोकिंग कंपनी शुरू की, लेकिन मंदी के दौरे के कारण एक बार फिर उन्हें निराश होना पड़ा। 2011 में शॉपक्लूज की स्थापना से पहले संदीप सेन फ्रांसिस्को में कैरिस ऐंड कंपनी नाम के एक इन्वेस्टमेंट बैंक में इंटरनेट एनालिस्ट थे। उनका सालाना पैकेज दस लाख डॉलर यानी करीब साढ़े छह करोड़ रुपए था। लेकिन वह संतुष्ट नहीं थे। उनका कहना था, ''मैं इस अफसोस के साथ नहीं जीना चाहता था कि तीसरी बार कोशिश नहीं की। बस इसलिए नौकरी से इस्तीफा दे दिया और गुड़गांव में शॉपक्लूज की स्थापना की।'' शॉपक्लूज के संस्थापकों में संदीप की पत्नी राधिका घई अग्रवाल, संजय सेठी, मृणाल चटर्जी और देवेश राय भी  शामिल हैं।
इस्तीफा देने के बाद संदीप ने संजय और राधिका को नौ महीने की कार्य योजना बनाकर दी। 2011 में शॉपक्लूज के संस्थापकों की टीम भारत लौटने को तैयार थी, तभी निवेशक ने हाथ खींच लिया। उससे उन्हें 5 मिलियन डॉलर मिलने थे। इसके बाद संदीप तीन हफ्ते तक अमेरिका में रुके और दोस्तों से 1़ 9 मिलियन डॉलर जुटाए और भारत आए। सबसे पहले राधिका स्वदेश लौटीं। उनके साथ दो सहयोगी थे, मृणाल चटर्जी और देवेश राय। इनमें से एक ने तकनीकी बागडोर संभाली, जबकि दूसरे ने व्यापारियों को जोड़ा। वहीं, ईबे में काम कर चुके संजय सेठी ने उत्पादों का जिम्मा संभाला। इस तरह 26 जनवरी, 2012 को शॉपक्लूज की स्थापना हुई जिसमें 'टिंग से लेकर टॉन्ग और डींग से लेकर डॉन्ग' सब कुछ एक ही जगह उपलब्ध था। शॉपक्लूज की सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब इसकी स्थापना हुई थी उस समय अमेजन, स्नैपडील, फ्लिपकार्ट और इबे जैसी बड़ी ऑनलाइन कंपनियां पहले से बाजार में थीं। अप्रैल, 2014 में संदीप ने ड्रूम नाम से कंपनी बनाई जो देश के 100 शहरों में पुरानी कारें बेचती है। आज वे करोड़ों में खेल रहे हैं और अपने सपनों की उड़ान उड़ रहेे हैं। किताबों से संदीप को बेहद लगाव है। वे कहते हैं कि किताबों से मुझे प्रेरणा मिलती है। मेरे पास करीब 900 किताबें हैं। मैं दो अलग महाद्वीपों और सात शहरों में रहा और हर जगह ये किताबें मेरे               साथ रहीं।               ल्ल

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