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आखिरकार हरियाणा में सत्ता पिरवर्तन के करीब 20 महीने बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खासमखास भूपंेद्र सिंह हुड्डा पर जमीन का जंजाल भारी पड़ता दिख रहा है
वाड्रा की यह कंपनी वर्ष 2007 में ही अस्तित्व में आई तब इसके खाते में महज 50 लाख रुपये थे।
राज्य सरकार के इशारे पर महज नौ दिनांे में ही कंपनी को लाइसेंस जारी कर दिया गया
कॉलोनी निर्माण का लाइसेंस हासिल होने के महज 5 महीने बाद ही वाड्रा की कंपनी ने जमीन डीएलएफ को 58 करोड़ रु. में बेच दी।
हिमांशु
खिरकार हरियाणा में सत्ता परिवर्तन के करीब 20 महीने बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खासमखास भूपंेद्र सिंह हुड्डा पर जमीन का जंजाल भारी पड़ता दिख रहा है। अपने कार्यकाल में विभिन्न सौदोें के जरिए हुई किसानों की जमीन लूट के मामले में हुड्डा अब कानून के घेरे में हैं। उम्मीद तो यह थी कि हुड्डा पर पहली कानूनी गाज कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच हुए जमीन सौदा मामले में गिरेगी, जिसकी रिपोर्ट 31 अगस्त को जस्टिस ढींगरा आयोग ने सौंपी है। हालांकि सीबीआई ने इस चर्चित जमीन सौदा मामले के इतर मानेसर में किसानों की जमीन की हुई खुली लूट मामले में ताबड़तोड़ छापेमारी कर हुड्डा की मुसीबतें बढ़ा दीं। भविष्य में हुड्डा की मुश्किलें तब और बढंे़गी जब राज्य की मनोहर लाल खट्टर सरकार ढींगरा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर कानूनी कार्रवाई का रास्ता चुनेगी। हालांकि ढींगरा आयोग की रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं हुई है, मगर कैग के बाद इस आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में वाड्रा-डीएलएफ जमीन सौदे में अनियमितता की बात स्वीकार करते हुए हुड्डा समेत मामले से जुड़े नौकरशाहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की है। रिपोर्ट सौंपने के बाद खुद जस्टिस ढींगरा ने यह कह कर इस जमीन सौदे में गंभीर अनियमितता बरते जाने का साफ संदेश दिया है कि अगर इसमें भ्रष्टाचार नहीं होता तो वह सिर्फ एक पेज की रिपोर्ट ही देते।
वाड्रा-डीएलएफ जमीन सौदा गड़बड़झाले से पहले मानेसर जमीन घोटाले की बात करते हैं जिसमें सरकार, नौकरशाही और बिल्डरों के गिरोह ने मिल कर सैकड़ों किसानों की 400 एकड़ जमीन डरा धमकाकर हथिया ली। अगस्त 2004 से अगस्त 2007 तक हुए इस खेल को बेनकाब करने के लिए खट्टर सरकार ने बीते साल सितंबर महीने में इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश तब की जब मानेसर के पूर्व सरपंच ओमप्रकाश यादव ने शिकायत दर्ज कराई। हुआ यह कि टाउनशिप डेवलप कराने के बहाने तत्कालीन हुड्डा सरकार ने अगस्त 2004 में मानेसर, नौरंगपुर और लखडौला गांव की 912 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने के लिए नोटिस जारी कर दिया। एक साल बाद इनमें से 688 एकड़ जमीन के लिए धारा 6 के तहत नोटिस जारी किए गए। इसके दो साल बाद धारा 9 के तहत अधिग्रहण का अंतिम नोटिस जारी कर किसानों को मुआवजे की तारीख तय कर दी गई। राज्य सरकार जब यह प्रक्रिया अपना रही थी तब निजी बिल्डरों ने सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे नेताओं और नौकरशाहांे के माध्यम से किसानों को अधिग्रहण का भय दिखा कर इससे आसपास की 400 एकड़ जमीन खरीद ली। जब निजी बिल्डरों का जमीन खरीदने का काम पूरा हो गया तो सरकार ने आनन-फानन 24 अगस्त, 2007 को अधिग्रहित जमीन को न सिर्फ अधिग्रहण से मुक्त कर दिया, बल्कि इसका लैंड यूज बदलने के बाद कॉलोनी निर्माण के लाइसेंस के साथ निजी बिल्डरों और कंपनियों को दे दिया। इसी मामले में सीबीआई की 11 टीमों ने बीते हफ्ते हुड्डा और उनके करीबी नेताओं-नौकरशाहों के 24 ठिकानांे पर छापेमारी की। जिन नौकरशाहों के यहां छापे मारे गए उनकी वाड्रा-डीएलएफ लैंड डील में भी भूमिका रही है। हरियाणा के परिवहन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव एसएस ढिल्लों, हुड्डा सरकार में प्रधान सचिव रहे एमएल तायल, हुड्डा के ओएसडी रहे रणधीर सिंह सरोहा, यूपीएससी सदस्य छतर सिंह और गुड़गांव में 2 बिल्डरों के परिसर पर भी छापे मारे गये।
गुड़गांव में वाड्रा-डीएलएफ जमीन सौदा मामले की कहानी भी मानेसर जमीन सौदा मामले की तरह ही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटालिटी ने 12 फरवरी, 2008 को गुड़गांव के शिकोहपुर में साढ़े तीन एकड़ कृषि भूमि, साढ़े सात करोड़ रु. में खरीदी। इसके बाद कंपनी ने मार्च महीने में इसका लैंड यूज बदलने और कॉलोनी निर्माण का लाइसंेस हासिल करने के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के पास आवेदन दिया। चूंकि मामला कांग्रेस अध्यक्ष के दामाद का था, इसलिए राज्य सरकार के इशारे पर महज नौ दिनांे में ही कंपनी को लाइसेंस जारी कर दिया गया। इससे संबंधित फाइल से जुड़े 9 अधिकारियांे में से कई ने तो महज तीन दिन में ही फाइल आगे बढ़ा दी। इस पूरे मामले का असली खेल तब सामने आया जब कॉलोनी निर्माण का लाइसेंस हासिल होने के महज 5 महीने बाद ही वाड्रा की कंपनी ने जमीन डीएलएफ को 58 करोड़ रु. में बेच दी। मजे की बात यह है कि वाड्रा की यह कंपनी वर्ष 2007 में ही अस्तित्व में आई तब इसके खाते में महज 50 लाख रुपये थे। सौदा होने से पूर्व डीएलएफ ने जिस प्रकार वाड्रा की कंपनी को 5 करोड़ रुपये बतौर एडवांस दिए, उसी से यह साफ हो गया था कि सब कुछ पूर्व नियोजित था। हालांकि इस मामले की जांच करने वाले ढींगरा आयोग से जुड़े सूत्र आधिकारिक तौर पर कुछ कहने से बच रहे हैं। मगर इनका कहना है कि अनियमितता शीशे की तरह साफ है। आयोग ने कॉलोनी का लाइसंेस देने वाले सभी नौ अधिकारियों, पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा और वाड्रा की कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की सिफारिश की है। जाहिर है कि जमीन सौदे का गड़बड़झाला हुड्डा के जी का जंजाल बनता जा रहा है।
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