रक्षाबंधन पर्व पर प. पू. गुरुजी का राष्ट्र को आह्वानराष्ट्रीय अस्मिता संकट में: हिन्दू संगठन एकमेव उपाय
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रक्षाबंधन पर्व पर प. पू. गुरुजी का राष्ट्र को आह्वानराष्ट्रीय अस्मिता संकट में: हिन्दू संगठन एकमेव उपाय

by
Sep 26, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Sep 2016 12:59:25

पाञ्चजन्य
वर्ष: 13  अंक: 7
31 अगस्त ,1959
इतिहास के पन्नों से

रक्षाबंधन पर्व पर प. पू. गुरुजी का राष्ट्र को आह्वान
राष्ट्रीय अस्मिता संकट में: हिन्दू संगठन एकमेव उपाय

नागपुर , 19 अगस्त :  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने कल रा.स्व.संघ की नागपुर शाखा के रक्षाबंधन महोत्सव के अवसर पर अपने प्रस्ताविक भाषण में कहा कि आज देश के बाहर से तथा भीतर से हिंदू समाज पर आक्रमण हो रहे हैं। हिंदू समाज, जो कि इस भूमि में पुत्र के रूप में रहता है, आत्मविस्मृति में डूबा हुआ है। ऐसी अवस्था में प्रत्येक स्वाभिमान संपन्न हिंदू का कर्तव्य है कि वह राष्ट्र जीवन की सुरक्षा का मार्ग ढूंढ निकाले। भारत अपनी पवित्र माता तथा हम उनके पुत्र हैं। एक परिवार के रूप में हम इस पवित्र भूमि पर रहते हैं।  इस महान विशाल हिंदू समाज रूपी परिवार का एक धर्म, एक संस्कृति, एक राष्ट्र जीवन है, उसकी श्रद्धा, आदर तथा स्वाभिमान की बातें एक हैं, तथा उनकी रक्षा का दायित्व हम पर है, यह भाव प्रत्येक हिंदू में जागृत करना होगा। इस सूत्र में समाज की बिखरी हुई शक्ति को एकत्रित कर हम उसे इस प्रकार खड़ी करेें कि आक्रमण के बादल उससे टकराकर तितर-बितर हो जाएंगे तथा इस राष्ट्र का वैभव सूर्य पूर्ण आभा के साथ चमकने लगेगा।
श्री गुुरुजी ने अपने भाषण में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की केंद्र शाखा का आज रक्षाबंधन तथा गुरुदक्षिणा समर्पण महोत्सव है। संघ के कार्य का विवरण देने की आवश्यकता नहीं है, जनता भली-भांति उससे परिचित है। 1925 में संघ का निर्माण हुआ। आज नागपुर में संघ के संस्थापक के साथ जिनके स्नेह के संबंध थे ऐसे मान्य व्यक्ति विद्यमान हैं तथा उनके अंतकरण में संस्थापक की स्मृति आज भी आदर के साथ विद्यमान है। कार्य का स्मरण दिलाने की दृष्टि से ही मैं उसका अल्प-सा विवरण प्रस्तुत करूंगा।
इतिहास का साक्ष्य: संघ का कार्य ऐतिहासिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने की दृष्टि से प्रारंभ हुआ है। यह सर्व सम्मत बात है कि हमारे देश का इतिहास इस भूमि के साथ जिसका पुत्र का नाता है उस हिंदू समाज का ही इतिहास हमारी आंखों के सामने आता है। प्रारंभकाल से जो विशाल जनसमुदाय हिंदू समाज के रूप में उपस्थित है उसके सुख-दुख, उत्कर्षोपकर्ष का इतिहास ही इस देश का इतिहास है।  परन्तु इस इतिहास को, बीच में अंग्रेजों के रूप में जो विदेशी राजसत्ता यहां दिखाई दी उससे विशिष्ट हेतु रखकर विकृत रूप में प्रस्तुत किया। प्रारंभिक इतिहास को उसने बेसिरपैर की बातें कहा। उन्होंने बताया कि मुसलमान तथा अंग्रेजी सत्ता के कालखंड का ही इस देश का सूत्रबद्ध इतिहास मिलता है। उन्होंने इसी साहित्य की शिक्षा बालकों को दी। परंतु अपने देश के मनीषियों तथा विद्वानों ने सही इतिहास का पता लगाकर इतिहास को विकृत स्वरूप देने की विदेशी विजेताओं की राजनीतिक चाल को स्पष्ट कर दिया। प्राचीन काल से हिंदू समाज का  गौरव का इतिहास है। बीच में मुसलमानों के आक्रमण हुए। परंतु उसके विरुद्ध हिंदू समाज ने सफल-असफल प्रयत्न बराबर किए। व्यापार के निमित्त यहां आए हुए तथा बाद में अपनी सत्ता स्थापित करने वाले अंग्रेजों के विरुद्ध भी इस समाज ने अविरत संघर्ष किया। अंग्रेजों के आने से लेकर उनके चले जाने तक ऐसा एक भी क्षण नहीं है, जबकि हिन्दू समाज ने उस सत्ता को आह्वान न दिया हो। जब हिंदू समाज जागृत रहा, उसकी स्थिति अच्छी रही, तब इस राष्ट्र के उत्कर्ष के दिन देखने को मिले परन्तु जब जागरण मंद पड़ गया, समाज आत्मविस्मृति में डूब गया तब उसे पराजय, अपमान दु:ख दासता के दिन देखने को मिले।..

प्रधानमंत्री ने केरल से कुछ नहीं सीखा?
कम्युनिस्टों के बारे में प्रधानमंत्री का स्वर सम्पूर्ण राष्ट्र  से भिन्न

(डॉ. कृष्णलाल श्रीधराणी)
जब लोकसभा में केरल-विवाद के प्रसंग में कम्युनिस्ट डांगे ने श्री नेहरू की तुलना युधिष्ठिर से करते हुए कहा कि जिस प्रकार अश्वत्थामा के प्रकरण में कुछ झूठ बोलने के कारण युधिष्ठिर
का जो रथ जमीन से ऊंचा चलता था, वह जमीन को छू गया, उसी प्रकार अब प्रधानमंत्री का रथ भी जमीन पर आ गया है। अब वह भी वह अन्य लोगों के समान मर्त्य बन गए हैं।'' तो जनसंघ दल के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री की वकालत करते हुए कम्युनिस्ट आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया और कहा, ''चूंकि प्रधानमंत्री का रथ अब तक जमीन से ऊपर था, इसीलिए इस देश की धरती पर कम्युनिस्टों के पैर जम सके। पर अब क्योंकि उनका रथ धरती पर आ गया है अत: अब कम्युनिस्ट धरती पर नहीं रह सकते। उन्हें जमीन के अन्दर जाना ही होगा।'' श्री अटल जी के कथन में निहित संकेत के साथ पूरी लोकसभा की भावनाएं थीं, इसका पता इसी से चलता है कि पूरा सदन तालि़यों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।  कांग्रेस सदस्यों ने हर्षातिरेक में खुलकर अपनी मेजों को बजाया, यहां तक कि स्वयं प्रधानमंत्री की बगल में बैठे हुए संसदीय मामलों के मंत्री श्री सत्यानारायण सिन्हा ने भी अपनी सीट की बांहों को धीरे-धीरे पीटकर कम्युनिस्टों पर श्री वाजपेयी के प्रतिबंध लगाने के अप्रत्यक्ष सुझाव का स्वागत किया। किन्तु शायद अभी राष्ट्र की ओर भी दुर्भाग्य देखना बाकी है क्योंकि प्रधानमंत्री ने जानबूझकर केरल से कुछ नहीं सीखा है।  प्रधानमंत्री का कम्युनिस्टों के प्रति नरम दृष्टिकोण बदला नहीं है और उन्होंने केरल में केन्द्रीय हस्तक्षेप का समर्थन जनता के हित में नहीं तो कम्युनिस्टों को जनरोष में भस्म होने से बचाने के लिए ही किया। प्रधानमंत्री नेहरू एवं गृहमंत्री पं. गोविन्द वल्लभ पंत लोकसभा में केरल पर भिन्न-भिन्न ढंग से बोले। …

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