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-अमर नाथ डोगरा-
एक बार एक बुद्धिजीवी ने कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आत्मविलोपी प्रवृत्ति के चलते विश्वविख्यात तत्वज्ञों के समान दत्तोपंत ठेंगड़ी को वह ख्याति नहीं मिल सकी जो अरस्तू, स्पैन्सर, प्लूटो आदि को प्राप्त हुई। यूरोप में उक्त तत्वज्ञों के प्रभाव के बावजूद कार्ल मार्क्स के जड़वादी विचार का विस्तार हुआ, किन्तु भारत में दत्तोपंत ठेंगड़ी ने मार्क्सवाद को ललकारते हुए उसके अंत की भविष्यवाणी की, जो कालान्तर में सत्य सिद्ध हुई। कतिपय बुद्धिजीवियों का विचार है कि संघ ने अनेक महापुरुषों को निर्मित किया किन्तु उन्हें कोई चेहरा नहीं दिया। वास्तव में संघ स्वयंमेव चेहरा है। यहां ध्येयवाद है अत: व्यक्तिवाद के लिए कोई स्थान ही नहीं। पू़ डॉ़ हेडगेवार जी की अपने समय में प्रसिद्धि कितनी थी, पर आज करोड़ों लोग उन्हें जानते हैं। उसी प्रकार समय के साथ ठेंगड़ी जी को जानने वाले भी सारे विश्व में करोड़ों लोग होंगे। महान लोगों की यही पहचान होती है कि समय के साथ उनके द्वारा प्रतिपादित विचार की छाया दूर तक जाती है और उनकी स्वयं की ख्याति भी बढ़ती जाती है।
1950-60 के दशक में मार्क्सवाद भारत में अपने चरम पर था। इसी कालखण्ड (1955) में दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा राष्ट्रवाद पर आधारित भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की घोषणा की गई। यह शून्य से सृष्टि निर्माण की घोषणा थी। तब राष्ट्रवादियों के लिए श्रम-संघ क्षेत्र में पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं था और न ही भारत माता की जय बुलाने वाला और न ही भगवा ध्वज उठाने वाला कोई था। यह साम्यवादी जबड़े के भीतर बैठ कर उसके दांत उखाड़ने जैसा दुरूह कार्य था, किन्तु परिदृश्य में शनै:-शनै: अपने संगठन कौशल, दृढ़ संकल्प और दूरदृष्टि से दत्तोपंत ठेंगड़ी भगवा रंग भरने में पूर्णतया सफल हुए। सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र में वैचारिक क्रान्ति का यह महा-अभियान अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे सफल हो सका, इस पर अब वैश्विक विचार-मंचों पर चर्चा और जानकारी प्राप्त करने की होड़ मची हुई है और दत्तोपंत जी द्वारा लिखित पुस्तक 'थर्ड वे' की खोज हो रही है।
'दत्तोपंत ठेंगड़ी-जीवन दर्शन' ग्रंथमाला के प्रथम दो खण्डों के लोकार्पण के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने अपने उद्बोधन मंे कहा था, ''एक अधूरे विचार दर्शन के रूप में पूंजीवाद और साम्यवाद के आधार पर ये दो ही विचार दुनिया में चलते रहे। तीसरा भी मार्ग जिनको मालूम है, उनकी दुनिया में कोई सुने ऐसी, उनकी स्थिति नहीं थी। दुनिया की बात छोड़ दें तो उनके अपने देश में भी उनकी सुनने वाला कोई नहीं था। उस स्थिति में भी एक अन्य विचार के आधार पर तरह-तरह के दर्शन खड़े करना, उस विचार का पूरा मण्डन करना, यह कितना कठिन काम है। कितनी बौद्धिक प्रतिभा उस काम में लगी तो यह काम करने वालों में दत्तोपंत हैं।''
ठेंगड़ी जी कहते थे, ''हम 'वर्ग संघर्ष' नहीं, 'वर्ग समन्वय' में विश्वास करते हैं। हम 'संघर्षवादी' नहीं, संघर्षक्षम हैं। हम संघर्ष के लिए संघर्ष की राजनीति नहीं अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए सदैव सन्नद रहते हैं। हमारा दलगत राजनीति नहीं, सर्वसमावेशी राष्ट्रनीति में प्रबल विश्वास है। राष्ट्रहित और उद्योगहित के अन्तर्गत मजदूर हित हमारी प्राथमिकता है।'' उन्होंने आगे कहा कि मजदूरों का राष्ट्रीयकरण, राष्ट्र का औद्योगीकीकरण और उद्योगों का श्रमिकीकरण करो। उन्होंने वामपंथियों के नारे 'दुनिया के मजदूरो एक हो, एक हो' के स्थान पर कहा, 'मजदूरो, दुनिया को एक करो' और 'इंकलाब' के स्थान पर 'वन्दे मातरम्' और 'भारत माता की जय' के उद्घोष दिए, जिन्हें मजदूरों ने सहज ही स्वीकार किया।
यूरोप के मध्य में बैठे साधनयुक्त कार्ल मार्क्स जब 'दास कैपिटल' की रचना और साम्यवादी विचार दर्शन को विश्व में संप्रेषित कर रहे थे, उसके एक सौ वर्ष उपरान्त भारत में सीमित साधनों द्वारा दत्तोपंत ठेंगड़ी 'भारतीय मजदूर संघ क्यों', 'साम्यवाद अपनी ही कसौटी पर' आदि छोटी-छोटी पुस्तिकाएं लिख कर छोटी-मोटी विचार गोष्ठियों में अपने विचार रख संगठन कार्य के आधार को सुदृढ़ करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। प्रखर राष्ट्रप्रेम, उच्च आदर्श, प्रबल ध्येयवाद तथा 'सत्य सिद्धान्त की विजय' पर अटूट आस्था के कारण निरासक्त कर्मयोगी ठेंगड़ी जी ने सभी बाधाओं, अवरोधों और विरोधों को ध्वस्त करते हुए 35 वर्ष की लघु अवधि की संगठन यात्रा के पश्चात् शून्य से प्रारंभ किए गए संगठन को भारत के समस्त केन्द्रीय श्रमिक संघों से आगे प्रथम स्थान पर स्थापित कर दिया। लाल रंग के रंग उड़ गए और भगवा चतुर्दिक फहराने लगा। विश्व विचार मंच पर आज पूंजीवाद के पराभव और साम्यवाद के टूट कर बिखर और विलुप्त हो जाने के पश्चात् जो रिक्तता व्याप्त हुई है, उसे भरने के लिए दुनिया अब भारत की ओर देख रही है।
भारत सरकार ने जब भारतीय मजदूर संघ को प्रथम क्रमांक का श्रम संघ घोषित किया तो कार्यकर्ताओं ने ठेंगड़ी जी से कहा कि अब क्यों न हम आगे बढ़कर विश्व श्रम संघ का नेतृत्व करें और वैश्विक आर्थिक संरचना को मानवतावादी भारतीय आर्थिक चिंतन के आधार पर पुन:स्थापित व निर्देशित करें। कहीं दूर देखते हुए ठेंगड़ी जी ने कहा, ''धैर्य रखिए, अपने कार्य को बढ़ाते जाइए, विश्व स्वयं हमारे पीछे आएगा।'' वर्तमान परिस्थितियां उनके कथन को आज अक्षरश: सत्य सिद्ध करती हुई दिखाई दे रही हैं।
हरिद्वार में 'दत्तोपंत ठेंगड़ी-जीवन दर्शन' के पाँचवंे और छठे खण्ड के लोकार्पण के अवसर पर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने कहा, ''एक संत सम्मेलन में दत्तोपंत जी का बौद्धिक सुनने के पश्चात् ऐसे लगा मानो चाणक्य के दर्शन हो गए हैं।'' उन्होंने आगे कहा कि ठेंगड़ी जी 12 वर्ष तक सांसद रहे किन्तु वे चाय गुमटी, जहां श्रमिक चाय पीते हैं, पर जाकर ही पीते थे। उनसे वार्ता करते लगता था जैसे हम एक ऐसे मनीषी के समक्ष बैठे हैं जिसने वषार्ें पूर्व चन्द्रगुप्त को तैयार किया था।
'अलौकिक नो भावे लोकांप्रति' संत तुकाराम की वाणी को दत्तोपंत जी ने अपने जीवन में चरितार्थ किया। अलौकिक प्रतिभा, बहुमुखी, बहुआयामी और विशाल व्यक्तित्व के धनी होते हुए भी वे सदैव लौकिक ही बने रहे। हैदराबाद में 'दत्तोपंत ठेंगड़ी-जीवन दर्शन' के तीसरे और चौथे खण्ड के लोकार्पण के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा, ''जब मैं बेंगलुरू में विद्यार्थी था तब ठेंगड़ी जी की एक व्याख्यानमाला में चार उद्बोधन सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। लगता था, उनकी जानकारी और ज्ञान की कोई थाह ही नहीं है। मैंने अपने बड़े भाई को एक लम्बा पत्र लिखा जिसमें ठेंगड़ी जी के बारे में लिखा कि I could see a man who is an encyclopaedia of knowledge by himself.
वे ज्ञान के भण्डार हैं।''
प्रख्यात अर्थशास्त्री एस. गुरुमूर्ति ने ठेंगड़ी जी के बारे में लिखा है He could perhaps discover 13th month in a year and 25th hour in a day. उनकी व्यस्तताओं का कहीं कोई अंत नहीं था फिर भी वे सदैव प्रसन्नचित्त ही दिखते थे। किसी एक सामान्य श्रमिक की बात वे घंटों सुन सकते थे। 'आर्गनाइजर' के पूर्व संपादक आऱ बालाशंकर ने एक बार वरिष्ठ प्रचारक श्री पी़ परमेश्वरन से पूछा कि गीता में 'जीव मूल्य' शब्द की क्या व्याख्या करेंगे? श्री परमेश्वरन ने कहा, 'दत्तोपंत को देख लो, वे उसके जीवन्त उदाहरण हैं'।
दत्तोपंत जी को श्रीगुरुजी के विचारों का भाष्यकार माना जाता है। ठेंगड़ी जी के जीवन के श्रद्धा केन्द्र में दो विभूतियों को अति विशिष्ट स्थान प्राप्त था- उनकी पूज्य माता जी तथा श्रीगुरुजी। संगठन की दिशा तय करने में ठेंगड़ी जी को श्रीगुरुजी का परम स्नेह और मार्गदर्शन सदैव प्राप्त रहा। परिणामस्वरूप जिन जन-संगठनों की ठेंगड़ी जी ने स्थापना की वे सभी आज शीर्ष पर हैं। सामाजिक कायार्ें में ठेंगड़ी जी की माता जी का भी भरपूर स्नेह और आशीर्वाद मिला।
(लेखक भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे हैं)
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