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इलाहाबाद के आयुक्त राजन शुक्ल बचपन से रक्तदान कर रहे हैं। वे अब तक 104 बार रक्तदान कर चुके हैं। उनकी प्रेरणा से अब अनेक लोग नियमित रूप से रक्तदान करते हैं। राजन की पहल से रक्तदान को लेकर अनेक भ्रांतियां टूट रही हैं और जरूरतमंदों को रक्त मिल रहा है
सनील राय
आज रक्त की कमी से अनेक लोग असमय मौत के मुंह में चले जाते हैं। इसे देखते हुए अनेक लोग स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं। ऐसे लोगों में से एक हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजन शुक्ल। शुक्ल अब तक 104 बार रक्तदान कर चुके हैं। वे करीब 19 वर्ष की आयु से ही रक्तदान कर रहे हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के बाद भी उन्होंने रक्तदान करने का सिलसिला जारी रखा है।
राजन शुक्ल इन दिनों इलाहाबाद में आयुक्त के पद पर तैनात हैं। इस पद पर रहते हुए भी वे समय-समय पर रक्तदान करते हैं।
उनका बचपन बिहार प्रांत में बीता है। उनके पिता बिहार पुलिस में डिप्टी एस. पी. के पद पर रह चुके हैं। शुक्ल कहते हैं, ''मैं जब छोटा था तो मेरे आसपास अक्सर रक्तदान शिविर लगते थे। उनमें मेरे पिताजी के साथ-साथ अनेक लोग रक्तदान करते थे। मैं भी रक्तदान करने के लिए मचलता था, पर उम्र छोटी होने की वजह से रक्तदान नहीं कर पाता था। 18 वर्ष से पहले कोई रक्तदान नहीं कर सकता। मुझे याद है जब मैं करीब 19 वर्ष का था तब मैंने एक रक्तदान शिविर में पहली बार रक्तदान किया था।''
शुक्ल बताते हैं कि पहले तो रक्तदान की इतनी आधुनिक मशीनें नहीं होती थीं। रक्त को बहुत दिनों तक सुरक्षित रख पाना संभव नहीं था मगर अब अत्यंत आधुनिक मशीनें आ चुकी हैं। रक्त को काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। रक्त संबंधी हर तरह की जांच बहुत आसान हो गई है। रक्तदान करने वाला किसी भी ब्लड ग्रुप का हो, उसे जिस ग्रुप के रक्त की जरूरत होती है, उस ग्रुप का रक्त, ब्लड बैंक से मिल जाता है। एक बार रक्तदान करके एक साथ तीन लोगों की मदद की जा सकती है। शुक्ल बताते हैं कि रक्त में लाल रक्त कणिकाओं, श्वेत रक्त कणिकाओं और प्लाज्मा को अलग कर लिया जाता है।
राजन मानते हैं कि रक्तदान को लेकर समाज में अभी भी कई प्रकार की भ्रांतियां हैं। अस्पतालों में जब रक्त की जरूरत पड़ती है तो मरीज के परिजन एक-दूसरे का मुंह देखने लगते हैं। वे यह सोचते हैं कि कोई दूसरा उनके परिजन को आकर रक्त दे दे। यहां तक कि कई बार तो परिजन यह उम्मीद करते हैं कि इलाज करने वाला डॉक्टर ही रक्तदान कर दे। इस सोच पर राजन कहते हैं कि लोगों में रक्तदान के प्रति भय बना हुआ है, जबकि रक्तदान करना स्वास्थ्य के लिए कतई हानिकारक नहीं है।
आज हमारे समाज में रक्त का जितना भंडार होना चाहिए, जागरूकता की कमी से उतना नहीं हो पा रहा है। अगर सभी लोग रक्तदान के प्रति हिचक को छोड़कर आगे आएं तो बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती है।
शुक्ल ने इलाहाबाद में जिला अस्पताल के कुछ लोगों को रक्तदाताओं को चिन्हित कर के उनकी सूची को कम्प्यूटर में सुरक्षित रखने को कहा है। शहर में दो जिला अस्पताल हैं और एक मेडिकल कॉलेज। रक्तदाताओं की सूची इस तरह से तैयार की जा रही है कि किसी भी रक्तदाता को रक्तदान करने के लिए दूर के अस्पताल में न जाना पड़े। रक्तदाता को उसके नजदीक के अस्पताल में ही बुलाकर रक्त लिया जाएगा। जो लोग रक्त दे चुके होंगे उनसे तीन महीने के बाद संपर्क किया जाएगा। ऐसे लोगों पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा, जिनके रक्त ग्रुप का आऱ एच. फैक्टर निगेटिव हो। ऐसे रक्त ग्रुप कम पाए जाते हैं। इसलिए अस्पतालों के रक्तकोषों में आऱ एच. फैक्टर निगेटिव वाले ब्लड ग्रुप का भंडार अधिक से अधिक बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा।
शुक्ल इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन के ब्लड बैंक में जा चुके हैं। इलाहाबाद और उसके आसपास क्षेत्र में जहां भी रक्तदान शिविर लगते हैं, राजन वहां जाने की कोशिश करते हैं और लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करते हैं। इन सबके पीछे उनका एक ही उद्देश्य है समाज में रक्त का अभाव दूर हो और किसी की जान रक्त के अभाव में न जाए। ल्ल
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